किसी भी देश का निर्माण उद्योग, देश के आर्थिक विकास का एक प्रमुख चालक होता है, क्योंकि यह दैनिक जीवन और व्यवसाय संचालन का समर्थन करने वाले बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए ज़िम्मेदार होता है। आवासीय घरों से लेकर बड़े पैमाने पर व्यावसायिक इमारतों, पुलों और सड़कों जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं तक, निर्माण उद्योग शहरों और समुदायों के साथ-साथ देश को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ रहा है और नई इमारतों की मांग बढ़ रही है, यह उद्योग तेज़ी से विकास कर रहा है। समय के साथ इस क्षेत्र में तकनीकी प्रगति और टिकाऊ भवन निर्माण प्रथाओं के आगमन से भी यह क्षेत्र अधिक कुशल और पर्यावरण के अनुकूल बनते हुए, निरंतर प्रगति कर रहा है। निर्माण उद्योग से न केवल रोज़गार के अवसर उत्पन्न होते हैं, बल्कि यह क्षेत्र विकसित और विकासशील दोनों अर्थव्यवस्थाओं के विकास के लिए आवश्यक है। यदि बात भारत की जाए, तो भारतीय निर्माण उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था का इंजन है। तो आइए आज, भारतीय निर्माण उद्योग, इसके विकास और अर्थव्यवस्था में इसके महत्व विषय में जानते हैं। इसके साथ ही, हम भारतीय निर्माण उद्योग में समय के साथ आए प्रमुख परिवर्तनों जैसे प्रौद्योगिकी, सामग्री और पर्यावरण अनुकूलता आदि के विषय में जानेंगे। अंत में, हम देखेंगे कि औद्योगिक क्रांति का निर्माण उद्योग पर क्या प्रभाव पड़ा!
भारतीय निर्माण उद्योग: एक संक्षिप्त सारांश:
भारतीय निर्माण उद्योग, भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल है। यदि देखा जाए, देश का समग्र विकास मूल रूप से भारतीय निर्माण उद्योग पर निर्भर है क्योंकि अच्छा बुनियादी ढांचा अन्य सभी परियोजनाओं का आधार होता है, और इसीलिए सरकार का मुख्य ध्यान भी इस उद्योग पर है।
भारत के निर्माण उद्योग ने हाल के वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी है, और इसके अगले 3 वर्षों के भीतर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा निर्माण बाज़ार बनने की उम्मीद है। रिपोर्टों के अनुसार, भारत का कुल निर्माण मूल्य 2025 तक 1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। 'उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग' (Department for Promotion of Industry and Internal Trade (DPIIT)) के रिकॉर्ड के अनुसार, अप्रैल 2000 और मार्च 2020 के बीच इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 25.66 बिलियन डॉलर था। 2023 में, भारत का निर्माण क्षेत्र सबसे अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investments (FDI)) प्राप्त करने की सूची में छठे स्थान पर था। मूल्य के संदर्भ में, 2023 में भारतीय निर्माण उद्योग का मूल्य 884.72 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। 2024 से 2030 तक 12.6% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर के साथ बढ़कर, इसके 2,134.43 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है। यह क्षेत्र इस्पात उद्योग में 55%, पेंट उद्योग में 15% और कांच उद्योग में 30% का योगदान देता है। अप्रैल 2000 से मार्च 2024 के बीच बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में कुल निवेश प्रवाह 33.91 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। निवेश के इस प्रवाह ने इस क्षेत्र को काफ़ी बढ़ावा दिया है, जिसके साथ अब यह क्षेत्र भारत की कुल जी डी पी में 9% का योगदान देता है। इस क्षेत्र में 51 मिलियन से अधिक लोग कार्यरत हैं। इस क्षेत्र के भीतर जिन गतिविधियों में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज़ की गई है उनमें निर्यात कार्गो (10%), राजमार्ग निर्माण/चौड़ीकरण (9.8%), विद्युत उत्पादन (6.6%), आयात कार्गो (5.8%), और प्रमुख बंदरगाहों पर कार्गो (5.3%) शामिल हैं।
भारतीय निर्माण उद्योग को दुनिया के तीन सबसे बड़े निर्माण बाज़ारों में शामिल करने के उद्देश्य से, भारत सरकार, ऐसी नीतियां विकसित और कार्यान्वित कर रही है जो देश के भीतर बिजली संयंत्रों और पुलों से लेकर बांधों, सड़कों और अन्य शहरी विकास परियोजनाओं तक विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे का समयबद्ध निर्माण सुनिश्चित करती हैं।
2018 में, भारत विश्व बैंक के 'लॉजिस्टिक्स परफॉर्मेंस इंडेक्स' (Logistics Performance Index (LPI)) में 167 देशों में से 44 वें स्थान पर था और 2019 में, यह 'एजिलिटी इमर्जिंग मार्केट्स लॉजिस्टिक्स इंडेक्स' (Agility Emerging Markets Logistics Index) में दूसरे स्थान पर था। 2019 में, भारतीय निर्माण उद्योग में 1,461 मिलियन डॉलर के सात विलय और अधिग्रहण सौदे भी देखे गए। पिछले साल जहां एक तरफ़ देश में बिजली उत्पादन 1,252.61 बीयू (BU) तक पहुंच गया, तो वहीं दूसरी ओर 'भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण' (National Highways Authority of India (NHAI)) ने 3,979 किलोमीटर राजमार्गों का निर्माण भी पूरा किया, जो अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है।
लेकिन वास्तव में, भारत की विशाल जनसंख्या के लिए केवल इतना पर्याप्त नहीं है। 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने के साथ-साथ अपने उद्यमशील नागरिकों की मांगों को पूरा करने के लिए, मौजूदा बुनियादी ढांचे का निरंतर निर्माण और उन्नयन आवश्यक है।
भारतीय निर्माण उद्योग में प्रमुख परिवर्तन:
भारत में निर्माण उद्योग में, पिछले एक दशक में, आमूल-चूल परिवर्तन आया है। जो उद्योग एक समय श्रम-प्रधान था और जिसमें मुख्य रूप से मैनुअल रूप से कार्य किया जाता था, वह क्षेत्र आज दक्षता, नवाचार और स्थिरता की विशेषता वाले तकनीकी रूप से संचालित क्षेत्र में विकसित हो गया है। मशीनीकरण से लेकर डिजिटल उपकरणों और स्मार्ट प्रौद्योगिकियों तक की प्रगति के साथ, निर्माण उद्योग अब केवल संरचनाओं के निर्माण के बारे में नहीं है, बल्कि यह अधिक स्मार्ट, सुरक्षित और अधिक टिकाऊ वातावरण बनाने के बारे में है। निर्माण उद्योग के इन परिवर्तनों को निम्न बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:
यंत्रीकरण: एक समय में खुदाई और सर्वेक्षण जैसे कार्यों के लिए निर्माण कार्य मैन्युअल श्रम पर बहुत अधिक निर्भर था, जिससे अक्सर देरी होती थी और जोखिम बढ़ जाता था। लेकिन आज, उत्खनित्र, क्रेन और स्वचालित सर्वेक्षण उपकरण जैसी उन्नत मशीनरियों ने इन कार्यों को अत्यंत आसान बना दिया है। इन मशीनों की सहायता से निर्माण कार्य को अधिक सटीकता, शीघ्रता और दक्षता के साथ किया जा सकता है, जिसके लिए मानव श्रम की कम आवश्यकता होती है और समग्र सुरक्षा के साथ जोखिम भी घट जाता है।
कंप्यूटर एडेड डिज़ाइन (computer-aided design (CAD)) को अपनाना: पहले जहां वास्तुकार और इंजीनियर हाथ से बनाए गए ब्लूप्रिंट पर निर्भर रहते थे, जिसमें समय लगता था और त्रुटियों की संभावना होती थी, अब, ऑटोकैड और रेविट जैसे सी ए डी सॉफ़्टवेयर की सहायता से सटीक डिजिटल डिज़ाइन बनाए जाते हैं जिन्हें आसानी से संशोधित और साझा किया जा सकता है, इससे सटीकता में सुधार होता है और टीमों में बेहतर सहयोग को बढ़ावा मिलता है।
बिल्डिंग सूचना मॉडलिंग (Building Information Modeling (BIM)) का समावेशन: बी आई ए म से पहले, निर्माण परियोजनाएं अक्सर खंडित जानकारी और समन्वय मुद्दों से जूझती थीं। बी आई ए म ने एक एकीकृत डिजिटल मॉडल पेश करके उद्योग जगत में क्रांति ला दी है। बी आई ए म डिज़ाइन और निर्माण के सभी पहलुओं को एकीकृत करता है, सहयोग बढ़ाता है और त्रुटियों को कम करता है।
निर्माण में ए आर (AR) और वी आर (VR): पहले ग्राहकों को परियोजनाओं की कल्पना करने के लिए, 2 डी ब्लूप्रिंट और मौखिक विवरण पर निर्भर रहना पड़ता था। आज, ए आर और वी आर प्रौद्योगिकियों के माध्यम से लोग किसी भी परियोजना का लाइव मॉडल देख सकते हैं और उसके बारे में पूरी समझ प्राप्त कर सकते हैं।
रोबोटिक्स और स्वचालन: पहले जहां दीवार बनाने के लिए, ईंट पथाई जैसे मैन्युअल कार्य परंपरागत रूप से श्रम-गहन और धीमे थे, अब रोबोटिक्स और स्वचालन से अब इन कार्यों को तेज़ी और सटीकता से किया जा सकता है, जिससे श्रम लागत में कटौती होती है और उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
IoT एकीकरण: अब, IoT एकीकरण (Internet of Things Integation) के माध्यम से स्मार्ट सेंसर द्वारा संरचनात्मक स्वास्थ्य और ऊर्जा उपयोग पर वास्तविक समय डेटा प्राप्त किया जा सकता है, इससे किसी भी इमारत का उचित रखरखाव और अधिक कुशल संचालन संभव हो जाता है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का एकीकरण: ए आई के माध्यम से, अनुकूलित डिज़ाइन तैयार किए जा सकते हैं, सटीकता को बढ़ाकर त्रुटियों को कम किया जा सकता है, कार्य को चरणबद्ध तरीके से सुव्यवस्थित करके समय पर पूरा किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, ए आई, वास्तविक समय में निर्णय लेने में सहायता करता है, जिससे डिज़ाइन प्रक्रियाओं में रचनात्मकता और नवीनता को बढ़ावा देते हुए अधिक कुशल और लागत प्रभावी निर्माण होता है।
प्रेफ़ेब्रिकेशन और मॉड्यूलर निर्माण: पारंपरिक निर्माण के लिए सभी आवश्यक सामग्रियों और घटकों को साइट पर ही इकट्ठा किया जाता था, जिससे निर्माण में अधिक समय लगता था और लागत भी अधिक होती थी। लेकिन आज, प्रेफ़ेब्रिकेशन और मॉड्यूलर निर्माण से किसी भी परियोजना के अलग-अलग खंडों को ऑफ़-साइट निर्मित किया जाता है जिसके बाद उन्हें साइट पर एकत्र करके शीघ्रता से जोड़ा जा सकता है, इससे परियोजना अतिशीघ्रता से और कम लागत के साथ पूर्ण होती है।
मोबाइल उपकरण: पहले, परियोजना प्रबंधन कागज़ी दस्तावेज़ों और आमने-सामने की बैठकों पर निर्भर करता था, जिससे संचार की गति सीमित हो जाती थी। अब, मोबाइल उपकरणों, ऐप्स और कंप्यूटर के माध्यम से वास्तविक समय में त्वरित दस्तावेज़ साझा किए जाते हैं, जिससे साइट पर समन्वय और दक्षता बढ़ती है।
टिकाऊ निर्माण सामग्री: निर्माण में उपयोग की जाने वाली पारंपरिक सामग्रियों का पर्यावरण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पढ़ता था। आज, पुनर्नवीनीकरण स्टील और बांस जैसी टिकाऊ सामग्री अधिक प्रचलित हो रही है, जिससे पर्यावरणीय प्रभाव कम हो रहे हैं और ऊर्जा दक्षता में सुधार हो रहा है।
3 डी प्रिंटिंग: पारंपरिक रूप से घर का निर्माण श्रम-गहन और समय लेने वाला कार्य था। अब, 3 डी प्रिंटिंग तकनीक से न्यूनतम अपशिष्ट के साथ तेज़ी से, अनुकूलन योग्य घरों का निर्माण संभव है। 3 डी प्रिंटिंग निर्माण के अधिक टिकाऊ तरीकों में से एक है और 2021 में वैश्विक बाज़ार में इसका मूल्य 190 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। 2030 तक इसके 680 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।
औद्योगिक क्रांति और निर्माण:
बड़े पैमाने पर निर्माण उद्योग की शुरुआत, 17वीं और 18वीं शताब्दी में आधुनिक विज्ञान के उदय के साथ हुई। विज्ञान के क्षेत्र में निरंतर होते आविष्कारों से वास्तुकारों और इंजीनियरों को सामग्रियों और रूपों की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ प्रयोग करने की अनुमति मिली। 19वीं सदी में, औद्योगिक क्रांति के दौरान, तेज़ी से तकनीकी प्रगति हुई, जिसने निर्माण उद्योग में बदलाव की लहर पैदा कर दी।
1709 में, अब्राहम डार्बी (Abraham Darby) ने लोहे को गलाने की एक नई विधि विकसित की, जिससे कच्चे लोहे को बड़े पैमाने पर उत्पादित करना संभव हो गया, जिससे कई नवाचारों की नींव पड़ी। इस नवाचार के बाद 1781 में ब्रिटेन में पहला लोहे का पुल बनाया गया जिसके निर्माण की देखरेख स्वयं डार्बी के पोते ने की थी। 1795 में 32-यार्ड पुल के गंभीर बाढ़ से बचने के बाद, अन्य बिल्डरों द्वारा लोहे की संरचनाएँ बनाईं जाने लगीं। 19वीं शताब्दी में अमेरिका के तेज़ी से विस्तार के साथ, कई नई संरचनाओं के लिए ढलवा लोहे का प्रमुखता से उपयोग किया जाने लगा। दुकानों के दरवाज़ों से लेकर जल प्रणालियों तक, इसकी कम लागत, मज़बूती और आग के प्रतिरोध के कारण व्यापक रूप से ढलवा लोहे का उपयोग किया गया। 1820 के दशक में, पिटवां लोहा द्वारा प्रतिस्थापित किए जाने तक, रेलवे निर्माण के लिए भी ढलवा लोहे का प्रमुखता से उपयोग किया जाता था।
बड़े पैमाने पर उत्पादन होने के कारण, प्रेफ़ेब्रिकेशन का उदय हुआ। पहले मॉड्यूलर घरों की कल्पना, 1830 में की गई थी। गैर-आवासीय संरचनाओं के लिए बिल्डरों द्वारा प्रेफ़ेब्रिकेशन का भी उपयोग किया जाता था। 1851 में, लंदन में पहली बार कांच और कच्चे लोहे क्रिस्टल पैलेस बनाया गया। औद्योगिक क्रांति के सबसे प्रभावशाली नवाचारों में से एक 'बेसेमर प्रक्रिया' (Bessemer process) थी, जिसने इस्पात उत्पादन को सस्ता और अधिक किफ़ायती बना दिया। 1890 से 1895 तक, 80% तक स्टील का उत्पादन बेसेमर प्रक्रिया द्वारा किया गया। लोहे से अणि रेलवे को स्टील से बदल दिया गया। इसी दौरान स्टील के गार्डरों का भी निर्माण हुआ जिनके आने से इमारतें नई ऊंचाइयों तक पहुंच गईं। मशीनीकृत निर्माण उपकरणों के आविष्कार, एलीशा ओटिस द्वारा लिफ्ट के लिए सुरक्षित डिज़ाइन और बेसेमर स्टील के साथ गगनचुंबी इमारतों के युग की भी शुरुआत हुई। 1885 में, दुनिया की पहली गगनचुंबी इमारत, शिकागो की होम इंश्योरेंस बिल्डिंग (Chicago’s Home Insurance Building) बनाई गई। शुरुआत में, इसे 10 मंजिल ऊंची बनाया गया था, बाद में 1890 में इमारत को 12 मंजिल तक विस्तारित किया गया।
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत : Pexels
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