एरोपॉनिक खेती सीखकर, आप जौनपुर में, बिना मिट्टी के, ताज़े फल और सब्ज़ियां उगा सकते हैं !

भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)
26-03-2025 09:12 AM
एरोपॉनिक खेती सीखकर, आप जौनपुर में, बिना मिट्टी के, ताज़े फल और सब्ज़ियां उगा सकते हैं !

कुछ जौनपुर के लोगों के लिए, ‘एरोपॉनिक खेती’ (Aeroponic Farming) एक नया शब्द हो सकता है। यह एक तरीका है, जिसमें पौधे बिना मिट्टी के उगाए जाते हैं। इसमें पौधों को एक खास घोल के छींटों से पोषित किया जाता है। यह शब्द ग्रीक भाषा के ‘एयर’ (हवा) और ‘पोनोस’ (काम) शब्दों से आया है। हाल के सालों में, यह तरीका भारतीय किसानों के बीच बहुत पसंद किया जाने लगा है क्योंकि यह सस्ता, टिकाऊ और पूरे साल ताज़े फल और सब्ज़ियां उगाने में मदद करता है। टमाटर, गाजर, फूलगोभी, हरी पत्तेदार सब्ज़ियां, और तुलसी जैसे पौधे इस तरीके से उगाए जाते हैं।

आज हम इस खेती के बारे में और इसके फ़ायदे समझेंगे। फिर, हम जानेंगे कि यह कैसे काम करती है। इसके बाद, हम इसके लिए इस्तेमाल होने वाले उपकरणों के बारे में बात करेंगे, जैसे स्प्रे मिस्टर्स (spray misters), पानी का पंप (water pump)और पी एच मीटर (pH meter)। अंत में, हम यह जानेंगे कि भारत में इस खेती से कौन सी फसलें उगाई जाती हैं और इसे ज़्यादाइस्तेमाल करने में कौन सी मुश्किलें हो सकती हैं।

एरोपॉनिक खेती क्या है? 

एरोपॉनिक खेती एक तरीका है जिसमें पौधे मिट्टी के बिना सिर्फ हवा या पानी की धुंआ जैसी चीजों में उगाए जाते हैं। ‘एरोपॉनिक’ शब्द दो ग्रीक शब्दों से आया है, एक ‘एयर’ (हवा) और दूसरा ‘पोनोस’ (काम)। इस तरीके में पौधों को एक बंद या खुली जगह में लटका दिया जाता है, और उनके नीचे के तने और जड़ों पर पोषक तत्वों से भरी हुई बूँदें डाली जाती हैं। पौधे का ऊपर का हिस्सा पत्तियाँ और सिर होता है, जो ऊपर की ओर बढ़ता है। जड़ों को पौधे की सहारा देने वाली संरचना से अलग रखा जाता है।

एरोपॉनिक तरीके से उगाई गई केल | चित्र स्रोत : Wikimedia

एरोपॉनिक खेती के फ़ायदे

  • ज़्यादा पैदावार: पारंपरिक खेती में पौधों की जड़ें ज़मीन में दबी होती हैं, जिससे पौधों को पानी और पोषक तत्वों की सीमित मात्रा मिलती है। एरोपॉनिक खेती में, पौधे ज़्यादा पानी और पोषक तत्व प्राप्त करते हैं, इसलिए यहां पैदावार भी ज़्यादाहोती है।
  • कम पानी की ज़रुरत: पारंपरिक खेती की तुलना में एरोपॉनिक खेती में बहुत कम पानी का इस्तेमाल होता है। कुछ स्थितियों में तो 90% तक कम पानी इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • कम उर्वरक का इस्तेमाल: एरोपॉनिक सिस्टम में उर्वरक की ज़रूरत नहीं होती क्योंकि पानी की धुंआ पौधों को सभी जरूरी पोषक तत्व देता है। इससे पर्यावरण पर असर कम पड़ता है और लागत भी घटती है।
  • कीटनाशकों की ज़रुरत नहीं: एरोपॉनिक सिस्टम में कीटनाशकों की ज़रूरत नहीं होती क्योंकि यहां मिट्टी नहीं होती, जिसमें कीड़े रह सकते हैं। इससे पर्यावरण पर असर कम पड़ता है और खर्च भी बचता है।
  • कम ज़मीन की ज़रुरत: एरोपॉनिक सिस्टम को ऊर्ध्वाधर (वर्टिकल) तरीके से बनाया जा सकता है, जिससे कम जगह में खेती हो सकती है। यह खासतौर पर शहरों में बहुत फ़ायदेमंद है, जहां जगह कम होती है।
  • मिट्टी का प्रदूषण नहीं: पारंपरिक खेती में मिट्टी का प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन सकता है। लेकिन एरोपॉनिक खेती में मिट्टी की ज़रूरत नहीं होती, इसलिये प्रदूषण का खतरा बहुत कम होता है।
एरोपॉनिक प्रणाली | चित्र स्रोत : Wikimedia 

एरोपॉनिक खेती कैसे काम करती है?

एरोपॉनिक खेती का उद्देश्य, पौधों को स्वस्थ रूप से बढ़ाने में मदद करना है। यह एक बंद वातावरण में की जाती है, जहाँ किसान पूरे सिस्टम के सभी पहलुओं को नियंत्रित करते हैं।

पौधों को बड़े वर्टिकल ग्रो रैक्स (vertical grow racks) में रखा जाता है। एक बड़े पानी के जलाशय में ज़रूरी जैविक तरल पोषक तत्व, जैसे नाइट्रोजन, फ़ॉस्फ़ोरस और पोटेशियम डाले जाते हैं। ये जैविक पोषक तत्व पौधों द्वारा आसानी से अवशोषित किए जाते हैं, जिससे पौधों को जल्दी और आसानी से पोषण मिलता है। पौधों को खाना खोजने की ज़रूरत नहीं होती क्योंकि यह पोषक तत्वों से भरपूर धुंआ सीधे जड़ों तक पहुँचता है। इनडोर ग्रो लाइट्स को इस तरह से सेट किया जाता है कि वे पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए विशेष तरंगदैर्ध्य में आते हैं। पूरे वातावरण को तापमान और आर्द्रता के लिए कुछ सीमा में रखा जाता है।

इस सिस्टम से पौधों का पोषण अवशोषण अधिकतम होता है और पौधों पर कम दबाव पड़ता है, जिससे स्वस्थ और बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पाद मिलते हैं। एरोपॉनिक खेती से उगे पौधे ज़्यादापोषक तत्वों से भरपूर होते हैं और उनका रंग, बनावट और स्वाद भी बेहतर होता है।

एरोपॉनिक खेती में इस्तेमाल होने वाले उपकरण

  • स्प्रे मिस्टर्स (Spray Misters): ये नोज़ल के ज़रिए पानी को धुंआ जैसा बना कर पौधों की जड़ों तक पहुंचाते हैं। ये नोज़ल अलग-अलग आकार के होते हैं, और बड़े नोज़ल ज़्यादा पानी छोड़ते हैं, लेकिन इन्हें चलाने के लिए ज़्यादा दबाव चाहिए होता है। सबसे अच्छी बूंद का आकार 20–100 माइक्रॉन होता है, जो पौधों के लिए सबसे सही होता है।
  • हाई प्रेशर वॉटर पंप (High Pressure Water Pump): ये पंप पानी को इतने दबाव में डालते हैं कि वो छोटे-छोटे बूंदों में बदल जाएं, ताकि पौधों को सही तरीके से पोषक तत्व मिल सकें। ये पंप आमतौर पर डायाफ्राम पंप या रिवर्स ऑस्मोसिस बूस्टर पंप होते हैं।
  • पी एच   मीटर (pH Meter): पौधों के लिए पानी का पी एच 5.8 से 6.5 के बीच होना चाहिए। अगर पी एच सही नहीं होगा, तो पौधे अच्छे से पोषक तत्व नहीं ले पाएंगे। पी एच को 0 से 14 तक मापते हैं, जिसमें 7 से नीचे का पी एच अम्लीय और 7 से ऊपर का पी एच क्षारीय होता है।
  • ई सी   मीटर (EC Meter): ई सी (इलेक्ट्रिकल कंडक्टिविटी) पानी में घुले हुए पोषक तत्वों को मापता है। उदाहरण के लिए, सलाद के पौधों के लिए ई सी 1.6 सही होता है। अगर ई सी बहुत ज़्यादा बढ़ जाए, तो पौधे अच्छे से नहीं बढ़ पाएंगे।
वॉल्ट डिज़्नी वर्ल्ड (Walt Disney World) के एपकॉट (Epcot) नामक पार्क में द लैंड ग्रीनहाउस (The Land Greenhouse) में एरोपॉनिक तरीके से उगाई जा रही चाइव्ज़ (Chives) | चित्र स्रोत : Wikimedia

भारत में एरोपॉनिक पद्धति से कौन-कौन से पौधे उगाए जा सकते हैं?

  • टमाटर और बेल वाले पौधे: एरोपॉनिक पद्धति से टमाटर उगाना आसान हो जाता है। पारंपरिक खेती में जितनी मुश्किलें आती हैं, वह यहां नहीं होतीं। इस तरीके से साल में 5-6 बार टमाटर उगाए जा सकते हैं, जबकि आम तरीके से केवल 1-2 बार ही संभव हो पाता है ।
  • जड़ी-बूटियाँ: जैसे पुदीना, तुलसी, ऑरेगैनो, रोज़मैरी और चिव्स एरोपॉनिक पद्धति से आसानी से उगाई जा सकती हैं। इस तरीके से इन्हें उगाना कम मेहनत वाला होता है और इनका घनत्व ज़्यादा मिलता है। नए लोग पुदीना और चिव्स से शुरुआत कर सकते हैं।
  • पत्तेदार सब्ज़ियां: जैसे सलाद पत्तियाँ, बटरहेड लेटस,  रोमेन सलाद, और केल भी एरोपॉनिक पद्धति से उगाई जा सकती हैं।
  • फल और सब्ज़ियां: इस पद्धति से कई फल और सब्ज़ियां उगाई जा सकती हैं। जैसे गाजर, टमाटर, आलू, मटर, खीरा, मक्का, गोभी, बैंगन, स्ट्रॉबेरी, रसभरी, खरबूजा और  ।

भारत में एरोपॉनिक खेती को अपनाने में चुनौतियाँ

किसी भी प्रणाली के कुछ नुकसान होते हैं, और एरोपॉनिक खेती भी इससे अलग नहीं है। हालांकि भारत में इस खेती के तरीके को अपनाया गया है, फिर भी कई कारण हैं जिनकी वजह से यह व्यापक रूप से नहीं अपनाई जा रही है।

एरोपॉनिक खेती शुरू करने के लिए सही ज्ञान और प्रशिक्षण की ज़रूरत होती है, साथ ही इसमें आने वाली लागत भी एक चुनौती है। इसे अपनाने वाले को सिस्टम की सफ़ाई और रख-रखाव के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। चूंकि यह एक वैज्ञानिक प्रणाली है, इसलिए इसे चलाने वाले को अपनी जानकारी को हमेशा अपडेट रखना पड़ता है।

इसके कुछ हिस्से होते हैं, जिन्हें अगर ठीक से बनाए न रखा जाए तो वे काम नहीं कर पाते। साथ ही, एरोपॉनिक खेती के अंदर या बंद वातावरण में सही रोशनी और हवा की आपूर्ति बनाए रखना कभी-कभी मुश्किल हो सकता है, खासकर जब हम हवा में ऊर्ध्वाधर खेती की बात करते हैं। ऐसे में कृत्रिम रोशनी का इस्तेमाल बेहद ज़रूरी हो जाता है।

संदर्भ: 

https://tinyurl.com/3dzsjzd4 

https://tinyurl.com/4vwbfvsh 

https://tinyurl.com/yre64hya 

https://tinyurl.com/47fh5fe6 

https://tinyurl.com/mr3s5yr7 

मुख्य चित्र: एरोपॉनिक खेती (Wikimedia) 

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