
Post Viewership from Post Date to 12- Nov-2020 32nd Day | ||||
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जून जुलाई के महीनों में बरसात आते ही शहर के लोगों को भीषण गर्मी से राहत तो मिल जाती है, परन्तु बारिश रूकने के बाद शहरों में पानी भर जाता है। इस जलजमाव से शहर के कई इलाकों में लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं। कहीं पानी भरा जाता है, तो कहीं कूड़े का ढ़ेर नजर आता है। कीचड़ व गंदगी से लोगों का चलना भी मुश्किल हो जाता है। नाले-नालियां जाम हो जाती हैं। गंदगी के कारण संक्रामक रोग फैलने का खतरा उत्पन्न हो जाता है। हर साल कई शहरी इलाकों में जब कम समय में भारी बारिश होती है, तो पानी शहर की जल निकासी प्रणाली की क्षमता को पार कर जाता है और फिर जलजमाव जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगती है। हाल के वर्षों में जलजमाव शहरवासियों के लिए एक समस्या बन गया है। इससे यातायात में परेशानी, वनस्पतियों और जीवों का विनाश, आर्थिक और पर्यावरणीय क्षति आदि समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इस साल भी लखनऊ के लोगों को भीषण गर्मी से निजात दिलाने के लिये 10 दिनों के इंतजार के बाद मानसून की बारिश से राहत तो मिली परंतु कई इलाकों में लोगों को जलजमाव से होने वाली कई परेशानियों का भी सामना भी करना पड़ा।
लखनऊ में मानसून 24 जून को आया था, परंतु कुछ बूंदाबांदी से ही लोगों को संतुष्ट होना पड़ा, इसके कुछ दिन बाद झारखंड और इससे सटे दक्षिण-पूर्व के कम दबाव वाले क्षेत्रों में फिर से मानसून की सुस्त पड़ी चाल ने रफ्तार पकड़ ली और 29 जून को लखनऊ में झमाझम बारिश हुई। रात तक 50 मिमी से अधिक बारिश दर्ज की गई। परिणामस्वरूप नालियां और पुराने सीवर पाइप (Sewer Pipe) की लाइने जाम हो गई और शहर के कई इलाकों में सड़कों पर पानी भरना शुरू हो गया। कई क्षेत्रों के लोग जलभराव से परेशान दिखे। लोग गंदे पानी से होकर आने-जाने को विवश थे। जगह-जगह कूड़े के ढेर भी दिखे। कई इलाकों में पानी में वाहन फंसे मिले तथा इस जलभराव के कारण जाम भी देखने को मिला। दोपहिया, चार पहिया वाहन तो दूर की बात है, लोगों का घर से निकलकर पैदल चलना भी मुश्किल हो गया था। इंदिरानगर में ए-ब्लॉक (A-Block) के निवासियों का तो बुरा हाल था क्योंकि गलियां गहरे पानी से भरी थीं। वहां के लोगों का कहना था कि हमने पिछले कई वर्षों से हर मानसून में इन समस्याओं का सामना किया है, क्षेत्र में सीवर लाइन 50 साल पुरानी है परिणामस्वरूप, जलभराव हो जाता है। बार-बार शिकायत के बाद भी कुछ नहीं किया जाता है। यह हर साल होता है लेकिन एलएमसी (LMC) ने अभी तक इससे कोई भी सबक नही लिया है। परंतु अगले मानसून के आने तक अधिकारियों के पास काफी समय है कि वे जलजमाव के कारणों का पता लगा सके और उन्हें ठीक करने के लिए ठोस योजना तैयार कर सके।
आजकल शहरों में तेजी से बड़े पैमाने पर नए निर्माण कार्य किये जा रहे है, इस बढ़ते कंक्रीट (Concrete) के जंगलों में हरियाली कम रहे गई है, जिस कारण भूमि की अवशोषण क्षमता भी कम हो गई है और जलजमाव जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगी है। इसके अलावा शहरों में ठोस अपशिष्ट पदार्थ भी तेजी से बढ़ते जा रहे हैं, जो जल निकासी चैनलों (Channels) में फंस जाते हैं और मानसून आने पर जल के निकास में ये अवरोध उत्पन्न करते हैं। इन्ही कारणों से आज शहरों की सड़कों पर जल-जमाव बढ़ता जा रहा है और भूजल स्तर तेजी से घटता जा रहा है। साथ ही साथ झीलें तथा तालाब गायब होते जा रहे हैं। परन्तु स्मार्ट जल प्रबंधन (Smart Water Management) को लागू करने से इन समस्याओं से सबसे बेहतर ढंग से निपटा जा सकता है। स्टॉर्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम (Storm Water Drainage System) के माध्यम से जल-जमाव तथा भूजल स्तर के घटने की समस्याओं से निजात मिल सकती है।
स्टॉर्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम अपशिष्ट जल या वर्षा जल की निकासी के लिए चैनलों का एक नेटवर्क है। इस स्टॉर्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम में वर्षा के जल को नदियों, नालों आदि तक पहुँचाने के लिए भूमिगत पाइपों और चैनलों का बुनियादी ढांचा तैयार किया जाता है। यदि इस पाइप या चैनल से वर्षा जल और अपशिष्ट जल दोनों को ले जाया जाता है, तो इसे संयुक्त जल निकासी प्रणाली कहा जाता है। इस स्टॉर्म जल प्रबंधन प्रक्रिया से भू-जल स्तर के बुनियादी ढांचे को भी सुधारा जा सकता है। इस जल प्रबंधन प्रक्रिया में वर्षा के जल का संचयन करने के लिये संग्रह गड्ढों को जल निकासी प्रणाली से जोड़ दिया जाता है और इस जल का उपयोग भूमिगत जल स्तर सुधारने में किया जाता है और साथ ही साथ जल जमाव से छुटकारा भी मिल जाता है। परन्तु इसमें ध्यान रखना होगा कि बारिश के पानी की निकासी को दूषित होने से बचाने के लिये अपशिष्ट जल प्रणाली से अलग रखा जाये। केवल बारिश का साफ पानी ही नदी या संग्रह गड्ढों तक पहुंचे।
किसी भी शहर के लिए स्टॉर्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम डिजाइन करने के लिए, निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार किया जाना चाहिए:
• सर्वप्रथम पिछले 100 वर्षों का वर्षा का डेटा (Data) निकाल लें (अपेक्षित रिटर्न अवधि के अनुसार/ संरचनाओं के डिजाइन तथा जीवन अवधि के अनुसार)
• सतह पर बहने वाले जल की मात्रा (भूमि ढलानों, ठोस जल निकासी क्षमता पर आधारित)
• आसपास के इलाके में अपेक्षित संरचनाएं (बांध, ऊंची इमारतें, आदि)
• भूमि की ढलान का डिजाइन (1:100/1:150 के बराबर), नालियों का उन्मुखीकरण (मुख्य नाली और उप नालियां)
• हाइड्रोलिक पैरामीटर (Hydraulic Parameter)
आज कई देशों में जल प्रबंधन के लिये ग्रीन रूफ (Green Roof), फिल्टर स्ट्रिप्स (Filter Strips), पारगम्य पत्थर सतह, जल टैंक और सिस्टर्न (Water Tank and Cistern), जैव-प्रतिधारण तालाब आदि नीतियों का उपयोग किया जा रहा है। इससे जलजमाव की समस्या भी उत्पन्न नहीं होती और भू-जल पर भी इसका नकारात्मक असर देखने को नहीं मिलता। आज कल भारत के कई स्मार्ट शहर भी इस समस्या के समाधान के लिये कई तरीकों का उपयोग कर रहे हैं। आंध्र प्रदेश, बिहार, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, चंडीगढ़, दमन और दीव, एनसीटी दिल्ली और पुडुचेरी में छत के वर्षा जल संचयन प्रणाली की स्थापना को अनिवार्य बनाने के लिए भवन उपनियमों में आवश्यक प्रावधान किए गये हैं। इसके अलावा चेन्नई, गुड़गांव, मुंबई, सूरत, कानपुर, हैदराबाद, नागपुर, इंदौर, राजकोट, ग्वालियर और जबलपुर में नए भवनों के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया है कि वो एक निश्चित क्षेत्र को कवर कर के बारिश के पानी का संचय करेंगे ताकि समय आने पर उस पानी का उपयोग भूजल स्तर को बढ़ाने में किया जा सके। 2012 में, जयपुर विकास प्राधिकरण (JDA) ने गांधी नगर रेलवे स्टेशन पर एक पारंपरिक घनी क्रमिक पारगम्य पत्थर (Densely Permeable Stone) की सतह की पार्किंग (लगभग 340 वर्ग मीटर) की योजना बनाई और 2013 के मानसून के दौरान देखा गया की इस पारगम्य पत्थर की सतह वाली पार्किंग में वर्षा का जल अवशोषित हो गया, जिससे जल भराव की समस्या में राहत मिली। ऐसा ही एक और उदाहरण हैदराबाद के उप्पल रोड में राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (NGRI) में भी देखने को मिला, जहां वैज्ञानिकों ने अपने परिसर में भूजल पुनर्भरण संरचनाओं को स्थापित करने की योजना बनाई। उन्होंने वर्षा के जल का संचय करने के लिये 9 वर्षा जल संचयन तालाबों (रेन गार्डन्स (Rain gardens)) का निर्माण किया। प्रत्येक तालाब 40 वर्ग मीटर क्षेत्र में है और आकार में गोलाकार है।
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