मेघदूत (कालीदास) का अमूक वर्णन रवि वर्मा की चित्रकारी में

द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
06-09-2018 03:52 PM
मेघदूत (कालीदास) का अमूक वर्णन रवि वर्मा की चित्रकारी में

आज के समय में चित्रकला की तकनीक बहुत विकसित हो गयी है। आजकल कम्प्युटर ग्राफिक्स (Computer Graphics) के ज़रिये कई रंग एक साथ डाल कर एक सुंदर चित्र का निर्माण कर दिया जाता है। लेकिन सौ साल पहले एक-एक चित्र को बनाने और उसमें सजावट करने में ही कई दिन और महीने लग जाते थे। उस समय चित्रों को रंगने का काम काफी अनुभव और साधना से किया जाता था, ताकि उनमें अंतर ना हो जाये। और इन अनुभवों द्वारा भारतीय चित्रकला को पूरे विश्व में प्रसिद्ध करने वाले थे राजा रवि वर्मा। भारतीय इतिहास में कला को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में राजा रवि वर्मा का योगदान अतुल्य रहा है।

चित्रकार राजा रवि वर्मा की कलाकृतियाँ अभी भी भारतीय घरों की बैठकों और कमरों में सजाई जाती हैं। 19वीं और 20वीं सदी में कालिदास की 1500 साल पहले लिखी हुई उत्कृष्ट कविता मेघदूत को रवि वर्मा द्वारा चित्रित चित्रों में पुनर्जीवित किया गया। मेघदूत की लोकप्रियता का शुद्ध परिणाम यह है कि भारतीय डाक द्वारा कालिदास का पुण्यस्मरण करने के लिये रवि वर्मा द्वारा बनाई छवियों को स्टाम्प के लिए चुना गया। आइए आज कालिदास की उत्कृष्ट मेघदूत की कहानी पर दोबारा गौर करें क्योंकि वर्तमान पीढ़ी के कई लोग जो इन चित्रों को अपने चारों ओर देखते हैं, न इस कविता और न ही इसकी कहानी को जानते हैं।

5वीं शताब्दी में कालिदास द्वारा 115 छंदों में रचित मेघदूत कविता दो हिस्सों में विभाजित की गयी है: ‘पूर्वमेघ’ और ‘उत्‍तरमेघ’, जो कि स्वर और रवैये में दो अलग-अलग हिस्से हैं। यह कविता दो प्रेमियों के प्रेम प्रसंग का वर्णन करती हैं, जिसमें एक यक्ष, जिन्हें अपने काम से विचलित रहने के कारण कुबेर द्वारा अल्कापुरी से निष्कासित कर, वर्ष-भर पत्‍नी का भारी विरह सहने का श्राप दे दिया जाता है। पहले भाग, पूर्वमेघ, में पहाड़ों, नदियों और मंदिरों के ऊपर से होते हुए अलकापुरी तक बादल के सफ़र की व्याख्या की गयी है और दूसरे भाग, उत्तरमेघ, में बादल द्वारा यक्ष की पत्नी को एक सन्देश दिया जाता है।

निष्कासित यक्ष रामगिरि पर्वत (जहाँ घने छायादार पेड़ और सीता जी के स्‍नानों द्वारा पवित्र हुए, जल-कुंड भरे हुए थे) पर अपनी प्रियतमा से दूर उस पर्वत शिखर पर निवास करने लगे। आठ महीने के विरह के बाद वर्षा ऋतु में उसे अपनी प्रियतमा की याद सताने लगती है। तभी उसे एक बादल दिखता है, जिसे वो अल्कापुरी में अपनी प्रियतमा तक संदेश पहुंचाने के लिये कहता है। कविता में वह बड़े संक्षेप में उस बादल को अल्कापुरी जाने का रास्ता बताता है, और कहता है कि मेरी प्रियतमा को कहना वह दुखी ना हो और वियोग की शेष अवधि जल्द खत्म हो जाएगी।

परन्तु यह कविता सिर्फ दो मनुष्यों के बीच की प्रेम कथा ही नहीं है, बल्कि यहाँ दो प्रेम कथा हैं। एक यक्ष और उसकी पत्नी के बीच की और दूसरी बादल, धरती और वहाँ के निवासियों के बीच की। कविता में कालिदास ने बड़ी ही खूबसूरती से बदल द्वारा अपनी राह पर पड़ने वाले स्थानों, नदियों, पहाड़ों, खेतों को स्पष्ट किया है और साथ ही वहाँ रहने वाली बालाओं को भी। हर स्थान की सुन्दरता की तुलना एक स्त्री की सुन्दरता के गुणों से की गयी है। यक्ष अपने सन्देश में कहते हैं कि हर स्थान अपने आप में इतना खूबसूरत है फिर भी ऐसा कोई स्थान नहीं है जो अकेला उसकी पत्नी की सुन्दरता को टक्कर दे सके। इस पूरी कहानी को रवी वर्मा द्वारा बड़ी ही खूबसूरती से अपनी कला के माध्यम से चित्र में दर्शाया गया है।

संदर्भ:

1. https://en.wikipedia.org/wiki/Meghad%C5%ABta
2. http://literarism.blogspot.com/2011/03/meghdootam-kalidasa.html
3. http://hypocritereader.com/31/story-of-a-yaksa/print
4. http://www.stampsathi.in/php/public/stamps-gallery.php?page=19
5. http://www.artvalue.com/auctionresult--bagchi-radha-charan-1910-1977-yaksha-pleading-to-the-clouds-1466640.htm

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