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ब्रेन कंप्यूटर इंटरफ़ेस (Brain Computer Interface) एक ऐसा तंत्र है जिसे तंत्रिका नियंत्रण इंटरफ़ेस के रूप में या माइंड मशीन (Mind Machine) इंटरफ़ेस के रूप में जाना जाता है। इसके अन्दर एक दिमाग को तारों से जोड़ा जाता है तथा इसके ज़रिये इसका संपर्क एक बाहरी उपकरण से करवाया जाता है। अब हम उदाहरण के तौर पर देखने की कोशिश करते हैं कि किसी का भी मस्तिष्क किस दिशा में या कैसी उठा पटक से जूझ रहा है। ऐसे में ये खोज एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण और बड़ी खोज साबित हो सकती है जो कि मानव के संज्ञानात्मक या संवेदी कार्यों को मानचित्र के ज़रिये प्रदर्शित करने में सक्षम साबित होती है। 1970 में कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजेलेस (UCLA) में नेशनल साइंस फाउंडेशन (National Science Foundation) द्वारा वित्त पोषित कार्यक्रम तथा DARPA से अनुबंध स्थापित कर इस विषय में एक अनुसंधान की शुरुवात हुयी। इस शोध के बाद जो शोध पात्र प्रस्तुत किया गया उसमें पहली बार ब्रेन कंप्यूटर इंटरफ़ेस की वैज्ञानिकता के बारे में वर्णन था। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंतर्गत मस्तिष्क के कोर्टीकल प्लास्टीसिटी (Cortical Plasticity) के कारण प्रत्यारोपित कृत्रिम अंग से मस्तिष्क को संभाला जा सकता है। मनुष्यों में पहली बार न्यूरोप्रोस्थेटिक (Neuroprosthetic) उपकरण 1990 के दशक में लगाया गया था।
वर्तमान काल में यह एक अत्यंत ही वृहत सोच का विषय हो चुका है जिसमें वर्तमान में कई वैज्ञानिक शोध में लगे हैं। हाल ही में हुई खोजों की बात करें तो इलोन मस्क की न्युरालिंक (Neuralink) नामक कंपनी (Company) द्वारा ब्रेन मशीन इंटरफ़ेस तकनीकी को आम जनता के लिए प्रयोग में लाया जाने हेतु तैयाए किया जा रहा है। इस शोध में मनुष्य के मस्तिष्क के लिए बाल से भी पतले धागे का निर्माण किया जा रहा है जो कि लचीला होने के साथ-साथ सन्देश आदि को ले जाने और लाने में कारगर सिद्ध होगा। इस तकनीकी का मकसद है कि जिन लोगों का शरीर निष्क्रिय हो चुका है, वे भी अपने मस्तिष्क का इस्तेमाल फ़ोन (Phone), कंप्यूटर (Computer) आदि को चलाने में सक्षम हो सकेंगे। इलोन मस्क ने इस तकनिकी के प्रयोग की बात बताते हुए यह कहा कि इसके मदद से एक बन्दर कंप्यूटर चलाने में कारगर साबित हुआ।
यह तकनीकी वास्तविकता में एक वरदान के रूप में उभर कर आई है जो कि विभिन्न दिमागी मरीज़ों के लिए कार्यरत है। अब आइये बात करते हैं ब्रेन कंप्यूटर इंटरफ़ेस की नकारात्मकता के विषय में। ब्रेन कंप्यूटर इंटरफ़ेस सीधे तौर पर सेहत और मस्तिष्क से सम्बंधित है अतः इसमें कई सुरक्षा और नैतिकता से जुडी दिक्कतें भी शामिल हैं। ये सभी परेशानियां और भी गहराई से पढ़ी और समझी जानी चाहिए। इस व्यवस्था से मानसिक अपहरण के भी दरवाज़े खुल जाते हैं जो कि किसी की आतंरिक या निजी जानकारियाँ खुलने का खतरा भी बढ़ा देती है। इन सभी बातों को मद्देनज़र रख यह कहा जा सकता है कि इस व्यवस्था पर और भी गहराई से अध्ययन की ज़रूरत है।
इस तकनीकी में मेरठ के एक युवक, गौरव शर्मा का भी बड़ा योगदान है। उनके द्वारा तैयार की गयी तकनीकी से, एक व्यक्ति जो कुछ काम करने में असक्षम था, ने अपना हाथ हिलाया। इस कार्य और तकनीकी के कारण उन्हें अमेरिका के सैन्य प्रोजेक्ट (Project) से 2 करोड़ डॉलर का कॉन्ट्रैक्ट (Contract) भी प्राप्त हुआ। इस कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार उन्हें एक ऐसा हेलमेट (Helmet) तैयार करना है जिसे एक सैनिक पहन कर सिर्फ अपने विचारों से कोई गाड़ी या रोबोट (Robot) चलाने में सफल रहे।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2tFyAom
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Brain%E2%80%93computer_interface
3. https://bit.ly/2nOcbFC
4. https://bit.ly/30CdXbg
5. https://bit.ly/2LXzBlK
6. https://invent.ge/2otfzXb
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://www.youtube.com/watch?v=7t84lGE5TXA
2. https://www.maxpixel.net/Brain-Artificial-Intelligence-Think-Control-4389372
3. https://pixabay.com/illustrations/robot-artificial-intelligence-woman-507811/
4. https://pixabay.com/photos/technology-hands-agreement-ok-4256272/
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