भारत में मनाए जाने वाले हर त्यौहार के पीछे कोई न कोई कारण और प्रभाव अवश्य ही छिपा रहता है और ऐसा ही एक त्यौहार होली का भी है, जिसे प्रेम, भाईचारे और एकता के प्रतीक के रूप में हर वर्ष सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है। यह पर्व सभी प्रकार के भेदों को मिटाकर समाज को एकता के सूत्र में बांधने का प्रयास करता है। बच्चे-बड़े, महिला-पुरूष, जाति और पंथ के बीच के भेदों को मिटाकर इस दिन सबको समान भाव से देखा जाता है। होली जहां रंगों का त्यौहार है, वहीं वसंत ऋतु की शुरुआत का भी प्रतीक है। पूर्वी राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल और ओडिशा में यह पर्व एक दिन पहले मनाया जाता है, जबकि उत्तरी उत्तर प्रदेश राज्य के कुछ हिस्सों में, यह उत्सव एक सप्ताह से भी अधिक समय तक मनाया जाता है।
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इस त्यौहार की किवदंती दानव राजा हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के दहन से जुडी हुई है। माना जाता है कि जब हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद ने अपने पिता को ब्रह्मांड का शासक न मानकर भगवान विष्णु को ब्रह्मांड का शासक माना, तब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका के साथ एक साजिश रची, जिसमें वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग की लपटों पर बैठी। चूंकि होलिका को आग से न जलने का वरदान प्राप्त था इसलिए हिरण्यकश्यप को लगा कि प्रह्लाद को मारने की यह साजिश सफल होगी, किंतु परिणाम उल्टा हुआ। प्रह्लाद तो बच गया लेकिन होलिका पूर्ण रूप से जल गयी क्योंकि वह केवल तब ही बच सकती थी जब वह अकले आग में बैठी होती। इस प्रकार बुराई पर अच्छाई की जीत हुई और पाप का अंत हुआ। पर्व से ठीक एक दिन पहले होलिका दहन की प्रक्रिया की जाती है तथा अगले दिन रंगों से होली खेली जाती है।
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रंगीन पाउडर और पानी फेंकने की परंपरा राधा और कृष्ण की पौराणिक प्रेम कहानी से उत्पन्न हुई है। माना जाता है कि सांवले कृष्ण ने जब राधा के गोरे रंग के बारे में अपनी माँ से शिकायत की तो बेटे की उदासी को कम करने के लिए, उनकी माँ ने उन्हें राधा की त्वचा को रंग से रंगने को कहा। इस प्रकार तब से प्रियजनों को रंग लगाने की यह परंपरा चली आ रही है। होली का लुफ्त जहां भारतीय लोग उठाते हैं, तो वहीं विदेशों से आये पर्यटक भी होली की इन छुट्टियों का आनंद लेते हैं। होली की सबसे खास बात यह है कि यह तुल्यकारक की भूमिका निभाती है। वर्तमान समय में विभिन्न कारकों की वजह से लोगों की बीच स्थापित दूरियों को कम करने में यह पर्व सहायक बना है। आय, जाति, पेशा और धर्म प्रतीकात्मक रूप इस दिन गायब हो जाते हैं। हिंदू धर्म के लोगों के साथ-साथ अन्य धर्म के लोग भी इस पर्व में शामिल होते हैं, जिसका उदाहरण लखनऊ में मनायी जाने वाली होली से लिया जा सकता है। चौक बाज़ार, अकबरी गेट, राजा बाज़ार आदि स्थानों पर होली के दिन हिंदू-मुस्लिम एकता के सुंदर दृश्य को अवश्य देखा जा सकता है। कई मुस्लिम कवियों द्वारा होली की सुंदरता को उनकी कविताओं में भी दर्शाया गया है।
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कवि मीर लखनऊ की होली से बहुत प्रभावित थे और यह प्रभाव उनकी कविताओं में भी दिखाई देता है, जैसे उनकी कविताओं की कुछ पंक्तियां निम्न प्रकार हैं:
आओ साथी बहार फिर आई
होली में कितनी शदियां लायी
जिस तरफ देखो मार्का सा है
शहर हा या कोई तमाशा है
थाल भर भर अबीर लाते हैं
गुल की पत्ती मिला उड़ाते हैं
इसी प्रकार अवध के आखरी नवाब, वाजिद अली शाह द्वारा होली के संदर्भ में लिखी गयी कुछ पंक्तियां निम्न प्रकार हैं,
मोरे कान्हा जो आये पलट के
अबके होली मई खेलूंगी डट के
उनके पीछे मई चुपके से जाके
ये गुलाल अपने तन से लगाके
रंग दूंगी उन्हें भी लिपट के
संदर्भ:
https://edition.cnn.com/travel/article/holi-festival-india/index.html
https://www.forbes.com/sites/paullaudicina/2018/03/01/holi-inclusive-growth-and-indias-future/#1622324863e7
https://triangulations.wordpress.com/2012/03/15/holi-holi-holi-a-hindu-holiday/
https://lucknow.prarang.in/posts/2605/Holi-of-L