
पृथ्वी का सबसे गहरा स्थान, चैलेंजर डीप (Challenger Deep) है, जो मरियाना ट्रेंच (Mariana Trench) में स्थित है। यह समुद्र की सतह से 10,935 मीटर (35,876 फ़ीट) नीचे है। लेकिन लखनऊ के लोग शायद ही इसके बारे में जानते होते, अगर 20वीं सदी में जमीन के अंदर गहराई तक खुदाई करने की कोशिश न की गई होती।
ऐसी ही एक कोशिश का नाम था प्रोजेक्ट मोहोल (Project Mohole)। यह 1960 के दशक में अमेरिका का एक खास प्रोजेक्ट था। इसका मकसद था धरती की ऊपरी परत (क्रस्ट) को पार करके मोहोरोविचिच डिस्कन्टिन्यूटी (Moho) तक पहुँचना। मोहो वह जगह है जहाँ धरती की ऊपरी परत खत्म होती है और मेंटल (अंदर की गहरी परत) शुरू होती है।
तो चलिए, आज हम प्रोजेक्ट मोहोल के बारे में आसान भाषा में समझते हैं। हम जानेंगे कि यह प्रोजेक्ट क्यों शुरू किया गया और इसके तीन चरण कौन-कौन से थे। फिर, हम देखेंगे कि इस प्रोजेक्ट में कौन-कौन सी दिक्कतें आईं और इसे क्यों बंद कर दिया गया। इसके अलावा, हम यह भी जानेंगे कि प्रोजेक्ट मोहोल से हमें क्या सीख मिली और कैसे इसने महासागर की खोज के नए रास्ते खोले।
प्रोजेक्ट मोहोल क्या था और इसके उद्देश्य क्या थे ?
प्रोजेक्ट मोहोल धरती की ऊपरी परत (क्रस्ट) को पार करके उसकी भीतरी परत मेंटल से नमूना निकालने की कोशिश थी। इसके लिए वैज्ञानिकों ने मोहोरोविचिच डिस्कन्टिन्यूटी (Moho) तक खुदाई करने की योजना बनाई थी। इस प्रोजेक्ट का विचार सबसे पहले मार्च 1957 में वाल्टर एच. मंक ने रखा था, जो नेशनल साइंस फाउंडेशन (NSF) के अर्थ साइंस पैनल के सदस्य थे।
इस प्रोजेक्ट को वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष कार्यक्रम (स्पेस प्रोग्राम) के समान धरती के अंदर की खोज बताया। अगर यह सफल हो जाता, तो इससे धरती की उम्र, संरचना और आंतरिक प्रक्रियाओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिलतीं। इसके अलावा, इससे महाद्वीपीय विस्थापन (Continental Drift) के सिद्धांत को भी समझने में मदद मिलती, जो उस समय एक विवादित विषय था।
प्रोजेक्ट मोहोल के तीन चरण
प्रोजेक्ट मोहोल को तीन चरणों में पूरा किया जाना था:
पहले चरण की शुरुआत ला जोला, कैलिफ़ोर्निया के पास समुद्री परीक्षणों के साथ हुई। इसके बाद मार्च और अप्रैल 1961 में ग्वाडालूप, मेक्सिको के पास खुदाई शुरू की गई। इस दौरान 11,700 फ़ीट गहरे पानी में पाँच गड्ढे खोदे गए। इनमें से एक गड्ढा 601 फ़ीट तक समुद्र तल के नीचे था।
इस खुदाई में क्रस्ट की पहली परत की गहराई 557 फ़ीट पाई गई, जिसमें मायसीन युग (Miocene Age) के तलछटी पदार्थ थे। पहली बार क्रस्ट की दूसरी परत का भी अध्ययन किया गया, जिसमें बसाल्ट की चट्टानें मिलीं।
पहले चरण की इस बड़ी सफलता के बाद यह निर्णय लिया गया कि प्रोजेक्ट का संचालन नेशनल साइंस फाउंडेशन (NSF) को सौंपा जाएगा और ए एम एस ओ सी (AMSOC) कमेटी सलाहकार की भूमिका में रहेगी।
प्रोजेक्ट मोहोल में आई तकनीकी समस्याएँ और चुनौतियाँ
1962 में जब प्रोजेक्ट मोहोल के दूसरे चरण की योजना बनाई गई, तब वैज्ञानिकों को कई तकनीकी समस्याओं का सामना करना पड़ा। सबसे बड़ी चुनौती थी गहरे समुद्र में खुदाई के लिए एक स्थिर और सुरक्षित आधार तैयार करना, क्योंकि समुद्र की तेज़ लहरें, बदलता मौसम और अत्यधिक पानी का दबाव इस काम को और कठिन बना रहे थे। वैज्ञानिकों को ऐसी तकनीक विकसित करनी थी जो सालभर बिना किसी रुकावट के काम कर सके।
दूसरी बड़ी समस्या खुदाई की गहराई को लेकर थी। वैज्ञानिकों को लगभग 30,000-35,000 फ़ीट नीचे तक पहुंचना था, जो अब तक की सबसे गहरी खुदाई से 20-40 प्रतिशत अधिक थी। इतनी गहराई तक खुदाई करने के लिए उस समय उपलब्ध तकनीक पर्याप्त नहीं थी, इसलिए नए और अधिक उन्नत उपकरणों की आवश्यकता थी। यह एक ऐसा लक्ष्य था, जिसे पूरा करना उस समय के हिसाब से बेहद चुनौतीपूर्ण था।
इसके अलावा, वैज्ञानिकों को ऐसी विधियाँ विकसित करनी थीं, जिनसे धरती के अंदरूनी हिस्से से सटीक नमूने और जानकारी हासिल की जा सके। इतनी गहराई में दबाव और तापमान बहुत अधिक होता है, जिससे सैंपल लेना और उनकी सही माप करना बेहद कठिन हो जाता था। इन सभी तकनीकी समस्याओं के कारण परियोजना को आगे बढ़ाना मुश्किल हो गया और अंततः यह अधूरी रह गई।
प्रोजेक्ट मोहोल क्यों बंद कर दिया गया ?
प्रोजेक्ट मोहोल को बंद करने के पीछे कई कारण थे, जिनमें सबसे बड़ा कारण धन की कमी और सरकार व जनता का समर्थन न मिलना था। यह परियोजना शुरू से ही एक वैज्ञानिक खोज से अधिक एक वित्तीय सहायता प्राप्त करने का अभियान बन गई थी। इसकी तुलना, अंतरिक्ष कार्यक्रमों से की जाती थी, लेकिन अंतरिक्ष अन्वेषण के विपरीत, भूविज्ञान (Geophysics) को कभी भी वैसा समर्थन नहीं मिला। भूवैज्ञानिकों के पास कोई स्वतंत्र सरकारी एजेंसी नहीं थी, न ही यह परियोजना सैन्य उद्देश्यों से जुड़ी थी, जिससे इसे पर्याप्त बजट नहीं मिला। इसके अलावा, चंद्रमा पर जाने जैसी परियोजनाएँ अधिक प्रेरणादायक और लोकप्रिय थीं, जबकि समुद्र में गहराई तक खुदाई करना उतना आकर्षक नहीं माना गया।
इस परियोजना में तकनीकी चुनौतियाँ भी बड़ी थीं। खुदाई के लिए इस्तेमाल किए गए उपकरण पहले से उपलब्ध मशीनों में छोटे-मोटे बदलाव करके बनाए गए थे, जबकि इस स्तर की खुदाई के लिए विशेष रूप से निर्मित उपकरणों की जरूरत थी। संसाधनों और तकनीकी क्षमता की कमी के कारण, प्रोजेक्ट मोहोल अपेक्षित गहराई तक नहीं पहुँच सका।
1964 तक परियोजना आंतरिक विवादों में फँस गई और जनता व मीडिया का ध्यान इससे हट गया। 1965 में नेशनल साइंस फ़ाउंडेशन (national Science Foundation (NSF)) ने इसे हवाई द्वीपों के पास एक नए स्थान पर फिर से शुरू करने की योजना बनाई, लेकिन लागत बढ़ती गई और ठोस नतीजे न मिलने के कारण सरकार और जनता में मोहभंग हो गया। जनवरी 1966 में अमेरिकी कांग्रेस की एक उपसमिति ने इस परियोजना के लिए धनराशि रोकने की सिफ़ारिश कर दी, जिससे यह परियोजना हमेशा के लिए बंद हो गई।
प्रोजेक्ट मोहोल की लागत
प्रोजेक्ट मोहोल को लेकर यह आलोचना हुई कि इतने महंगे प्रोजेक्ट से, छोटे वैज्ञानिक शोध कार्यों को नुकसान हो सकता है। हालांकि, यह प्रोजेक्ट, कांग्रेस द्वारा अलग से वित्त पोषित किया गया था और अन्य विज्ञान कार्यक्रमों पर इसका असर नहीं पड़ा।
इस प्रोजेक्ट के पहले चरण में सफलता मिलने के बाद, जिसकी लागत अपेक्षाकृत कम थी, इसके खर्च में तेजी से बढ़ोतरी हुई। ब्राउन एंड रूट कंपनी ने इस प्रोजेक्ट को प्रबंधित करने और मोहोल ड्रिलिंग प्लेटफॉर्म बनाने के लिए $35 मिलियन का प्रस्ताव दिया, साथ ही प्रबंधन शुल्क के रूप में $1.8 मिलियन मांगे। इस राशि में खुद ड्रिलिंग जहाज़ और मोहोल ड्रिलिंग ऑपरेशन की लागत शामिल नहीं थी। निजी रूप से, ए एम एस ओ सी (AMSOC) प्रबंधन समिति का मानना था कि समुद्र की गहराई तक ड्रिलिंग करने के लिए कुल लागत लगभग $40 मिलियन आएगी।
मार्च 1965 में ड्रिलिंग जहाज़ बनाने के लिए निविदाएं आमंत्रित की गईं। जब जुलाई 1965 में प्रस्ताव मिले, तो अनुमानित लागत बढ़कर $125 मिलियन ($1.21 बिलियन, 2023 के डॉलर के अनुसार) हो गई। प्रोजेक्ट मोहोल के प्रबंधक— ए एम एस ओ सी, ब्राउन एंड रूट और एन एस एफ़ —इस बढ़ी हुई लागत से हैरान रह गए, लेकिन फिर भी परियोजना को जारी रखने का फैसला किया। सितंबर 1965 में, सैन डिएगो की “नेशनल स्टील एंड शिपबिल्डिंग” कंपनी को ड्रिलिंग जहाज़ बनाने का अनुबंध दिया गया।
जब 1966 में प्रोजेक्ट मोहोल को बंद किया गया, तब तक इस पर कुल $57 मिलियन खर्च किए जा चुके थे।
प्रोजेक्ट मोहोल ने आधुनिक महासागर अनुसंधान के लिए कैसे रास्ता बनाया ?
प्रोजेक्ट मोहोल ने विज्ञान को दो महत्वपूर्ण तकनीकें दीं। पहली तकनीक समुद्र में जहाज़ों को बिना लंगर (एंकर) के एक ही जगह स्थिर रखने की थी, जो उन जगहों पर बेहद उपयोगी साबित हुई जहाँ समुद्र बहुत गहरा होता है और लंगर डालना संभव नहीं होता। दूसरी तकनीक समुद्र की सतह से नीचे की परतों से नमूने (सैंपल) निकालने की थी, जिससे वैज्ञानिक गहराई में मौजूद पदार्थों का अध्ययन कर सकते थे।
इस प्रोजेक्ट ने महासागर की गहराइयों को खोजने की नींव रखी, जो इससे पहले संभव नहीं थी। जब प्रोजेक्ट मोहोल बंद हो गया, तो अन्य वैज्ञानिकों ने इसकी तकनीकों को अपनाया और समुद्र के अलग-अलग हिस्सों से नमूने निकालकर अध्ययन किया।
समुद्र की गहराइयों से मिले इन नमूनों के अध्ययन से कई नए खोजें हुईं। वैज्ञानिक सुज़ैन ओ’कॉनेल जैसी शोधकर्ताओं ने समुद्र की गहरी सतह से प्राप्त नमूनों की मदद से पृथ्वी के अतीत को समझने का प्रयास किया और “पेलियोओशियानोग्राफ़ी” (paleoceanography) नामक एक नई शोध विधा की शुरुआत की।
आज, पेलियोओशियानोग्राफ़ी का उपयोग जलवायु परिवर्तन को समझने के लिए किया जा रहा है। यह शोध हमें पृथ्वी के अतीत के मौसम के बारे में जानकारी देता है। बर्फ की गहराइयों से निकाले गए नमूने भी पुराने जलवायु को समझने में मदद करते हैं, लेकिन वे केवल कुछ लाख वर्षों तक की जानकारी दे सकते हैं। इसके विपरीत, समुद्र की गहराइयों में मौजूद परतें हमें लाखों वर्षों पुराना रिकॉर्ड प्रदान कर सकती हैं।
इसके अलावा, गहरे समुद्र से मिले नमूनों ने वैज्ञानिकों को प्लेट टेक्टोनिक्स (plate tectonics) के सिद्धांत को और मजबूत करने में मदद की। यह सिद्धांत बताता है कि पृथ्वी के महाद्वीप बहुत धीरे-धीरे खिसकते हैं। साथ ही, यह शोध हमें जीवन को नई दृष्टि से समझने में भी सहायता कर रहा है।
क्या आपने कभी सोचा है कि ज़मीन के अंदर कितनी गहराई तक जाया जा सकता है? प्रोजेक्ट मोहोल इसी सवाल का जवाब खोजने की एक बड़ी कोशिश थी। 1960 के दशक में अमेरिका ने धरती की ऊपरी परत (क्रस्ट) को पार कर मोहोरोविचिच डिस्कन्टिन्यूटी (Moho) तक पहुंचने का सपना देखा। लेकिन तकनीकी चुनौतियां और बढ़ती लागत ने इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को अधूरा छोड़ दिया। हालांकि, इससे महासागर की खोज को नई दिशा मिली। वैज्ञानिकों ने समुद्र में स्थिर जहाज़ और गहरी खुदाई जैसी तकनीकें विकसित कीं, जिससे आज जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी के इतिहास को समझने में मदद मिल रही है। तो, प्रोजेक्ट भले अधूरा रहा, लेकिन इसकी विरासत ज़िंदा है!
संदर्भ
मुख्य चित्र: प्रोजेक्ट मोहोल में उपयोग होने वाला मोहोपिक्स-1(Mohopix-1)नामक एक जहाज़ : (Wikimedia, Pexels)
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