भारत को अगले चार हफ्ते टिड्डियों के हमले का और सामना करना पड़ सकता है, खाद्य और कृषि संगठन ने इस बात की चेतावनी दी है। 26 वर्षों में इस वर्ष भारत को सबसे खराब टिड्डी हमले का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही में अपने नवीनतम अद्यतन में, खाद्य और कृषि संगठन ने कहा कि वसंत-नस्ल वाले टिड्डे झुंड (जो भारत-पाकिस्तान सीमा पर प्रवासन कर चुके और पूर्व में उत्तरी राज्यों की यात्रा कर रहे हैं) की आने वाले मानसून के शुरुआती दिनों में राजस्थान वापसी की उम्मीद है।
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ऐक्रिडाइइडी (Acridiide) परिवार की टिड्डी छोटे सींग वाले झींगुर की कुछ प्रजातियों का समूह है। ये कीड़े आमतौर पर अकेले रहते हैं, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में वे प्रचुर मात्रा में हो जाते हैं और अपने व्यवहार और आदतों को बदल कर एक समूह का निर्माण कर लेते हैं। टिड्डे और झींगुर की प्रजातियों के बीच कोई वर्गीकरण संबंधी भेद नहीं किया जाता है; विश्लेषण का आधार यह है कि एक प्रजाति आंतरायिक रूप से किन परिस्थितियों में झुंड बनाती है।
ये झींगुर आमतौर पर अहानिकारक हैं, उनकी संख्या कम है और वे कृषि के लिए एक बड़ा आर्थिक खतरा उत्पन्न नहीं करते हैं। हालांकि, तेजी से वनस्पति विकास के बाद सूखे की उपयुक्त परिस्थितियों में, उनके दिमाग में सेरोटोनिन (Serotonin) परिवर्तन, एक उत्तेजक स्थापित करता है। वे बहुतायत से प्रजनन करना शुरू करते हैं, जिससे उनकी आबादी काफी घनी हो जाती है। वे पंख रहित अर्भक के झुंड बनाते हैं, जो बाद में पंख वाले वयस्कों के झुंड बन जाते हैं। अर्भक और वयस्कों के झुंड चारों ओर घूमते हैं और तेजी से भूभाग वाले खेतों में पहुंचते हैं और फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। इनमें वयस्क टिड्डे काफी शक्तिशाली उड़ान भरते हैं; वे काफी दूर तक यात्रा कर सकते हैं और वहाँ जाकर ठहरते हैं, जहाँ पर हरी-भरी वनस्पतियों का सबसे अधिक उपभोग किया जा सकता है।
प्रागितिहास से ही टिड्डियों के समूहों ने विपत्तियां उत्पन्न करी है। प्राचीन मिस्रियों द्वारा टिड्डियों को अपनी कब्रों पर उकेरा गया है, इनका अन्य उल्लेख इलियड, महाभारत, बाइबल और कुरान में भी किया गया है। टिड्डियों के झुंड द्वारा फसलों को तबाह करना, अकाल और मानव पलायन का एक महत्वपूर्ण कारण है। ऐतिहासिक रूप से, लोग अपनी फसलों को टिड्डियों द्वारा तबाह होने से बचाने के लिए उनका शिकार कर सकते हैं, हालांकि कीड़े खाने से कुछ परेशानी हल हो जाती है। 20वीं शताब्दी में झुंड के व्यवहार में कमी देखी गई, टिड्डियों पर नियंत्रण पाने के लिए मिट्टी को जोतकर उनके अंडों को नष्ट किया जाता था और कुदक्कड़ को मशीनों द्वारा पकड़ कर उन्हें फ्लेमेथ्रोवर (Flamethrowers) की मदद से या गड्ढे में डालकर, उन्हें रोलर्स और अन्य यांत्रिक तरीकों से मार दिया जाता था।
1950 के दशक तक, ऑर्गनोक्लोराइड डाइड्रिन एक अत्यंत प्रभावी कीटनाशक पाया गया था, लेकिन बाद में अधिकांश देशों में पर्यावरण में इसकी दृढ़ता और खाद्य श्रृंखला में इसकी जैवसंचयन के कारण उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। 1997 में एक बहुराष्ट्रीय टीम द्वारा पूरे अफ्रीका में टिड्डियों पर नियंत्रण करने के लिए एक जैविक कीटनाशक का परीक्षण किया गया था। अंततः टिड्डी नियंत्रण में अंतिम लक्ष्य निवारक और सक्रिय तरीकों का उपयोग किया जाता है, जो पर्यावरण को कम से कम संभव हद तक प्रभावित करता है। यह कई क्षेत्रों में कृषि उत्पादन को आसान और अधिक सुरक्षित बनाता है, जहां बढ़ती फसलों का स्थानीय लोगों के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण महत्व है। लेकिन आधुनिक निगरानी और नियंत्रण विधियों के बावजूद, झुंड के बनने की संभावना अभी भी मौजूद है और जब उपयुक्त जलवायु परिस्थितियां होती हैं और सतर्कता कम हो जाती है, तब भी विपत्तियां आ सकती हैं।
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वहीं खाद्य और कृषि संगठन ने रेगिस्तान टिड्डी हमले को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है: प्रकोप, उभाड़ और विपत्ति। वर्तमान टिड्डियों के हमले (2019-2020) को उभाड़ के रूप में वर्गीकृत किया गया है। प्रकोप काफी आम होता है, लेकिन केवल कुछ ही उभाड़ का रूप लेते हैं। इसी तरह, कुछ ही उभाड़ विपत्तियों का कारण बनते हैं। आखिरी बड़ी विपत्ति 1987-89 में सामने आयी थी और आखिरी बड़ा उभाड़ 2003-05 में आया था। उभाड़ और विपत्तियाँ रातों रात नहीं होती हैं; इसके बजाय, उन्हें विकसित होने में कई महीने लगते हैं।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में गुडगाँव में एक इलाके में टिड्डों के आक्रमण को दिखाया गया है। (Prarang)
2. दूसरे चित्र में एक छत के ऊपर बहुलक टिड्डे दिखाई दे रहे हैं। (Flickr)
3. तीसरे चित्र में एक फसल के मध्य टिड्डों का झुण्ड दिखाई दे रहा है। (Wikimedia)
संदर्भ :-
https://indianexpress.com/article/explained/the-difference-between-a-locust-plague-upsurge-and-outbreak-6492132/
https://www.bbc.com/news/world-asia-india-52804981
https://thewire.in/agriculture/india-locust-attack-crop-damage-worst
https://en.wikipedia.org/wiki/Locust