लघु उद्योग चलाने वाले मेरठवासियों को क्या ‘ब्लू पॉटरी’ के बारे में पता है ?

म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण
09-04-2025 09:22 AM
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लघु उद्योग चलाने वाले मेरठवासियों को क्या ‘ब्लू पॉटरी’ के बारे में पता है ?

गर्मियों में तापमान बढ़ने के साथ ही, न केवल मेरठ के  लोग, बल्कि यहाँ के जानवर भी भीषण गर्मी से बेहाल नज़र आते हैं। लेकिन क्या आपको एक मज़े की बात पता है कि राजस्थान के जोधपुर शहर में गर्मी से बचने के लिए घरों को नीले रंग में रंगा जाता है? दरअसल, नीला रंग, सूरज की किरणों को परावर्तित करता है, जिससे घर अंदर से ठंडे बने रहते हैं। इसी वजह से जोधपुर को "ब्लू सिटी" यानी "नीला शहर" भी कहा जाता है। ठीक इसी तरह, ब्लू पॉटरी (Blue Pottery) भी राजस्थान की एक और खास पहचान है, जो कि जयपुर की पारंपरिक और बेहद खूबसूरत कला है। इसकी सबसे खास बात यह है कि इसमें इस्तेमाल होने वाला नीला रंग, कोबाल्ट ऑक्साइड (Cobalt Oxide) से बनता है। जयपुर की ब्लू पॉटरी, पर फ़ारसी और तुर्की डिज़ाइनों का गहरा प्रभाव नज़र आता है। हालाँकि, समय के साथ इसमें नए रूपांकन और स्थानीय डिज़ाइन भी जुड़ गए हैं। आमतौर पर, इस कला का उपयोग फूलदान, प्लेट, कटोरे, टाइल और अन्य सजावटी वस्तुएँ बनाने में किया जाता है। आज के इस लेख में हम इस उद्योग की मौजूदा स्थिति पर नज़र डालेंगे। इसमें काम करने वाले कारीगरों, उत्पादन इकाइयों और इनसे बनने वाले उत्पादों की संख्या पर चर्चा करेंगे। साथ ही, हम इस  कला में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न रंगों और डिज़ाइनों को भी समझेंगे। इसके बाद, हम जानेंगे कि इन वस्तुओं को बनाने की पूरी प्रक्रिया कैसी होती है। आगे बढ़ते हुए, हम इस उद्योग के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करेंगे और समझेंगे कि यह विलुप्त होने के कगार पर क्यों है। अंत में, हम उन महत्वपूर्ण क़दमों पर बात करेंगे जो इस अनमोल शिल्प को बचाने के लिए उठाए जाने चाहिए।

चित्र स्रोत : wikimedia 

आइए सबसे पहले यह जानते हैं कि राजस्थान की ब्लू पॉटरी क्यों खास है ?

राजस्थान की प्रसिद्ध ब्लू पॉटरी को अपने चमकीले नीले और सफ़ेद रंगों के प्रयोग के लिए पहचाना जाता है। इस खूबसूरत कला में कोबाल्ट ऑक्साइड नामक खनिज का उपयोग किया जाता है, जो इसे इसकी खास नीली चमक देता है। मिट्टी के बर्तनों को भट्टी में पकाने से पहले इन पर हाथ से डिज़ाइन बनाए जाते हैं, जिससे इनका आकर्षण और बढ़ जाता है। ब्लू पॉटरी के डिज़ाइनों में हाथ से बनाए गए जटिल रूपांकन देखने को मिलते हैं। इनमें फूलों, पक्षियों और जानवरों की आकृतियाँ शामिल होती हैं। कमल, गुलाब, मोर और हाथी जैसे पारंपरिक डिज़ाइन इसे और भी खास बनाते हैं। इसके अलावा, ज्यामितीय और अमूर्त पैटर्न भी इस कला में अहम भूमिका निभाते हैं। केवल सुंदरता ही नहीं, ब्लू पॉटरी अपनी मज़बूती और टिकाऊपन के लिए भी मशहूर है। यह न सिर्फ़ खरोंच-रोधी होती है, बल्कि इसकी टूटने की संभावना भी कम होती है। यही वजह है कि यह कला सदियों से लोगों को आकर्षित करती आ रही है।

ब्लू पॉटरी की वर्तमान स्थिति क्या है ?

जयपुर की मशहूर ब्लू पॉटरी की कला, आज भी कुछ शिल्पकारों द्वारा जीवित रखी जा रही है। शहर और इसके आसपास क़रीब 25-30 इकाइयाँ इस पारंपरिक कला को संजोए हुए हैं। इनमें से 10-11 इकाइयाँ कोट जेबर गाँव में स्थित हैं, जबकि बाक़ी जयपुर के मुख्य शहर में फैली हुई हैं। पहले इस उद्योग से बड़ी संख्या में लोग जुड़े हुए थे, लेकिन समय के साथ स्थिति बदल गई। दरअसल,  इन बर्तनों को बनाने की प्रक्रिया लंबी और श्रमसाध्य होती है। इस कारण कई कारीगरों ने दूसरे व्यवसायों की ओर रुख कर लिया। इस शिल्प का काम मुख्य रूप से खारवाल, कुंभार, बहैरवा और नट जातियों द्वारा किया जाता है, जिनमें खारवाल और कुंभार सबसे प्रमुख उत्पादक हैं।

ब्लू पॉटरी की कला से बने डिज़ाइनर फूलदान | चित्र स्रोत : wikimedia 

इस मिट्टी के बर्तन बनाने की शैली के अंतर्गत कौन से उत्पाद बनाए जाते हैं ?

इस कला के अंतर्गत कई खूबसूरत और उपयोगी वस्तुएँ बनाई जाती हैं। इनमें शामिल हैं:

  • प्लेटें और ट्रे
  • फूलदान और सुराही (छोटे घड़े)
  • साबुन के बर्तन और कोस्टर (coasters)
  • दरवाज़े के हैंडल और नैपकिन रिंग्स
  • फलों के कटोरे और ऐशट्रे
  • हाथ से पेंट की गई टाइलें

समय के साथ इसकी डिज़ाइनों में भी बदलाव आया है। अब पारंपरिक मर्तबानों, बर्तनों और फूलदानों के साथ-साथ चाय के सेट, कप-तश्तरियाँ, गिलास, जग और अन्य आधुनिक वस्तुएँ भी बनाई जा रही हैं।

ब्लू पॉटरी बनाने की प्रक्रिया क्या है ?

जयपुर की ब्लू पॉटरी, अपनी खूबसूरत डिज़ाइनों और चमकदार रंगों के लिए मशहूर है। लेकिन इसे बनाने की प्रक्रिया बहुत जटिल होती है! इसे तैयार करने में कई चरण होते हैं, जिनमें धैर्य, विशेषज्ञता और बारीकियों की समझ ज़रूरी होती है। खास बात यह है कि इसे बहुत कम तापमान पर पकाया जाता है, जिससे यह पारंपरिक मिट्टी के बर्तनों से अलग हो जाती है। यही कारण है कि ब्लू पॉटरी नाज़ुक होती है और इसे बनाना जोखिम भरा भी होता है। ब्लू पॉटरी बनाने के लिए मिट्टी का इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि इसमें क्वार्ट्ज़ स्टोन पाउडर (quartz stone powder), पाउडर ग्लास (powder glass), बोरेक्स (borax), गोंद और मुल्तानी मिट्टी ( Fuller's earth ) जैसी सामग्रियों का मिश्रण होता है। इन सभी को पानी के साथ मिलाकर आटे की तरह गूंथ लिया जाता है। इसके बाद, इस मिश्रण को बेलकर 4-5 मिलीमीटर मोटी चपाती (पैनकेक जैसे) बनाई जाती है। फिर इसे एक खास सांचे में डाला जाता है, जिसमें कंकड़ और राख का मिश्रण होता है। ये सांचे प्लास्टर  ऑफ़ पेरिस (POP) से बने होते हैं और कई बार इस्तेमाल किए जा सकते हैं। एक बार सांचे में डालने के बाद, इन्हें 1-2 दिन तक सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। जब यह सूख जाता है, तब इसकी सफ़ाई और आकार ठीक किया जाता है। फिर सैंडपेपर से इसकी सतह को पॉलिश किया जाता है, ताकि यह पूरी तरह चिकनी हो जाए और पेंटिंग के लिए तैयार हो सके। इसके बाद, कारीगर इस पर हाथ से खूबसूरत डिज़ाइन पेंट करते हैं और फिर ग्लेज़ का फ़ाइनल कोट लगाया जाता है। अंत में, पूरी तरह सूखने के बाद, इसे भट्टी में पकाया जाता है। यह अंतिम चरण बेहद महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यही तय करता है कि ब्लू पॉटरी का रंग और चमक कैसी होगी।

ऐल्बर्ट हॉल संग्रहालय, जयपुर में प्रदर्शित, ब्लू पॉटरी का तीर्थयात्रियों के लिए बनाया गया बर्तन, जिस पर पौराणिक कथा "गजेंद्र मोक्ष" दर्शाई गई है | चित्र स्रोत : wikimedia 

जयपुर की ब्लू पॉटरी ख़त्म होने की कगार पर क्यों है ?

जयपुर की पारंपरिक ब्लू पॉटरी, अपनी पहचान खोती जा रही है। इसकी घटती माँग ने कारीगरों को दूसरा रोज़गार तलाशने पर मजबूर कर दिया है। यही वजह है कि नई पीढ़ी इसे अपनाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही। पिछले 15 सालों में, इस शिल्प से जुड़े कारीगरों की संख्या 500 से घटकर सिर्फ़ 50 रह गई है। बाज़ार में  फ़ैक्ट्रियों में बने सस्ते सिरेमिक  उत्पादों ने इसे कड़ी टक्कर दी है। ब्लू पॉटरी बनाने में कारीगरों को क़रीब दो हफ़्ते लगते हैं, जिससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है। ऊपर से 12% जी एस टी (GST) इसे और महंगा बना देता है, जिससे ग्राहक सस्ते विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं।

चित्र स्रोत : wikimedia 

इस कला को बचाने के लिए क्या किया जाए ?

कारीगरों का मानना है कि जीएसटी में छूट मिलने से बिक्री बढ़ सकती है। सरकार को भी इस कला को बढ़ावा देने के लिए प्रदर्शनियों और जागरूकता अभियान चलाने चाहिए। अगर इसे कला विद्यालयों में सिखाया जाए, तो युवा इसे अपनाने के लिए प्रेरित हो सकते हैं। लुप्त हो रहे शिल्प को नई पीढ़ियों से नवाचार की सख़्त जरूरत है। राजस्थान कौशल और आजीविका विकास निगम (Rajasthan Skill and Livelihoods Development Corporation (RSLDC)) को ब्लू पॉटरी सहित पारंपरिक कला रूपों को बढ़ावा देने और प्रोत्साहित करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए।

 

संदर्भ:

https://tinyurl.com/24vnavpx
https://tinyurl.com/27hqgrn8
https://tinyurl.com/22jwa2o3
https://tinyurl.com/29htqcvx

मुख्य चित्र:  जयपुर की एक दूकान में बिक रहे ब्लू पॉटरी के बर्तन (Wikimedia) 

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