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भारत के प्रमुख शहरों की तरह लखनऊ में भी चाय के बजाय कॉफ़ी पीने की प्रथा रूढ़ हो रही है। स्टारबक्स जैसे अंतरराष्ट्रीय कैफ़े (Cafe) श्रृंखला ने हाल ही में अपना नया कॉफ़ीगृह लखनऊ में शुरू किया है। इस से पहले यहाँ पर इंडियन कॉफ़ी हाउस भी सन 1938 में स्थापित हुआ था जो सहकारी कॉफ़ी हाउस श्रृंखला में से एक है। इंडियन कॉफ़ीहाउस श्रृंखला की शुरुआत कॉफ़ी उपकर समिति ने 1936 में की थी क्यूंकि ब्रितानी शासकों ने जो कॉफ़ीगृह बनाये थे उसमें भारतीय लोगों को आना मना था, इसीलिए यह कॉफ़ीगृह बनाए गए कि हर भारतीय भी बिना किसी रोक-टोक के ऐसे कैफ़ेज़ (cafes) में बैठ सके। भारत में इस श्रृंखला के हर कॉफ़ीगृह के साथ इतिहास जुड़ा है। लखनऊ के इस कॉफ़ीगृह में भी भारत के प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर से लेकर अमेरिका के राजदूत हैरी बार्न्स भी आ चुके हैं।
कैफीन दुनिया में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली मनोवैज्ञानिक दवा है। कॉफ़ी रुबिएशिए (Rubiaceae) वंश का उष्णकटिबंधीय पौधा है तथा इसकी जाती कॉफ़ीया (Coffea) है। इसके दो प्रमुख प्रकार हैं: अरेबिका (Arabica) और रोबस्टा (Robusta)। अरेबिका से संपन्न, तीव्र सुगंध तथा स्वाद मिलता है और रोबस्टा से सस्ता, तेज और कड़वी सुगंध तथा स्वाद मिलता है। ज्यादातर व्यवसायिक तौर पर इन दोनों को मिलाके कॉफ़ी बनाई जाती है। इसकी झाड़ी ज्यादातर ऊंचाई पर उष्ण जलवायु में वर्षाबहुल क्षेत्र में बहुत अच्छे से उगती है। यह पौधा आधुनिक इथोपिया का देशज है जहाँ आज भी इसकी खेती होती है और यहाँ इसकी जंगली उपज भी बहुत है। शुरुआती दौर में कॉफ़ी के बीज चूसकर खाये जाते थे और बाद में इस पौधे के पत्ते और फल उबालकर कैफीन युक्त द्रव्य बनाया जाता था।
कॉफ़ी का सबसे पहला प्रमाण हमें अरब ग्रंथो से मिलता है। बहुत सालों तक इसका इस्तेमाल सिर्फ उत्तर अफ्रीका और दक्षिण पश्चिमी एशिया तक सीमित था। मुसलमान मौलवियों का यह पसंदीदा पेय बन गया था क्यूंकि इसे पीने के बाद वे रात में भी अपना अध्ययन शुरू रख सकते थे। इस्तानबुल में सन 1475 में कॉफ़ीगृह मौजूद था।
कॉफ़ी और चाय में एक प्रकार का युद्ध है जिसमें कुछ देशों में कॉफ़ी ज्यादा पसंद की जाती है और कुछ देशों में चाय। भारत में बहुतायता से चाय जो पहले हैसियत का लक्षण था आज जनसामान्यों का पेय माना जाता है और कॉफ़ी आज भी प्रतिष्ठित पेय मानी जाती है। कुछ देशों में यही बात बिलकुल उलटी है।
अरब शहरों से कॉफ़ी के बीज बाहर ले जाना निषिद्ध था, आप सिर्फ उसकी भुनी अथवा सेकी हुई फलियाँ ही ले जा सकते थे। भारत में इस्लामी संत बाबा बुदन ने यमन से मैसूर में आते वक़्त मक्का से गुजरते हुए 7 फलियाँ छुपाकर लायी जो उन्होंने फिर चंद्रगिरी पहाड़ी, चिकमंगलूर में बोयी। आज यह पहाड़ी बाबा बुदन गिरी के नाम से जानी जाती है और आज भी प्रमुख कॉफ़ी बागानों में से यह एक है। ब्रिटिश काल में ब्रिटिश गयाना के साथ भारत कॉफ़ी उत्पादन का एक प्रमुख केंद्र था। चाय के आने के बाद सन 1870 के करीब यह हौले-हौले कम हो गया जो सन 1970 से वापस बढ़ने लगा है। आज भारत का दक्षिणी भाग कॉफ़ी उत्पादन में आगे है और कुल 92% कॉफ़ी उत्पादन यहाँ से होता हैं। भारत में फ़िल्टर कॉफ़ी (Filter Coffee) बहुत प्रसिद्ध है जो व्यवसायिक तौर पर काफी सफल है, यह गहरे रंग के भुनी हुयी कॉफ़ी की फलियों (70-80%) और चिकोरी (30-20%) के मिश्रण से बनाई जाती है। सन 2010 के सरकारी विवरण के अनुसार भारत में उगने वाली कॉफ़ी में से 70-80% बाहर निर्यात की जाती है।
कॉफ़ी की उपज गहन श्रम का काम है, भारत में कॉफ़ी छाया के दो स्तर के निचे उगाई जाती है और इसका प्रसंस्करण दो तरीकों से होता है : आद्र करके अथवा शुष्क करके। इनकी फलियाँ हाथ से निकालनी पड़ती हैं क्युंकी वे क्रमिक रूप से पकती हैं। बहुतायता से बाहरी देशों में कॉफ़ी के बीज भुनने के लिए जहाँ उनकी खपत होती है वहाँ भेजी जाती हैं मगर भारत में निर्यात करने से पहले इन्हें भूना जाता है।
1. रिमार्केबल प्लांट्स दाट शेप आवर वर्ल्ड- हेलेन एंड विलियम बायनम, 138-141
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Coffee_production_in_India
3. http://www.lucknowpulse.com/2014/06/20/indian-coffee-house-hazratganj/
4. https://www.quora.com/Which-is-the-best-coffee-shop-in-Lucknow
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