एक समय ऐसा था जब पृथ्वी पर जीवों की अत्यधिक विविधता पायी जाती थी, किंतु जैसे-जैसे समय बदला तथा मानव गतिविधियां अधिक हुईं, इन जीवों की विविधता पर भी असर पड़ने लगा। ऐसे कई कारक हैं जो जीवों की विविधता को प्रभावित कर रहे हैं, जिससे उनकी संख्या या आबादी दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है। धरती पर पहले जहां उभयचरों और सरीसृपों की अत्यधिक व्यापकता होती थी, वहीं अब इनकी संख्या में भारी गिरावट देखने को मिल रही है।उभयचर और सरीसृप प्रकृति के महत्वपूर्ण अंग हैं, जो कि पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उभयचरों को प्राकृतिक संकेतक माना जाता है, इनकी उपस्थिति यह इंगित करती है कि, पारिस्थितिक तंत्र संतुलित अवस्था में है। किंतु इनकी संख्या में दिन-प्रतिदिन आ रही गिरावट पारिस्थितिक तंत्र असंतुलन के खतरे को इंगित कर रही है। ये दोनों समूह जलीय और स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र के महत्वपूर्ण सदस्य हैं तथा शिकारियों और शिकार दोनों की भांति कार्य करते हैं। शिकारियों और शिकार दोनों की भांति कार्य करने से ये जीव दोनों प्रणालियों के बीच ऊर्जा को स्थानांतरित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उभयचरों और सरीसृपों के निवास स्थान प्रायः समान ही होते हैं हालांकि कुछ प्रजातियां वर्ष के अलग-अलग समय पर विभिन्न आवासों का उपयोग करती हैं। उभयचर अपनी त्वचा के कारण नमी वाले स्थानों में रहना पसंद करते हैं तथा सरीसृप ऐसे स्थानों को चुनते हैं, जहां वे धूप से बच सकें। रेगिस्तान जैसे इलाकों में निर्जलीकरण से बचने के लिए ये जीव अपने पिछले पैरों की मदद से छोटे और अत्यधिक गहरे बिलों का निर्माण करते हैं। भारत में उभयचरों की कई प्रजातियां अंडमान व नोकोबार द्वीप समूह, कर्नाटक, केरल, उत्तराखंड इत्यादि स्थानों पर पायी जाती हैं।
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वर्षों से मानव द्वारा प्रकृति से होने वाली छेड़छाड़ ने इन जीवों के अस्तित्व को भारी नुकसान पहुंचाया है, जिसके कारण उभयचर और सरीसृप आबादी में अत्यधिक गिरावट देखी गई है जोकि आज भी जारी है। इस गिरावट के महत्वपूर्ण कारणों में निम्नलिखित कारकों को शामिल किया जा सकता है:
• निवास स्थान की हानि और गिरावट: शहरी/उपनगरीय विकास के लिए इनके निवास स्थानों को अक्सर तोड़ दिया जाता है या बाधित कर दिया जाता है। जल विविधता, जल प्रदूषण, स्थलीय निवास में ऑफ-रोड (Off-road) वाहन का उपयोग इत्यादि ऐसे कारक हैं जो इनके निवास स्थान को बाधित करते हैं, जिससे इनकी संख्या में कमी आती है।
• विभिन्न प्रकार की बीमारियां: विभिन्न प्रकार की बीमारियों, विशेष रूप से काईट्रिडोमाइकोसिस (Chytridiomycosis) को इनकी गिरावट का प्रमुख कारण माना जाता है। यह बीमारी बेट्रेकोकिट्रियम डेंड्रोबैटिडिस (Batrachochytrium dendrobatidis) नामक फंगस (Fungus) से होती है, जिसे काइट्रिड (Chytrid) भी कहा जाता है। इस बीमारी की उत्पत्ति अफ्रीका में हुई थी, जो 1970 के दशक के बाद से तेजी से फैल रही है। यह फंगस उभयचरों की त्वचा में उपस्थित केराटिन (Keratin) पर हमला करता है, जिससे उभयचरों की पानी को अवशोषित करने की क्षमता बाधित हो जाती है तथा संभवतः उभयचर निर्जलीकरण से मर जाते हैं।
• रानावायरस (Ranavirus): रानावायरस हाल ही में खोजा गया एक ऐसा वायरस (Virus) है, जो उभयचर, सरीसृप और मछली में बीमारी का कारण बनता है। इन्हें उभयचर आबादी के लिए एक वैश्विक खतरा माना जाता है।
• पराबैंगनी विकिरण: 1979 के बाद से प्रति दशक पराबैंगनी विकिरण के स्तर में 5-10% की वृद्धि हुई है। उभयचर अपनी संवेदनशील त्वचा के कारण पराबैंगनी विकिरण के हानिकारक प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं।
• आक्रामक प्रजातियां: कई बार उभयचरों और सरीसृपों के आवासों पर आक्रामक प्रजातियां आ जाती हैं जोकि इनकी वृद्धि को रोकती हैं। उदाहरण के तौर पर तेंदुआ मेंढक की गिरावट का कारण प्रमुख रूप से बुलफ्रॉग (Bullfrog) को माना जाता है। इसी प्रकार से ऐसे कई जीव हैं जो उभयचरों और सरीसृपों के अस्तित्व को प्रभावित करते हैं।
• सूखा: उभयचरों को प्रायः नम स्थानों की आवश्यकता होती है, किंतु सूखे के कारण इन्हें अनुकूल वातावरण उपलब्ध नहीं हो पाता और वे मर जाते हैं।
• रासायनिक संदूषण: विभिन्न प्रकार के स्रोतों से निकले रासायनिक पदार्थ इन जीवों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं और परिणामस्वरूप इनकी मृत्यु हो जाती है।
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ऐसे कई अन्य कारक हैं जो उभयचरों और सरीसृपों के अस्तित्व को हानि पहुंचाते हैं। इनके संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं:
• दोनों वर्गों के संरक्षण के बारे में जागरूक हों तथा लोगों को भी शिक्षित करने में मदद करें।
• दोनों जीवों के स्थानीय आवास की रक्षा करें।
• बायोडिग्रेडेबल (Biodegradable) सफाई पर ध्यान केंद्रित करें तथा कीटनाशकों के लिए जैविक विकल्पों को खोजें।
• पानी के अत्यधिक उपयोग को कम करें, तथा उपयोग की जाने वाली हर सम्भव वस्तु को पुनःप्रयोग में लायें।
• आक्रामक प्रजातियों के बारे में जानें और उनसे इन जीवों को बचाने के उचित उपायों को खोंजे।
• दोनों वर्गों के जीवों को पालतू जानवर बनाने से बचें। उन्हें जंगल में रहने दें जहाँ वे अपनी अगली पीढ़ी को जन्म दे सकते हैं।
संदर्भ:
1. https://www.burkemuseum.org/collections-and-research/biology/herpetology/all-about-amphibians/whats-endangering-amphibians
2. https://www.nps.gov/articles/reptiles-and-amphibians-threats.htm
3. https://www.sheddaquarium.org/care-and-conservation/shedd-research/amphibian-response-to-habitat-restoration
4. https://indiabiodiversity.org/species/show/276163
5. https://www.nps.gov/articles/reptiles-and-amphibians-ecology.htm
चित्र सन्दर्भ:
1. https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/5/51/Amphibians.png