
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जैसा कि हम जानते ही हैं कि इस 23 सितम्बर को शरद विषुव है अर्थात वह समय-बिंदु जब सूर्य भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर होता है। इस समय सूर्य का केंद्र भूमध्य रेखा की ठीक सीध में होता है। यह प्रावस्था साल में दो बार आती है। एक 20 मार्च के आस-पास जिसे वसंत विषुव कहा जाता है और एक 23 सितम्बर के आस-पास जिसे शरद विषुव कहा जाता है। इस समय-बिंदु पर धरती में दिन और रात की अवधि समान हो जाती है। यह प्रावस्था जहां ऋतु परिवर्तन की ओर संकेत करती है, वहीं ज्योतिष शास्त्र में भी महत्वपूर्ण है। विषुव के माध्यम से ग्रहों की राशि चक्र में स्थिति का वर्णन किया जा सकता है। सूर्य वास्तव में प्रति वर्ष लगभग 50 सेकंड या 72 साल में 1 डिग्री की दर से राशि चक्र से पीछे की ओर बढ़ता है। इसे विषुव का अग्रगमन कहा जाता है और यह पृथ्वी की धुरी का अपने अक्ष पर घूमने के कारण होता है। ज्योतिष विज्ञान की भाषा में यदि बात करें तो वर्तमान में, वसंत विषुव पर सूर्य 6 डिग्री और 3 सेकंड में मीन राशि के नक्षत्र में प्रवेश करता है। लगभग 430 वर्षों में इसका उदय कुंभ राशि में होगा। 270 ई.पू से पहले यह मेष राशि में उदय हुआ था। भारत की वैदिक ज्योतिषी में प्राचीन काल से विषुव का उपयोग किया जा रहा है।
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