समय - सीमा 260
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आज भी कई लोग यह नहीं जानते हैं कि, शतरंज का आविष्कार प्राचीन भारत में ही हुआ था। प्राचीन काल में इसे चतुरंग के नाम से जाना जाता था। भारत के प्रसिद्ध लेखक मुंशी प्रेमचंद ने शतरंज के खेल से प्रभावित होकर "शतरंज के खिलाड़ी" नामक एक छोटी सी कहानी भी लिखी! साल 1977 में सत्यजीत रे (Satyajit Ray) द्वारा इस कहानी को एक कालजई फिल्म के रूप में रूपांतरित कर दिया गया। प्रेमचन्द की यह कहानी 1856 के दौर से शुरू होती है, जब भारत ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अधीन था। यह कहानी दो अमीर दोस्तों, मिर्जा सज्जाद अली तथा मीर रोशन अली पर केंद्रित है, जिन्हें शतरंज खेलने का खूब शौक होता है। उन्हें शतरंज से इतना अधिक लगाव हो जाता है कि वह इसे खेलने के चक्कर में अपनी जिम्मेदारियों और अपने आसपास हो रही राजनीतिक उथल-पुथल को भी अनदेखा करने लगे। इसी बीच ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) ने उनके राज्य