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मानव शरीर में प्रकृति प्रदत्त प्रतिरक्षा प्रणाली होती है, जो हमारे शरीर में एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करती है। हालांकि हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली बाह्य रोगजनकों को रोकने में सक्षम है, किंतु वर्तमान परिवेश में हो रहे परिवर्तनों के कारण रोगजनक काफी प्रबल होते जा रहे हैं, जो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित कर रहे हैं तथा गंभीर बीमारियों का स्त्रोत बन रहे हैं। इन रोगजनकों के कारण हुयी संक्रामक बीमारियों से मृत्यु दर में वृद्धि हो रही है। इसलिए प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूती प्रदान करने हेतु बच्चों का टीकाकरण किया जा रहा है। आज भारत में ही नहीं वरन् विश्व स्तर पर चलाए जाने वाले स्वास्थ्य जागरूकता अभियानों के मुख्य विषयों में टीकाकरण भी शामिल होता है। बच्चों के शरीर में रोग प्रतिरक्षण हेतु टीके लगाए जाते हैं, जिससे बच्चों के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि हो तथा समुदाय के स्वास्थ्य के स्तर में सुधार हो।
हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली कई सारी कोशिकाओं से मिलकर बनी होती है। कोशिकाएं हानिकारक रोगाणुओं की पहचान कर इनसे हमारे शरीर को बचाती हैं तथा इन्हें शरीर से बाहर निष्कासित करती हैं। टीकाकरण इन कोशिकाओं की रोगों को पहचानने में मदद करता है तथा शरीर को रोगजनकों के विरूद्ध रोग-प्रतिकारक बनाने के लिए प्रेरित करता है। खसरा, टिटनेस (Tetanus), पोलियो (Polio), काली खांसी जैसी भयावह संक्रामक बीमारियों की रोकथाम हेतु टीकाकरण किया जाता है। इन सभी बीमारियों में पोलियो के अतिरिक्त सभी टीके इंजेक्शन (Injection) द्वारा दिए जाते हैं। अधिकांश टीके दो भागों, प्रतिजन और सहायक के रूप में लगाए जाते हैं। जिनमें से एक रोग को पहचानने में मदद करता है, तो दूसरा उससे बचाने में सहायक होता है। टीकाकरण की विस्तृत सूची इस प्रकार है:
कई अनुसंधानों के पश्चात यह पुष्टि की गयी है, कि यह टीके सुरक्षित हैं और इसके कोई दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिलते हैं। यदि कोई हों भी तो वह बहुत सूक्ष्म मात्रा में होते हैं। भारत में टीकाकरण के प्रति विशेष जागरूकता फैलाई जा रही है, किंतु फिर भी क्षेत्रानुसार इसके अनुपात में भिन्नता देखने को मिलती है।विगत कुछ वर्ष पूर्व लखनऊ में टीकाकरण को लेकर एक सर्वेक्षण किया गया, जिसका उद्देश्य टीकाकरण के प्रति जागरूकता को बढ़ाना तथा इस अभियान का विस्तार करने हेतु आवश्यक सुधार करना तथा यह जानना था कि कितने लोगों की टीकाकरण तक पहुंच हो गयी है। इस सर्वेक्षण की अवधि 6 महीने (जुलाई 2012 – दिसम्बर 2012) थी। प्राप्त परिणाम कुछ संतोषजनक नहीं थे। यह सर्वेक्षण शहरी स्वास्थ्य और प्रशिक्षण केंद्र (यू.एच.टी.सी.), एरा के लखनऊ मेडिकल कॉलेज द्वारा करवाया गया। इस अध्ययन में 12-23 महीने की आयु के कुल 198 बच्चों (100 पुरुष और 98 महिलाएँ) को शामिल किया गया। कुल 80.8% बच्चे मुस्लिम और 19.2% हिंदू थे। कुल मिलाकर 76.8% बच्चे एकल परिवारों से संबंधित थे और 23.2% संयुक्त परिवारों के थे। अधिकांश बच्चों के माता-पिता शिक्षित थे। केवल 37.4% पिता और 22.2% माताएँ निरक्षर थीं। इस परिक्षण हेतु पुर्वनिर्धारित प्रश्नावली का सहारा लिया गया।
आंकड़ों का एक्सेल शीट (Excel Sheet) में एकत्रिकरण कर सारणीबद्ध किया गया और प्रतिशत की गणना के लिए SPSS 17.0 संस्करण का उपयोग करके विश्लेषण किया गया, तथा विभिन्न सांख्यिकीय संघों का पता लगाने के लिए ची-स्क्वायर (Chi-square) परीक्षण लागू किया गया था। अध्ययन में पाया गया कि, 74.7% बच्चों का पूरी तरह से टीकाकरण किया गया था, 11.1% को आंशिक रूप से टीकाकरण किया गया और 14.1% को बिल्कुल भी टीकाकरण नहीं किया गया था। आंशिक या गैर-टीकाकरण के सामान्य कारण पारिवारिक समस्याएं (24%), टीकाकरण के विषय में कम जानकारी (20%), और दुष्प्रभाव का डर (16%) बताए जा रहे थे। माता की अशिक्षा भी टीकाकरण में आयी कमी का एक प्रमुख कारण है।
हालांकि अध्ययन में, अधिकांश बच्चों का टीकाकरण किया गया था, फिर भी यह संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। हमें इसे 100% करना होगा, ताकि हम टीकाकरण के माध्यम से इसके अंतर्गत आने वाले संक्रामक रोगों के कारण होने वाली मृत्यु दर को कम कर सकें। जिसके लिए जागरूकता को बढ़ाना सबसे अच्छा कदम है।
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