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कला, संस्कृति और सभ्यता की बात की जाए तो विश्व में भारत का स्थान बहुत ऊंचा आता है क्योंकि भारत तीनों रूपों से काफी समृद्ध देश है। यह समृद्धि यहाँ की मेहंदी कला में भी झलकती है। मेहंदी (लॉसनिया इनर्मिस- Lawsonia enermis) जोकि एक छोटी उष्णकटिबंधीय झाड़ी है, कला के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। जब इसकी पत्तियां सूख जाती हैं तो यह एक ऐसे मिश्रण का रूप ले लेती है जिसकी छाप गहरे या हल्के लाल रंग की होती है। इस मिश्रण का प्रयोग फिर हथेलियों और पैरों पर सुंदर-सुंदर डिज़ाइन (Design) बनाने के लिए किया जाता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि वर्तमान में मेहंदी समारोहों, उत्सवों आदि की जान बन गयी है।
आजकल भारत के सभी क्षेत्रों में इसका उपयोग प्रायः विभिन्न आयोजनों, उत्सवों आदि में व्यापक रूप से किया जा रहा है, यहां तक कि इसके संदर्भ में विद्यालयों और कॉलेजों में प्रतियोगिताएं भी कराई जाती हैं। विभिन्न धर्मों, समुदायों आदि में इसका महत्वपूर्ण होना इसकी उपयोगिता को व्यक्त करता है। दरअसल इसमें एक ठंडा गुण होता है जो त्वचा को ठंडक तो देता ही है, साथ ही साथ सुंदर रूप भी देता है जिसका कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता। टैटू (Tattoo) जोकि एक दर्दनाक प्रक्रिया है, उसके लिए मेहंदी एक अच्छा विकल्प है जो बिल्कुल दर्दरहित है। यह कुछ समय बाद धुंधली हो जाती है जिसके बाद त्वचा पर कोई दूसरा डिज़ाईन भी बनाया जा सकता है।
ऐसा माना जाता है कि मेहंदी को 15वीं शताब्दी में मुगलों द्वारा भारत लाया गया था। जैसे-जैसे इसका उपयोग फैलता गया, वैसे-वैसे इसे लगाने के विभिन्न तरीके और डिज़ाइन अधिक परिष्कृत होते गए। सम्भवतः यह परम्परा उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व में उत्पन्न हुई। ऐसा माना जाता है कि इसका उपयोग पिछले 5000 वर्षों से एक सौन्दर्य-प्रसाधन सामग्री के रूप में किया जा रहा है। 17वीं शताब्दी के दौरान भारत में प्रायः एक नाई की पत्नी ही आमतौर पर महिलाओं को मेहंदी लगाती थी जो कि समारोहों के अनुसार अन्य महिलाओं के हाथों और पैरों में डिज़ाईनों को चित्रित करती थी। पहले के समय में पश्चिमी देशों में मेहंदी का चलन नहीं था किंतु वहां इसका प्रयोग कुछ समय पहले से ही मशहूर हस्तियों द्वारा तक किया जा रहा है।
हिंदू धर्म में मेहंदी अपना एक विशेष महत्व रखती है, विशेष रूप से शादियों में। शादी के समारोह में मेहंदी के नाम पर एक रस्म भी की जाती है जिसमें दूल्हा-दुल्हन व अन्य सगे सम्बंधी मेंहदी को अपने हाथों और पैरों में अलंकृत करते हैं। इस परम्परा के बिना शादी को अधूरा माना जाता है। यह इसलिए भी खास है क्योंकि मेहंदी का रंग कई भावों को व्यक्त करता है। जैसे कि माना जाता है कि दुल्हन की मेहंदी के रंग की गहराई उसके पति और सास के प्रेम को प्रदर्शित करती है। रंग जितना गहरा और अधिक समय तक रहता है, दोनों का प्रेम भी उतना ही गहरा होता है।
इसका उपयोग महिलाओं और पुरूषों द्वारा डाई (Dye) के रूप में भी किया जाता है। करवा चौथ, रक्षा-बंधन, नवरात्रि, शादी, आदि ऐसे समारोह या पर्व हैं जो मेहंदी लगाने के लिए खास हैं। मेहंदी के ये डिज़ाईन देवी-देवताओं की मूर्तियों और चित्रों में भी देखे जाते हैं। वर्तमान में राजस्थानी, अरेबियाई, मारवाड़ी आदि ऐसे मेहंदी डिज़ाईनों के प्रकार हैं जो विभिन्न अवसरों पर लगाए जाते हैं तथा भाग्य-शीलता और धन-धान्य का प्रतीक हैं। जहां यह पहले केवल भारत तक ही सीमित थी, वहीं अब वैश्विक हो चुकी है।
मेंहंदी की तरह ही टैटू भी एक कला है जिसे त्वचा पर गुदवाया जाता है। जहां मेहंदी का रंग कुछ दिन बाद फीका पड़ जाता है, तो वहीं टैटू त्वचा पर जीवन पर्यंत अपनी छाप छोड़ देता है। ऐसा नहीं है कि इसका उपयोग केवल सौंदर्यीकरण के लिए किया जाता है। दार्शनिक रूप से देखें तो इसका कुछ अर्थ हो सकता है जो हमारे मन के भावों को व्यक्त करता है। यह जीवन की किसी घटना से भी जुड़ा हो सकता है जो हमें हर समय उस घटना की याद दिलाता है। यह कला वास्तव में एक दर्पण है जो बदलते शरीर के साथ संयुक्त है और पूरी तरह जीवित है। यह प्रथा कांस्य युग या सम्भवतः उससे भी पहले से चलती आ रही है। जहां यह पहले 20वीं सदी में मुख्य रूप से नाविकों और कैदियों की त्वचा पर देखा जाता था तो वहीं अब यह व्यापक हो गया है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2ngyuUJ
2. https://www.learnreligions.com/mehendi-or-henna-dye-1770473
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Mehndi
4. https://www.newgeography.com/content/002098-what-india-hands-world
5. https://bit.ly/2odyVzA
6. https://www.theodysseyonline.com/philosophical-significance-tattoos
7. https://bit.ly/2o3qSW8
8. https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_tattooing#India
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