
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महाभारत एक ऐसा महाकाव्य है, जिसे आज भी विभिन्न रूपों में चित्रित या प्रस्तुत किया जाता है। महाकाव्य का प्रत्येक किरदार एक उदाहरण प्रस्तुत करता है, जो लोगों के मन में एक अमिट छाप छोड़ता है। हस्तिनापुर के कुरू राजा शांतनु भी इन्हीं किरदारों में से एक हैं। वह हस्तिनापुर के तत्कालीन राजा प्रतीप के सबसे छोटे पुत्र थे, जो कि पांडवों और कौरवों के परदादा भी थे। महाभारत के प्रसिद्ध किरदार भीष्म पितामह (जो सबसे शक्तिशाली योद्धाओं में से एक थे) को हम सभी जानते हैं तथा शांतनु उनके पिता थे। माना जाता है कि एक बार शांतनु नदी के तट पर टहल रहे थे और तभी उन्होंने एक सुंदर स्त्री (देवी गंगा) को देखा। देखते ही उन्होंने देवी गंगा के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रख दिया। देवी गंगा एक शर्त के साथ मान गयी तथा शर्त यह थी कि वह जो भी कार्य करेगी, शांतनु उसके बारे में कोई भी सवाल नहीं करेंगे। यदि ऐसा हुआ तो वह उन्हें छोड़ कर चली जाएगी। शादी के बाद उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन देवी गंगा ने उसे नदी में डूबो दिया। यही कार्य वह एक के बाद एक, सात पुत्रों के साथ करती गई। चूंकि शांतनु ने उन्हें वचन दिया था इसलिए उन्होंने इस बारे में देवी गंगा से कुछ न कहा, किंतु जब देवी गंगा यही कार्य 8वें पुत्र के साथ करने लगी तब शांतनु खुद को रोक नहीं पाए। अंत में, गंगा ने राजा शांतनु को ब्रह्मा द्वारा दिए गए उस श्राप के बारे में बताया जोकि शांतनु के पूर्व रूप महाभिषा और गंगा को मिला था। श्राप के अनुसार उनके 8 बच्चे पृथ्वी पर नश्वर मनुष्य के रूप में जन्म लेंगे। किंतु यदि वे बच्चे मनुष्य रूप में जन्म लेने के बाद तुरंत मर जायें तो मृत्यु के एक वर्ष भीतर वे मुक्त हो जाएंगे, इसलिए उन्होंने ऐसा किया। चूंकि 8वें पुत्र को वह नहीं डुबा पाई इसलिए वह बच्चा कभी भी पत्नी या बच्चों का सुख प्राप्त नहीं कर पायेगा और उसे एक लंबा नीरस जीवन जीना पड़ेगा। किंतु उस 8वें पुत्र को यह भी वरदान प्राप्त है कि वह धर्मग्रंथों का ज्ञाता होने के साथ-साथ गुणी, पराक्रमी और पिता का आज्ञाकारी होगा।
इसलिए उस पुत्र को राज सिंहासन के योग्य बनाने हेतु प्रशिक्षित करने के लिए वह उसे स्वर्ग में ले जा रही है, यह कहते ही वह गायब हो गई। कई वर्षों तक गंगा के वियोग में विलाप करते हुए शांतनु अपना राज-पाठ संभालने लगे और बहुत ही कुशल सम्राट बने। फिर एक दिन जब वह गंगा नदी के किनारे टहलने लगे तो उन्होंने देखा कि एक सुंदर युवा लड़का उनके सामने खड़ा है। वह युवा लड़का उनका वही 8वां बेटा था, जिसे देवी गंगा अपने साथ ले गयी थी। इस लड़के का नाम 'देवव्रत' था और उसे परशुराम और ऋषि वशिष्ठ द्वारा युद्ध कलाओं द्वारा पवित्र शास्त्रों का ज्ञान दिया गया था। देवव्रत के साथ राजधानी पहुंचने पर शांतनु ने सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में देवव्रत को ताज पहनाया। उन्होंने देवव्रत की सहायता से यमुना के तट पर सात अश्वमेध यज्ञ किए।
लगभग चार साल बाद, जब शांतनु यमुना नदी के तट पर टहल रहे थे तब उन्होंने एक अज्ञात दिशा से आने वाली सुगंध को सूंघा और गंध का कारण खोजते हुए, सत्यवती के पास जा पहुंचे। सत्यवती ब्रह्मा के श्राप से मछली बनी अद्रिका नामक अप्सरा और चेदी राजा उपरिचर वसु की पुत्री थी। मछली का पेट फाड़कर मछुआरों ने एक बालक और एक बालिका को निकाला और राजा को सूचना दी। बालक को तो राजा ने पुत्र रूप में स्वीकार कर लिया किंतु बालिका के शरीर से मछली की गंध आने के कारण उसे मछुआरों को दे दिया और उसे मतस्यगंधा कहा जाने लगा। अपने पिता की सेवा के लिये वह यमुना में नाव चलाया करती थी। मतस्यगंधा ने पराशर मुनि की अत्यंत सेवा कर उन्हें जीवन दान दिया और महर्षि ने प्रसन्न होकर उसे उसके शरीर से अति सुगन्धित गंध निकलने का वरदान दिया। उसी दौरान उसने महर्षि वेदव्यास को भी जन्म दिया, बाद में उसका नाम सत्यवती पड़ा। सत्यवती को देखते ही शांतनु उस पर मोहित हो गए और उसके समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा। सत्यवती के पिता शादी के लिए राजी हो गए और उन्होंने शांतनु के समक्ष एक शर्त रखी कि सत्यवती का बेटा ही हस्तिनापुर का राजा बनेगा। चूंकि राजा शांतनु पहले ही देवव्रत को सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में चुन चुके थे इसलिए वे चिंतित हो गये। देवव्रत को जब इस बात का पता चला तो अपने पिता की खुशी के लिए, उन्होंने सत्यवती के पिता को वचन दिया कि सत्यवती के बच्चे ही सिंहासन पर बैठेंगे। आश्वस्त करने के लिए, उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य अपनाने की शपथ ली ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सत्यवती की आने वाली पीढ़ियों को भी देवव्रत की संतानों से चुनौती न मिले। इस प्रकार सत्यवती और शांतनु का विवाह हो गया। देवव्रत की यह प्रतिज्ञा भीषण थी, इसलिए उनका नाम भीष्म पड़ा। शांतनु देवव्रत से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें वरदान दिया कि उनकी मृत्यु उन्हीं की इच्छा से होगी।
राजा शांतनु की देवी गंगा और सत्यवती से भेंट को कलाकारों ने चित्रों के माध्यम से भी दर्शाया है। इसके अलावा उपरोक्त दृष्टांत भी कलाकारों द्वारा चित्रों के माध्यम से दर्शाए गये हैं, जो कि इस दृष्टांत को सजीव रूप प्रदान करते हैं। रवि वर्मा द्वारा चित्रित एक पेंटिंग (Painting) में शांतनु, मछुआरी लड़की सत्यवती को लुभाते हुए दिखायी दे रहे हैं। एक अन्य पेंटिंग में शांतनु को सत्यवती के सामने शादी का प्रस्ताव रखते दिखाया गया है। राजा रवि वर्मा द्वारा चित्रित एक अन्य चित्र में शांतनु, गंगा को अपने 8वें पुत्र को नदी में डुबाने से रोक रहे हैं। इसी प्रकार 1913 में वारविक गोब्ले (Warwick Goble) ने भी महाभारत के एक प्रसंग को चित्रित किया है, जिसमें शांतनु की मुलाक़ात देवी गंगा से होती है।
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