रामपुर: वस्त्र-हमारी धरोहर

स्पर्शः रचना व कपड़े
19-06-2017 12:00 PM
रामपुर: वस्त्र-हमारी धरोहर
वस्त्र हमारी वो पुश्तैनी धरोहर है जो हमारे सभ्यता के कई वैशिष्ट्यों को दर्शातें है| यह मात्र पहनावा नही हैं बल्कि हमारी संस्कृति, इतिहास और भौगोलिक विविधता का प्रचारक भी है| अगर हम भारत में कपड़ों के व्यापार के बारे में बात करें तो इसका प्रमाण द्वितीय सदी ई.पू. में मिस्र के एक मकबरे में मिले कपड़ों से मिलता है जिससे यह ज्ञात होता है की कैसे भारत में बने कपड़े विश्व विख्यात थे| कपड़ों की रंगाई का कार्य भारत मे उत्कृष्ट रूप से होता था। कच्छ एवं राजस्थान में यह कार्य बड़े पैमाने पर किया जाता था| रंगे हुए सूती कपड़ों के सबूत हमे हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त होता है| यह इस बात की पुष्टि करता है की कपड़ों की रंगाई भारत में प्राचीन काल से ही चलती आ रही है। 5000 साल पहले से ही भारत मे वस्त्रो का उत्पादन होता था, जिसमे से सबसे उत्तम और पूरे विश्व में अपनी छाप “सूती कपड़े” ने छोड़ी| भारत के कारीगरों ने दूसरी कई तकनीकों को अपनाया और कपड़ों का उत्पादन मौर्य काल से ले कर मुग़लों के साम्राज्य और उसके बाद भी चरम सीमा पर रहा। हालांकि 1947 के दौर में वस्त्रों के कारोबार में काफी गिरावट आई और यहाँ के कारीगरों को ना ही पर्याप्त कच्चा माल मिला और ना ही कोई तकनीकी सहायता| लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गाँधी ने खादी उत्पादन को राष्ट्रीय भावना से जोड़ कर वस्त्रों के गिरते स्तर को उचाई दिलाई| भारत मे कपड़ों का व्यापार हथकरघा से होता है जिससे काफी लोग जुड़े हुए हैं। हथकरघा क्षेत्र भारत में कृषि उद्योग के बाद सबसे बड़ा है जिससे 65 लाख से ज्यादा लोगो को रोजगार मिलता है और इनमे से 60% महिलाएं हैं| इसलिए हथकरघा वस्त्र निर्माण एक अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है| भारत मे बने कपड़े सिर्फ अपने हस्तकला, रंग इत्यादी के लिए ही विख्यात नहीं हैं बल्कि ये पर्यावरण हितैषी भी हैं| अब वस्त्र हमारी सभ्यता की एक अत्यंत महत्वपूर्ण कडी है| केलिको वस्त्र संग्रहालय, अहमदाबाद और कमला मित्तल संग्रह, हैदराबाद में भारत के वस्त्र उत्पादन से ले कर, इसकी तकनीक और ऐतिहासिक रुपरेखा को देखा जा सकता है| 1. तानाबाना- टेक्सटाइल्स ऑफ़ इंडिया, मिनिस्ट्री ऑफ़ टेक्सटाइल्स, भारत सरकार 2. हेंडीक्राफ्ट ऑफ़ इंडिया – कमलादेवी चट्टोपाध्याय 3. आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स ऑफ़ इंडिया – इले कूपर, जॉन गिल्लो
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