औपनिवेशिक काल से पूर्व भारत में अनेक शासक उभरे। कुछ भारतीय तो कुछ बाहर से आकर यहां के शासक बने, जिस कारण भारत का एकीकरण और विखण्डन होता रहा। जैसे मुगल साम्राज्य के दौरान भारत का अधिकांश हिस्सा इनके नियंत्रण में आ गया था। किंतु इसके टूटने के बाद भारत अनेक छोटी- छोटी रियासतों में बंट गया। इसी दौरान भारत में ब्रिटिशों का प्रवेश हुआ, जिन्होंने भारत की स्थिति को देखते हुए ‘फूट डालो राज करो की नीति’ को अपनाया। जिसके चलते सर्वप्रथम भारत-बांग्लादेश का विभाजन कर दिया गया और जाते-जाते इन्होंने 14 अगस्त 1947 को भारत पाकिस्तान का भी विभाजन कर दिया।
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1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद तक भारत लगभग 584 छोटी-छोटी रियासतों में विभाजित था, जिनमें से अधिकांश प्रिंसली स्टेट (Princely States) (ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का हिस्सा) थे तथा कुछ हिन्दू राजाओं और मुस्लिम नवाबों के नियंत्रण में थे। इन रियासतों में से 118 (113 वर्तमान भारत की, 4 पाकिस्तान की और सिक्किम) को बंदूकों की सलामी प्राप्त थी। जनवरी 1948 से जनवरी 1950 के मध्य भारत का एकीकरण किया गया। जिसमें लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल की विशेष भूमिका रही। एकीकरण के अंतर्गत शर्त रखी गयी कि यह रियासतें भारत या पाकिस्तान में से एक के साथ विलय कर लें। इस विलय के अंतर्गत किसी भी राजा या नवाब की संपत्ति या पद पर किसी प्रकार का अधिग्रहण नहीं किया जाना था। जिसके बाद लगभग सभी वर्तमान भारतीय रियासतें, भारतीय संघ में शामिल हो गयीं, किंतु पांच रियासतों त्रावणकोर, जोधपुर, भोपाल, हैदराबाद और जूनागढ़ ने इसका विरोध किया।
त्रावणकोर: यह एक दक्षिणी भारतीय समुद्री राज्य था जो आर्थिक दृष्टि से काफी समृद्ध था। त्रावणकोर के दीवान सर सी. पी. रामस्वामी अय्यर (पेशे से वकील) ने भारत के साथ विलय से साफ इनकार कर दिया। कहा जाता है कि अय्यर के ब्रिटिश सरकार के साथ गुप्त संबंध थे तथा वे इनके साथ मज़बूत व्यापारिक संबंध बनाना चाहते थे। दीवान जुलाई 1947 तक अपने पद पर बने रहे, केरल सोशलिस्ट पार्टी (Kerala Socialist Party) के एक सदस्य द्वारा उन पर किेए गए आत्मघाती हमले से बचने के बाद उन्होंने भारत में शामिल होने का निर्णय लिया। 30 जुलाई 1947 को त्रावणकोर भारत में शामिल हुआ।
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जोधपुर: यह भले ही हिन्दू बाहुल्य वाला क्षेत्र था, फिर भी इसका पाकिस्तान की ओर एक विचित्र झुकाव था। इसको पाकिस्तान के साथ मिलाने के लिए जिन्ना ने यहां के राजकुमार को लुभाने का हर संभव प्रयास किया, जिसकी खबर सरदार पटेल को हो गयी। उन्होंने तुरंत यहां के राजकुमार से संपर्क किया और उन्हें आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने के साथ-साथ पाकिस्तान के साथ विलय के बाद होने वाली समस्याओं से भी अवगत कराया। अंततः वे भी भारतीय संघ में शामिल हो गए।
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भोपाल: यहां के नवाब, हामिदुल्ला खान थे, जो एक बड़ी हिन्दू आबादी पर शासन कर रहे थे। नवाब मस्लिम लीग (Muslim League) के समर्थक और कांग्रेस के कट्टर विरोधी थे। बाद में नवाब को उन राजकुमारों के विषय में पता चला जिन्होंने भारत के साथ विलय कर लिया था, अंततः इन्होंने भी भारत में विलय का निर्णय लिया।
हैदराबाद: भौगोलिक दृष्टि से हैदराबाद भारत का एक अभिन्न अंग था। जिसके नवाब निज़ाम मीर उस्मान अली ने ब्रिटिशों के समक्ष स्वतंत्र रहने का निर्णय ले लिया था। निज़ाम ने जिन्ना का समर्थन किया क्योंकि इन्होंने भारत के सबसे पुराने मुस्लिम राजवंश की रक्षा करने का वचन दिया था। हालांकि समय के साथ हैदराबाद में नियमित रूप से हिंसा और प्रदर्शन होने लगे। जून 1948 में लॉर्ड माउंटबेटन ने इस्तीफा दे दिया, अब कांग्रेस सरकार ने एक निर्णायक मोड़ लेने का फैसला किया। 13 सितंबर को भारतीय सैनिकों को 'ऑपरेशन पोलो' (Operation Polo) के नाम से हैदराबाद भेजा गया था। लगभग चार दिन तक चली सशस्त्र मुठभेड़ के बाद भारतीय सेना ने राज्य पर पूरा नियंत्रण कर लिया। परिणामस्वरूप निज़ाम ने समर्पण कर लिया तथा उनके इस समर्पण के लिए उन्हें पुरस्कार स्वरूप हैदराबाद का राज्यपाल बनाया गया।
जूनागढ़: गुजराती राज्य जूनागढ़ ने भी भारतीय संघ को स्वीकार नहीं किया था। काठियावाड़ राज्यों के समूह में जूनागढ़ सबसे महत्वपूर्ण था। यहां भी, नवाब, मुहम्मद महताब खानजी तृतीय ने बड़ी संख्या में हिंदू आबादी पर शासन किया था। इनका झुकाव भी पाकिस्तान की ओर था। जूनागढ़ में अशांति का माहौल बना हुआ था। आगे चलकर इसकी आर्थिक स्थिति भी बिगड़ने लगी। परिणामस्वरूप नवाब कराची भाग गया। और वल्लभभाई पटेल ने सैन्य माध्यम से जूनागढ़ पर कब्ज़ा करवा लिया। 20 फरवरी, 1948 को राज्य में एक जनमत संग्रह आयोजित किया गया जिसमें 91% मतदाताओं ने भारत में शामिल होने का फैसला किया। इस प्रकार भारतीय संघ ने एक पूर्ण रूप धारण किया और आज भी इसकी एकता बरकरार है।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Princely_state
2.http://www.worldstatesmen.org/India_princes_A-J.html
3.https://indianexpress.com/article/research/five-states-that-refused-to-join-india-after-independence/