आइए जानें, भगदड़ का पीड़ितों पर क्या प्रभाव पड़ता है और कैसे कम करें हम इन हादसों को
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
25-02-2025 09:29 AM
आपने अभी हाल ही में महाकुंभ, प्रयागराज में एवं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ की घटनाओं के बारे में अवश्य ही सुना होगा। वास्तव में, भारत जैसे हमारे देश में जनसंख्या बहुत ज़्यादा होने के कारण अक्सर ऐसी घटनाएं सामने आती हैं। इन विनाशकारी घटनाओं में कुछ लोगों को न केवल अपनी जान से हाथ गंवाना पड़ता है, बल्कि जो लोग जीवित बच जाते हैं, उन पर जीवन भर न भूलने वाला मानसिक, आर्थिक और शारीरिक दुष्प्रभाव भी पड़ता है। तो आइए, आज इन दुष्प्रभावों के बारे में विस्तार से जानते हुए यह समझने का प्रयास करते हैं कि हम यह कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि भारत में ऐसे मुद्दे न्यूनतम स्तर तक कम हो जाएं। इसके बाद हम भारत में घटित हुई कुछ सबसे बड़ी भगदड़ों के बारे में जानेंगे।
पीड़ितों पर भगदड़ के परिणामस्वरुप पड़ने वाले प्रभाव:
मानसिक आघात और हानि: भगदड़ की त्रासदी के दौरान, लोगों की मौत के अलावा, घायल, रोते-बिलखते लोगों को देखने से गहन मानसिक आघात पहुँचता है, खासकर उन लोगों के लिए जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया है। जो लोग खुद इस भगदड़ में फंस जाते हैं, उनके लिए इसे भुलाना बेहद मुश्किल होता है।
आर्थिक कठिनाई: भगदड़ में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर उसके परिवार की आय पर गहरा असर पड़ता है। इसके अलावा, घायलों के लिए चिकित्सा व्यय से अतिरिक्त आर्थिक दबाव पड़ता है।
अविश्वास: धार्मिक आयोजनों में बार-बार होने वाली भगदड़ से श्रद्धालुओं के बीच सुरक्षा को लेकर आयोजकों की क्षमता में विश्वास कम हो जाता है।
सामाजिक और मानवीय पूंजी की हानि: इन त्रासदियों में कई छोटे बच्चे और महिलाएं भी शिकार होते हैं। इससे देश की उत्पादक सामाजिक और मानव पूंजी का नुकसान होता है।
चित्र स्रोत : Pexels
कैसे सुनिश्चित करें कि भगदड़ न हो:
भगदड़ के लिए कानून, नियम और विनियम: इतिहास साक्षी है कि जितनी भी बड़ी भगदड़ की घटनाएं सामने आई हैं, वह किसी न किसी अफ़वाह के कारण हुई हैं। इसलिए, भगदड़ न हो, इसके लिए अफवाह फैलाने वाले लोगों के विरुद्ध कड़े कानून और नियम बनाए जाने चाहिए। इसके अतिरिक्त, ज़िम्मेदार लोगों एवं संस्थाओं के लिए कड़ी सज़ा के भी प्रावधान होने चाहिए।
विशेषज्ञता और व्यावसायिकता: बड़े आयोजनों में भीड़ की सुरक्षा बनाए रखने के लिए प्रभावी संचार, संवेदनशील ऑन-ग्राउंड हस्तक्षेप, विशेष कार्मिक प्रशिक्षण, सुरक्षा बीमा, ऑनलाइन ग्राहक प्रतिक्रिया प्रणाली, पारदर्शिता, वैधानिक अनुपालन और व्यावसायिकता पर ज़ोर देने की आवश्यकता है।
प्रौद्योगिकी का उपयोग: भीड़-भाड़ वाली जगहों पर वीडियो प्रबंधन सॉफ़्टवेयर जैसी नवीनतम तकनीक, सी सी टी वी (CCTV) निगरानी, मोबाइल नियंत्रण कक्ष, सार्वजनिक संबोधन प्रणाली के लिए ड्रोन, और रोबोटिक समर्थन को बड़े पैमाने पर तैनात किया जाना चाहिए।
क्षमता मूल्यांकन: सामूहिक समारोह आयोजित करने से पहले किसी स्थान या संरचना की क्षमता का उचित मूल्यांकन होना चाहिए। दुर्घटनाओं से बचने के लिए मौजूदा ढांचागत समस्याओं का पूर्व में ही समाधान किया जाना चाहिए।
भीड़ व्यवहार प्रबंधन: सामूहिक कार्यक्रमों में अधिकारियों के लिए एक सार्वजनिक संबोधन प्रणाली होनी चाहिए ताकि अफ़वाहों को अनियंत्रित होने से रोका जा सके, घबराई हुई भीड़ को शांत किया जा सके और लोगों को व्यवस्थित तरीके से बाहर निकलने में मदद की जा सके।
नागरिक समाज को शामिल करना: स्थानीय संसाधनों को आसानी से जुटाने, बेहतर तैयारी और यातायात नियंत्रण के लिए इवेंट मैनेजरों आदि की क्षमता निर्माण के लिए एनजीओ जैसे स्थानीय नागरिक संगठनों को सक्रिय रूप से शामिल किया जाना चाहिए।
वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखना: भगदड़ के प्रभावी प्रबंधन के लिए भीड़ प्रबंधन में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाया जाना चाहिए।
जंगली घोड़ों की भगदड़ | चित्र स्रोत : wikimedia
भारत में हुई कुछ सबसे बड़ी भगदड़ें:
29 जनवरी, 2025 को प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ मेले में हुई भगदड़ में दर्जनों लोग मारे गए एवं कई लोग घायल हो गए।
8 जनवरी, 2025 को दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश में स्थित सबसे व्यस्त और सबसे ज़्यादा संपत्ति वाले तिरुपति मंदिर में हुई भगदड़ में छह लोगों को मृत्यु हो गई और 35 लोग घायल हो गए।
2 जुलाई 2024 को, उत्तर प्रदेश राज्य के हाथरस ज़िले में एक धार्मिक आयोजन में हुई भगदड़ में लगभग 121 लोगों की मौत हो गई, जिनमें से अधिकांश महिलाएँ और बच्चे थे और सैकड़ों लोग घायल हो गए ।
1 जनवरी, 2022 को जम्मू-कश्मीर के कटरा में वैष्णो देवी मंदिर के गेट नंबर 3 के पास, भक्तों की भारी भीड़ के संकीर्ण मंदिर में पहले प्रवेश करने की कोशिश के बाद, भगदड़ हो गई, जिसमें 12 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए।
13 अक्टूबर, 2013 को मध्य प्रदेश के दतिया ज़िले के रतनगढ़ मंदिर में नवरात्रि के दौरान 150,000 से अधिक लोगों के एकत्र होने के बाद भगदड़ मच गई, जिसमें 115 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे।
10 फ़रवरी 2013 को, कुंभ मेले के दौरान, भगदड़ में 36 तीर्थयात्रियों की मृत्यु हो गई। मृतकों में से 27 महिलाएं थीं, जिनमें एक आठ साल की बच्ची भी शामिल थी।
सितंबर 2008 में राजस्थान के चामुंडागर मंदिर में नवरात्रि के दौरान, भगदड़ में 250 लोगों की मृत्यु हो गई।
अगस्त 2008 में हिमाचल प्रदेश में पहाड़ की चोटी पर स्थित नैना देवी मंदिर में भूस्खलन की अफ़वाह के कारण भगदड़ मचने से लगभग 145 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई।
जनवरी 2005 में महाराष्ट्र के वाई शहर में मंधारदेवी मंदिर में भगदड़ के बाद 265 से अधिक श्रद्धालुओं की मृत्यु हो गई और सैकड़ों अन्य घायल हो गए।
15 फ़रवरी 2025 को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़:
15 फ़रवरी की रात को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में तीन बच्चों समेत 18 लोगों की मौत हो गई और 15 अन्य घायल हो गए। यह भगदड़ उस समय हुई, जब हज़ारों यात्री महाकुंभ उत्सव के लिए प्रयागराज जाने वाली ट्रेनों में चढ़ने के लिए एकत्र हुए थे। यह भगदड़, रात करीब 9.55 बजे हुई थी। अधिकारियों के अनुसार, प्लेटफ़ॉर्म नंबर 14 पर, जहां से प्रयागराज एक्सप्रेस रवाना होने वाली थी, अचानक भीड़ जमा हो गई, क्योंकि प्रयागराज जाने वाली दो अन्य ट्रेनें, स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस और भुवनेश्वर राजधानी, जो स्टेशन से रवाना होने वाली थीं, विलंबित हो गईं, जिससे भीड़ बढ़ गई।
चित्र स्रोत : Pexels
उत्तर प्रदेश के हाथरस में जानलेवा भगदड़ का कारण क्या था ?
2 जुलाई 2024 को, धार्मिक नेता सूरज पाल (Suraj Pal) , जिन्हें भोले बाबा के नाम से भी जाना जाता है, के 250,000 भक्तों की एक बड़ी भीड़ हाथरस के एक गांव में सत्संग के लिए एकत्र हुई थी। उनमें से लगभग 80,000 को सत्संग के मैदान में प्रवेश करने की अनुमति दी गई थी। जबकि कई अन्य लोग एक अस्थायी तंबू में एकत्र हुए थे, जो कीचड़ भरे इलाके में बना हुआ था। इस सत्संग के बाद, जब सूरजपाल मंच से उतरकर अपनी गाडी में बैठने के लिए टेंट से बाहर निकले, तो अफ़रा- तफ़री मच गई। पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, उनके पैर या जिस ज़मीन पर वह चले थे, उसे छूने के लिए कई लोग तंबू से बाहर निकलकर उनकी कार की ओर दौड़े, जिससे भगदड़ मच गई।
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