यीशु के बलिदान, मुक्ति और पुनरुत्थान के प्रतीक हैं गुड फ़्राइडे और ईस्टर
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
18-04-2025 09:21 AM
लखनऊ के नागरिकों, आप सभी यह तो जानते हैं कि हमारे शहर का सेंट जोज़ेफ़ कैथेड्रल चर्च राज्य के प्रतिष्ठित चर्चों में से एक है। यह प्रतिष्ठित चर्च पवित्र सप्ताह के दौरान हमारे शहर में ईसाई धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत महत्व रखता है। ईसाई धर्म में पवित्र सप्ताह (Holy Week) ईस्टर (Easter) तक चलने वाला सप्ताह है, जो पाम संडे (Palm Sunday) से शुरू होता है और ईस्टर संडे में समाप्त होता है, जो यीशु के सूली पर चढ़ने, मृत्यु और पुनरुत्थान की याद दिलाता है। तो आइए, आज इस सप्ताह के प्रत्येक दिन के महत्व को विस्तार से समझते हुए, गुड फ़्राइडे (Good Friday) और ईस्टर से संबंधित प्रतीकवाद पर प्रकाश डालते हैं। इसके साथ ही, हम उत्तर प्रदेश के कुछ सबसे लोकप्रिय चर्चों के बारे में जानेंगे, जिनमें हमारे शहर का सेंट जोज़ेफ़ कैथेड्रल भी शामिल है। पवित्र सप्ताह के 7 दिन और उनका महत्व:
येरूसलेम में यीशु का प्रवेश | चित्र स्रोत : Wikimedia
पाम संडे (Palm Sunday): पाम संडे पवित्र सप्ताह का पहला दिन है। यह येरूसलेम में यीशु के प्रवेश का प्रतीक है जहां लोगों ने ताड़ की शाखाएं लहराकर उनका स्वागत किया और उनके प्रति अपनी भक्ति के संकेत के रूप में "होसन्ना" (Hosanna) के नारे लगाए।
पवित्र सोमवार (Holy Monday): पवित्र सोमवार के दिन, यीशु ने व्यापारियों और मुद्रा परिवर्तकों को मंदिर से बाहर निकालकर, उसे अशुद्धियों से साफ़ कर दिया। उन्हाने कहा, "मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा, परन्तु तुम ने उसे लुटेरों का अड्डा बना दिया है।"
पवित्र मंगलवार (Holy Tuesday): इस दिन, यीशु ने ओलिवेट प्रवचन दिया, जिसमें उन्होंने मंदिर के विनाश और उनके दूसरे आगमन की भविष्यवाणी की। उन्होंने अपने शिष्यों को अपने अंतिम समय के लिए तैयार रहने के महत्व के बारे में भी सिखाया।
पवित्र बुधवार (Holy Wednesday): पवित्र बुधवार को "जासूस बुधवार" (Spy Wednesday) के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि माना जाता है कि इसी दिन यहूदा इस्कैरियट चांदी के तीस टुकड़ों के लिए यीशु को धोखा देने के लिए तैयार हुआ था। 'बेथनी की मरियम' (Mary of Bethany) ने इसी दिन यीशु के पैरों पर कीमती इत्र भी लगाया, और उसे बालों से पोंछा था।
पुण्य गुरुवार का अनुष्ठान | चित्र स्रोत : Wikimedia
पुण्य गुरुवार (Maundy Thursday): पुण्य गुरुवार, वह दिन है जिस दिन यीशु ने अपने शिष्यों के साथ अपना अंतिम भोज साझा किया था। उन्होंने सेवक नेतृत्व के महत्व पर जोर देते हुए अपने शिष्यों के पैर भी धोए। इस भोजन के दौरान, यीशु ने 'यूचरिस्ट' (पवित्र भोज (Eucharist)) के संस्कार की स्थापना की।
गुड फ़्राइडे (Good Friday): गुड फ़्राइडे यीशु के सूली पर चढ़ने और मृत्यु का दिन है। इसी दिन रोमन अधिकारियों ने उनके साथ विश्वासघात किया, उन्हें गिरफ़्तार किया और मौत की सज़ा सुनाई। फिर उन्हें क्रूस पर चढ़ाया गया, जहां उनकी मृत्यु हुई, जो मानव जाति के उद्धार के लिए अंतिम बलिदान का प्रतीक है। यह ईसाइयों के लिए गंभीर शोक और चिंतन का दिन माना जाता है।
चित्र स्रोत : Wikimedia
पवित्र शनिवार (Holy Saturday): पवित्र शनिवार, वह दिन है जो यीशु के सूली पर चढ़ने और उनके पुनरुत्थान के बीच एवं शोक और चिंतन के समय को दर्शाता है। इसे 'ईस्टर विजिल' (Easter Vigil) के रूप में भी जाना जाता है, जिसके दौरान विश्वासी ईस्टर रविवार के जश्न की तैयारी करते हैं, जो यीशु के पुनर्जीवित होने का दिन माना जाता है।
गुड फ़्राइडे और ईस्टर संडे से संबंधित प्रतीकवाद:
गुड फ़्राइडे और ईस्टर संडे दोनों से ही कई प्रतीकवाद और परंपराएँ जुड़ी हैं जो उनके महत्व को और गहरा करते हैं।
क्रॉस (Cross): क्रॉस ईसाई धर्म का प्राथमिक प्रतीक है, जो यीशु के बलिदान और मुक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। कई ईसाई क्रॉस पहनते हैं या उन्हें यीशु के प्रेम और क्षमा की याद के रूप में अपने घरों और पूजा स्थलों पर रखते हैं।
ईस्टर अंडे (Easter Eggs); ये नए जीवन और पुनर्जन्म का प्रतीक होते हैं। अंडों को सज़ाने की प्रथा ईसाई धर्म से पहले की है और इसे यीशु के पुनरुत्थान के प्रतीक के रूप में ईस्टर समारोह में शामिल किया गया है। ईस्टर उत्सव के दौरान अंडा खोज और अंडा रोलिंग जैसी प्रतियोगिताएं अत्यंत लोकप्रिय हैं, खासकर बच्चों के बीच।
'ईस्टर बनी' (Easter Bunny): ये ईसाई संस्कृति का एक लोकप्रिय पात्र है, जो अक्सर, ईस्टर अंडों और उपहारों से जुड़ा होता है। यद्यपि इसकी उत्पत्ति स्पष्ट नहीं है, ईस्टर बनी छुट्टियों का एक प्रतीक बन गया है, जो रंगीन अंडे और उपहारों की डिलीवरी के माध्यम से बच्चों में खुशी और उत्साह लाता है।
पारंपरिक रीति-रिवाजों से परे, ईस्टर आध्यात्मिक नवीनीकरण और चिंतन का भी समय है। कई ईसाई ईसा मसीह के पुनरुत्थान के जश्न की तैयारी के लिए ईस्टर से पहले सप्ताह में उपवास, प्रार्थना और आत्म-परीक्षा करते हैं।
ईस्टर परंपरा | चित्र स्रोत : Wikimedia
भारत में कुछ लोकप्रिय पारंपरिक ईस्टर व्यंजन:
ईस्टर अंडे: दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह, ईस्टर अंडे भारतीय ईस्टर समारोहों में एक विशेष स्थान रखते हैं। ईस्टर ईसा मसीह के पुनरुत्थान का प्रतीक है और अंडे उस खाली कब्र का प्रतीक हैं जहां से वह नए सिरे से उभरे थे। भारतीयों ने स्थानीय रूपांकनों और डिज़ाइनों को शामिल करके इन ईस्टर अंडों में एक स्थानीय स्वाद जोड़ा है।
अंडा अप्पम | चित्र स्रोत : Wikimedia
केरल अप्पम: केरल में, ईस्टर भोजन अप्पम के बिना अधूरा है। यह पारंपरिक व्यंजन गहरा सांस्कृतिक महत्व रखता है और केरल में ईसाई परिवारों में ईस्टर नाश्ते का एक अभिन्न अंग है। इसे रात भर चावल के घोल को किण्वित करके पैनकेक के रूप में बनाया जाता है।
गोवा कुल्कुल: कुल्कुल या फ़ोफ़ोस सबसे लोकप्रिय ईस्टर भोजन व्यंजनों में से एक है जो विशेष रूप से गोवा के कैथोलिक घरों में बनाए जाते हैं। कुल्कुल बनाना एक पाक परंपरा है, जो अक्सर पीढ़ियों से चली आ रही है, जो ईस्टर समारोह के दौरान एकजुटता और एकता का प्रतीक है।
चित्र स्रोत : Wikimedia
पारंपरिक ईस्टर बिस्किट: भारत के कुछ क्षेत्रों में, विशेष रूप से एंग्लो-इंडियन समुदायों में, ईस्टर बिस्किट एक विशेष ईस्टर भोजन के रूप में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ये रोज़मर्रा के मीठे या नमकीन बिस्किट नहीं हैं क्योंकि इन्हें दालचीनी, जायफल और लौंग जैसे गर्म मसालों का उपयोग किया जाता है। ईस्टर बिस्किट ईस्टर उत्सव के दौरान साझा की जाने वाली खुशी और एकता का प्रमाण हैं।
मांस के व्यंजन: पूरे भारत में ईस्टर दावतों में मांस के व्यंजन प्रमुखता से शामिल होते हैं। केरल में ईस्टर रात्रिभोज के लिए, भुने हुए मसालों और नारियल से बनी एक समृद्ध और सुगंधित चिकन करी 'वरुथाराचा चिकन करी' बनाई जाती है। गोवा में एक पसंदीदा ईस्टर भोजन सोरपोटेल (Sorpotel) है, जो सिरका और मसालों से युक्त एक मसालेदार पोर्क स्टू है। इनके अलावा, अन्य क्षेत्रीय ईस्टर व्यंजन भी इस त्योहार के पाक परिदृश्य में गहराई और विविधता जोड़ते हैं। उदाहरण के लिए, पूर्वोत्तर भारत में ईसाई समुदाय द्वारा, खासकर नागालैंड और मणिपुर जैसे राज्यों में, स्मोक्ड पोर्क विद बैम्बू शूट्स और नगा-थोंगबा जैसी पोर्क तैयारियों का आनंद लिया जाता है।
उत्तर प्रदेश में कुछ सबसे लोकप्रिय चर्च:
चित्र स्रोत : Wikimedia
सेंट जोज़ेफ़ कैथेड्रल, लखनऊ (St. Joseph Cathedral Lucknow): लखनऊ का सेंट जोज़ेफ़ कैथेड्रल चर्च, हज़रतगंज में स्थित है। यह लखनऊ के सबसे प्रमुख चर्चों में से एक है, जिसकी स्थापना 1862 में हुई थी। इस चर्च की अर्धचंद्राकर संरचना इसे लखनऊ का सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बनाती है। इसमें ईसा मसीह की एक मूर्ति है। एक लंबा स्तंभ ऊपर के अर्धचंद्र और क्रॉस को अलग करता है। सेंट जोज़ेफ़ कैथेड्रल चर्च का रंग ग्रे है, जबकि क्रॉस और जीसस की आकृति सफेद है। यह सुबह 7:00 बजे खुलता है और शाम 6:30 बजे बंद हो जाता है।
चित्र स्रोत : Wikimedia
ऑल सेंट्स कैथेड्रल, प्रयागराज (All Saints Cathedral, Prayagraj): प्रयागराज में स्थित ऑल सेंट्स चर्च, जिसे पत्थर गिरिजा (पत्थरों का चर्च) भी कहा जाता है, एक रोमन प्रोटेस्टेंट चर्च है। यह एशिया के बेहतरीन एंग्लिकन कैथेड्रल में से एक है, जिसे ब्रिटिश वास्तुकार सर विलियम एमर्सन द्वारा 13वीं शताब्दी की गॉथिक शैली में डिज़ाइन किया गया था। इसे आधिकारिक तौर पर 1887 में समर्पित किया गया था। यह प्रसिद्ध चर्च 1970 से उत्तर भारत के चर्च के साथ जुड़ा हुआ है।
सेंट जॉर्ज चर्च, आगरा (St. George's Church, Agra): ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान 1828 में आगरा में निर्मित सेंट जॉर्ज कैथेड्रल, अपने असाधारण गैर-गॉथिक डिज़ाइन के लिए जाना जाता है। इस शानदार संरचना का निर्माण कर्नल जे. टी. बोइल्यू द्वारा कराया गया था। यह चर्च, आगरा सूबा के अंतर्गत आता है और शहर के सबसे पुराने चर्चों में से एक है। सेंट जॉर्ज चर्च, आगरा की छावनी के क्षेत्र में स्थित है।
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