भारत में पारंपरिक बाज़ारों का बहुत पुराना इतिहास है, जो सिर्फ़ व्यापार का ही नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और धरोहर का भी हिस्सा हैं। ये बाज़ार खास दिनों में लगते हैं और गांवों और छोटे शहरों की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाते हैं। यहां किसान, कारीगर और छोटे दुकानदार ताज़े फल, सब्ज़ियां और दूसरे ज़रूरी सामान बेचते हैं, जो दूर-दराज़ के इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए काफ़ी मददगार होते हैं। इन बाज़ारों से स्थानीय व्यापार बढ़ता है और लोगों को रोज़गार भी मिलता है।
आज हम भारतीय मंडियों के बारे में जानेंगे और समझेंगे कि ये बाज़ार कैसे काम करते हैं और इनका व्यापार में क्या महत्व है। फिर हम आवधिक बाज़ारों की अहमियत पर चर्चा करेंगे और देखेंगे कि ये स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए क्यों ज़रूरी हैं। हम ग्रामीण आवधिक बाज़ारों और प्राथमिक ग्रामीण कृषि बाज़ार (PRAMs) के बारे में भी बात करेंगे, जो किसानों को बड़े बाज़ारों से जोड़ते हैं। अंत में, हम ग्रामीण बाज़ारों में व्यापार करने में आने वाली समस्याओं पर भी चर्चा करेंगे।
भारतीय व्यापार मंडियों की संरचना
मंडी एक ऐसा बाज़ार है जहां किसान अपनी फ़सल बेचते हैं। अधिकतर किसान अपनी जल्दी ख़राब होने वाली चीजें पास की मंडियों में बेचते हैं। इससे उनका परिवहन खर्च बचता है और उन्हें अपनी फ़सल ताज़ा रहने पर बेचने का मौका मिलता है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत में 2477 मुख्य बाज़ार और 4843 छोटे बाज़ार यार्ड हैं, जो कृषि उपज मंडी समितियों (ए पी एम सी) द्वारा नियंत्रित होते हैं।
कृषि उपज मंडी समितियां, इस पूरी प्रक्रिया में बहुत ज़रूरी भूमिका निभाती हैं। ये खास बाज़ारों में नीलामी करवाती हैं, ताकि किसान, आपूर्तिकर्ता और बोझ उतारनेवाले मज़दूरों द्वारा अपनी फ़सल, आसानी से खरीदारों को बेच सकें। कृषि उपज मंडी समिति कानून के अनुसार, किसी भी इलाके में उगाई गई कृषि वस्तुएं जैसे अनाज, दालें, तेल बीज, फल, सब्ज़ियाँ, मुर्गे, बकरे, भेड़, चीनी, मछली आदि की पहली बिक्री सिर्फ़ कृषि उपज मंडी समिति के तहत और लाइसेंस प्राप्त एजेंटों के जरिए हो सकती है
सिर्फ़ लाइसेंस प्राप्त व्यापारी और कमीशन एजेंट ही व्यापार प्रक्रिया का हिस्सा बन सकते हैं। यह ज़रूरी है कि हर व्यापार मंडी के तय किए गए नियमों के अनुसार ही होता है। राज्य सरकारें कृषि उपज मंडी समितियां स्थापित करने के लिए ज़िम्मेदार होती हैं, जो मंडियों में व्यापार के लिए नियम बनाती हैं।
मंडियां भारतीय कृषि व्यापार का एक अहम हिस्सा हैं। ये वो जगहें हैं जहां किसान और खरीदार मिलते हैं, जिससे किसानों को बाज़ार तक पहुंच मिलती है। मंडियों में नीलामी की व्यवस्था होती है, जो यह सुनिश्चित करती है कि किसानों को उनकी फ़सल का सही मूल्य मिले। सरल शब्दों में कहें तो, मंडी एक ऐसा स्थान है जहां कृषि व्यापार होता है।
हम सभी जानते हैं कि नीलामी के ज़रिए वस्तुओं का मूल्य बढ़ सकता है। अगर मंडियां न होतीं, तो किसान अपनी फ़सल की नीलामी नहीं कर पाते, जिससे उनकी मुश्किलें और बढ़ जातीं। इसके अलावा, गांव के व्यापारियों और बिचौलियों के साथ काम करने से किसानों को अपनी फ़सल का सही मूल्य तय करने का मौका नहीं मिलता। यही वजह है कि मंडियां कृषि प्रणाली का अहम हिस्सा हैं।
नीचे दिए गए पांच बिंदु मंडियों के महत्व को समझने में मदद करेंगे:
1. एक सुरक्षित बाज़ार स्थान प्रदान करती हैं।
2. भारत की खाद्य आपूर्ति श्रृंखला की गतिशीलता को दर्शाती हैं।
3. कृषि व्यापार के लिए एक ज़रूरी ढांचा प्रदान करती हैं।
4. किसानों को नए बाज़ारों तक पहुंचने का अवसर देती हैं।
5. संभावित खरीदारों से मिलने के लिए एक मज़बूत मंच प्रदान करती हैं।
आवधिक/साप्ताहिक बाज़ारों का सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व
आवधिक बाज़ार, जिन्हें ग्रामीण या साप्ताहिक बाज़ार कहा जाता है, ग्रामीण इलाकों में बेहद ज़रूरी होते हैं। ये बाज़ार न सिर्फ़ सामान खरीदने-बेचने की जगह हैं, बल्कि लोगों के मिलने-जुलने और सांस्कृतिक व आर्थिक गतिविधियों का केंद्र भी होते हैं। ग्रामीण इलाकों में ये बाज़ार कई तरह से मददगार होते हैं।
- नियमित समय: आवधिक बाज़ार एक तय समय पर लगते हैं, जैसे हफ़्ते में एक बार या दो हफ़्तों में एक बार। इनका समय पारंपरिक रीति-रिवाज़ों, ऐतिहासिक चलन और स्थानीय ज़रूरतों पर आधारित होता है। यह नियमितता ग्रामीण इलाकों के लोगों को अपनी खरीदारी और व्यापार की योजना बनाने में मदद करती है।
- अस्थायी ढांचे: इन बाज़ारों में तंबू, अस्थायी स्टॉल या खुले स्थान होते हैं, जहां व्यापारी अपना सामान बेचते हैं। बाज़ार खत्म होने के बाद ये ढांचे हटा दिए जाते हैं। इस तरह के अस्थायी प्रबंध इन बाज़ारों को कम लागत में चलाने योग्य बनाते हैं।
- विविध सामान: आवधिक बाज़ारों में कृषि उत्पाद (फल, सब्ज़ियां, अनाज), मवेशी, हस्तशिल्प, घरेलू सामान, कपड़े, औज़ार और रोज़मर्रा की जरूरत का सामान मिलता है। यह विविधता न सिर्फ़ ग्रामीण लोगों की ज़रूरतों को पूरा करती है, बल्कि उन्हें अपनी फ़सल और हस्तनिर्मित वस्तुएं बेचने का मौका भी देती है।
- स्थानीय और क्षेत्रीय व्यापार: ये बाज़ार आसपास के गांवों और बस्तियों के व्यापारियों और ग्राहकों को एक साथ लाते हैं। किसान यहां अपनी अतिरिक्त फ़सल और मवेशियों को बेच सकते हैं, जबकि ग्राहक अपनी ज़रूरत के सामान खरीद सकते हैं। यह स्थानीय अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने में सहायक होता है।
- सामाजिक और सांस्कृतिक मेलजोल: आवधिक बाज़ार सिर्फ़ व्यापार के लिए नहीं होते, बल्कि ये सामाजिक और सांस्कृतिक मिलने-जुलने का भी एक बड़ा मौका होते हैं। यहां अलग-अलग समुदायों के लोग एक साथ आते हैं, बातचीत करते हैं और जानकारी का आदान-प्रदान करते हैं। ये बाज़ार समाजिक रिश्ते बनाने, समुदायों के बीच बंधन मज़बूत करने और सांस्कृतिक परंपराओं, रिवाज़ों और त्योहारों को साझा करने का मौका देते हैं।
- अनौपचारिक अर्थव्यवस्था: इन बाज़ारों का संचालन अनौपचारिक तरीके से होता है, जहां नकद लेन-देन या वस्तु-विनिमय के ज़रिए व्यापार किया जाता है। यहां छोटे किसान, कारीगर और व्यापारी शामिल होते हैं, जो बड़ी मंडियों तक नहीं पहुंच पाते।
- आसानी से पहुंच: यह बाज़ार ऐसे स्थानों पर लगाए जाते हैं, जो ग्रामीण इलाकों के लोगों के लिए आसानी से पहुंचने योग्य हों। ये आमतौर पर मुख्य सड़कों, हाईवे या चौराहों के पास स्थित होते हैं, जिससे दूर- दराज़ के गांवों के लोग भी इसमें हिस्सा ले पाते हैं।
- नियम और प्रबंधन: हालांकि आवधिक बाज़ार अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा होते हैं, फिर भी यहां कुछ सामान्य नियम और रिवाज़ होते हैं, जो बाज़ार के कामकाज, विक्रेताओं के तरीके, कीमतों का तय करना और विवाद सुलझाने में मदद करते हैं। स्थानीय अधिकारी, समुदाय के नेता या बाज़ार समूह इन चीजों को ठीक से चलाने और व्यवस्था बनाए रखने में मदद कर सकते हैं।
ग्रामीण आवधिक बाज़ार (RPMs) और प्राथमिक ग्रामीण कृषि बाज़ार (PRAMs)
ग्रामीण आवधिक बाज़ार, ऐसे छोटे-छोटे बाज़ार होते हैं जो हर हफ़्ते या दो हफ़्ते में एक बार लगते हैं। ये बाज़ार, दूर- दराज़ के इलाकों से विक्रेताओं और खरीदारों को आकर्षित करते हैं। यहां खेती के उत्पाद, जैसे अनाज, फल और सब्ज़ियां बिकती हैं। इन बाज़ारों का संचालन अलग-अलग संस्थाएँ करती हैं, जैसे लोग, पंचायतें, नगरपालिकाएँ और राज्य कृषि विपणन बोर्ड (SAMBs) या कृषि उत्पाद बाज़ार समिति (APMCs)।
कई राज्यों ने किसान-उपभोक्ता बाज़ारों को अपनाया है, जिनकी सफलता अलग-अलग रही है। इन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे रिथु बाज़ार (आंध्र प्रदेश और तेलंगाना), रैटार संथे (कर्नाटका), अपनी मंडी (हरियाणा और पंजाब), शेतकारी बाज़ार (महाराष्ट्र), उझावर साथीगैल (तमिलनाडु) और कृषक बाज़ार (उड़ीसा)। ये बाज़ार देश के विभिन्न हिस्सों में होते हैं और यहां ज़्यादातर ऐसे उत्पाद बेचे जाते हैं, जैसे फल, सब्ज़ियां और फूल, जो जल्दी ख़राब हो जाते हैं। इन बाज़ारों से बेचा गया सामान केवल आसपास के इलाके की मांग को पूरा करता है।
प्राथमिक ग्रामीण कृषि बाज़ार(PRAMs) कैसे नए बाज़ार ढांचे की शुरुआत कर सकता है और यह ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि से होने वाली मुनाफ़े को बढ़ाने में कैसे मदद कर सकता है?
वर्तमान बाज़ार ढांचे ने, किसानों को उपभोक्ताओं के पैसे का सही हिस्सा नहीं मिलने दिया है। ग्रामीण आवधिक बाज़ारों को इस तरह से सुधारा जा सकता है कि ये गांव से उत्पादों को इकट्ठा कर, बड़े थोक बाज़ारों तक पहुंचाने में मदद करें।
प्राथमिक ग्रामीण कृषि बाज़ार दो मुख्य काम करते हैं:
- किसानों और उपभोक्ताओं के बीच सीधा व्यापार।
- छोटे किसानों के उत्पादों को इकट्ठा करने का तरीका।
प्राथमिक ग्रामीण कृषि बाज़ार(PRAMs), ऐसे नए बाज़ार ढांचे की शुरुआत करेंगे, जहाँ किसान अपने उत्पादों को इकट्ठा कर सकते हैं और उन्हें सही जगह भेज सकते हैं। इससे गांव में कृषि कार्यों को आसान बनाया जाएगा। यह छोटे और सीमांत किसानों के लिए फ़ायदेमंद होगा, जिन्हें अपने उत्पादों को एकत्रित करने में मदद चाहिए। यह किसानों को किसी भी बाज़ार से जुड़ने का मौका देंगे, जब तक वहाँ परिवाहन और भंडारण की सुविधाएँ हों। तथा यह पहले चरण में एक सहायता केंद्र के रूप में काम करेंगे, जो बड़े नेटवर्क को मदद देंगे।
प्राथमिक ग्रामीण कृषि बाज़ार (PRAMs) का स्थान
प्राथमिक ग्रामीण कृषि बाज़ारों को ऐसे जगहों पर बनाना चाहिए, जो ग्रामीण, अर्द्ध-शहरी या शहरी क्षेत्रों में हों और जो आसपास के इलाके को सेवा दे सकें।
प्राथमिक ग्रामीण कृषि बाज़ारों में जरूरी सुविधाएँ
- शीत एवं शुष्क भंडारण की सुविधाएँ ताकि जल्दी ख़राब होने वाले सामानों को लम्बे समय तक भण्डारित करने के लिए
- बिजली
- इंटरनेट की अच्छी सुविधा
- धुलाई की सुविधा आदि
ग्रामीण बाज़ार में विक्रेताओं को आने वाली समस्याएँ
- कम साक्षरता दर।
- ग्रामीणों का पुराना तरीका, जिससे वे बदलाव को स्वीकार नहीं करते। उनका खरीदने का निर्णय देर से होता है।
- ग्रामीण बाज़ार की मांग, कृषि पर निर्भर करती है, और कृषि मानसून पर आधारित है। इससे ग्रामीणों की खरीदारी क्षमता बदलती रहती है, जिससे मांग का अंदाज़ा लगाना मुश्किल हो जाता है।
- बुनियादी सुविधाओं की कमी।
- खुदरा विक्रेता नकली या मिलावटी उत्पाद बेचते हैं ताकि उन्हें ज़्यादा कमीशन मिल सके।
- संचार की समस्याएँ।
- वितरण और चैनल प्रबंधन में समस्याएँ।
संदर्भ
https://tinyurl.com/mv3ywtxf
https://tinyurl.com/mr358ujv
https://tinyurl.com/2zc89phf
https://tinyurl.com/3navmyez
चित्र संदर्भ
1. एक सब्ज़ी मंडी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. चंडीगढ़ सरकार द्वारा, 'अपनी मंडी' नामक पहल में, किसानों को सीधे अपने माल का विपणन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे वह बिचौलियों या व्यापारियों द्वारा 'शोषण' से बच सकें। ऐसे ही एक लाभान्वित किसान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. फलों के थोक विक्रेता को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मंडी में सब्ज़ी विक्रेता को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. शिवपुरी, बिहार की एक सब्ज़ी मंडी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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