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लखनऊ में ताम्बुल मतलब खाने के पान और तम्बाकू की खेती बड़े पैमाने पर होती थी। पान के पत्तों को हरा सोना कहा जाता है। ताम्बुल की उपज के लिए एक अलग से जमीन रहती है जिसे भितापन कहा जाता है। जो पान के पत्तों की खेती करते हैं उन्हें तांबोली या बराई कहा जाता है। मान्यता थी की बराई खेती करते हैं और तांबोली पान बेचते हैं मात्र आज इनके बीच का अंतर अस्पष्ट है क्यूंकि दोनों ही खेती भी करते हैं और बेचते भी हैं। बराईयों को बसीत और चौरसिया के नाम से भी जाना जाता है और उनके चौरसिया, कटियार, नाग, जैसवार और महोबिया यह सामाजिक उपनाम हैं। पान का पत्ता नागवल्ली नामक लता से प्राप्त होता है। भारत में पान खाने की प्रथा कबसे शुरू हुई यह तो बताना मुश्किल है मात्र भारत के संस्कृति का यह एक महत्वपूर्ण घटक है। चरक संहिता, इब्न बतूता के प्रवास वर्णन, वात्स्यायनकामसूत्र, रघुवंश, पुराणों में आदि ताम्बुल मतलब पान के पत्तों का वर्णन एवं उपयोग के बारे में लिखा गया है। शादी, नामकारण आदि में पान के पत्तों का अनन्यसाधारण महत्व है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पान काफी महत्वपूर्ण है। सुखी खांसी, श्वसन सम्बन्धी बीमारी, अपचन, मुख शुद्धि, नींद की बीमारी के लिए पान के पत्ते राहत दिलाते हैं। खाने के बाद आज भी भारत में काफी घरों में पान खाया जाता है क्यूंकि वह हाजमे में मदत करता है। यह हरा सोना जो काफी किफायती है। उसकी खेती के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में एक योजना घोषित की है जिसके तहत 1 करोड़ रुपये मंजूर हुए हैं जिसे पान की खेती करने वाले किसानों को अनुदान के मुताबिक प्रदान किया जाएगा। लखनऊ में पान के विविध प्रकार बिकते हैं। लखनवी तहज़ीब में अपने मेहमान को खाने के बाद पान पेश किया जाता है। लखनऊ में आज भी बहुत पुरानी पान की दुकान मौजूद हैं। अकबरी गेट पर अजहर भाई की पान की दूकान कम से काम 80 साल पुरानी है और यहाँ पान के 14 से भी ज्यादा प्रकार बेचे जाते हैं जैसे शाही मीठा पान, बेगम पसंद पान, हाजमे का पान, पेठे का पान, आंवले का पान, वाजिद अली शाह की शाही गिलौरी आदि। लखनवी तहज़ीब के हिसाब से पान खाने का भी एक तरीका होता है मगर अफ़सोस आज ये तरीका कोई इस्तेमाल नहीं करता और हमे हर जगह पर पान की नकाशी देखने मिलती है। पान जो बनाया जाता है उसके आकर को गिलौरी कहते हैं उसपर चाँदी का वर्ख भी लगाया जाता है जो उसे खूबसूरती प्रदान करता है और लौंग से उसे बंद करके बांधा जाता है। पान खाना हमारी संस्कृति में ऐसे घुला हुआ है की उससे जुड़े अलग अलग बर्तन भी बनाए गए हैं। जैसे पानदान जिसमे पान बनाने की सामग्री रखी जाती है। नगरदान जिसमे पान रखे जाते हैं। खासदान जिसमे बनाए हुए पान रखे जाते हैं। उगालदान जिसमे पान की पीक फेकी जाती है। प्रस्तुत पहले चित्र में बनाया हुआ पान दिखाया गया है और दुसरा चित्र लखनऊ के मशहूर अजहर भाई की पान की दूकान का है। 1. डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर ऑफ़ द यूनाइटेड प्रोविन्सेस ऑफ़ आग्रा एंड औध: हेन्री रिवेन नेविल, 1904 2. पान https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A8 3. द अदर लखनऊ- वाणी प्रकाशन https://goo.gl/xvhFoK 4. https://goo.gl/rT7ggu
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