पौधों की विलुप्त प्रजाति को संरक्षित करने में सहायक है क्लोनिंग (Cloning) प्रक्रिया

कोशिका के आधार पर
11-11-2019 12:56 PM
पौधों की विलुप्त प्रजाति को संरक्षित करने में सहायक है क्लोनिंग (Cloning) प्रक्रिया

ऐसी कई वनस्पतियां हैं जो प्राचीन काल में बहुतायत में मौजूद थी। किंतु यदि आज की बात की जाए तो इनमें से कई वनस्पतियां अब शायद ही कहीं देखने को मिलती हैं। वनस्पतियों की विभिन्न प्रजातियों के विलुप्त होने के पीछे कई कारक छिपे हुए हैं जिनमें प्राकृतिक तथा भौतिक कारक दोनों ही शामिल हैं। इन कारकों के कारण वनस्पतियों की विभिन्न प्रजातियों की संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है। इसलिए इस समस्या के निवारण के लिए और पौधों के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए एक प्रसिद्ध प्रक्रिया जिसे ऊतक संवर्धन (टिशू कल्चर- Tissue culture) कहा जाता है, अपनायी गयी है। इस प्रक्रिया के द्वारा पौधे या वनस्पतियों के किसी भाग (पत्ती, जड, तना, छाल इत्यादि) से नये पौधे या नयी वनस्पतियों का निर्माण किया जाता है। जिससे लुप्त हो रही वनस्पतियों के गुणों वाली नयी संततिः उत्पन्न की जाती है। यह एक प्रकार की क्लोनिंग प्रक्रिया है। जिसमें मूल पौधे से नये पौधे का निर्माण किया जाता है। इस प्रकार इस विधि द्वारा वनस्पतियों की कई विभिन्न प्रजातियां उगायी जा सकती हैं।

इसकी खास बात यह है कि इस प्रक्रिया के लिए केवल विभज्योतक या मेरिस्टेम (meristem) का ही उपयोग किया जाता है। विभज्योतक पौधों में पाया जाने वाला एक ऊतक है जिसमें असंख्य अविभाजित कोशिकाएं होती हैं जो पौधे के उस भाग में पाई जाती हैं जहां से पौधे की वृद्धि या विकास हो सकता है। इन अविभाजित कोशिकाओं को विभज्योतक कोशिकाएं कहते हैं जो पौधे के विभिन्न अंगों को जन्म देती हैं। पौधों में पायी जाने वाली अन्य कोशिकाएं नयी कोशिकाओं को विभाजित या निर्मित नहीं कर सकती हैं। जबकि विभज्योतक कोशिकाओं में यह क्षमता होती है कि वे कोशिका विभाजन में सक्षम होती हैं तथा पौधों के विभिन्न अंगों का निर्माण कर सकती हैं। इस प्रकार ये कोशिकाएं पौधे के शरीर की मूल संरचना बनाते हैं। मेरिस्टेम शब्द का इस्तेमाल पहली बार 1858 में कार्ल विल्हेम वॉन नगेली (1817–1891) द्वारा किया गया था। यह ग्रीक शब्द मेरिजिन से लिया गया है, जिसका अर्थ है विभाजित होना। विभज्योतक प्रायः तीन प्रकार के होते हैं जिन्हें क्रमशः शीर्षस्थ विभज्योतक (apical meristem), अंतर्वेशी विभज्योतक (intercalary meristem), और पार्श्व विभज्योतक (lateral meristem) कहा जाता है। इन सभी का कार्य पौधों के अलग-अलग अंगों का निर्माण करना है।

शीर्षस्थ विभज्योतक पौधों की जड़ो और प्ररोह के शीर्ष पर पाए जाते हैं. इसके कारण ही पौधों की जड़ों और प्ररोह की लम्बाई में वृद्धि सम्भव हो पाती है। अंतर्वेशी विभज्योतक स्थायी ऊतकों के मध्य पाये जाते हैं। ऊतक संवर्धन में प्रायः विभज्योतक कोशिकाओं का ही उपयोग पौधों की क्लोनिंग (Cloning) के लिए किया जाता है। क्लोनिंग वह प्रक्रिया है जिसमें मूल कोशिका से समान संरचना और कार्य वाली अन्य कोशिका का निर्माण किया जाता है। इस प्रकार क्लोनिंग के जरिए कोशिका की दूसरी सजीव प्रतिकृति का निर्माण होता है। क्लोनिंग प्रक्रिया में इन कोशिकाओं को एक पौधे से अलग किया जाता है जिसके बाद इसे उपयुक्त जलवायु और पोषक तत्व प्रदान करने के लिए कल्चर मिडिया (Culture media) में रखा जाता है। यह कोशिका फिर कैलस () में परिवर्तित हो जाती है। कोशिका के कैलस में यह क्षमता होती है कि वो नये पौधे में विकसित हो सकता है। क्लोनिंग प्रक्रिया द्वारा किसी नये पौधे कम समय में ही उगाया जा सकता है। इसलिए यह दुर्लभ और लुप्तप्राय पौधों की विभिन्न प्रजातियों को उत्पादित करने का एक प्रभावी तरीका है। मानवीय तौर पर यह प्रक्रिया नयी है किंतु प्रकृति में यह प्रक्रिया अरबों वर्षों से चली आ रही है। आलू, प्याज, अरबी आदि इसी प्राकृतिक प्रक्रिया का परिणाम हैं। लोग भी हजारों साल से पौधों की क्लोनिंग करने की प्रक्रिया का अनुसरण कर रहे हैं। किंतु अब वैज्ञानिक ऊतक संवर्धन की प्रक्रिया में क्लोनिंग को अपनाने लगे हैं। ऊतक संवर्धन नामक इस प्रक्रिया का व्यापक रूप से उपयोग बागवानी विशेषज्ञों द्वारा बेशकीमती ऑर्किड (Orchids) और अन्य दुर्लभ फूलों को उगाने के लिए किया जाता है। कृषि में भी यह प्रक्रिया लाभकारी सिद्ध हो सकती है क्योंकि इसके माध्यम से उच्च-गुणवत्ता व उच्च-उपज वाली फसलों को उत्पादित किया जा सकता है।

पौधों की क्लोनिंग के कई लाभ हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
पौधे की क्लोनिंग से एक समान संरचना व गुणों वाले कई पौधों या फसलों का निर्माण किया जा सकता है।
क्लोनिंग के माध्यम से पौधों या फसलों में वांछित गुण प्राप्त किये जा सकते हैं।
क्लोन किए गए पौधे तेजी से प्रजनन करते हैं। यदि आप अपनी फसल के समय को तेज करना चाहते हैं, तो यह सबसे अच्छा तरीका सिद्ध हो सकता है।
इससे ऐसी प्रजातियां उत्पन्न की जा सकती हैं जो कीट प्रतिरोधी हैं।

संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Meristem#Cloning
2. https://www.bbc.co.uk/bitesize/guides/zq29y4j/revision/5
3. https://science.howstuffworks.com/life/genetic/cloning1.htm
4. https://growersnetwork.org/cultivation/successful-plant-cloning-important/
चित्र सन्दर्भ:
1.
https://pxhere.com/en/photo/1337015
2. https://www.flickr.com/photos/ciat/4331057760
3. https://bit.ly/33C0It0

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