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वर्तमान में स्मार्ट फोन (Smart Phone) के चलन से जहां पूरी दुनिया इंटरनेट (Internet) के माध्यम से आपस में जुड़ चुकी है तो वहीं इनका बढ़ता चलन और अत्यधिक निर्भरता समाज के लिये घातक भी सिद्ध हो रहा है। स्मार्ट फोन से ली जाने वाली सेल्फीज़ (Selfies) भी इसका ही एक उदाहरण हैं। अपनी सुंदरता का पता लगाने के लिए जहां पहले शीशे का प्रयोग किया जाता था तो अब इन शीशों की जगह सेल्फीज़ ने ले ली है। सेल्फी लेने की जगह का चुनाव अधिकांश लोगों के जीवन के लिये भारी पड़ रहा है। अक्सर ही लोग आपको रेलवे ट्रेक (Railway Track) के पास, समुद्र, नदियों या तालाबों, चट्टानों या पहाड़ों पर सेल्फीज़ लेने के लिये खड़े दिख जायेंगें जो कि इस बात से अनभिज्ञ हैं कि हमारी जान जोखिम में है। इसलिये सेल्फी के चलन से होने वाली मौतों को किल्फी (Killfie) का नाम दिया गया है। 2016 की रिपोर्ट ‘मी, माईसेल्फ एंड माई किल्फी’ (Me, Myself and My Killfie) के अनुसार सेल्फी के दौरान मरने वाले लोगों की संख्या सर्वाधिक भारत में ही है जिसके बाद रूस का स्थान है।
रूस के कई सेलीब्रिटीयों (Celebrities) की जोखिम भरी सेल्फी आपको अपने इंस्टाग्राम (Instagram) आदि में दिखायी दे जायेंगी, किंतु वास्तव में वे लोग अधिक जोखिम में नहीं होते क्योंकि उन्हें इसके लिये बहुत कठिन ट्रेनिंग (Training) के साथ पूरे सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराये जाते हैं। लेकिन इनसे प्रेरित हुए सामान्य लोगों के लिये ये स्टंट (Stunt) महंगे पड़ जाते हैं और वे अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। इस कड़ी में अक्सर ही लोगों की मौत ट्रेनों की चपेट में आने, ऊँचाई से गिरने, नदियों, झीलों और तालाबों में डूबने, या बाँधों और समुद्र के किनारे बह जाने से हो रही है जो कि सेल्फी की ही देन है। शोधकर्ताओं के अनुसार 2017-18 में 18 महीने की अवधि में हुई 127 सेल्फी मौतों में से 76 भारत में हुईं। कर्नाटक के रामागोंडलु गांव का मंदिर तीर्थयात्रियों के साथ-साथ कॉलेज के छात्रों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। कुछ समय पहले कुछ छात्र जो कि नेशनल कैडेट कोर (National Cadet Corps) का हिस्सा थे, यहां घूमने के लिये आये किंतु श्याम को 15 फीट गहरे तालाब में सेल्फी लेते समय एक छात्र की वहां डूबकर मौत हो गयी। और अचम्भे की बात तो यह है कि जब वह छात्र डूब रहा था, तब उसके मित्र अपनी सेल्फी लेने में व्यस्त थे तथा एक सेल्फी में उस डूबते हुए छात्र का चित्र भी मौजूद है। इसी प्रकार क्षेत्र में सेल्फी के कारण कई हादसे सामने आये जिसके बाद से यहां सेल्फी के विरुद्ध अभियान भी चलाया गया।
2014 में अमेरिका में भालू सेल्फी (Bear selfies) का भी चलन सामने आया था जिसके कारण अमेरिकी वन सेवा द्वारा इसके विरूद्ध चेतावनी दी गयी। हालांकि इसे अनसुना करते हुए कुछ लोग यह चलन अभी भी अपना रहे हैं। हमारा रामपुर भी इस श्रेणी में कहीं पीछे नहीं है। यहां भी सेल्फी से प्रभावित कई लोग मौत की दिशा में अग्रसर हुए। कुछ वर्ष पहले एक दर्जन स्थानीय छात्रों के कोसी नदी में बहने का किस्सा यहां सामने आया था। जिनमें से कक्षा दसवीं के दो छात्र नदी में डूब गये जबकि 10 छात्रों को गोताखोरों द्वारा बचाया गया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार छात्र सेल्फी लेने में इतने व्यस्त थे कि उन्हें लालपुर बांध से छोड़े गए पानी के अचानक प्रवाह का आभास ही नहीं हुआ। इसी प्रकार कानपुर के गंगा बैराज में भी 7 युवा लड़के सेल्फी के कारण नदी में डूब गये थे।
गौर करने वाली मुख्य बात तो यह है कि इन दुर्घटनाओं में युवाओं की संख्या अधिक है। विशेषज्ञों के अनुसार सोशल मीडिया (Social Media) पर खुद को साबित करने की दौड़, वास्तविक जीवन में प्रशंसा न मिलना, जागरूकता की कमी और इंटरनेट की बहुत अधिक उपलब्धता आदि कारक ऐसे हैं जो युवाओं में सेल्फीज़ के चलन को बढ़ा रहें है। इसके अलावा युवा पहले किताबों, पत्रिकाओं, फ़िल्मों, और संगीत में रूचि रखते थे किंतु आज उनकी रूचि स्मार्ट फोन में अधिक हो गयी है। इस आयु वर्ग में युवा वास्तविक और आभासी दुनिया के बीच अंतर नहीं कर पाते और तुरंत प्रसिद्धि के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं।
इस समस्या से उभरने के लिये वर्तमान में माता-पिता तथा शिक्षकों को भी उनके साथ सोशल मीडिया पर जुड़े रहने की आवश्यकता है ताकि वे अपने युवाओं की क्रियाविधि पर नज़र रख सकें। इसके अतिरिक्त लोगों को इस तकनीक के सही उपयोग और इसके दुष्प्रभावों के बारे में भी जागरूक किये जाने की आवश्यकता है ताकि ऐसे हादसों से छुटकारा पाया जा सके।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2MlKHDc
2. https://ind.pn/2GJltXi
3. https://www.bbc.com/news/world-asia-india-41966981
4. https://www.hindustantimes.com/lucknow/selfie-the-new-killfie-is-it/story-72fkV0B7HEkqJdqxX29f5K.html
5. https://www.youtube.com/watch?v=Aae0nJn-nvo
6. https://bit.ly/2HSVz7w
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