सत्यान्वेषी साधकों के समूह थियोसोफिकल सोसाइटी का इतिहास, लक्ष्य एवं उद्द्येश्य

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
08-11-2021 09:58 AM
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सत्यान्वेषी साधकों के समूह थियोसोफिकल सोसाइटी का इतिहास, लक्ष्य एवं उद्द्येश्य

इस बात में कोई संदेह नहीं है की, किसी भी देश में लोकतंत्र और कानूनों की सहायता से समाज में शांति और स्थिरता बहाल की जा सकती हैं। परंतु समाज में दया, प्रेम और सामाजिक एकता जैसी मानवीय गुणों को विकसित करने के लिए निश्चित तौर पर किसी न किसी माध्यम अथवा मार्गदर्शक की आवश्यकता पड़ती है। हालांकि किसी भी देश के शिक्षक, विचारक और दार्शनिक आदि समाज को मानवीयता की दिशा प्रदान करते हैं, किंतु फिर भी बड़े पैमाने पर समाज में जागरूकता फ़ैलाने के लिए किसी बड़े माध्यम की आवश्यकता जान पड़ती हैं। और यहीं पर "विभिन्न संस्थाएं" मुख्य किरदार निभाती हैं। और ऐसे ही अनुभवी मार्गदर्शक के तौर पर "थियोसोफिकल सोसाइटी (Theosophical Society)" भी अपना अहम् योगदान दे रही हैं, चलिए जानते हैं किस प्रकार से?

थियोसोफिकल सोसाइटी (Theosophical Society) क्या हैं?

आध्यात्मिकता के क्षेत्र में थियोसॉफिकल सोसाइटी (Theosophical Society) अंतराष्टीय स्तर पर एक जानी- मानी संस्था है। थियोसोफी शब्द से हमें दो गहरे अर्थ प्राप्त होते हैं। यह एक ग्रीक शब्द हैं जिसका प्रयोग सर्वप्रथम आइंब्लिकस (Iamblichus) द्वारा ईसवी सन् 300 के समांतर किया गया था, जहां जो "थियोस" तथा "सोफिया" के समावेश से निर्मित हुआ है ,जिसका मूल हिंदू धर्म की "ब्रह्मविद्या", ईसाई धर्म के 'नोस्टिसिज्म' (Gnosticism) अथवा इस्लाम धर्म के "सूफीज्म" अथवा सूफीवाद को इंगित करता है। थियोसाफी की एक अन्य परिभाषा के अनुसार "ऐसा कोई प्राचीन दर्शन जो परमात्मा के संदर्भ में चर्चा करे. थियोसोफी कहलाता है। थियोसोफी शब्द के जनक आइंब्लिकस को प्लैटो (Plato) संप्रदाय के अमोनियस सक्कस (Ammonias Saccas) अनुयायी माना जाता था। उन्होंने इस शब्द का प्रयोग सिमंदरिया के अपने "सारग्राही मतवादः (Eclectic school) के प्रसंग में किया था। थियोसॉफिकल सोसाइटी की परिभाषा में कहीं भी थियोसॉफी शब्द को सीमाबद्ध करने की कोशिश नहीं की गई। थियोसॉफिकल सोसाइटी को सभी प्रकार के भेदभाव से रहित सत्यान्वेषी (truth-searching) साधकों का एक समूह है। और सत्य की खोज ही सोसाइटी के लिए सबसे महत्वपूर्ण विषय है - सोसाइटी ने ऐसे समाज का लक्ष्य निर्धारित किया हुआ हैं। जहाँ सेवा, सहिष्णुता, आत्मविश्वास और समत्व भाव स्वयंसिद्ध अर्ताथ सभी के भीतर हों।

थियोसॉफिकल सोसाइटी की स्थापना और स्थापक?

थियोसॉफिकल सोसाइटी की स्थापना मूल रूप से रूस की निवासी महिला मैडम हैलीना ब्लावाट्स्की (H. P. Blavatsky) और अमरीका निवासी कर्नल हेनरी स्टील आल्काट (Henry Steel Allcott) द्वारा 17 नवंबर 1875 को न्यूयॉर्क में की गई थी, तथा वर्ष 1879 में इस सोसाइटी के मुख्य कार्यालय को न्यूयॉर्क से मुंबई में स्थानांतरित कर दिया गया। लेकिन इसके बाद इसके कार्यालय को अंतिम बार अड्यार (Adyar, चेन्नई) में स्थपित कर दिया गया। अड्यार स्थित कार्यालय 266 एकड़ भूमि में फैला हुआ है, जिसमें अनेक भवन एवं कार्यालयों का निर्माण हुआ हैं। यहां के प्रसिद्ध पुस्तकालय में 12000 तालपत्र की पांडुलिपियाँ, 6000 अन्य अति प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियाँ तथा 60 हजार से अधिक पुस्तकें संभाल के रखी गई हैं। इस आधार पर इसे संसार के सर्वोत्कृष्ट पुस्तकालयों में से एक माना जाता है। ये पुस्तकें पाश्चात्य एवं भारतीय धर्म, दर्शन एवं विज्ञान विषय को संदर्भित करती हैं। थियोसॉफिकल सोसाइटी ने शुरुआत से ही भारत में आर्यसमाज के साथ मिलकर भारतवर्ष के सांस्कृतिक, धार्मिक पुनर्जागरण की योजना बनाई थी, और कुछ समय तक संयुक्त रूप से कार्य भी किया था, परन्तु बाद में दोनों संस्थाएँ अलग-अलग हो गईं। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड फेडरेशन को पिछले 100 वर्षों से यूपी फेडरेशन थियोसोफिकल सोसाइटी के रूप में जाना जाता है। उत्तर प्रदेश राज्य के दो राज्यों उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में विभाजन के बाद, फेडरेशन का नाम बदलकर यूपी और उत्तराखंड फेडरेशन करने की आवश्यकता महसूस की गई है। यूपी फेडरेशन ने अक्टूबर 2019 में अपना शताब्दी सम्मेलन आयोजित किया था और उस समय इसका नाम बदलकर वर्तमान नाम कर दिया गया था। यूपी और उत्तराखंड फेडरेशन के पास कुछ लॉज हैं जो 100 साल से भी ज्यादा पुराने हैं, जिनमे से एक सत्यमार्ग लॉज, हमारे शहर लखनऊ में भी स्थित है। जिसकी स्थपना वर्ष 1882 में की गई थी। 1879 में ही थियोसोफिकल सोसाइटी ने भारतीय संस्कृति और समाज में अपनी जड़ें जमा लीं थी। एनी बेसेंट और एओ ह्यूम के तहत थियोलॉजिकल सोसाइटी ने 1890 के दशक में भारत की स्वतंत्रता के लिए अपनी बॉम्बे / पुणे की बैठकों में "कांग्रेस" पार्टी का गठन किया। एनी बेसेंट 1889 में थियोसोफिकल सोसायटी से जुड़ी थीं। वह वेदों और उपनिषदों की शिक्षाओं में दृढ़ विश्वास रखती थीं। वह भारत की धरती को इतना मुक्त और ज्ञानवर्धक मानती थीं, की उन्होंने भारत को ही अपना राष्ट्र मान लिया और यही अपना स्थायी निवास बना लिया। उन्होंने तत्कालीन भारतीय समाज की प्रचलित बुराइयों जैसे बाल विवाह, विधवा पुनर्विवाह की अस्वीकार्यता आदि के खिलाफ हर दरवाजे पर शिक्षा लाने में अहम् भूमिका निभाई। उन्होंने बनारस सेंट्रल स्कूल की शुरुआत की इसी केंद्र के आसपास वर्तमान बनारस हिंदू विश्वविद्यालय को भी स्थापित किया गया। दक्षिण भारत में भी स्थापित किए जा रहे विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों में उनके प्रयासों की लहर देखी गई। 1898 में सोसाइटी ने अपना वार्षिक सम्मेलन बारी-बारी से अड्यार और बनारस में आयोजित करना शुरू किया, और भारत के बाहर समय-समय पर विश्व सम्मेलन आयोजित करने का भी निर्णय लिया।

थियोसॉफिकल सोसाइटी के लक्ष्य अथवा उद्द्येश्य?

थियोसोफी के ज्ञान को सभी धर्मों में अंतर्निहित माना जाता है। इसकी शिक्षाएं किसी बाहरी घटना पर निर्भरता के बजाय, मनुष्य में गुप्त आध्यात्मिक प्रकृति का रहस्योद्घाटन करती हैं। थियोसोफी का लक्ष्य देवत्व, मानवता और दुनिया की उत्पत्ति का पता लगाना है। थियोसोफिस्ट सभी धर्मों का सम्मान करते थे। वे धर्मांतरण के विरोधी थे और आत्मा और गुप्त रहस्यवाद के स्थानांतरगमन में विश्वास करते थे। थियोसोफिकल सोसाइटी भारत में हिंदू धर्म के पुनरुद्धार का एक अभिन्न अंग था, जिसने कुछ हद तक सामाजिक एकजुटता लाने का भी काम किया। थियोसोफिस्टों ने जाति, अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए भी काम किया और आत्मसात के दर्शन में विश्वास किया। उन्होंने वास्तव में सामाजिक स्वीकार्यता और हाशिए के वर्गों के एकीकरण की दिशा में काम किया। उन्होंने मुख्यधारा की शिक्षा लेने के लिए प्रोत्साहित करके सामाजिक रूप से बहिष्कृत लोगों की स्थितियों को बेहतर बनाने का प्रयास किया। इस संबंध में, एनी बेसेंट ने कई शैक्षिक समाज भी स्थापित किए और आधुनिक शिक्षा के प्रसार की आवश्यकता का प्रचार किया। थियोसोफिकल सोसायटी ने समाज में पुनर्जन्म, कर्म में हिंदू मान्यताओं को स्वीकार किया और उपनिषदों और सांख्य, योग और वेदांत विचारधारा के दर्शन से प्रेरणा ली। इसने भेदभाव या नस्ल, पंथ, लिंग, जाति या रंग के बिना सार्वभौमिक भाईचारे का आह्वान किया। थियोसोफी किसी भी धर्म का विरोध अथवा धर्म के विश्वासों की अवहेलना नहीं करती। जिनका मूलमंत्र शांति है तथा इसका आदर्श वाक्य है, "सत्य से श्रेष्ठतर कोई धर्म नहीं है। थियिसोफिकल सोसाइटी संस्था का लक्ष्य मानवीय एकता को आधार मानकर मानव समाज की सेवा करना है। इसके द्वारा अपने लिए तीन मुख्य लक्ष्य अथवा उद्द्येश्य निर्धारित किये गए हैं:
(1) मानव जाति के सार्वभौम मातृभाव का एक केंद्र बिना जाति, धर्म, स्त्री पुरुष, वर्ण अथवा रंग के भेदभाव को मानते हुए, बनाना।
(2) विविध धर्म, दर्शन तथा विज्ञान के शोधों को प्रोत्साहित करना।
(3) प्रकृति में छिपे गुप्त नियमों तथा मानव की भीतरी शक्ति का शोध करना।


संदर्भ
https://bit.ly/3bO8qpq
https://theosophy-upuk.in/about/
https://www.ts-adyar.org/content/early-history
https://en.wikipedia.org/wiki/Theosophical_Society

चित्र संदर्भ
1. अड्यार, भारत में थियोसोफिकल सोसायटी (Theosophical Society in Adyar, India) का मुख्य भवन, 1890 को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2  फ्रेंच भाषा के आदर्श वाक्य के साथ थियोसोफिकल सोसायटी की मुहर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. थियोसोफिकल सोसायटी, अड्यार, भारत की स्मारक पट्टिका का एक चित्रण (wikimedia)
4. थियोसोफिकल सोसायटी, बसवनगुडी, बैंगलोर का एक चित्रण (wikimedia)

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