
जौनपुर के कुछ लोग, इस तथ्य से अवगत हो सकते हैं कि, मानव उपभोग के लिए मादक शराब की बिक्री और खपत, बिहार, गुजरात, मिज़ोरम और नागालैंड में निषिद्ध है। जबकि, अन्य सभी भारतीय राज्य और केंद्र शासित प्रदेश, शराब की बिक्री और उपभोग की अनुमति देते हैं। इसलिए आज, यह समझने की कोशिश करते हैं कि, क्या शराब को अन्य राज्यों में भी निषिद्ध किया जाना चाहिए या नहीं। इसके पक्ष में कुछ तर्क, गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों में कमी, परिवार और सामाजिक कल्याण के मुद्दे, अपराध और हिंसा में कमी आदि हैं। इसके अलावा, हम भारत के विभिन्न राज्यों के लिए कानूनन अनुज्ञेय शराब सेवन उम्र का पता लगाएंगे। उसके बाद, हम कुछ प्रमुख कानूनों पर प्रकाश डालेंगे, जो भारत में शराब खपत को विनियमित करते हैं। अंत में, हम भारत में विभिन्न प्रकार के शराब लाइसेंस का पता लगाएंगे।
भारत में अल्कोहोल निषेध के पक्ष में तर्क:
1.) गंभीर स्वास्थ्य मुद्दों में कमी:
शराब की खपत और निर्भरता, कई मानसिक स्वास्थ्य विकारों जैसे कि – चिंता, घबराहट, अवसाद और कुछ मामलों में शराब से प्रेरित मनोभ्रंश से जुड़ी होती है। शराब की खपत और बिक्री पर प्रतिबंध, अंततः कई शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य विकारों में कमी लाएगा। इसके अलावा, शराब पर प्रतिबंध से सभी आबादी के सामान्य स्वास्थ्य में सुधार होगा। यह यकृत (Liver) की क्षति, हृदय संबंधी विकारों और कई समस्याओं जैसे मुद्दों में कमी के साथ मेल खाएगा।
2.) शराब प्रतिबंध के सामाजिक लाभ:
शराब पीने पर निषेध का, देश के समग्र समाज पर एक महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। शराब की खपत और इस पर निर्भरता, हमारे समाज में कुछ सबसे महत्वपूर्ण बुराइयों से जुड़ी हैं। शराब किसी व्यक्ति के अवरोधों को कम करती है, और संयम की भावना को दूर करती है, जिससे व्यक्ति में हिंसा का खतरा अधिक हो जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि, घरेलू हिंसा से संबंधित लगभग 55% मामले, शराब की खपत से प्रभावित होते हैं। इसके अलावा, महिलाओं के प्रति कुछ घरेलू दुर्व्यवहार और हिंसा के मामले भी, शराब के कारण होते है।
3.) सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधार:
शराब की खपत, स्वास्थ्य मुद्दों की एक विस्तृत श्रृंखला से जुड़ी होती है, जिसमें यकृत रोग, हृदय संबंधी समस्याएं और कैंसर शामिल हैं। शराब पर प्रतिबंध लगाने से सार्वजनिक स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण सुधार हो सकता है, और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर बोझ कम हो सकता है।
4.) शराब से संबंधित मौतों में कमी:
शराब का दुष्प्रयोग, दुनिया भर कई मौतों का एक प्रमुख कारण है। शराब को प्रतिबंधित करने से शराब से संबंधित दुर्घटनाओं, रोगों और घटनाओं के कारण होने वाली मौतों की संख्या कम हो सकती है।
5.) अपराध और हिंसा में कमी:
शराब की खपत और घरेलू हिंसा, हमले एवं हत्या सहित हिंसक व्यवहार और अपराधों में वृद्धि के बीच, एक मज़बूत संबंध है। शराब के निषेध से इन घटनाओं में कमी हो सकती है, व एक सुरक्षित समुदाय में योगदान मिल सकता है।
6.) परिवार और सामाजिक कल्याण:
शराब की लत का परिवारों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है, जिससे वित्तीय अस्थिरता, टूटे हुए रिश्ते और भावनात्मक संकट हो सकता है। इसपर निषेध पारिवारिक संरचनाओं की रक्षा करने, और कई व्यक्तियों के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर सकता है।
विभिन्न भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में, शराब सेवन की कानूनन अनुज्ञेय उम्र:
हरियाणा, चंडीगढ़, मेघालय और पंजाब में 25 साल की उम्र तक शराब पीने की अनुमति नहीं है। हालांकि, महाराष्ट्र ने 21 साल से अधिक उम्र तक बीयर और वाइन सेवन की अनुमति दी है। अधिकांश भारतीय राज्य और केंद्र शासित प्रदेश (UnionTerritories), 21 आयु पर, शराब सेवन की अनुमति देते हैं। इस सूची में अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बेंगाल शामिल हैं।
कुछ राज्य 18 आयु पर, शराब पीने की अनुमति देते हैं, जैसे कि – अंडमान निकोबार द्वीप, हिमाचल प्रदेश, केरल, मिज़ोरम, पुडुचेरी, राजस्थान, सिक्किम, आंध्र प्रदेश और गोवा। हालांकि, केरल राज्य, 23 वर्ष पर कानूनी शराब सेवन उम्र की अनुमति देता है।
कुछ प्रमुख कानून, जो भारत में शराब खपत को विनियमित करते हैं:
1. दिल्ली उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2009 (The Delhi Excise Act, 2009):
दिल्ली उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2009, वह अधिनियम है, जो दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शराब और अन्य नशीले पदार्थों के निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, कब्ज़ा, खरीद, बिक्री, आदि से संबंधित सभी मामलों को नियंत्रित करता है। इस अधिनियम के अनुच्छेद 23 के अनुसार, 25 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति को ही खपत या सेवन के लिए, शराब दी जा सकती है। यह अधिनियम, दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शराब लाइसेंस प्राप्त करने के लिए, लाइसेंसिंग अधिकारियों को भी स्थापित करता है।
2.) गोवा उत्पाद शुल्क अधिनियम और नियम, 1964 (The Goa Excise Duty Act and Rules, 1964):
गोवा उत्पाद शुल्क अधिनियम और नियम, 1964, ऐसा कानून है, जो गोवा राज्य में शराब और अन्य नशीले पदार्थों के निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, कब्ज़ा, खरीद, बिक्री, आदि को नियंत्रित करता है। यह अधिनियम, गोवा राज्य में प्रचलित सभी शराब कानूनों को समेकित करता है। यह कानूनी सेवन आयु, उत्पाद शुल्क अधिकारियों, निषेध, लाइसेंसिंग नियमों, आदि प्रमुख नियमों को परिभाषित करता है। इस अधिनियम की धारा 19, किसी भी व्यक्ति को शराब की बिक्री पर रोक लगाती है: जिसकी दिमागी हालत खराब है, या जिसकी आयु 21 वर्ष से कम है।
3.) तमिलनाडु शराब (लाइसेंस और परवाना) नियम, 1981 (Tamil Nadu Liquor(License and Permit) Rules, 1981):
तमिलनाडु शराब (लाइसेंस और परवाना) नियम, 1981, एक ऐसा अधिनियम है, जो तमिलनाडु राज्य में शराब और अन्य नशीले पदार्थों के निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, कब्ज़ा, खरीद, बिक्री, आदि को नियंत्रित करता है। इस अधिनियम के सामान्य प्रावधानों के अनुसार, किसी भी प्रकार की शराब का तमिलनाडु राज्य में आयात नहीं किया जा सकता है। हालांकि, फ़ॉर्म एफ़ पी 3(FP3), एफ़ पी5 (FP5), एफ़ एम1(FM1) और एफ़ एल7 (FL7) जैसे वैध परवाने रखने वाले व्यक्तियों द्वारा ही, इसका आयात किया जा सकता है। यह अधिनियम, तमिलनाडु के बाहर शराब के निर्यात को भी प्रतिबंधित करता है। फ़ॉर्म एफ़ एल4(Form FL4) परवाना रखने वाले व्यक्तियों को ही, इसकी अनुमति देता है।
4.) उत्तर प्रदेश (संयुक्त प्रांत उत्पाद शुल्क अधिनियम, 1910) (Uttar Pradesh (United Provinces Excise Act, 1910)):
उत्तर प्रदेश (संयुक्त प्रांत उत्पाद शुल्क अधिनियम, 1910) एक ऐसा अधिनियम है, जो उत्तर प्रदेश राज्य में शराब और अन्य नशीले पदार्थों के निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, कब्ज़ा, खरीद, बिक्री, आदि को नियंत्रित करता है। यह अधिनियम परवाने/लाइसेंस के रूप में, उत्तर प्रदेश राज्य से/में, राज्य सरकार की पूर्व अनुमोदन के बिना, शराब के आयात और निर्यात को प्रतिबंधित करता है।
5.) कर्नाटक उत्पाद शुल्क अधिनियम, 1965:
कर्नाटक उत्पाद शुल्क अधिनियम, 1965, ऐसा कानून है, जो कर्नाटक राज्य में शराब और अन्य नशीले पदार्थों के निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, कब्ज़ा, खरीद, बिक्री, आदि को नियंत्रित करता है। अधिनियम में उत्पाद शुल्क आयुक्तों की नियुक्ति, लाइसेंस और परवाना नियमों, कर्तव्यों, शुल्क, अपराधों, दंड, आदि की नियुक्ति के बारे में विस्तृत प्रावधान हैं। कर्नाटक उत्पाद शुल्क अधिनियम, 1965 ने, कर्नाटक राज्य में , शराब सेवन की कानूनी उम्र 18 साल निर्धारित की है।
भारत में विभिन्न प्रकार के शराब लाइसेंस की खोज:
1.) होटल और रेस्तरां बार लाइसेंस (Hotel and Restaurant Bar License):
यह लाइसेंस, होटल और रेस्तरां को उनके परिसर में शराब वितरण की अनुमति देता है। यह लाइसेंस अक्सर ही, उनकी रेटिंग के आधार पर होटल/रेस्तरां को वर्गीकृत करता है। इस तरह के लाइसेंस का उद्देश्य, एक नियंत्रित वातावरण के भीतर ज़िम्मेदार खपत सुनिश्चित करना और सार्वजनिक सुरक्षा बनाए रखना है।
2.) क्लब लाइसेंस (Club License):
यह लाइसेंस, सामाजिक और क्रीड़ा क्लब धारकों को, क्लब परिसर के भीतर अपने सदस्यों को शराब वितरण की अनुमति देता है। इस लाइसेंस का उद्देश्य, सामाजिक सभा स्थलों के भीतर, ज़िम्मेदार शराब वितरण की अनुमति देना है।
3.) खुदरा शराब लाइसेंस (Retail Liquor License):
यह लाइसेंस, उन व्यवसायों के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो ऑफ़ साइट खपत (off-site consumption) के लिए पैक की गई शराब को बेचने का इरादा रखते हैं। इसमें शराब की दुकान और सुपरमार्केट शामिल हैं। खुदरा शराब लाइसेंस, जनता को शराब के वितरण और बिक्री की निगरानी में मदद करता है।
4.) थोक लाइसेंस (Wholesale License):
थोक लाइसेंस, व्यक्तियों या संस्थाओं को लाइसेंस प्राप्त खुदरा विक्रेताओं या अन्य थोक विक्रेताओं को शराब बेचने हेतु दिए जाते हैं। यह लाइसेंस, विभिन्न वाणिज्य स्तरों के माध्यम से शराब की उचित ट्रैकिंग सुनिश्चित करता है।
5.) माइक्रोब्रीवरी लाइसेंस (Microbrewery License):
यह लाइसेंस, उन व्यवसायों के लिए प्रासंगिक है, जो जनता में प्रत्यक्ष बिक्री के लिए, बीयर का उत्पादन करते हैं। निर्मित बीयर की बढ़ती लोकप्रियता के साथ, माइक्रोब्रीवरी लाइसेंस ने हाल के वर्षों में काफ़ी बीयर उत्पादकों का ध्यान आकर्षित किया है।
6.) डिस्टिलरी लाइसेंस (Distillery License):
स्पिरिट्स का निर्माण करने वाले डिस्टिलरीज़ को इस लाइसेंस की आवश्यकता होती है। उत्पादन के अलावा, यह लाइसेंस निर्माण स्थल बिक्री को कवर करता है, जिससे डिस्टिलरी को अपने स्वाद की पेशकश करने, और इसे सीधे आगंतुकों को बेचने की अनुमति मिलती है।
7.) आयात/निर्यात लाइसेंस:
शराब आयात करने वाले व्यवसायों को इस लाइसेंस की आवश्यकता होती है। यह लाइसेंस, यह सुनिश्चित करते हुए कानूनी अनुपालन बनाए रखने में सहायता करता है कि, व्यापार से जुड़े सभी कर और कर्तव्यों का भुगतान किया जाता है।
संदर्भ:
मुख्य चित्र स्रोत : (pexels, Wikimedia)
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