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जौनपुर के खेतों में, टाइगर तितलियाँ (Common tiger butterfly), अपने उज्ज्वल नारंगी और काले पंखों के साथ, किसी समय एक आम दृष्टि थी। लेकिन अब, निवास स्थान के नुकसान, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और कीटनाशक के उपयोग के कारण, इनकी संख्या घट रही है। कम देशी पौधों और सुरक्षित स्थानों के कारण, ये तितलियाँ, प्रजनन एवं अंततः जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रही हैं। प्राकृतिक परागणकों के रूप में, वे पौधों के बढ़ने और पर्यावरण को स्वस्थ रखने में मदद करती हैं। उनकी गिरावट एक संकेत है कि, प्रकृति बदल रही है। यह हमें हरी–भरी जगहों की रक्षा करने और हानिकारक रसायनों को कम करने की याद दिलाती है।
आज हम, टाइगर तितलियों, इनकी अनूठी विशेषताओं और प्रकृति में इनकी भूमिका का पता लगाएंगे। फिर हम, इनके के वितरण और पारिस्थितिकी की जांच करेंगे, तथा इसके निवास स्थान और पर्यावरणीय अनुकूलन की खोज करेंगे। हम इन तितलियों के पारिस्थितिक महत्व पर भी चर्चा करेंगे। अंत में, हम भारतीय टाइगर तितली के संरक्षण प्रयासों को देखेंगे, एवं इस प्रजाति की सुरक्षा के लिए उठाए गए आवश्यक कदमों पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
टाइगर तितली का परिचय-
डैनॉस जेनुटिया (Danaus genutia) या टाइगर तितली, भारत की आम तितलियों में से एक है। इस तितली को भारत में धारीदार टाइगर तितली भी कहा जाता है। इस तितली प्रजाति को पहली बार, 1779 में पीटर क्रैमर (Pieter Cramer) द्वारा वर्णित किया गया था।
विवरण-
यह तितली अमेरिका के मोनार्क तितली (Monarch butterfly) – डानाउस प्लेक्सिपस (Danaus plexippus) से मिलती-जुलती है। इसके पंखों का क्षेत्रफ़ल, 70 से 95 मिलीमीटर (2.8 से 3.7 इंच) है। इस तितली में गहरे पीले रंग के पंख होते हैं, जिनमें व्यापक काले बैंड(धारी) के साथ, नसों को चिह्नित किया जाता है। नर टाइगर तितली के पिछले छोटे पंखों पर एक थैली होती है। पंखों के मार्जिन, सफ़ेद धब्बों की दो पंक्तियों के साथ काले होते हैं। नर टाइगर तितली के पिछले छोटे पंखों के नीचे, एक प्रमुख काले और सफ़ेद स्थान भी होते है।
वितरण और पारिस्थितिकी-
टाइगर तितलियाँ, पूरे भारत, श्रीलंका, म्यांमार(Myanmar) और दक्षिण-पूर्व एशिया एवं ऑस्ट्रेलिया (Australia) में पाईं जाती हैं । दक्षिण एशियाई भाग में, यह काफ़ी आम हैं । यह तितली झाड़ियों वाले जंगलों में रहती हैं । साथ ही, सूखे और नम पर्णपाती जंगल, बस्तियों से सटी परती भूमि एवं मध्यम से भारी वर्षा के क्षेत्रों को प्राथमिकता देती है। इसके अलावा, यह निम्न पहाड़ी ढलानों और चोटियों पर भी आम है।
जबकि यह प्रबल उड़ान भर सकती है, यह कभी भी तेज़ी से या उच्च ऊंचाई पर नहीं उड़ती है। यह तितली अपने मेज़बान और अमृत पौधों की तलाश में आगे बढ़ती है। यह बागानों का दौरा करती है, जहां यह एडेलोकॅरियम (Adelocaryum), कॉस्मोस (Cosmos), सेलोसिया (Celosia), लैंटाना (Lantana), ज़िननिया (Zinnia) और इसी तरह के फूलों पर अमृत संग्रहीत करती है।
शिकारियों के खिलाफ़ रक्षा रणनीति-
इस जीनस के सदस्य, चमड़ी वाले होते हैं, मारने के लिए कठिन हैं, और ‘नकली मौत’ का प्रदर्शन भी करते हैं। चूंकि वे गंध और स्वाद में खराब हैं, इसलिए, शिकारी जल्द ही उनको छोड़े देते हैं। फिर वे ठीक हो जाते हैं, और उड़ जाते हैं। ये तितलियाँ, एस्क्लेपियाडेसिए (Asclepiadaceae) परिवार के पौधों से विषाक्त पदार्थों को पृथक करती है। शिकार के तौर पर, अपनी अयोग्यता का प्रदर्शन करने हेतु, इन तितलियों में एक उठावदार रंग पैटर्न के साथ, प्रमुख चिह्न हैं। एक तरफ़, टाइगर तितली की भारतीय तमिल लेसविंग (Indian Tamil lacewing) और लेपर्ड लेसविंग (Leopard lacewing) तथा कॉमन पामफ़्लाई (Common palmfly) मादाओं द्वारा, अपने बचाव हेतु नकल भी की जाती है।
तितलियों का पारिस्थितिक महत्व-
तितलियाँ, अन्य शिकारियों के साथ-साथ, परजीवियों की एक श्रृंखला का समर्थन करती हैं। प्रत्येक तितली, शिकारियों और परजीवियों को रोकने हेतु; एक साथी की खोज करने हेतु; एवं अपने मेज़बान पौधे के रासायनिक बचाव के खिलाफ़ रसायनों का अपना सेट विकसित करती है। इनमें से प्रत्येक रसायन का एक संभावित मूल्य है।
तितलियाँ कई कृषि फ़सलों के लिए केंद्रीय परागणकर्ता हैं। इसके अतिरिक्त, वे पक्षियों, मकड़ियों, छिपकलियों और अन्य जानवरों जैसे शिकारियों के लिए एक खाद्य स्रोत भी है। उनके उज्ज्वल रंग, खराब स्वाद का सुझाव देकर, कुछ संभावित शिकारियों को दूर कर देते हैं।
एक तरफ़, सर्दियों से पहले, नाज़ुक मोनार्क तितली, 2000 मील तक पलायन करती है, जिससे मेक्सिको (Mexico) और कैलिफ़ोर्निया (California) के कुछ हिस्सों में इनकी विशाल कॉलोनियां (Colony) बनती हैं। तितलियों का पृथ्वी पर बहुत लंबा इतिहास है। वैज्ञानिकों ने 40 मिलियन साल प्राचीन तितली जीवाश्मों की खोज की है।
हैरानी की बात है कि, 90% पौधों को प्रजनन के लिए परागणकर्ताओं की आवश्यकता होती है। वर्तमान में, मधुमक्खी की आबादी में गिरावट आई है। इसलिए, तितलियाँ पारिस्थितिक तंत्रों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो रही हैं। इसमें शामिल पौधे, बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधी हो जाते हैं। इससे उन्हें जीवित रहने का बेहतर मौका मिलता है। तितलियों को उन क्षेत्रों के भीतर हुए थोड़े से परिवर्तनों पर भी प्रतिक्रिया करने के लिए जाना जाता है, जहां वे रहती हैं।
तितलियों के संरक्षण के लिए उठाए गए कदम-
रंगीन और नाजुक तितलियाँ, न केवल सुंदर जीव हैं, बल्कि खाद्य श्रृंखला में एक आवश्यक भूमिका भी निभाती हैं, और साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य की संकेतक भी हैं। इनके वर्तमान संरक्षण प्रयासों के तहत, ‘तितली पार्क’ (Butteffly Park) एक नई प्रवृत्ति के रूप में उभर रहे हैं। मध्य प्रदेश में, भोपाल और इंदौर जैसे शहरों में, हाल ही में कुछ तितली पार्क खोले गए हैं। कर्नाटक, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, पंजाब, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, पहले से ही ऐसे कई पार्क हैं।
भोपाल के वन विहार नेशनल पार्क में, लगभग 36 विभिन्न तितली प्रजातियां दिखाई देती हैं। यह पार्क, लोगों को तितली संरक्षण के बारे में जागरूक करना चाहता है। वे उनके आगंतुकों को, अपने पिछले आंगन में तितलियों को आकर्षित करने हेतु, अमृत और मेज़बान पौधों को रोपने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। सूरजमुखी, मैरीगोल्ड (Marigold), लैंटाना (Lantana), पेटुनिया (Petunia), हिबिस्कस (Hibiscus) भारत में कुछ सामान्य अमृत पौधे हैं। तितलियाँ भोजन के लिए, इन पौधों पर निर्भर हैं। जबकि, करी पत्ते, कपास के पेड़, कैसिया, साइट्रस, आदि इनके मेज़बान पौधों के कुछ उदाहरण हैं। ये ऐसे पौधे हैं, जहां तितलियाँ अंडे देती हैं, और उनका विकास होता है।
कीटनाशक के उपयोग, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन में वृद्धि, तितलियों के निवास स्थान के नुकसान के कुछ कारण हैं। जबकि ऐसे पार्कों की संख्या बढ़ रही है, प्रश्न है कि, वे तितलियों का संरक्षण करने में सक्षम हैं या नहीं? हमें तितली पार्कों और तितली-रक्षागृह के बीच अंतर करना चाहिए। ऐसे पार्क, संरक्षण के बजाय, लोगों में जागरूकता और शिक्षा के लिए महान हैं।
शहरी आवासों के साथ-साथ, अधिक जंगली आवासों में संरक्षण और लुप्तप्राय एवं खतरे वाली प्रजातियों के संरक्षण हेतु, तितली-रक्षागृह मूल्यवान हैं। हमें उनके प्रजनन कार्यक्रम को भी अच्छी तरह से सोचना होगा, इसके साथ ही उनके आवासों में प्रयोगशाला में विकसित तितलियों की पर्याप्त रिहाई होनी चाहिए। निवास स्थान, मेज़बान और अमृत पौधों का संरक्षण तथा तितली-रक्षागृह में उनका प्रजनन, एक साथ किया जाना चाहिए।
संदर्भ:
मुख्य चित्र: भारतीय टाइगर तितलियाँ (Wikimedia)
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