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2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार लखनऊ में 16,456 ईसाई हैं और यहाँ के चर्चों (church) में जैसे, क्राइस्ट चर्च, ऑल सेंट्स गैरिसन चर्च, पुराना मेथोडिस्ट चर्च, चर्च ऑफ इपिफ़नी, ग्रेस बाइबल चर्च आदि में गुड फ्राइडे (Good Friday) पर जुलूस और विशेष प्रार्थनाओं का आयोजन भी किया जाता है। हजरतगंज के सेंट जोसेफ कैथेड्रल चर्च में प्रभु यीशु के जीवन पर एक जुलूस निकाल कर गुड फ्राइडे का आयोजन किया जाता है। इस बीच, गुरुवार को पारंपरिक ईस्टर 'ट्रिड्यूम (Triduum)' या दावत के तीन दिन शुरू हो जाते हैं। इस अवसर पर, बिलीवर्स चर्च अलीगंज (Believers Church Aliganj) की सभा में प्रार्थना की जाती है, और पादरी द्वारा चर्च के सदस्यों के पैर धोए जाते हैं।
वहीं ईसाइयों द्वारा गुड फ्राइडे के दिन दोपहर तीन बजे तक थ्री ऑवर्स की एगोनी (Three Hours' Agony) या ट्रे ओर (Tre Ore) की प्रार्थना करी जाती है, जिसमें श्रद्धालु प्रभु यीशु द्वारा तीन घंटे तक क्रॉस पर भोगी गई पीड़ा को याद करते हैं। साथ ही इस दिन श्रद्धालुओं द्वारा आमतौर पर दोपहर और 3 बजे के बीच और कभी-कभी 6 बजे और 9 बजे के बीच यीशु द्वारा क्रॉस पर अपनी मृत्युपूर्व तीन घंटों में दिए गए सात अमरवाणियों पर चिंतन किया जाता है।
इन अमरवाणियों का पारंपरिक क्रम निम्न है:
ल्यूक (Luke) 23:34: ‘हे पिता इन्हें क्षमा कर, क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।’
ल्यूक (Luke) 23:43: ‘मैं तुमसे सच कहता हूँ कि आज तुम मेरे साथ स्वर्गलोक में होंगे।’
जॉन (John) 19: 26–27: ‘हे नारी देख, तेरा पुत्र। (शिष्य से कहते हैं) देख, तेरी माता।’
मैथियु (Matthew) 27:46 और मार्क (Mark) 15:34: ‘हे मेरे परमेश्वर, आपने मुझे क्यों छोड़ दिया?’
जॉन (John) 19:28: ‘मैं प्यासा हूं।’
जॉन (John) 19:30: ‘यह समाप्त हो गया है।’
ल्यूक (Luke) 23:46: ‘हे पिता, मैं अपनी आत्मा आपके हाथों में सौंपता हूं।’
परंपरागत रूप से, इन सात अमरवाणियों को “1. क्षमा, 2. मुक्ति, 3. संबंध, 4. त्याग, 5. संकट, 6. विजय और 7. पुनर्मिलन” के शब्द कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि ज्यूइश पुजारी (Jewish priest) अल्फोंस मेसिया द्वारा पेरू के लीमा में इस भक्ति का चिंतन किया गया था और तब इन्हें 1788 के आसपास रोम में पेश किया गया और इसके बाद ही इन वाणियों के चिंतन करने की प्रथा पूरे विश्व भर में कई ईसाई संप्रदायों में फैल गई थी। 1815 में, पोप पायस VII ने गुड फ्राइडे के दिन इन अमरवाणियों का अभ्यास करने वालों के लिए एक पूर्ण भोग रखने का फैसला किया था।
वहीं यीशु के इन अंतिम स्पष्ट शब्दों को इतना महत्वपूर्ण इसलिए माना जाता है क्योंकि ये शब्द हमें यह समझ प्रदान करते हैं कि यीशु के लिए आखिरकार किस चीज का महत्व था। 16 वीं शताब्दी के बाद से इन सात अमरवाणियों का गुड फ्राइडे पर धर्मोपदेशों में इनका व्यापक रूप से उपयोग किया जाने लगा और कई पुस्तकें इनके वैज्ञानिक विश्लेषण पर भी लिखी गई हैं। ये सात अंतिम अमरवाणियां ईसाई शिक्षाओं और उपदेशों की एक विस्तृत श्रृंखला का विषय भी रहे हैं और कई लेखकों द्वारा भी विशेष रूप से यीशु के अंतिम वाणियों के लिए समर्पित पुस्तकें भी लिखी हैं।
संदर्भ :-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Sayings_of_Jesus_on_the_cross
2. https://timesofindia.indiatimes.com/city/lucknow/prayers-tableau-to-mark-good-friday/articleshow/63541020.cms
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Christianity_in_Uttar_Pradesh
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Three_Hours%27_Agony
चित्र सन्दर्भ:
1. Prarang Archive
2. Prarang Archive
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