रेस नीति व प्लास्टिक-टु-डीज़ल रूपांतरण से बनेगा, यू पी का प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन आसान

नगरीकरण- शहर व शक्ति
08-02-2025 08:36 AM
रेस नीति व प्लास्टिक-टु-डीज़ल रूपांतरण से बनेगा, यू पी का प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन आसान

आज जौनपुर के नागरिकों के लिए, प्लास्टिक कचरा एक  बड़ी पर्यावरणीय चुनौती बन गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, हमारा राज्य उत्तर प्रदेश, प्लास्टिक कचरा उत्सर्जन में देश में 8वें स्थान पर है। जैसे-जैसे प्लास्टिक उत्पादों का उपयोग बढ़ता है, वैसे-वैसे प्लास्टिक कचरे की मात्रा भी बढ़ती है, जो अक्सर ज़मीन–भरण या लैंडफ़िल (Landfill) में चला जाता है, या पर्यावरण को प्रदूषित करता है। यह कचरा न केवल आसपास के वातावरण को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि, वन्य जीवन और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा भी पैदा करता है। प्लास्टिक कचरे के अनुचित निपटान से दीर्घकालिक क्षति होती है, क्योंकि प्लास्टिक को विघटित होने में सैकड़ों वर्ष लग जाते हैं। हालांकि, प्लास्टिक का पुनर्चक्रण, इस समस्या का एक समाधान प्रदान करता है, जो इस कचरे को मूल्यवान संसाधनों में बदल सकता है। 

आज हम, उत्तर प्रदेश सरकार की रेस (RACE) नामक एक पहल पर चर्चा करेंगे, जिसका उद्देश्य, प्लास्टिक कचरे से नवीन समाधानों और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से निपटना है। हम मथुरा में मौजूद, भारत के पहले प्लास्टिक से डीज़ल रूपांतरण संयंत्र को भी देखेंगे, तथा इस बात पर ध्यान केंद्रित करेंगे कि, यह तकनीक प्लास्टिक कचरे को कम करने और ईंधन बनाने में कैसे मदद करती है। फिर हम, राज्य की नीतियों और विनियमों पर प्रकाश डालते हुए, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए, उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख दिशानिर्देशों की जांच करेंगे। अंत में, हम उत्तर प्रदेश और प्लास्टिक अपशिष्ट उत्सर्जन सांख्यिकी पर चर्चा करेंगे, जिसमें, राज्य में पर्यावरण और उत्सर्जन पर प्लास्टिक कचरे के प्रभाव पर प्रकाश डाला जाएगा।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा रेस (RACE) पहल-

हमारा राज्य उत्तर प्रदेश, एक अद्वितीय रेस रणनीति का उपयोग करके राष्ट्रव्यापी एकल-उपयोग प्लास्टिक प्रतिबंध को व्यवस्थित रूप से लागू करता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह जागरूकता अभियान, सार्वजनिक स्थानों, रेलवे स्टेशनों, खाली ज़मीनों, घाटों और नालों, कार्यालयों, शैक्षणिक संस्थानों, बाज़ारों और बस स्थानकों पर चलाया जाएगा, जिससे अंततः प्रतिबंधित प्लास्टिक उत्पादों के उपयोग को हतोत्साहित किया जाएगा।

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संक्षिप्त नाम – रेस  , चार चरणों को संदर्भित करता है: रीच (Reach), एक्ट (Act), कन्वर्ट (Convert) और एंगेज (Engage)। प्रत्येक चरण एक सतत प्रक्रिया है। लेकिन, उन सभी का उद्देश्य – प्लास्टिक उपयोग को नीचे ले जाना, और अंततः उन्हें एक ऐसे आंदोलन में बदलना है, जो सकारात्मक परिणाम चाहता है।

 रेस, प्लास्टिक-मुक्त समुदाय की अवधारणा का प्रसार करेगा। यह लोगों के व्यवहार को प्रभावित करेगा, और उन्हें ईयरबड (earbud) में मौजूद प्लास्टिक की छड़ें, आइसक्रीम, प्लास्टिक कटलरी और थर्मोकोल जैसी प्रतिबंधित वस्तुओं के विकल्प का उपयोग करने के लिए, प्रोत्साहित करेगा।

रेडियो चैनलों और अन्य सूचना प्रसार प्रणालियों के माध्यम से, इस प्रतिबंध के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के अलावा, यह अभियान एकल-उपयोग प्लास्टिक को इकट्ठा करने और उसके पुनर्चक्रण पर ध्यान केंद्रित करेगा। प्रतिभागियों ने अपने परिवेश को साफ़ रखने और अपने दैनिक जीवन में 3R – रिड्यूस (Reduce), रीयूज़ (Reuse) और रीसाइक्लिंग (Recycling) का पालन करने पर सहमति व्यक्त की।

समुद्री पर्यावरण सहित स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों पर, कूड़े-कचरे वाले एकल-उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं के प्रतिकूल प्रभावों को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है। परिणामस्वरूप, एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं से होने वाले प्रदूषण से निपटना, सभी देशों के लिए एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौती बनकर उभरा है।

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भारत का पहला प्लास्टिक से डीज़ल रूपांतरण संयंत्र-

मथुरा में, भारत का पहला प्लास्टिक-टू-डीज़ल रूपांतरण संयंत्र (Plastic-to-diesel conversion plant) है, जो शहर से हर दिन पांच मीट्रिक टन प्लास्टिक को संसाधित करता है। इसमें 50 माइक्रोन से कम मोटाई के गैर-मूल्यवान प्लास्टिक, जैसे कि – कैरी बैग या पैकिंग सामग्री भी शामिल है। मथुरा नगर निगम द्वारा, प्रतिदिन कुल 220 मीट्रिक टन कूड़ा घर-घर जाकर एकत्र किया जाता है, जिसमें से 35% सूखा कूड़ा होता है। इस प्लास्टिक का लगभग पांच मीट्रिक टन हिस्सा, डीज़ल में बदलने के लिए उपलब्ध है। परिवर्तित डीज़ल का उपयोग, वाहनों में नहीं किया जा सकता है। लेकिन, यह डीज़ल जनरेटर और फ़ैक्ट्री सेटअप के लिए वैकल्पिक ईंधन के रूप में कार्य करता है। फ़ैक्ट्रियां, फ़र्नेस  ऑइल (Furnace oil) की जगह इस डीज़ल का उपयोग कर सकती हैं। यह डीज़ल 25% सस्ता है और इसमें सल्फ़र (Sulfur) की मात्रा बहुत कम है, जिससे यह कम प्रदूषण करता है। प्लास्टिक-टु -डीज़ल रूपांतरण संयंत्र में, एक टन प्लास्टिक कचरे को 150-200 लीटर डीज़ल में बदलने की क्षमता है, जिसकी कीमत 45-50 रुपये प्रति लीटर है। ज़िले की अन्य नगर पालिकाएं भी, इस रूपांतरण संयंत्र में अपशिष्ट प्लास्टिक का निपटान कर सकती हैं।

पीटरसन एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड (Peterson Energy Pvt. Ltd.) की प्रबंध निदेशक – विद्या अमरनाथ जी ने बताया कि, प्लास्टिक को पोलीमराइज़ेशन(Polymerisation) के माध्यम से कच्चे तेल से प्राप्त किया जाता है। इस कारण, यह संयंत्र प्लास्टिक को कच्चे तेल में परिवर्तित करने के लिए, थर्मो-केमिकल डिपॉलिमराइज़ेशन(Thermo-chemical depolymerisation) का उपयोग करता है। इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में, एक रिएक्टर(Reactor) में प्लास्टिक कचरे को बहुत उच्च तापमान (350-600 डिग्री सेल्सियस) पर गर्म करना; हाइड्रोकार्बन गैसों (Hydrocarbon gases) व सिनगैस (Syngas) (एक ज़हरीली गैस मिश्रण) और कार्बन ब्लैक (Carbon black) का उत्पादन करना शामिल है। यह ऊर्जा-कुशल प्रक्रिया पूरी तरह से हरित है, जिसमें शून्य अपशिष्ट और शून्य उत्सर्जन है। अलग से एकत्र किए गए कार्बन ब्लैक का उपयोग, पेंट और सीमेंट जैसे विभिन्न उद्योगों में किया जा सकता है। यह पहल ईंधन और औद्योगिक सामग्रियों के लिए एक स्थायी विकल्प प्रदान करते हुए, प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन के लिए एक प्रभावी, पर्यावरण के अनुकूल तरीके को प्रदर्शित करती है।

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प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन हेतु उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख दिशानिर्देश-

‘उत्तर प्रदेश राज्य ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नीति’, राज्य में प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन के लिए दिशानिर्देशों की रूपरेखा तैयार करती है। नीचे प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित कुछ प्रमुख सिद्धांत और नियम दिए गए हैं:

1. स्रोत पर कमी और पुन: उपयोग:

•शहरी स्थानीय निकायों को ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के विकल्पों को बढ़ावा देने के लिए, प्रोत्साहित किया जाता है, जो अपशिष्ट उत्पादन को रोकते हैं, और पुन: उपयोग को बढ़ावा देते हैं।

•पैकेजिंग के लिए उपयोग की जाने वाली प्लास्टिक शीट की मोटाई, 50 माइक्रोन (50 micron) से कम नहीं होनी चाहिए। हालांकि, जहां पतली प्लास्टिक की शीट, पैक की गई सामग्री (जैसे – दवाएं) की गुणवत्ता से समझौता करती हैं, वहां यह नियम नहीं लगता है।

•गुटखा, पान मसाला और तम्बाकू उत्पादों को प्लास्टिक पैकेजिंग में पैक नहीं किया जाना चाहिए।

•उत्तर प्रदेश में सभी प्रकार के प्लास्टिक कैरी बैग (मोटाई या सामग्री की परवाह किए बिना) प्रतिबंधित हैं।

2. प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों का अनुपालन:

•राज्य सरकार 2018 में संशोधित, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 का पालन करती है।

•ये नियम प्लास्टिक कचरे के संग्रहण, पृथक्करण, परिवहन, प्रसंस्करण और निपटान को नियंत्रित करते हैं।

•प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन को न्यूनतम करने, और ज़िम्मेदार निपटान प्रथाओं को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

3. जागरूकता और शिक्षा:

•प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए सूचना, शिक्षा और संचार (आई ई सी) अभियान चलाए जाते हैं।

•नागरिकों को प्लास्टिक प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों के बारे में शिक्षित किया जाता है, और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

4. पुराने कचरा ढेरों/कूड़ेदानों का पुनरुद्धार:

•पर्यावरणीय क्षरण को रोकने के लिए, पुराने ढेरों/कूड़ेदानों को पुनः प्राप्त करने और उनको पुनःस्थापित करने के प्रयास किए जाते हैं। 

•मौजूदा अपशिष्ट निपटान स्थलों के प्रभाव को कम करने के लिए, उचित अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं को लागू किया जाता है।

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उत्तर प्रदेश और प्लास्टिक अपशिष्ट उत्सर्जन-

प्लास्टिक वैकल्पिक रिपोर्ट-2022 के अनुसार, देश में प्लास्टिक अपशिष्ट उत्सर्जन के मामले में उत्तर प्रदेश आठवें स्थान पर है। यह रिपोर्ट विभिन्न राज्यों द्वारा कचरे के पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग के लिए, नवीन अनुप्रयोगों के बारे में भी बात करती है।

गौरतलब है कि, उत्तर प्रदेश ने 2018 से एकल-उपयोग प्लास्टिक के निर्माण, संग्रह, परिवहन, बिक्री, पुनर्चक्रण और उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। साथ ही, राज्य में प्लास्टिक कचरे को ईंधन में बदलने के लिए, दो संयंत्र स्थापित किए गए हैं।

ऐसा ही एक संयंत्र, 2021 में प्रयागराज में स्थापित किया गया था। इसमें एकल-उपयोग प्लास्टिक का उपयोग ईंधन में बदलने के लिए किया जाता है। इसके अलावा मथुरा में एक प्लांट पहले से ही काम कर रहा है, जैसा कि हमनें ऊपर पढ़ा है। इन दोनों संयंत्रों की क्षमता 2700 टन कचरा प्रति वर्ष है।

संयंत्र स्थापित करने के अलावा, प्लास्टिक कचरे का उपयोग, सड़क निर्माण में भी किया जा रहा है और पेपर मिलों ने सीमेंट मिलों के साथ ऐसे कचरे का पुन: उपयोग करने की पहल की है।

प्लास्टिक अल्टरनेटिव रिपोर्ट-2022 (Plastic Alternative Report - 2022) में कहा गया है कि,  भारत में प्लास्टिक कचरा उत्सर्जन के मामले में महाराष्ट्र पहले स्थान पर है और प्रति व्यक्ति कचरा हटाने के मामले में, गोवा  है। इसके बाद दिल्ली और केरल का स्थान है, जबकि, उत्तर प्रदेश 28वें नंबर पर हैं। प्रति व्यक्ति कम प्लास्टिक अपशिष्ट उत्सर्जन के मामले में, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा सूची में शीर्ष पर हैं।

भारत में बड़ी मात्रा में प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, और महाराष्ट्र उत्सर्जन में सबसे आगे है, जो कुल 13% का योगदान देता है। तमिलनाडु और गुजरात में से प्रत्येक राज्य की हिस्सेदारी, 12% है, जबकि पश्चिम बंगाल और कर्नाटक की हिस्सेदारी 9% है। तेलंगाना और दिल्ली प्रत्येक 7% का योगदान करते हैं, और उत्तर प्रदेश 5% उत्सर्जन करता है। हरियाणा और केरल का योगदान 4% है, जबकि मध्य प्रदेश और पंजाब का योगदान 3% है। प्लास्टिक अपशिष्ट उत्सर्जन का शेष 11%, अन्य राज्यों और क्षेत्रों के बीच साझा किया जाता है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि, देश में हर साल 34,69,780 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। ये आंकड़ा, साल 2019-20 का है। एक तरफ़, देश में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक कचरा उत्सर्जन, पांच साल यानी 2016-20 में ही दोगुना हो गया है।

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/599eaetc

https://tinyurl.com/5n79tt3c

https://tinyurl.com/yj63xcn4

https://tinyurl.com/37mfd9t9

मुख्य चित्र स्रोत: Wikimedia

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