घड़ियाल का नाम पॉट (Pot) के लिए भारतीय शब्द ‘घडा’ से व्युत्पन्न हुआ है, क्योंकि उनके थूथन के अंत में एक बल्बनुमा उभार (Narial excrescence) होता है। घड़ियाल के लिए घडा शब्द का भी प्रयोग किया जाता है, जो कि प्रत्यक्षतः लैंगिक दृष्टि से डाइमॉर्फिक (Dimorphic) मगरमच्छ हैं। इसकी प्रजातियां काफी हद मछलियां खाने वाली होती हैं। मजबूत पतली थूथन और समान तेज दांतों की पंक्तियाँ, अपेक्षाकृत लंबी और मजबूत पेशी युक्त गर्दन द्वारा समर्थित होती हैं, जो इसे सबसे कुशल मछली पकड़ने वाला जीव बनाती हैं। बांध, बैराज और पानी का बहाव नदी के उपयुक्त आवासों को सीमांत या अनुपयुक्त झीलों में बदलकर, और बहाव वाले क्षेत्रों के लिए उपलब्ध पानी की मात्रा और गुणवत्ता में परिवर्तन करके घड़ियाल को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है। घड़ियाल, अपने लंबे, दांतेदार रॉस्ट्रम (Rostrum) के साथ मछली पकड़ने के जाल में आसानी से फंस या उलझ जाता है, जहाँ यह अक्सर पानी के भीतर फँसकर और डूबकर मर जाता है। जाल को सुलझाने के लिए या फिर जाल को नुकसान पहुंचाने के प्रतिशोध में आम तौर पर जाल में उलझे हुए घड़ियाल को या तो मार दिया जाता है या फिर उनके रॉस्ट्रम को काट दिया जाता है। रिवरबेड (Riverbed) या वह प्रणालियां जिनमें नदियां बहती हैं, का निर्माण, घड़ियाल को उनके निवास स्थान के स्थलीय घटक से अलग करके उनके जीवन को खतरे में डाल रहा है, जिसकी वजह से वे उन क्षेत्रों को त्याग रहे हैं या प्रवास कर रहे हैं। नदियों के किनारों पर मौजूद रेत खनन से घड़ियाल का व्यवहार बाधित होता है और यहां तक कि स्थानीय आबादी को इस क्षेत्र को निर्जन करने के लिए मजबूर कर सकता है। सतत खनन गतिविधि, घडियाल के घोंसले और धूप सेंकने वाले क्षेत्रों को नष्ट कर सकता है तथा घोंसला निर्माण करने के मौसम के दौरान और अंडों की प्रत्यक्ष मृत्यु दर का कारण भी बन सकता है। भोजन निर्वाह के लिए कुछ घड़ियाल स्थानों पर रहने वाले निवासियों द्वारा इनके अंडों का उपयोग अंडे की मृत्यु दर को बढ़ाता है, नये घडियालों की उपस्थिति को कम करता है, और घोंसले के प्राकृतिक शिकारियों द्वारा अतिरिक्त शिकार को बढावा देता है। इन लुप्तप्राय जानवरों के संरक्षण में लखनऊ का कुकरैल आरक्षित वन भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है।
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