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आप सभी ने 'उपभोक्ता न्यायालय' (Consumer Courts) शब्द के बारे में सुना होगा। उपभोक्ता न्यायालय, भारत में विशेष अदालतें हैं, जो उपभोक्ताओं और व्यवसायों के बीच विवादों का समाधान करती हैं। ये अदालतें, 'उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986' (Consumer Protection Act, 1986) के तहत स्थापित की गईं थीं। ये एक ऐसा मंच हैं जहां यदि उपभोक्ता को लगता है कि विक्रेता ने उसे धोखा दिया है या उसका शोषण किया है, तो वह विक्रेता के खिलाफ़ मामला दर्ज कर सकता है। उपभोक्ता विवादों के लिए एक अलग फ़ोरम रखने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ऐसे विवादों का त्वरित समाधान हो और यह कम खर्चीला हो। तो आइए, इस 'विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस' (World Consumer Rights Day) के मौके पर, भारत में उपभोक्ता न्यायालों के विभिन्न स्तरों के बारे में जानते हैं और देश में उपभोक्ता न्यायालों के क्षेत्राधिकार को समझने का प्रयास करते हैं। इसके साथ ही, हम देखेंगे कि इन न्यायालों में आधार पर मामला दायर किया जा सकता है। इसके अलावा, हम भारत में उपभोक्ता आयोगों में शिकायत दर्ज करने से पहले अपनाए जाने वाले विभिन्न चरणों और आवश्यक दस्तावेज़ों के बारे में जानेंगे। अंत में, हम उपभोक्ता आयोग में मामला दायर करने की प्रक्रिया के बारे में जानेंगे।
भारत में उपभोक्ता न्यायालयों के विभिन्न स्तर:
भारत में उपभोक्ता न्यायालयों के क्षेत्राधिकार:
न्यायालयों के क्षेत्राधिकार न्यायालयों के पदानुक्रम पर आधारित होते हैं;
आर्थिक क्षेत्राधिकार:
प्रादेशिक क्षेत्राधिकार:
अपीलीय क्षेत्राधिकार:
उपभोक्ता न्यायालय में मामला दायर करने का आधार:
उपभोक्ता आयोगों में शिकायत दर्ज करने से पहले अपनाए जाने वाले चरण:
उपभोक्ता फ़ोरम में शिकायत दर्ज करने से पहले नीचे दी गई तीन-चरणीय प्रक्रिया का पालन करना होगा:
चरण 1: नोटिस के माध्यम से सूचना देना (वैकल्पिक चरण)
पीड़ित व्यक्ति को सेवा प्रदाता को एक नोटिस भेजना होगा जिसमें उन्हें सामान में दोष, सेवा में कमी और मुकदमेबाज़ी का सहारा लेने के उपभोक्ता के इरादे के बारे में सूचित करना होगा।
चरण 2: उपभोक्ता द्वारा शिकायत का मसौदा तैयार करना
यदि सेवा प्रदाता मुआवज़ा या कोई अन्य उपाय नहीं देता है, तो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत एक औपचारिक शिकायत का मसौदा तैयार किया जाना चाहिए। शिकायत में शामिल होना चाहिए:
चरण 3: कुछ दस्तावेज़ एकत्र करना
मामले का समर्थन करने वाले भौतिक साक्ष्य वाले प्रासंगिक दस्तावेज़ एकत्र किए जाने चाहिए। इन दस्तावेज़ों में शामिल हो सकते हैं:
उपभोक्ता को भुगतान किए गए प्रतिफल के आधार पर एक निर्धारित शुल्क का भुगतान करना होता है। इसके अलावा, सुनिश्चित करें कि शिकायत कारण उत्पन्न होने की तारीख से दो साल के भीतर दर्ज की गई है।
किसी भी उपभोक्ता आयोग में मामला कैसे दाखिल करें:
उपभोक्ता अपनी शिकायत निम्नलिखित दो तरीकों से दर्ज कर सकते हैं:
ई-दाखिल पोर्टल पर केस दर्ज करने के लिए निम्नलिखित दस्तावेज़ अनिवार्य रूप से आवश्यक हैं:
संदर्भ:
मुख्य चित्र स्रोत : Wikimedia
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