
जौनपुर में स्थानीय स्तर पर कई उपयोगी उत्पादों का निर्माण किया जाता है! इन उत्पादों को फ़िर देश के विभिन्न हिस्सों में पहुचाया जाता है! स्थानीय विनिर्माण, भारत की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। इससे रोज़गार के अवसर बढ़ते हैं और देश की अर्थव्यवस्था भी मज़बूत होती है। साथ ही, यह आयात पर हमारी निर्भरता को कम करता है, घरेलू नवाचार को प्रोत्साहित करता है और विनिर्माण क्षेत्र को भी मज़बूती देता है। इसके अलावा, यह विदेशी निवेश को आकर्षित करता है और बाज़ार की मांगों पर तेज़ी से प्रतिक्रिया देने में सक्षम बनाता है।
इसी सोच के तहत, भारत सरकार ने सितंबर 2014 में 'मेक इन इंडिया' (Make in India) पहल की शुरुआत की। इस पहल का उद्देश्य भारत को दुनिया का प्रमुख विनिर्माण केंद्र बनाना था। इसका मुख्य लक्ष्य निवेश को बढ़ावा देना, नवाचार को प्रोत्साहित करना और बुनियादी ढांचे को विकसित करना है। इसलिए आज के इस लेख में, हम भारत में स्थानीय विनिर्माण के लाभों पर चर्चा करेंगे। साथ ही, हम 'मेक इन इंडिया' पहल के उद्देश्यों को समझने की कोशिश करेंगे। इसके बाद, हम उन मुख्य उत्पादों पर ध्यान देंगे जो इस योजना के अंतर्गत विकसित किए जा रहे हैं। इसके अलावा, हम उन औद्योगिक क्षेत्रों की भी समीक्षा करेंगे जो इस पहल से सबसे अधिक लाभान्वित होंगे। अंत में, हम 'मेक इन इंडिया' के कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों और उनके संभावित समाधानों पर भी चर्चा करेंगे।
स्थानीय विनिर्माण क्या है ?
स्थानीय विनिर्माण के तहत, किसी उत्पाद को बाहर से आयात करने के बजाय किसी विशेष क्षेत्र या देश में ही बनाया जाता है। इसमें स्थानीय संसाधनों, श्रमिकों और कभी-कभी स्थानीय डिज़ाइनों का उपयोग करके सामान तैयार किया जाता है, जिसे आसपास के बाजारों में बेचा या ख़ुद इसका इस्तेमाल किया जाता है।
भारत में स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देना क्यों ज़रूरी है?
1) पर्यावरणीय स्थिरता: स्थानीय विनिर्माण, पर्यावरण के लिए लाभदायक साबित होता है। जब किसी सामान को लंबी दूरी तक भेजने की आवश्यकता नहीं होती और उसके भंडारण की जरूरत भी कम हो जाती है! इससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है और ऊर्जा की भी खपत घटती है। साथ ही इससे पर्यावरण को नुकसान कम होता है। जो उपभोक्ता पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों को प्राथमिकता देते हैं, वे ऐसे व्यवसायों पर अधिक विश्वास करते हैं। स्थानीय उत्पादन को अपनाने से ऊर्जा का कुशल उपयोग संभव होता है। साथ ही, इससे उपभोक्ताओं का भरोसा बढ़ता है और एक हरित व टिकाऊ भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान मिलता है।
2) बाज़ार में जल्दी पहुंच: विनिर्माण क्षेत्र में समय बहुत मायने रखता है। यदि उत्पाद जल्दी बाज़ार में पहुंचे, तो ग्राहकों का विश्वास बढ़ता है और वे लंबे समय तक ब्रांड के प्रति वफ़ादार रहते हैं। स्थानीय निर्माताओं के साथ काम करने से लंबी देरी की समस्या कम होती है क्योंकि संसाधन और आवश्यक जानकारी आसानी से उपलब्ध होते हैं। अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं में देरी या अन्य बाधाएं, स्थानीय उत्पादन में कम होती हैं। एक ही समय क्षेत्र में काम करने से संचार तेज़ और प्रभावी होता है। उत्पादन के दौरान आने वाली समस्याओं को जल्दी हल किया जा सकता है, जिससे लीड टाइम (lead time) कम होता है और उत्पाद तेज़ी से बाज़ार में पहुंचता है।
3) आपूर्ति श्रृंखला में कम व्यवधान: विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता से शिपिंग में देरी, सीमा शुल्क समस्याएं, खराब मौसम या भू-राजनीतिक तनाव जैसी चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं। ये समस्याएँ, आपूर्ति श्रृंखला में रुकावटें पैदा कर सकती हैं, जिससे उत्पादन प्रभावित होता है। स्थानीय निर्माताओं के साथ काम करने से इन जोखिमों को कम किया जा सकता है। इससे उत्पादन प्रक्रिया निरंतर बनी रहती है और ग्राहक की मांग के अनुसार आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है। स्थानीय सोर्सिंग से लीड टाइम भी कम होता है और एक स्थिर आपूर्ति श्रृंखला विकसित होती है।
4) स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: स्थानीय विनिर्माण से भारतीय अर्थव्यवस्था को सीधा लाभ मिलता है। जब कंपनियाँ सामग्री और श्रम स्थानीय स्तर पर प्राप्त करती हैं, तो धन देश के भीतर ही प्रवाहित होता है। इससे आर्थिक विकास तेज़ होता है और अधिक लोगों को रोज़गार के अवसर मिलते हैं, जिससे जीवन स्तर सुधरता है। जब व्यवसाय स्थानीय समुदायों में निवेश करते हैं, तो वे उनके विकास में भागीदार बनते हैं। इससे ब्रांड की विश्वसनीयता बढ़ती है और उपभोक्ता भी अधिक वफ़ादार रहते हैं।
स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए शुरू किए गए मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट के तीन मुख्य उद्देश्य निम्नवत दिए गए हैं:
आइए, अब मेक इन इंडिया पहल के तहत आने वालीं 5 प्रमुख कंपनियों पर एक नज़र डालते हैं:
1. टेट्रा पैक (Tetra Pak (पैकेजिंग)): टेट्रा पैक, एक बहुराष्ट्रीय खाद्य पैकेजिंग और प्रसंस्करण कंपनी है, जो पिछले 30 वर्षों से भारत में कार्यरत है। कंपनी ने दूरदराज के इलाकों तक अपनी नवीन तकनीक पहुंचाकर खाद्य-सुरक्षित पैकेजिंग में उत्कृष्टता हासिल की है। यह समग्र खाद्य पैकेजिंग और प्रसंस्करण में अग्रणी कंपनी है।
टेट्रा पैक, अमूल, पारले एग्रो और कोका-कोला जैसी कंपनियों के साथ दीर्घकालिक साझेदारी में काम करता है। 2015 तक, भारत में इसकी 276 से अधिक पैकेजिंग मशीनें, 4400 खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ और 312 वितरण इकाइयाँ थीं। भारत टेट्रा पैक के लिए दुनिया के सबसे बड़े और सबसे तेज़ी से बढ़ते बाजारों में से एक है।
2. आईकिया (IKEA (फ़र्नीचर)): आईकिया, पिछले 30 वर्षों से भारत में काम कर रहा है और अपने वैश्विक स्टोर्स के लिए यहाँ से उत्पादों की सोर्सिंग कर रहा है। इसने भारत में 45,000 लोगों को प्रत्यक्ष और 4 लाख (400,000) से अधिक लोगों को आपूर्ति श्रृंखला में अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार दिया है। आईकिया ने अगस्त 2018 में भारत में अपना पहला स्टोर खोला था। वर्तमान में यह तीन खुदरा स्टोर संचालित कर रहा है। इसके अलावा, भारत में चार प्रमुख स्थानों—तेलंगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक और दिल्ली/एन सी आर—में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है और अन्य शहरों में विस्तार की योजना बना रहा है।
3. हैल्डेक्स (Haldex (स्लैक एडजस्टर्स)): हैल्डेक्स, भारत में वाणिज्यिक वाहनों और ट्रेलरों के लिए स्वचालित और मैन्युअल स्लैक एडजस्टर्स (manual slack adjusters), ब्रेक एडजस्टर्स (brake adjusters) और एयर ट्रीटमेंट (air treatment) उत्पादों के प्रमुख निर्माताओं में से एक है।
यह भारत का पहला ऑटोमोटिव पार्ट्स निर्माता है, जिसने ट्रेलरों के लिए रोलओवर नियंत्रण के साथ आपातकालीन ब्रेक सिस्टम विकसित किया है।
4. एरिक्सन (Ericsson (मोबाइल फ़ोन)): भारत और एरिक्सन की साझेदारी, 1903 में शुरू हुई, जब एरिक्सन ने भारत सरकार को मैन्युअल स्विचबोर्ड (manual switchboard) की आपूर्ति की। तब से, यह भारत में दूरसंचार का एक अहम हिस्सा बन गया है।
एरिक्सन मोबाइल ब्रॉडबैंड, प्रबंधित सेवाओं और आईटी एवं मीडिया उद्योगों के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। मेक इन इंडिया पहल के तहत, एरिक्सन ने महाराष्ट्र के पुणे में एक विनिर्माण इकाई स्थापित की है। यह इकाई, भारत के साथ-साथ दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य पूर्व और उप-सहारा अफ्रीका के बाजारों के लिए भी उत्पादन करती है।
5. एस्ट्राज़ेनेका (AstraZeneca (फ़ार्मास्यूटिकल्स)): एस्ट्राज़ेनेका इंडिया की स्थापना 1979 में हुई थी और इसका मुख्यालय बेंगलुरु, कर्नाटक में स्थित है। यह कंपनी स्वास्थ्य सेवा और कल्याण क्षेत्र में नवीन दवाओं के अनुसंधान, विकास और व्यावसायीकरण में कार्यरत है। यह कंपनी हृदय और चयापचय रोग, कैंसर, श्वसन विकार, सूजन और स्वप्रतिरक्षी रोगों से संबंधित दवाओं पर शोध कर रही है। एस्ट्राज़ेनेका ने पूरे देश में 1500 से अधिक लोगों को रोज़गार दिया है। मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत कई औद्योगिक क्षेत्र को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें मुख्य रूप से विनिर्माण और सेवा क्षेत्र शामिल हैं।
आइए, अब मेक इन इंडिया से लाभान्वित होने वाले 15 प्रमुख विनिर्माण क्षेत्रों पर एक नज़र डालते हैं:
इसके अलावा, 12 प्रमुख सेवा क्षेत्र भी मेक इन इंडिया पहल से लाभान्वित होंगे:
हालांकि, 'मेक इन इंडिया' के कार्यान्वयन में कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जिनकी सूची और उनके समाधान निम्नवत दिए गए हैं:
1. बुनियादी ढाँचे और रसद संबंधी चुनौतियाँ: 'मेक इन इंडिया' पहल को सफल बनाने के लिए मज़बूत बुनियादी ढाँचे और बेहतर रसद क्षमता की सख्त जरूरत है। सुचारू विनिर्माण संचालन के लिए अच्छी परिवहन सुविधाएँ, विश्वसनीय बिजली आपूर्ति और आधुनिक औद्योगिक पार्क आवश्यक हैं। इस समस्या को हल करने के लिए, सरकार ने कई बुनियादी ढाँचा विकास परियोजनाएँ शुरू की हैं। इनमें नई सड़कों, बंदरगाहों, हवाई अड्डों और द्योगिक गलियारों का निर्माण शामिल है।
2. विनियामक बाधाओं को कम करना: कई बार, जटिल नियम और नौकरशाही प्रक्रियाएँ व्यवसायों को भारत में विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित करने से रोकती हैं। इसे आसान बनाने के लिए सरकार ने कई सुधार किए हैं। विनियामक प्रक्रियाओं को सरल किया गया है, कागज़ी कार्रवाई घटाई गई है और अनुमोदन प्रक्रियाओं को डिजिटल किया गया है। साथ ही, एकल-खिड़की निकासी प्रणाली लागू की गई है, जिससे आवश्यक लाइसेंस और परमिट जल्दी मिल सकें।
3. कुशल श्रमिकों की कमी से निपटना: किसी भी उद्योग की सफलता के लिए कुशल कार्यबल ज़रूरी होता है। हालाँकि, कुछ क्षेत्रों में प्रशिक्षित श्रमिकों की कमी देखी जाती है। इसे दूर करने के लिए सरकार ने कौशल विकास कार्यक्रम शुरू किए हैं। इन कार्यक्रमों के तहत व्यावसायिक प्रशिक्षण, प्रशिक्षुता और उद्योग-विशिष्ट कौशल सिखाए जा रहे हैं, जिससे युवाओं को बेहतर रोज़गार के अवसर मिल सकें।
4. अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना: औद्योगिक विकास के लिए, अनुसंधान और नवाचार बहुत महत्वपूर्ण हैं। हालाँकि, भारत में इस क्षेत्र में उतनी तेज़ी नहीं दिखाई दे रही है। इसे सुधारने के लिए, सरकार ने कई नीतियाँ लागू की हैं। इनमें अनुसंधान एवं विकास (R&D) के लिए कर लाभ, तकनीकी ऊष्मायन केंद्रों की स्थापना और उद्योग तथा अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना शामिल है। इससे भारतीय उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी और तकनीकी प्रगति को बढ़ावा मिलेगा। कुल मिलाकर, 'मेक इन इंडिया' को सफल बनाने के लिए भारत सरकार ने विभिन्न चुनौतियों से निपटने के प्रयास किए हैं। यदि इन सुधारों को सही तरीके से लागू किया जाए, तो भारत एक मज़बूत वैश्विक विनिर्माण केंद्र बन सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2bum7gcq
https://tinyurl.com/2dd94n5p
https://tinyurl.com/2d3rtwh3
https://tinyurl.com/24cawdrq
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