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मेरठ के नागरिकों, क्या आप जानते हैं कि 1803 में, दिल्ली सल्तनत के पतन के साथ, ग्वालियर राज्य के मराठा महाराजा दौलत राव सिंधिया ने मेरठ क्षेत्र को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) को सौंप दिया था। उस समय दिल्ली से इसकी निकटता और समृद्ध गंगा-यमुना दोआब के अंदर का क्षेत्र होने के कारण यहां मेरठ छावनी स्थापित की गई। शहर को 1818 में मेरठ जिले का मुख्यालय बना दिया गया। तो आइए आज, जानते हैं कि कैसे और कब मेरठ ईस्ट इंडिया कंपनी के नियंत्रण में आया। इसके साथ ही, हम एक प्रमुख सैन्य केंद्र के रूप में मेरठ छावनी के इतिहास और महत्व पर प्रकाश डालेंगे और मेरठ छावनी के कुछ लोकप्रिय आकर्षणों के बारे में जानेंगे। हम मेरठ में ब्रिटिश वास्तुकला के कुछ प्रसिद्ध उदाहरणों जैसे सेंट जॉन चर्च और गांधी बाग के बारे में चर्चा करेंगे। अंत में, हम यह जानेंगे कि कैसे उत्तर भारत में चपातियों का रहस्यमय वितरण, 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष का अग्रदूत बन गया।
मेरठ, ईस्ट इंडिया कंपनी के नियंत्रण में कब और कैसे आया ?
औरंगज़ेब के शासनकाल में मेरठ पर मुगल कब्ज़े के अंत के बाद, मेरठ सैय्यद, जाट और गुर्जर जैसे स्थानीय सरदारों के अधीन आ गया। 18वीं सदी के अंत तक मेरठ पर जाटों का कब्ज़ा रहा। मेरठ जिले के कुछ हिस्से अंग्रेज़ शासक वॉल्टर रेनहार्ड्ट (Walter Reinhardt) के शासन में आ गए, जो उस समय सरधना का शासक था। अंग्रेज़ों ने तब तक भारत में अपनी पकड़ स्थापित कर ली थी। इसके बाद अंग्रेज़ों ने 1803 में मेरठ में छावनी की स्थापना की। और रेज़िमेंट के बच्चों के लिए स्कूलों, पार्कों और चर्चों एवं अधिकारियों के बंगलों की स्थापना की गई और मेरठ में ढांचात्मक विकास के लिए कई मेरठ में चलाई गईं, जिससे उन्हें शहर पर पकड़ मिल गई।
मेरठ छावनी का इतिहास और महत्व:
अंग्रेज़ों ने मराठों के साथ सुरजी अंजुनगांव की संधि के बाद 1803 में मेरठ छावनी की स्थापना की। 3,500 हेक्टेयर में फैली, छावनी को 'ब्रिटिश इंफैंट्री (British Infantry (BI)) लाइन्स' ब्रिटिश कैवेलरी (British Cavalry (BC)), लाइन्स और रॉयल आर्टिलरी (Royal Artillery (RA)) लाइन्स में विभाजित किया गया। समय के साथ, इन क्षेत्रों के आसपास बाज़ार और मोहल्ले विकसित हुए। यह छावनी अन्य संबद्ध सेवाओं के साथ-साथ दो भारतीय सेना पैदल सेना विभागों और रिमाउंट और पशु चिकित्सा कोर केंद्र और कॉलेज (Remount & Veterinary Corps Centre and College) का मुख्यालय भी है।
मेरठ छावनी के कुछ लोकप्रिय आकर्षण:
मेरठ छावनी में कई ऐसे लोकप्रिय आकर्षण हैं जो भारत के स्वतंत्रता संघर्ष और उस विद्रोह की शुरुआत की याद दिलाते हैं, जिनके कारण हमारा देश स्वतंत्र हुआ। इनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं:
शहीद स्मारक: शहीद स्मारक, 1857 के विद्रोह में मारे गए सैनिकों की स्मृति में बनाया गया एक स्मारक है।
औगढ़नाथ मंदिर: औगढ़नाथ मंदिर, जिसे काली पलटन मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, भगवान शिव को समर्पित मेरठ के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इस मंदिर ने 1857 के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
स्वतंत्रता संघर्ष संग्रहालय: स्वतंत्रता संघर्ष संग्रहालय में इतिहास के विभिन्न चरणों, विशेषकर स्वतंत्रता के प्रथम युद्ध से संबंधित अनेकों पेंटिंग, कलाकृतियाँ और संस्मरण संग्रहित हैं।
मेरठ में ब्रिटिश वास्तुकला के कुछ प्रसिद्ध उदाहरण:
सेंट जॉन्स चर्च: मेरठ में स्थित सेंट जॉन्स चर्च का निर्माण 1819-1821 के बीच हुआ था। यह उत्तरी भारत का सबसे पुराना चर्च है और ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान बनाया गया था। इसे वास्तुकला की उत्कृष्ट कृति माना जाता है। चर्च के पास एक कब्रिस्तान है, जिसमें 1857 के विद्रोह के दौरान मारे गए ब्रिटिश लोगों और उनके परिवारों की कब्रें हैं। यह चर्च, अंग्रेज़ी चर्च वास्तुकला की शैली में बनाया गया है, जिसमें प्रार्थना के लिए निर्धारित एक बड़ा खुला स्थान है। यहां प्रत्येक रविवार की सुबह विशेष प्रार्थना आयोजित की जाती है, जिसका समय गर्मियों के दौरान सुबह 8.30 बजे और सर्दियों के दौरान सुबह 9.30 बजे है। ईस्टर, क्रिसमस या नए साल के अवसरों पर सेवा का समय सुबह 10 बजे है।
गांधी बाग: गांधी बाग, जिसे स्थानीय तौर पर 'कंपनी गार्डन' के नाम से जाना जाता है, मेरठ में माल रोड पर स्थित है। इसका निर्माण आजादी से पहले किया गया था, लेकिन हाल ही में इसका नाम बदल दिया गया है। यह परिसर विविध प्रकार की वनस्पतियों के साथ हरियाली से भरा हुआ है। यहाँ एक संगीतमय फव्वारा है जो हर शाम बगीचे में चलता है। पहले, इसमें कई प्रवेश द्वार थे, और कोई प्रवेश शुल्क नहीं था, लेकिन अब केवल एक प्रवेश द्वार है, जो नाममात्र प्रवेश शुल्क के साथ जनता के लिए खुला है। मेरठ का छावनी बोर्ड गांधी बाग का रखरखाव करता है।
उत्तर भारत में चपातियों का वितरण 1857 में भारत की पहली स्वतंत्रता लड़ाई का अग्रदूत कैसे बना:
1857 की शुरुआत में ब्रिटिश गुप्तचरों ने अपने आकाओं को कई उत्तर भारतीय गांवों में चपाती के असामान्य वितरण की सूचना दी। इसे ब्रिटिश द्वारा चपाती आंदोलन (Chapati Movement) का नाम दिया गया। इन गुप्तचरों का मानना था कि स्वतंत्रता सेनानी, चपातियों में गुप्त संदेश छिपा कर भेजते हैं, यद्यपि निरीक्षण में ऐसे कोई संदेश सामने नहीं आए। ये आंदोलन, पहली बार फ़रवरी 1857 में अंग्रेज़ों के ध्यान में आया। उत्तर भारत के गांवों से खबरें आने लगीं कि लोग हज़ारों रोटियां वितरित कर रहे हैं। इस वितरण प्रक्रिया में एक व्यक्ति जंगल से आता था , और गाँव के चौकीदार को कई रोटियाँ देता था और उससे और अधिक रोटियाँ बनाने के लिए कहता था।
फिर वो उन्हें पास के गाँवों के चौकीदारों को वितरित करता था। तब चौकीदार अपनी पगड़ी में चपातियाँ लेकर जाता था, उसे अक्सर चपातियों के मूल स्रोत के बारे में बहुत कम या कोई ज्ञान नहीं होता था।
श्रीरामपुर में प्रकाशित एक अंग्रेज़ी अखबार, 'द फ़्रेंड ड ऑफ़ इंडिया' (The Friend of India) ने अपने 5 मार्च 1857 के संस्करण में बताया कि जब एक क्षेत्र के पुलिस स्टेशन में चपाती पहुंची, तो ब्रिटिश अधिकारी भ्रमित हो गए और वे बहुत डरे हुए थे। इन चपतियों का वितरण दूर-दूर तक हुआ; फ़र्रुख़ाबाद से गुड़गांव तक, अवध से रोहिलखंड होते हुए दिल्ली तक। वितरण की गति ब्रिटिशों के लिए विशेष रूप से निराशाजनक थी क्योंकि यह ब्रिटिश मेल की तुलना में बहुत तेज़ थी। इस आंदोलन के स्रोत और अर्थ के बारे में ब्रिटिश द्वारा कई बार पूछताछ की गई। प्रत्येक बार उन्हें जानकारी मिली कि रोटियाँ कहीं अधिक व्यापक रूप से वितरित की जा रही थीं, और जिन भारतीयों ने उन्हें प्राप्त किया, वे आम तौर पर उन्हें किसी प्रकार के संकेत के रूप में लेते थे। हालाँकि, इसके अलावा, राय विभाजित रही।
संदर्भ
मुख्य चित्र में मेरठ छावनी का स्रोत : प्रारंग चित्र संग्रह
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