
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हालांकि मृत्यु एक दुखद कल्पना है, किंतु जरा सोचिए की यदि, दुनिया में सभी लोग जन्म ही लेते रहें, और
मृत्यु किसी की भी न हो, तो यह दुनियां कितनी अधिक असंतुलित हो सकती है! साथ ही मृत्यु की एक बड़ी
विशेषता यह भी है की, यह सभी सांसारिक मोह और चिंताओं का अंत भी होती है। इसीलिए एक ओर यदि
संसार को जीवन देने वाले देवताओं की आवश्यकता है, तो दूसरी ओर ब्रह्मांड के संहारक देवता का होना भी
बेहद जरूरी है, ताकि संसार में जीवन का संतुलन बना रहे। इस संदर्भ में सनातन धर्म में एक ओर भगवान
ब्रह्मा को निर्माण के देवता के रूप में पूजा जाता है, तो वही दूसरी और भगवान शिव को कुछ मायनों में
संहार (विनाश) के देवता के रूप में अनुसरित किया जाता है। जहां शिव का तांडव नृत्य उनके निर्माण,
संरक्षण और विनाश के चक्र को प्रदर्शित करता है।
नटराज के नाम से लोकप्रिय भगवान शिव नृत्य के देवता माने जाते हैं। उनके द्वारा किए गए नृत्य रूप को
तांडव के रूप में जाना जाता है। शिव का तांडव एक जोरदार नृत्य है जो निर्माण, संरक्षण और विनाश के चक्र
का स्रोत माना जाता है।
तांडव नृत्य भगवान शिव के हिंसक स्वभाव को प्रकृति के संहारक के रूप में दर्शाता है। ताण्डव (अथवा
ताण्डव नृत्य) शंकर भगवान द्वारा किया जाने वाला अलौकिक नृत्य है। तांडव के संस्कृत में कई अर्थ होते
हैं। इसके प्रमुख अर्थ उद्धत नृत्य करना, उग्र कर्म करना, स्वच्छन्द हस्तक्षेप करना आदि हैं।
शास्त्रों में भगवान् शिव को ही तांडव स्वरूप का प्रवर्तक बताया गया है। परंतु अन्य आगम तथा काव्य ग्रंथों
में दुर्गा, गणेश, भैरव, श्रीराम आदि के तांडव का भी वर्णन मिलता है। लंकेश रावण विरचित शिव ताण्डवस्तोत्र के अलावा आदि शंकराचार्य रचित दुर्गा तांडव (महिषासुर मर्दिनी संकटा स्तोत्र), गणेश तांडव, भैरव
तांडव एवं श्रीभागवतानंद गुरु रचित श्रीराघवेंद्रचरितम् में राम तांडव स्तोत्र भी प्राप्त होता है।
तांडव नृत्य की विशेषता का वर्णन भरत मुनि के द्वारा नाट्यशास्त्रम के चौथे अध्याय में किया गया है,
जिसके अनुसार भगवान शिव ने इस नृत्य रूप की कल्पना इसलिए की थी, क्योंकि उन्हें नृत्य का बहुत
शौक था।
शिव के तांडव को 108 करणों और 32 अंगारों से अलंकृत किया गया है।
तांडव को 7 भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
1. आनंद तांडव - ऐसा तांडव जिसे भगवान शिव आनंद के साथ करते हैं।
2. त्रिपुरा तांडव - राक्षस त्रिपुरासुर को मारने के बाद भगवान शिव द्वारा किया गया नृत्य साहस (वीरता)
और अत्यधिक क्रोध (रौद्र) को दर्शाता है।
3. संध्या तांडव - वह तांडव जो शाम की सुखद मनोदशा में किया जाता है।
4. सम्हारा तांडव - पूरे ब्रह्मांड के विनाश को सम्हारा तांडव में दोहराया जाता है।
5. काली तांडव - बुराई को नष्ट करने के लिए, शिव द्वारा अपने भैरव रूप को व्यक्त करते हुए किया गया
नृत्य।
6. उमा तांडव - यह नृत्य रूप अपने वर्तमान और सरल रूप में दाम्पत्य स्नेह, प्रेम और आकर्षण का
प्रतिनिधित्व करता है।
7. गौरी तांडव - इस तांडव में शिव और गौरी एक साथ श्रृंगार रस में नृत्य करते हैं।
तांडव शाश्वत ऊर्जा के पांच सिद्धांतों (निर्माण, संरक्षण, भ्रम, विनाश और मोक्ष) की अभिव्यक्ति का एक
सचित्र रूपक माना जाता है।
विद्वान कूमेरस्वामी के अनुसार, शिव का नृत्य भी उनकी पांच गतिविधियों का प्रतिनिधित्व करता है,
अर्थात्:
श्रृष्टि - निर्माण
स्थिति - संरक्षण
तिरोभव - भ्रम
सम्हारा - विनाश
अनुग्रह - मोक्ष
भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों में तांडव (जोरदार / मर्दाना) और लास्य (नरम / स्त्री) दोनों शामिल हैं, जो
उनके प्रदर्शन में ब्रह्मांडीय ऊर्जा - नर / मादा, यिन / यांग - का संतुलन प्रदान करते हैं। तांडव और लास्य
भारत में सबसे प्रतिष्ठित नृत्यों में से दो माने जाते हैं, जो मुख्य रूप से सृजन और विनाश के हिंदू देवता -
भगवान शिव और उनकी पत्नी, देवी पार्वती (शक्ति देवी का अवतार - रचनात्मक की देवी) से जुड़ी अपनी
अनूठी और सुंदर दिनचर्या के लिए जाने जाते हैं।
लास्य देवी पार्वती द्वारा किया जाने वाला नृत्य रूप है। यह खुशी व्यक्त करता है और अनुग्रह और सुंदरता
से भरपूर होता है। भगवान शिव द्वारा राक्षस त्रिपुरासुर का वध करने के बाद, उन्होंने क्रोध में नृत्य किया।
उन्हें प्रसन्न करने और शांत करने के लिए देवी उमा ने एक नरम और शृंगारिक नृत्य किया, जिसे लास्य के
नाम से जाना जाता है। यह नृत्य गति में अत्यंत कोमल और भावों में शृंगारिक माना जाता है, जिसमें
महिला नर्तक अधिक प्रभावी ढंग से नृत्य करती हैं। लास्य तांडव का स्त्री रूप माना जाता है। इस नृत्य में
मंजीरा, बांसुरी, घुंघरू, मदल, ढोल, तबला आदि जैसे मृदु ध्वनि, उच्च बास वाले वाद्ययंत्रों का प्रयोग किया
जाता है। इस नृत्य में पैरों का चलन बहुत ही खूबसूरती से किया जाता है और भावों को कोमलता के साथ
प्रदर्शित किया जाता है। इसका संगीत भी सुमधुर होता है।
लास्य को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
1. विकता लास्य - इस नृत्य शैली में लय, ताल, भाव प्रदर्शन करते समय, प्रदर्शित होते हैं।
2. विशाल लास्य - क्षैतिज, वृत्ताकार, तिरछी चालों के माध्यम से भ्रामरी का उपयोग करके, लास्य आधारित
नृत्य में विशेष फुटवर्क (पैरों का प्रयोग) किया जाता है।
3. लघु लास्य - पायल के माध्यम से और अंचित के माध्यम से पृथ्वी पर ध्वनि उत्पन्न करके, कुंचित
पदवीन्यास, लघु लास्य किया जाता है।
अर्धनारीश्वर भगवान शिव और देवी शक्ति का प्रतीक है (जब वे एक साथ होते हैं, शिव और शक्ति मर्दाना
और स्त्री की शुरुआत का प्रतिनिधित्व करते हैं जो ब्रह्मांड की प्रामाणिकता को आकार देते हैं), जो
रचनात्मक स्त्री ऊर्जा और मौलिक ब्रह्मांडीय ऊर्जा का एक अवतार है। यह सामंजस्य विशेष रूप से शिव
और पार्वती द्वारा किए गए तांडव और लास्य दोनों नृत्यों में अच्छी तरह से व्यक्त किया गया है।
शिव को केवल सकारात्मक पहलुओं में संसार का संहारक माना जाता हैं। क्यों की वास्तव में शिव किसी भी
अन्य देवता से अधिक दयालु और भोले माने जाते हैं। वह अपने भक्तों को कदापि कष्ट में नहीं देख सकते
हैं, और सच्चे ह्रदय से मांगी गई हर मनोकामना को पूरी करते हैं। जिसके प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में लखनऊ
के डालीगंज स्थित और शिव को समर्पित मनकामेश्वर मंदिर स्थापित है, जहाँ सच्चे मन से मांगी गई हर
मुराद को भोले बाबा पूरी करते हैं, इसलिए इन्हें मनकामेश्वर कहा जाता है। इस मंदिर का नाम कई वर्षों
पहले मंदिर के एक महंत की मनोकामना तत्काल ही पूरा हो जाने पर पड़ा।
डालीगंज में गोमती नदी के बाएं तट पर शिव-पार्वती का लगभग 50-60 फीट ऊँचा ये मंदिर बहुत सिद्ध
माना जाता है। माना जाता है कि माता सीता को वनवास छोड़ने के बाद लखनपुर के राजा लक्ष्मण ने यहीं
रुककर भगवान शंकर की स्तुति की थी। उसके बाद कालांतर में मनकामेश्वर मंदिर की स्थापना की गई
थी। इस मंदिर को रामायण के काल का माना जाता है।
सावन में विशेष रूप से महाशिवरात्रि के शुभअवसर पर इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। यहां
भगवान शिव का फूल, बेलपत्र और गंगा जल से अभिषेक किया जाता है। मंदिर में सुबह और शाम को भव्य
आरती होती हैं। लोगों की आस्था है की यहां भोलेनाथ हर भक्त की सभी इच्छाएं पूरी कर देते हैं। गोमती
नदी के बाएं तट पर शिव-पार्वती का ये मंदिर बहुत सिद्ध माना जाता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3tgFpv5
https://bit.ly/3sqPaaK
https://bit.ly/3M4Bfil
https://bit.ly/3tgFqz9
https://bit.ly/3K5Lph7
https://bit.ly/3tgdOtM
https://en.wikipedia.org/wiki/Tandava
चित्र संदर्भ
1. आनंद तांडव करते शिव को दर्शाता एक चित्रण (facebook "Parampara Art Gallery")
2. जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में सर्न में भारत द्वारा उपहार में दी गई आधुनिक मूर्ति को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. तांडव नृत्य करते हुए शिव को दर्शाता चित्रण (flickr)
4. लास्य नृत्य प्रदर्शित करती महिलाओं को दर्शाता चित्रण (flickr)
5. मनकामेश्वर मंदिर लखनऊ महादेव आरती को दर्शाता चित्रण (youtube)
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