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19वीं शताब्दी आविष्कारों का समय था। इस काल में हजारों आविष्कार हुए जिन्होंने दुनिया को बदल कर रख दिया, शक्तिशाली हथियारों से लेकर वायुयानों तक कितने ही बड़े आविष्कार इस काल में हुए। इस शताब्दी में ही शहरों का विकास भी तेजी से होना शुरू हुआ, अमेरिका में बड़ी-बड़ी गगन चुम्बी इमारतें भी इसी काल में बनी पर हर वक्त एक समस्या सबके सामने आती रही और वह समस्या थी आग पर काबू पाने की। जल की उपलब्धता करवाना एक बड़ी समस्या बन कर उभरी थी। फिर इसी दौर में स्तम्भाकार अग्निशामक नल की खोज हुयी जिसने एक बहुत बड़ी क्रांति की शुरुआत की। स्तम्भाकार अग्निशामक नल के आविष्कार का श्रेय फ्रेडरिक ग्राफ सीनियर को जाता है, फ्रेडरिक फ़िलेडैल्फ़िया जल विभाग में कार्यरत थे। उन्होंने इस नल की खोज सन 1801 ईस्वी में की। यह एक ऐसा उपकरण था जो कि जमीन के अन्दर से जाने वाली पाइप से जुड़ा हुआ रहता था और इसके मुख पर अन्य पाइप लगाने का स्थान दिया गया रहता था।
वर्तमान का अग्निशामक नल बिर्द्सिल हॉली द्वारा ईजाद किया गया था, जैसा की फ्रेडरिक का अग्निशामक नल हॉली के अग्निशामक यंत्र से उत्तम नहीं था तो हॉली द्वारा बनाया गया अग्निशामक यंत्र सभी के द्वारा स्वीकार कर लिया गया। विभिन्न नगर निगमों द्वारा इस अग्निशामक नल को स्वीकार कर लिया गया और इनको सड़कों आदि के किनारे लगाया जाने लगा।
जैसा कि भारत ब्रिटिश सरकार के अंतर्गत आता था तो यहाँ के महत्वपूर्ण शहरों में भी इन अग्निशामक नलों को लगाया जाने लगा। मुंबई, चंडीगढ़, मेरठ, कोलकाता आदि शहरों में इन नलों को लगाया गया। भारत के शहरों में इन नलों को लगाने का एक मापक था जिसके अनुसार गहन आबादी में 150 मीटर तथा कम आबादी वाले क्षेत्र में 500 मीटर पर इन नलों को लगाया जाता था। विभिन्न स्थानों पर इन नलों की बनावट में अंतर रहता था। कहीं पर इनके शीर्ष स्थान पर चेहरा बनाया जाता था और किसी किसी स्थान पर ये सामान्य प्रकार के रहते थे, कहीं-कहीं पर इनको लाल रंग से रंगा जाता था तो कहीं-कहीं इनको बिना रंगे ही छोड़ दिया जाता था।
मेरठ में पाए जाने वाले अग्निशामक नलों पर बब्बर शेर का चेहरा बनाया जाता था जो कि ब्रिटिश शासन के प्रतीक थे। अब वर्तमान काल में मेरठ के ये अग्निशामक नल कहीं विलुप्त से हो गए हैं पर मेरठ हापुड़ मार्ग पर हथकरघा वाली गली में अभी भी एक अग्निशामक नल मौजूद है जिसे ऊपर से तोड़ कर एक प्लास्टिक का नल लगा दिया गया है। इस अग्निशामक नल को देखकर ही इसकी बनावट का अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस उम्दा तरीके से इसको बनाया गया है। नल पर बना शेर का चेहरा जीवंत प्रतीत होता है। आज भी मेरठ में कई स्थानों पर ऐसे ही कितने अग्निशामक नल छिपे पड़े हैं जो कि अपने इतिहास को खुद में दबाये बैठे हैं।
1. द ग्रेट कोलंबस एक्सपेरिमेंट ऑफ़ 1908: वाटरवर्क्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड, कोनरेड सी. हिंड्स
2.https://timesofindia.indiatimes.com/city/mumbai/A-slow-death-for-our-fire-hydrants/articleshow/4949742.cms
3.https://mumbaimirror.indiatimes.com/mumbai/cover-story/mumbai-firemen-use-fire-fighting-manual-written-in-the-1940s/articleshow/47256596.cms
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