महाशिवरात्रि पर की गई पूजा, किस पहर में सबसे अधिक फलदाई होगी ?

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
26-02-2025 09:25 AM
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महाशिवरात्रि पर की गई पूजा, किस पहर में सबसे अधिक फलदाई होगी ?

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय, भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय, तस्मै न काराय नमः शिवाय॥

भावार्थ: नागों की माला धारण करने वाले, तीन नेत्रों वाले, जिनका शरीर भस्म से सना हुआ है, महान भगवान, अनन्त, शुद्ध, जिनका वस्त्र दिशाएँ हैं, जिनका कोई आकार नहीं है, उन शिव को मेरा नमन है।

रामपुर के लोग, इस बात से सहमत होंगे कि महाशिवरात्रि का पर्व, भारत के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पावन रात्रि को चार पहरों में विभाजित किया जाता है ? यहाँ "पहर" रात के दौरान घटित एक निश्चित समय अवधि को कहा जाता है। हर पहर में भक्त, भगवान शिव की विशेष पूजा करते हैं। इसलिए आज के इस लेख में हम,   महाशिवरात्रि के इन चार पहरों और उनके महत्व को विस्तार से समझेंगे। इसके बाद, हम 'शाक्त की हिंदू अवधारणा' पर चर्चा करेंगे। अंत में, हम जानेंगे कि शाक्त परंपराओं में महाशिवरात्रि को किस तरह अलग तरीके से मनाया जाता है।

चित्र स्रोत : Wikimedia

आइए सबसे पहले महाशिवरात्रि के चार पहर और उनके महत्व को समझते हैं:

1. पहला पहर: महाशिवरात्रि का पहला पहर, शाम को आरंभ होता है और देर रात तक चलता है। इस दौरान भक्त, मंदिरों या घरों में एकत्र होकर भगवान शिव की आराधना करते हैं। वे मंत्रों का जाप करते हैं और विभिन्न अनुष्ठानों का पालन करते हैं। माना जाता है कि इस समय, भगवान शिव की पूजा करने से मन शुद्ध होता है और व्यक्ति आध्यात्मिक अनुभवों के लिए तैयार होता है। इस पहर में, शिवलिंग पर जल और शुद्ध दूध अर्पित करना शुभ माना जाता है।

महाशिवरात्रि पर सजा हुआ ओडिशा में स्थित लिंगराज मंदिर | चित्र स्रोत : Wikimedia

2. दूसरा पहर: पहला पहर समाप्त होने के बाद दूसरा पहर शुरू होता है, जो आमतौर पर आधी रात के आसपास होता है। इसे शिव पूजा और ध्यान के लिए सबसे पवित्र समय माना जाता है। इस समय, आध्यात्मिक ऊर्जा अपने चरम पर होती है, जिस कारण सच्ची भक्ति कई लोगों में आध्यात्मिक जागृति ला सकती है। इस पर्व के दौरान, भगवान शिव की भक्ति और एकाग्रता से व्यक्ति अपने अस्तित्व के प्रति अधिक जागरूक होता है। दूसरे पहर में शिवलिंग पर जल और दही अर्पित करने की परंपरा है।

3. तीसरा पहर: रात  गहरी होने के साथ ही तीसरा पहर शुरू हो जाता है, जो भोर की ओर बढ़ने का संकेत देता है। इस समय, भक्त भगवान शिव से आध्यात्मिक ज्ञान और आशीर्वाद की प्रार्थना करते हैं। यह पहर, अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर यात्रा का प्रतीक होता है। इस  पहर में शिवलिंग पर जल और घी चढ़ाने की परंपरा प्रचलित है।

चित्र स्रोत : Wikimedia

4. चौथा पहर: यह पहर, भोर होने से ठीक पहले आता है और ब्रह्म मुहूर्त में पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि इस समय, दिव्य ऊर्जा वातावरण में व्याप्त होती है, जो ध्यान और आत्मनिरीक्षण के लिए अनुकूल होती है। भक्त, अपनी पूरी रात की आध्यात्मिक यात्रा पर चिंतन करते हैं और भगवान शिव के आशीर्वाद के लिए कृतज्ञता प्रकट करते हैं। इस समय, शिवलिंग पर जल, दूध और शहद चढ़ाने की परंपरा होती है। महाशिवरात्रि के ये चार पहर, भक्तों को आध्यात्मिक रूप से समर्पित रहने, आत्मचिंतन करने और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करते हैं।

आइए, अब 'शाक्त' की हिंदू अवधारणा को समझने का प्रयास करते हैं ?

हिंदू धर्म में 'शाक्त' उन अनुयायियों को कहा जाता है, जो शक्ति की पूजा करते हैं। वे अपना ध्यान, दिव्य स्त्री ऊर्जा और  देवियों पर केंद्रित करते हैं। उनकी पूजा पद्धतियाँ, अक्सर अनूठी और विशिष्ट होती हैं। इस संप्रदाय में  देवियों को सर्वोच्च मातृ-शक्ति माना जाता है, जो अपने भक्तों को सुरक्षा और आध्यात्मिक संतुलन प्रदान करती  हैं ।

शाक्त परंपरा, हिंदू धर्म की विभिन्न शाखाओं में पाई जाती है।  वैष्णव परंपरा में, शाक्त उन लोगों को भी संदर्भित करता है जो इस दिव्य ऊर्जा की उपासना करते हैं या शक्ति के माध्यम से भगवान से संवाद स्थापित करते हैं। शक्तिवाद में  शक्ति को ही आस्था और उपासना का केंद्र माना जाता है। इसके अलावा, 'शाक्त' शब्द का प्रयोग, काव्यशास्त्र में भी किया जाता है, जो इसकी विविधता और गहराई को दर्शाता है।

पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल के काठमांडू में एक हिंदू मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है | चित्र स्रोत : Wikimedia

शाक्त परंपराओं में महाशिवरात्रि भी बड़े ही अनूठे ढंग से मनाई जाती है। यह न केवल शिव की आराधना का पर्व है, बल्कि इसमें देवी पार्वती और शक्ति तत्व का भी विशेष महत्व होता है। 

1) पार्वती की तपस्या और भक्ति: शाक्त परंपराओं में महाशिवरात्रि, पार्वती की कठिन तपस्या और अटूट भक्ति को दर्शाती है। उनकी दृढ़ साधना के कारण ही उनका विवाह भगवान् शिव से हुआ था। इस अवसर पर, पार्वती के समर्पण को आत्मअनुशासन और शक्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

2) देवी पूजा का समावेश: इस दिन, भगवान शिव के साथ, देवी पार्वती की भी विशेष पूजा की जाती है। सभी भक्त, अपने विवाह, संतान और दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद  देवी से मांगते हैं। यह पर्व स्त्री-पुरुष संतुलन और रिश्तों में सामंजस्य की भावना को भी दर्शाता है।

3) अनुष्ठानों की विशेषता: महाशिवरात्रि पर किए जाने वाले अनुष्ठानों में शिव और शक्ति दोनों की एक साथ आराधना की जाती है। इन अनुष्ठानों में सृजन और विनाश की उनकी पूरक भूमिकाओं को स्वीकार किया जाता है। भक्त, विशेष मंत्रों का उच्चारण  और प्रसाद अर्पित करते हैं, जिससे दोनों देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।

4) आध्यात्मिक मिलन का प्रतीक: शाक्त परंपराओं में महाशिवरात्रि, केवल शिव-पार्वती के विवाह का उत्सव नहीं है। इसे व्यक्ति की आत्मा (जीवात्मा) और ब्रह्म (सर्वव्यापक चेतना) के मिलन का प्रतीक भी माना जाता है। शक्ति की कृपा से यह आध्यात्मिक एकता संभव होती है, जो हमें आत्मज्ञान की ओर ले जाती है।

5) सांस्कृतिक विविधताएं: शाक्त प्रभाव वाले क्षेत्रों, जैसे बंगाल और ओडिशा में, महाशिवरात्रि का उत्सव, देवी पार्वती के अन्य रूपों—दुर्गा या काली—की पूजा के साथ भी मनाया जाता है। इन अनुष्ठानों में, शक्ति की गतिशीलता और उग्र रूपों को महत्व दिया जाता है, जिससे इस पर्व का स्वरूप और भी विस्तृत हो जाता है।

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/23utyckt

https://tinyurl.com/29v5mokd

https://tinyurl.com/2atmg95y

https://tinyurl.com/23ljx8lk

https://tinyurl.com/27ozhtk9

मुख्य चित्र स्रोत : Wikimedia

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