इस बरसात के मौसम की उमस और पसीने के कारण , कोका-कोला का एक ताज़ा गिलास अद्भुत काम करता है। 2023 में, भारत ने, 6.94 अरब लीटर कोका-कोला का उपभोग किया था । कोला की कहानी, 150 साल से भी अधिक पुरानी है, जो उतार-चढ़ावों से भरी हुई है। भारत में कार्बोनेटेड पेय बाज़ार पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए, पेप्सी और कोका-कोला के बीच हुई स्पर्धा का वर्णन करने के लिए, अक्सर ही ‘कोला युद्ध’ शब्द का उपयोग किया जाता है। तो आइए, आज इस ‘युद्ध’ और आज़ादी के पश्चात भारत में कोला पेय की यात्रा के बारे में जानें। इसके अलावा, हम चर्चा करेंगे कि, कोका–कोला ने भारतीय ग्रामीण बाज़ार में किस तरह से प्रसिद्धि प्राप्त की है। अंत में, हम एक और ‘युद्ध’ के बारे में बात करेंगे, जो परिवहन कंपनियों – मेरु और ऊबर के बीच हुआ था। हम इस मामले को लेकर, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लिए गए फैसले पर भी नज़र डालेंगे।
1950 के दशक में, जब कोका-कोला और पेप्सी भारत में पहुंचे, तब, उसी समय पारले(Parle) ने पहला भारतीय शीत पेय – ‘ग्लूको कोला’ बाज़ार में लाया। इसका नाम, पारले-जी बिस्कुट और बाद में पारले कोला के नाम पर रखा गया। हालांकि, इस ब्रांड को 1951 में बंद कर दिया गया। बाद में, 1952 में पारले ने नारंगी-स्वाद वाला सोडा – ‘गोल्ड स्पॉट’ विमोचित किया। इस बीच, 1962 तक, पेप्सी व कोका-कोला की बिक्री कम हो गई।
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1971 में पारले का ‘नींबू लिम्का’ प्रसिद्ध था। तब सरकार 1973 में, स्थानीय उत्पादों और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिए, कोका-कोला को अपनी गुप्त विधि से अलग होने के लिए कहा। कोका-कोला ने ऐसा करने से मना कर दिया, और 1977 में देश से बाहर अपनी बिक्री पर ध्यान केंद्रित किया।
जैसे ही भारतीयों को यह कार्बोनेटेड पेय पसंद आने लगा, सरकार ने ‘डबल 7’ नाम से अपना एक देशज ब्रांड बाज़ार में लाया। तब, कैंपा-कोला(Campa-Cola) के साथ, प्योर ड्रिंक्स(Pure Drinks), इस होड़ में शामिल हो गया। साथ ही, कोका-कोला के स्वाद की नकल करने से इनकार करते हुए, पारले भी, थम्स अप के साथ मैदान में कूद पड़ा। इस प्रकार, अलग-अलग लड़ाकों के बावजूद भी यह ‘शीत पेय युद्ध’ जारी रहा।
1980 के दशक के अंत तक, लोग शीत पेय की कुल 3 अरब बोतलें पी रहे थे! हालांकि, हमारी अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के साथ, पेप्सी और कोक ने 1990 और 1993 में बाज़ार में फिर से प्रवेश किया। तब यह युद्ध, पेप्सी बनाम थम्स अप बनाम कोक था।
परंतु, 2000 में भारत ने अपने दो लोकप्रिय पेय ब्रांड खो दिए। तब, कोका-कोला ने गोल्ड स्पॉट(Gold Spot) और सिट्रा(Citra) को खरीद लिया, और उनकी जगह क्रमशः फैंटा(Fanta) और स्प्राइट(Sprite) को ले लिया। इन ब्रांडों में हुई भयंकर प्रतिस्पर्धा ने, कैंपा–कोला को भी लगभग उसी समय भारतीय बाज़ार से बाहर निकलने के लिए मजबूर कर दिया।
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बाद में ग्रामीण भारत में विद्युतीकरण के विस्तार, लोगों की आय में सुधार और सरकारी खर्च में वृद्धि के कारण, ग्रामीण क्षेत्रों में कोका कोला की प्रगति हुई। आज यह पेय देश के अनुमानित 6.6 लाख गांवों में से, लगभग 3.2 लाख गांवों तक पहुंच गया है।
ग्रामीण क्षेत्रों में यूनिफ़ाइड पेमेंट इंटरफेस(UPI – Unified Payments Interface) को अपनाने से भी, उपभोक्ताओं के लिए छोटे भुगतान की सुविधा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सरकार ने विद्युतीकरण और यूपीआई के संदर्भ में जो बुनियादी ढांचा तैयार किया है, उससे ग्रामीण विकास को गति देने में मदद मिली है। इसके अलावा, डिजिटल पहुंच से उपभोक्ता जागरूकता बढ़ी है। परिणामस्वरूप, ग्रामीण क्षेत्र, आज निश्चित रूप से, शहरी क्षेत्र की तुलना में 3% अधिक तेज़ी से बढ़ रहा है।
कोका-कोला का लक्ष्य, 10, 20 और 50 रुपये जैसे प्रमुख मूल्य बिंदुओं पर विशेष ध्यान देना है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक महत्व रखते हैं। कंपनी ने अपने भारतीय कारोबार की वृद्धि का श्रेय, खुदरा विक्रेताओं की अधिक संख्या, शीत पेय उपकरणों में किए गए निवेश और मूल्य निर्धारण को दिया है। इन्होंने विभिन्न विज्ञापनों के माध्यम से भी, घरेलू पहुंच सुनिश्चित की है।
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इस युद्ध के अलावा, देश में दो कंपनियों के बीच एक अन्य युद्ध भी हुआ है। मेरु ट्रेवल्स सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड(Meru Travels Solutions Pvt. Ltd), भारत के 21 प्रमुख शहरों में रेडियो टैक्सी सेवा प्रदान करती है। वर्ष 2008 में, इसने दिल्ली बाज़ार में प्रवेश किया था। जबकि, 2016 में, मेरु ने ऊबर इंडिया सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड(Uber India System Private Limted) के खिलाफ, ‘भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग’ में एक सूचना दायर की। इसमें आरोप लगाया गया था कि, बाज़ार में अपना एकाधिकार स्थापित करने और मौजूदा प्रतिस्पर्धा को खत्म करने के लिए, उबर ने हिंसक मूल्य निर्धारण और प्रभुत्व के दुरुपयोग जैसी विभिन्न प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाओं को अपनाया है।
मेरू ने आरोप लगाया था कि, उबर ने अपने ग्राहकों को कम प्रशुल्क व भारी छूट प्रदान की। इसके अलावा, मेरु द्वारा यह भी आरोप लगाया गया कि, ऊबर ने टैक्सी मालिकों के साथ विशेष अनुबंध किया है, ताकि, उन्हें प्रतिस्पर्धा में शामिल किसी भी अन्य रेडियो टैक्सी प्रचालक के साथ जुड़ने से रोका जा सके, जिससे ‘प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002’ की धारा 3(1), 3(2) और 3(4) का उल्लंघन हो रहा है।
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इस मामले में, पहले प्रतिस्पर्धा अपीलीय न्यायाधिकरण ने निर्णय दिया था। न्यायाधिकरण ने महानिदेशक को, ऊबर के बाजार प्रभुत्व और मूल्य निर्धारण के संबंध में मेरु कैब द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच शुरू करने और निर्धारित अवधि के भीतर आयोग को एक रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया था।
जबकि, ऊबर द्वारा अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ, भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की गई थी। तब, सर्वोच्च न्यायालय ने भी, ऊबर के खिलाफ प्रभुत्व के दुरुपयोग का कोई प्रथम मामला न होने के कारण, जांच की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
सर्वोच्च न्यायालय ने तब कहा कि, यदि कैब की यात्राओं के लिए, कोई आर्थिक नुकसान होता है, तो ऐसा नुकसान, निश्चित रूप से, बाज़ार में पहले से मौजूद प्रतिस्पर्धियों, अपीलकर्त्ता और संबंधित बाज़ार को प्रभावित करेगा। अतः, न्यायालय ने यह अपील खारिज कर दी, और पूर्ववर्ती अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
संदर्भ
https://tinyurl.com/327nea8p
https://tinyurl.com/yck9j8s2
https://tinyurl.com/muru42cu
चित्र संदर्भ
1. इंडियानापोलिस, यूएसए में कोका-कोला और पेप्सी की वेंडिंग मशीनों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. गोल्ड स्पॉट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. कैंपा कोला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. कोका-कोला के लोगो को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
5. ऊबर के लोगो को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)