![आइए जानें कैसे, भारत के इसरो ने, अंतरिक्ष यान डॉकिंग तकनीक हासिल की](https://prarang.s3.amazonaws.com/posts/11583_January_2025_6790653569460.jpg)
क्या आप जानते हैं कि, 30 दिसंबर, 2024 को, 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' (Indian Space Research Organisation (ISRO)) द्वारा 'स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट' (Space Docking Experiment (SpaDeX)) नामक मिशन के तहत, पहली बार अंतरिक्ष में दो छोटे अंतरिक्ष यानों को एक साथ जोड़ा गया। इसरो ने, इस मिशन की सफलता की घोषणा, 16 जनवरी 2025 को की। यह मिशन, अंतरिक्ष डॉकिंग तकनीक को विकसित और प्रदर्शित करने के लिए, एक महत्वपूर्ण तकनीकी पहल है। स्पेडेक्स नामक इस मिशन में, दो अंतरिक्ष यान शामिल थे, जो दक्षिणी भारत में, श्रीहरिकोटा (Sriharikota) में एक लॉन्च पैड (launch pad) से छोड़े गए थे। एक ही रॉकेट पर लॉन्च किए गए ये दो यान, अंतरिक्ष में अलग हो गए। फिर उनको, अंतरिक्ष में एक साथ जोड़ा गया। इस सफलता के साथ, भारत रूस, अमेरिका और चीन के बाद यह तकनीकी उपलब्धि हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है। तो आइए, आज स्पेडेक्स मिशन की अवधारणा और इस मिशन के लिए विकसित की गई स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के बारे में विस्तार से जानते हैं। इसके साथ ही, हम स्पेडेक्स मिशन के उद्देश्य और महत्व के बारे में जानेंगे। अंत में, हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि स्पेडेक्स मिशन की डॉकिंग प्रक्रिया को सफलतापूर्वक कैसे क्रियान्वित किया गया।
स्पेडेक्स मिशन (SpaDex Mission):
स्पेडेक्स मिशन अंतरिक्ष में डॉकिंग के प्रदर्शन के लिए एक लागत प्रभावी प्रौद्योगिकी प्रदर्शक मिशन है, जिसके लिए 'ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन' (Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV)) द्वारा प्रक्षेपित किए गए दो छोटे अंतरिक्ष यानों का उपयोग किया जाएगा। भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं जैसे चंद्रमा पर भारतीयों के पहुंचने, चंद्रमा से नमूना लाने, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (Bharatiya Antariksh Station (BAS)) के निर्माण और संचालन आदि के लिए यह तकनीक आवश्यक है। जब सामान्य मिशन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कई रॉकेटों को एक साथ लॉन्च करने की आवश्यकता होती है, तो इन-स्पेस डॉकिंग तकनीक आवश्यक होती है। इस मिशन के जरिए भारत अंतरिक्ष डॉकिंग तकनीक वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है।
मिशन संकल्पना:
स्पेडेक्स मिशन में, दो छोटे अंतरिक्ष यान – एस डी एक्स01 (SDX01) और एस डी एक्स 02 (SDX02), (जिनमें से प्रत्येक का वज़न लगभग 220 किलोग्राम है), शामिल थे, जिन्हें PSLV-C60 द्वारा एक साथ, लगभग 66 दिनों के स्थानीय समय चक्र के साथ, 55° झुकाव पर 470 किलोमीटर गोलाकार कक्षा में लॉन्च किया गया। पी एस एल वी वाहन की प्रदर्शित सटीकता का उपयोग करके प्रक्षेपण यान से अलग होने के समय लक्ष्य और चेज़र अंतरिक्ष यान के बीच सापेक्ष वेग दिया गया। इस बढ़ते हुए वेग से लक्ष्य अंतरिक्ष यान एक दिन के भीतर चेज़र से 10-20 किलोमीटर अंतर-उपग्रह दूरी बनाने में सक्षम हुआ । उस समय, लक्ष्य और चेज़र यान, समान वेग के साथ एक ही कक्षा में थे। लेकिन लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर अलग हुए, जिसे 'फ़ार रेंडेज़वस' (Far Rendezvous) के रूप में जाना जाता है। दो अंतरिक्ष यान के बीच एक छोटे सापेक्ष वेग की शुरुआत और फिर क्षतिपूर्ति करने की समान रणनीति के साथ, चेज़र क्रमशः 5 किलोमीटर, 1.5 किलोमीटर , 500 मीटर, 225 मीटर, 15 मीटर और 3 मीटर की उत्तरोत्तर कम अंतर-उपग्रह दूरी के साथ लक्ष्य तक पहुंचा, जिससे अंततः दो अंतरिक्ष यानों की डॉकिंग हुई । सफल डॉकिंग के बाद, उनके संबंधित पेलोड का संचालन शुरू करने के लिए दोनों उपग्रहों को अनडॉक करने और अलग करने से पहले दोनों उपग्रहों के बीच विद्युत ऊर्जा हस्तांतरण का प्रदर्शन भी किया गया ।
डॉकिंग को सक्षम बनाने के लिए विकसित की गईं स्वदेशी तकनीकें:
स्पेडेक्स मिशन का उद्देश्य और महत्व:
डॉकिंग प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन: इसका प्राथमिक उद्देश्य, पृथ्वी की निचली कक्षा में अंतरिक्ष यान के मिलन, डॉकिंग और अनडॉकिंग के लिए आवश्यक तकनीक का विकास और प्रदर्शन करना है। यह क्षमता, मानव अंतरिक्ष उड़ान और उपग्रह सर्विसिंग सहित विभिन्न भविष्य के मिशनों के लिए महत्वपूर्ण है।
भविष्य के जटिल मिशनों के लिए समर्थन: यह डॉकिंग तकनीक, उन जटिल मिशनों के लिए आवश्यक है, जिनके लिए, सामान्य उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु, एक साथकई रॉकेटों के लॉन्च की आवश्यकता होती है, जैसे कि भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण और संचालन और चंद्रयान -4 जैसे चंद्र मिशन।
स्वायत्त संचालन: इस मिशन का उद्देश्य, स्वायत्त डॉकिंग क्षमताओं का परीक्षण करना था । इसमें डॉक किए गए अंतरिक्ष यान के बीच विद्युत ऊर्जा हस्तांतरण की पुष्टि करना शामिल है, जो अंतरिक्ष में भविष्य के रोबोटिक संचालन के लिए महत्वपूर्ण है।
पेलोड संचालन: डॉकिंग के बाद, इस मिशन के तहत, पेलोड संचालन का भी परीक्षण किया गया , जिसमें अनडॉकिंग के बाद दोनों अंतरिक्ष यानों पर विभिन्न प्रयोगों की कार्यक्षमता का प्रदर्शन किया गया।
एक विशिष्ट समूह में शामिल होना: इन क्षमताओं का सफलतापूर्वक प्रदर्शन करके, भारत का लक्ष्य उन देशों के एक विशिष्ट समूह में शामिल होना है, जिन्होंने अंतरिक्ष डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल की है। अब तक, भारत से पहले केवल तीन देशों - संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन - ने ही यह सफलता हासिल की है। यह प्रगति, इसरो को वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित करती है।
सैटेलाइट सर्विसिंग और रखरखाव: डॉकिंग से उपग्रहों की सर्विसिंग और ईंधन भरने की अनुमति मिलती है, जिससे उनके परिचालन जीवन का विस्तार होता है। यह क्षमता, लॉन्चिंग प्रतिस्थापन से जुड़ी लागत को कम कर सकती है और उपग्रह संचालन की स्थिरता को बढ़ा सकती है।
मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए समर्थन: भारत के गगनयान जैसे मिशनों के लिए, जिनका उद्देश्य, मनुष्य को अंतरिक्ष में भेजना है, अंतरिक्ष यान के बीच चालक दल के स्थानांतरण और अंतरिक्ष स्टेशनों से जुड़ने के लिए डॉकिंग तकनीक महत्वपूर्ण है। इस मिशन ने मानवयुक्त मिशनों के दौरान, सुरक्षित और कुशल संचालन सुनिश्चित की ।
अंतरग्रहीय मिशन: डॉकिंग क्षमताएं, भविष्य के अंतरग्रहीय मिशनों के लिए महत्वपूर्ण हैं, जैसे चंद्रमा या मंगल से नमूना वापसी मिशन।
तकनीकी उन्नति और वैश्विक स्थिति: डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल करने से भारत ऐसे संचालन में सक्षम देशों के चुनिंदा समूह में शामिल हो गया है, जिससे वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय में इसकी प्रतिष्ठा बढ़ गई है। यह प्रगति, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देती है और संयुक्त मिशनों और अनुसंधान के अवसर खोलती है।
अंतरिक्ष यान डॉकिंग क्या है:
अंतरिक्ष यान डॉकिंग, एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें दो अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष में जुड़ते हैं। इस प्रक्रिया में एक अंतरिक्ष यान (जैसे कि एक अंतरिक्ष स्टेशन मॉड्यूल) दूसरे अंतरिक्ष यान या अंतरिक्ष स्टेशन के साथ जुड़ता है। इस प्रक्रिया में, दोनों अंतरिक्ष यानों की सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सटीक संरेखण और नियंत्रण की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, 'अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन' (International Space Station (ISS)), रूसी सोयुज़ (Soyuz) जैसे अंतरिक्ष यान से डॉकिंग के माध्यम से कार्गो और चालक दल प्राप्त करता है।
भारत के लिए स्पेस डॉकिंग तकनीक का महत्व:
इसरो के अनुसार, भारत को चंद्रमा पर एक भारतीय नागरिक को भेजने, घरेलू अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण एवं संचालन और चंद्रमा के नमूने वापस करने की अपनी महत्वाकांक्षा को आगे बढ़ाने में सफल होने के लिए, घरेलू स्तर पर, विकसित डॉकिंग तकनीक, एक आवश्यकता है। यह तकनीक, भारत को एक उपग्रह या अंतरिक्ष यान से दूसरे यान में सामग्री स्थानांतरित करने की अनुमति देगी, जैसे कि पेलोड, चंद्र नमूने या अंततः, अंतरिक्ष में मानव। इस मिशन के हिस्से के रूप में, डॉक किए गए अंतरिक्ष यानों ने, आपस में जुड़ने के बाद, अपने बीच, विद्युत ऊर्जा के हस्तांतरण का भी प्रदर्शन किया। भविष्य के मिशनों के दौरान, अंतरिक्ष में रोबोटिक्स, अंतरिक्ष यान नियंत्रण और पेलोड संचालन के लिए, यह आवश्यक है।
स्पेडेक्स मिशन की डॉकिंग प्रक्रिया कैसे क्रियान्वित की गई:
स्पेडेक्स मिशन में शामिल अंतरिक्ष यान, प्रकृति में उभयलिंगी हैं, अर्थात डॉकिंग के दौरान, कोई भी अंतरिक्ष यान चेज़र (सक्रिय अंतरिक्ष यान) के रूप में कार्य कर सकता है। ये यान, सौर पैनलों, लिथियम-आयन बैटरी और एक मज़बूत बिजली प्रबंधन प्रणाली से युक्त हैं। इनके 'एटीट्यूड एंड ऑर्बिट कंट्रोल सिस्टम' (Attitude and Orbit Control System (AOCS)) में स्टार सेंसर, सन सेंसर, मैग्नेटोमीटर और एक्चुएटर्स जैसे रिएक्शन वील , मैग्नेटिक टॉर्कर्स और थ्रस्टर्स जैसे सेंसर शामिल हैं। डॉकिंग के बाद, दोनों यान, एक ही अंतरिक्ष यान के रूप में काम करेंगे। डॉकिंग की सफलता की पुष्टि के लिए विद्युत शक्ति को एक उपग्रह से दूसरे उपग्रह में स्थानांतरित किया गया। सफल डॉकिंग और अनडॉकिंग के बाद, अंतरिक्ष यान, अलग हो गए और अनुप्रयोग मिशनों के लिए उपयोग किए गए । अनडॉकिंग के दौरान, अंतरिक्ष यान पेलोड संचालन शुरू करने के लिए अलग हो गया । इन पेलोड से उच्च रिज़ॉल्यूशन छवियां, प्राकृतिक संसाधन निगरानी, वनस्पति अध्ययन और कक्षा विकिरण पर्यावरण माप जैसे अनुप्रयोग किया जा सकते हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र: बिना पायलट वाला आई एस एस प्रोग्रेस पुनः आपूर्ति वाहन, स्टेशन पर मौजूद एक्सपीडिशन 23 के चालक दल के सदस्यों के लिए 2.6 टन भोजन, ईंधन, ऑक्सीजन, प्रणोदक और आपूर्ति लेकर अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की ओर बढ़ रहा है। : (Wikimedia)
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