
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जौनपुर के निवासियों, क्या आप जानते हैं कि “अर्थशास्त्र”, प्राचीन भारत में राज्य संचालन और क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था पर एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसे कौटिल्य (चाणक्य) ने लिखा था और इसमें एक मज़बूत राज्य के सिद्धांतों के बारे में बताया गया है, जिसमें राजा का कर्तव्य, अर्थव्यवस्था की संरचना और कानून-व्यवस्था का महत्व शामिल है। इसमें 15 अध्याय (अधिकार) हैं, जिनमें अधिकांश गद्य रूप में हैं और हर अध्याय के बाद 380 श्लोक हैं। “अर्थशास्त्र” लगभग 300-350 ईसा पूर्व में लिखा गया था।
तो, आज हम इस ग्रंथ में बताए गए प्रमुख विचारों के बारे में विस्तार से जानेंगे। फिर, हम अर्थशास्त्र के सात स्तंभों के बारे में जानेंगे। इसके बाद, हम प्राचीन भारत के बैंकिंग सिस्टम पर भी रोशनी डालेंगे। इस संदर्भ में हम यह जानेंगे कि इस प्रणाली में मंदिरों की भूमिका क्या थी। इसके अलावा, हम यह भी जानेंगे कि उस समय के ऋण पर दिए जाने वाले ब्याज दरों के बारे में। अंत में, हम समझने की कोशिश करेंगे कि आज के भारत के बैंकिंग सिस्टम्स प्राचीन वित्तीय ढांचों से किस तरह तुलना करते हैं।
अर्थशास्त्र में बताए गए प्रमुख विचार क्या थे ?
अर्थशास्त्र में कई महत्वपूर्ण विचार दिए गए हैं, जो राज्य संचालन, अर्थव्यवस्था, और सेना की तैयारी से जुड़े हैं। इनमें से कुछ प्रमुख विचार निम्नलिखित हैं:
1.) राज्य संचालन और शासन – कौटिल्य ने केंद्रीकृत शासन प्रणाली का समर्थन किया, जिसमें राजा सर्वोच्च अधिकार रखते हैं, लेकिन उन्हें मंत्रियों की परिषद से सहायता मिलती है। इस ग्रंथ में कानून लागू करने, न्यायिक प्रक्रियाओं और विभिन्न अपराधों के लिए दंडों के बारे में विस्तार से बताया गया है।
2.) अर्थशास्त्र – कौटिल्य ने कृषि को अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना। उन्होंने सिंचाई, अच्छी बीजों की आवश्यकता और कृषि अनुसंधान के महत्व को बताया। उनके कर प्रणाली को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाया गया था। उनका मानना था कि, करों को इतना भारी नहीं होना चाहिए और ये व्यक्ति की आय के हिसाब से होनें चाहिए। इसके अलावा, कौटिल्य ने राज्य के भीतर और बाहरी राज्यों के साथ व्यापार संबंधों के महत्व को भी बताया। उन्होंने राज्य द्वारा नियंत्रित व्यापार मार्गों और बाजारों की आवश्यकता पर बल दिया।
3.) सेना रणनीति – कौटिल्य ने युद्ध के लिए विभिन्न रणनीतियों का वर्णन किया, जिसमें युद्ध के प्रकार, सैनिकों के गठन का तरीका और जासूसों का उपयोग शामिल है। उन्होंने संधि और समझौतों के लिए कूटनीतिक उपायों पर भी चर्चा की। अर्थशास्त्र में राज्य के भीतर आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने के महत्व को भी बताया गया है। इसमें जासूसों और गुप्त जानकारी देने वालों की भूमिका को बताया गया है।
4.) सामाजिक संगठन – कौटिल्य के अर्थशास्त्र में सामाजिक मुद्दों पर भी बात की गई है, जिसमें नागरिकों की भूमिकाएं और ज़िम्मेदारियाँ, उनके जाति और पेशे के आधार पर निर्धारित की गई हैं। इस ग्रंथ में राजा और नागरिकों की नैतिक ज़िम्मेदारियों पर भी ज़ोर दिया गया है, और यह बताया गया है कि धर्म और न्याय का पालन करना आवश्यक है।
अर्थशास्त्र के सात स्तंभ
चाणक्य, जो एक प्राचीन भारतीय दार्शनिक, अर्थशास्त्री और राज दरबार के सलाहकार थे, ने व्यापार की सफलता के लिए सात महत्वपूर्ण स्तंभ बताए थे। ये सिद्धांत, किसी भी व्यापार की स्थिरता और समृद्धि के लिए बहुत ज़रूरी हैं:
1.) नेता (राजा): वह व्यक्ति, जो संगठन का मार्गदर्शन करता है और भविष्य की दिशा तय करता है।
2.) प्रबंधक (मंत्री): वह व्यक्ति, जो रणनीतियों को लागू करता है और संचालन का प्रबंधन करता है।
3.) बाज़ार (देश): वह जगह, जहां व्यापार चलता है और जहाँ से व्यापार के ग्राहक आते हैं।
4.) इंफ़्रास्ट्रक्चर (किला): वे भौतिक और संगठनात्मक ढांचे, जो व्यापार के संचालन के लिए आवश्यक होते हैं।
5.) वित्त (कोष): व्यापार के वित्तीय संसाधन और आर्थिक प्रबंधन।
6.) टीम (सेना): वे लोग या कर्मचारी, जो व्यापार गतिविधियों को अंजाम देते हैं।
7.) मेंटॉर (सहयोगी): वे सलाहकार या मार्गदर्शक, जो मार्गदर्शन और समर्थन प्रदान करते हैं।
प्राचीन भारत में बैंकों के रूप में मंदिरों की भूमिका को समझना
प्राचीन भारत में समृद्ध लोग मंदिरों को बड़ी मात्रा में दान देते थे, और मंदिर उन दान किए गए पैसों पर ब्याज पर ऋण देते थे। मंदिरों के पास इन विशाल दान राशियों का स्वामित्व होता था, जिससे वे प्राचीन भारत के वित्तीय केंद्र बन गए थे।
मंदिर भूमि और नकद दोनों प्रकार के दानों के सबसे बड़े प्राप्तकर्ता थे, और इस कारण से उन्होंने आसपास के इलाके की आर्थिक और सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्राचीन भारत में मंदिर कितने ब्याज पर ऋण देते थे ?
मंदिरों द्वारा दिए जाने वाले ऋण दर बहुत काम थे और इसका मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था और समाज की मदद करना था। चोल अभिलेखों के अनुसार, ऋण दर सालाना 12 से 15 प्रतिशत के बीच होते थे , जो निजी उधारदाताओं द्वारा दी जाने वाली दरों से कम थे और इस कारण मंदिर ऋण लेने के लिए बहुत आकर्षक जगह बन गए थे। कभी-कभी तो यह ब्याज दर और भी कम होते थे – उदाहरण के लिए, 1342 ईस्वी में कर्नाटका के मेलकोटे से मिले एक अभिलेख में यह दर्शाया गया कि मंदिर ने एक व्यापारी संघ को 50 कालनजू सोने (50 kalanju of gold) पर केवल 6.25 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर पर ऋण दिया था।
आधुनिक भारतीय बैंकिंग प्रणाली और प्राचीन वित्तीय ढांचे की तुलना
आजकल की बैंकिंग प्रणाली और प्राचीन भारतीय बैंकिंग ढांचे में कई बड़े अंतर हैं। जहां एक ओर आज के वित्तीय व्यवस्था बहुत आधुनिक और डिजिटल हो चुके हैं, वहीं प्राचीन भारतीय बैंकिंग सिस्टम बहुत सरल, विकेंद्रीकृत और स्थानीय रूप से जुड़ा हुआ था।
आज की बैंकिंग प्रणाली में बैंक बहुत बड़े होते हैं, जो देश भर और वैश्विक स्तर पर काम करते हैं। इनकी ज़िम्मेदारी होती है लेन-देन की निगरानी, पैसे जमा करने और ऋण देने की प्रक्रिया को व्यवस्थित करना। इसके अलावा, आजकल के बैंकिंग सिस्टम में अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग किया जाता है जैसे कि इंटरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, और सुरक्षा उपायों के लिए एन्क्रिप्शन। अब ये बैंक ग्राहकों को डिजिटल तरीके से सेवाएं प्रदान करते हैं, जैसे ऑनलाइन भुगतान, ई-मनी ट्रांसफ़र और क्रेडिट कार्ड्स की सुविधा।
वहीं, प्राचीन भारतीय बैंकिंग सिस्टम में ये सारी चीज़ें नहीं थीं। प्राचीन भारत में बैंकिंग का काम मुख्य रूप से स्थानीय व्यापारी और मंदिरों द्वारा किया जाता था। उस समय की बैंकिंग प्रणाली में बहुत साधारण तरीके थे। उदाहरण के लिए, “हंडी” नामक प्रणाली थी, जो एक प्रकार का वचन पत्र था, जिसका इस्तेमाल व्यापारी अपने लेन-देन के लिए करते थे। इसके अलावा, “अक्षय पात्र” भी था, जो एक प्रकार का वचनपत्र था, जो कभी समाप्त नहीं होता था और हमेशा वैध रहता था।
प्राचीन समय में व्यापार, मुख्य रूप से व्यापारिक मार्गों जैसे कि सिल्क रोड के जरिए होता था। इस समय, मंदिरों का बड़ा योगदान था, क्योंकि लोग, मंदिरों में पैसा जमा करते थे और कर्ज लेते थे। मंदिरों को एक प्रकार के वित्तीय केंद्र के रूप में देखा जाता था, जो समाज की आर्थिक स्थिरता में मदद करते थे।
प्राचीन भारतीय बैंकिंग प्रणाली और आज के बैंकिंग सिस्टम के बीच एक और बड़ा अंतर है “वैश्विक कनेक्टिविटी” का। आजकल के बैंकिंग सिस्टम में अंतरराष्ट्रीय संबंध बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि बैंक दुनियाभर में जुड़े होते हैं और अंतरराष्ट्रीय व्यापार, निवेश और लेन-देन करते हैं। लेकिन प्राचीन भारतीय बैंकिंग प्रणाली अधिकतर स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर काम करती थी। हालांकि व्यापारिक मार्गों की वजह से कुछ अंतरराष्ट्रीय जुड़ाव थे, लेकिन वह आज के समय जैसे तेज़ और व्यापक नहीं थी।
आखिरकार, प्राचीन भारतीय बैंकिंग सिस्टम में तकनीकी और साधारण वित्तीय उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता था, जबकि आज के बैंकिंग सिस्टम में अत्याधुनिक तकनीकों और जटिल वित्तीय उत्पादों का उपयोग होता है। फिर भी, प्राचीन भारतीय बैंकिंग प्रणाली की स्थिरता और सरलता, आज के बैंकिंग सिस्टम की जटिलताओं के मुकाबले बहुत प्रभावशाली थी।
संदर्भ
मुख्य चित्र: तिरुचिरापल्ली के प्राचीन रॉक फोर्ट मंदिर के साथ यू पी आई (UPI) भुगतान के कुछ प्रसिद्ध ऐप्स (Wikimedia)
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