आखिर कैसे लखनऊ वासियों को एक अच्छी किस्म की भेड़, सालाना लाखों की आमदनी दे सकती?

स्तनधारी
21-04-2025 09:22 AM
आखिर कैसे लखनऊ वासियों को एक अच्छी किस्म की भेड़, सालाना  लाखों की आमदनी दे सकती?

नवाबी शहर लखनऊ की गलियों में जब टुंडे कबाब की खुशबू हवा में घुलती है, तब यह शहर अपनी समृद्ध खानपान विरासत की कहानी खुद बयाँ करता है। मटन कोरमा, काकोरी कबाब, बोटी कबाब, लखनवी बिरयानी—यह सब लखनऊ की शाही रसोई से निकले ऐसे जायके हैं, जिनका स्वाद एक बार चखने के बाद भूल पाना मुश्किल है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जिस भेड़ के स्वादिष्ट मांस से ये लज़ीज़ व्यंजन बनते हैं, उसका पालन-पोषण किन क्षेत्रों में किया जाता है? उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र, खासकर जालूनी नस्ल की भेड़ के पालन का एक अहम केंद्र माना जाता है। आज के इस लेख में, हम भारत में भेड़ पालन के फ़ायदे समझें। हम जानेंगे कि कैसे यह व्यवसाय सिर्फ किसानों की आजीविका ही नहीं, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा को भी मजबूत करता है। फिर हम कुछ प्रमुख भारतीय भेड़ नस्लों, जैसे  दक्कनी, नेल्लोर, गद्दी और मारवाड़ी पर प्रकाश डालेंगे। अंत में हम, यह भी जानेंगे कि हमारे अपने शहर में भेड़ पालन व्यवसाय कैसे शुरू किया जा सकता है! 
क्या आपको पता है कि गंभीरता से लेने पर भेड़ पालन एक बहुउद्देशीय और लाभदायक व्यवसाय साबित होता है। यह भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाता है। 

चित्र स्रोत : Wikimedia 

 आइए जानते हैं कैसे?

  • किसानों के लिए एक बहुमूल्य संसाधन: भेड़ें भारतीय किसानों के लिए किसी बहुमूल्य संपत्ति से कम नहीं हैं। वे मांस, ऊन और चमड़े के साथ-साथ खाद और कुछ मात्रा में दूध भी प्रदान करती हैं। कुछ क्षेत्रों में इनका उपयोग परिवहन के लिए भी किया जाता है। इतनी सारी विशेषताओं के कारण भेड़ पालन करना भारत की कृषि अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है।
  • आय के कई स्रोत: भेड़ पालन से किसानों को हर साल ऊन, मांस और खाद के रूप में आय के तीन मुख्य स्रोत मिलते हैं। इससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और उन्हें एक स्थिर आमदनी मिलती है। यह व्यवसाय कम निवेश में भी अच्छा मुनाफ़ा दे सकता है।
  • हर समुदाय में मांस की मांग: भारत में मटन को लगभग सभी समुदायों में खाया जाता है।  इसी कारण किसानों को एक विशाल और पूर्वाग्रह-मुक्त बाज़ार मिल जाता है। धार्मिक या सांस्कृतिक बाधाओं के बिना, वे आसानी से अपने उत्पाद बेच सकते हैं और अच्छा लाभ कमा सकते हैं।
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  • लाखों लोगों की आजीविका का सहारा: भेड़ पालन से होने वाले फ़ायदे केवल किसानों तक ही सीमित नहीं है। किसानों के अलावा भी यह लाखों लोगों के जीवनयापन का अहम् हिस्सा हैं। इसमें चरवाहे, ऊन कतरने वाले, चमड़ा प्रसंस्करण करने वाले और प्रवासी मजदूर भी शामिल हैं। भारत में लगभग 30 लाख लोग इस उद्योग से जुड़े हुए हैं और अपनी रोज़ी-रोटी कमा रहे हैं।
  • पर्यावरण के अनुकूल पशुपालन: बकरियों की तरह, भेड़ें पेड़ों को नुकसान नहीं पहुंचातीं। वे प्राकृतिक रूप से चरती हैं और पर्यावरण के साथ संतुलन बनाए रखती हैं। इस कारण से, भेड़ पालन एक टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प बन जाता है।
  • बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने में सहायक: भेड़ें ऐसी घास और खरपतवार को भी खा सकती हैं, जिन्हें दूसरे पशु नहीं खाते। इससे बंजर भूमि उपजाऊ बनती है और मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है। इस तरह वे अनुपयोगी ज़मीन को हरे-भरे चरागाह में बदल सकती हैं।
  • प्राकृतिक खाद का उत्तम स्रोत: भेड़ का गोबर पोषक तत्वों से भरपूर होता है। यह एक बेहतरीन जैविक खाद के रूप में काम करता है। भेड़ें सूखी और कम उपजाऊ ज़मीन पर भी जीवित रह सकती हैं। उनके मल से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है, जिससे पौधों की वृद्धि तेज़ हो जाती है। इसलिए भेड़ पालन किसानों के लिए बहुत फ़ायदेमंद साबित होता है, खासकर उन क्षेत्रों में, जहां रासायनिक उर्वरक कारगर नहीं होते। 
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भारत में कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्य भेड़ पालन के मामले में सबसे आगे हैं। इसके प्रमुख कारण यह है कि इन राज्यों की आदर्श जलवायु और चरागाहों की स्थिति इस व्यवसाय के लिए अनुकूल साबित होती है! यहाँ अगर सही योजना और देखभाल के साथ भेड़ पालन किया जाए, तो यह किसानों के लिए स्थिर आमदनी का अच्छा जरिया साबित हो सकता है।

एक भेड़ से कितनी कमाई हो सकती है?

औसतन, एक भेड़ से सालाना ₹4000-₹5000 की कमाई की जा सकती है   तक की कमाई की जा सकती है। भेड़ों का मटन बाज़ार में अच्छी कीमत पर बिकता है! इसकी कीमत ₹100-₹200   प्रति किलो होती है और बाज़ार की मांग के अनुसार बदल सकती है। अगर आपके पास 100 या उससे अधिक भेड़ें हैं, तो यह व्यवसाय और भी ज़्यादा फ़ायदेमंद हो सकता है।

भेड़ पालन का एक और बड़ा फायदा इसकी खाद से होने वाली अतिरिक्त कमाई है। भेड़ की खाद जैविक और पोषक तत्वों से भरपूर होती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। बाज़ार में इसकी कीमत ₹1,500    प्रति तन होती है जिससे किसान लगभग ₹ 50,000 कमा सकते हैं।  

क्यों अपनाएं भेड़ पालन?

अगर आप खेती से अतिरिक्त आमदनी चाहते हैं, तो भेड़ पालन एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है। सही प्रबंधन और तकनीकों के साथ, यह व्यवसाय किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बना सकता है। कम लागत में ज़्यादा मुनाफ़ा देने वाला यह व्यवसाय भविष्य में भी टिकाऊ और लाभदायक साबित हो सकता है।

भारत में भेड़ पालन मुख्य रूप से ऊन और मांस उत्पादन के लिए किया जाता है। विभिन्न जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियों के कारण अलग-अलग राज्यों में भेड़ों की कई नस्लें विकसित हुई हैं, जिनकी अपनी-अपनी विशिष्ट विशेषताएँ हैं। 

भेड़ की चार नस्लें | चित्र स्रोत : wikimedia

आइए, भारत की कुछ प्रमुख भेड़ नस्लों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

1.  दक्कनी भेड़ (Deccani Sheep)– ऊन और मांस उत्पादन में कुशल: डेक्कनी भेड़ महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में पाई जाती है और इसे एक अनोखी नस्ल माना जाता है। यह राजस्थान की ऊनी भेड़ों और दक्षिण भारत की रोएँदार भेड़ों के मिश्रण से विकसित हुई है।

🔹 पहचान: ये भेड़ें गहरे रंग की होती हैं और आकार में मध्यम होती हैं।

🔹 प्रमुख विशेषताएँ:

इसे मुख्य रूप से ऊन और मेमनों के उत्पादन के लिए पाला जाता है।

प्रति भेड़ से सालाना औसतन 5 किलोग्राम ऊन प्राप्त होता है।

यह नस्ल, खुले चरागाहों में चरने के लिए अनुकूल होती है।

2. नेल्लोर भेड़ (Nellore Sheep) – भारत की सबसे लंबी भेड़ नस्ल: नेल्लोर भेड़ मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पाई जाती है। इसे भारत की सबसे लंबी भेड़ नस्लों में से एक माना जाता है।

🔹 पहचान: इनका शरीर लंबा और बकरी जैसा दिखता है, और त्वचा पर बाल अपेक्षाकृत कम होते हैं।

🔹 प्रमुख विशेषताएँ:

इनकी लंबी टांगें और बड़े कान इसे अन्य नस्लों से अलग बनाते हैं।

इनमें गर्म और शुष्क जलवायु में भी अनुकूलन की क्षमता होती है।

इन्हें मुख्य रूप से मांस उत्पादन के लिए पाला जाता है, क्योंकि इनके ऊन की गुणवत्ता कम होती है।

चित्र स्रोत : wikimedia

3. गद्दी भेड़  (Gaddi Sheep)– उत्तम ऊन उत्पादन के लिए प्रसिद्ध: गद्दी भेड़ें मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं। इस नस्ल को महीन और चमकदार ऊन के लिए जाना जाता है।

🔹 पहचान: यह नस्ल आकार में छोटी होती है, और नर भेड़ों के सींग होते हैं, जबकि मादाएँ सींग रहित होती हैं।

🔹 प्रमुख विशेषताएँ:

प्रति भेड़ से, सालाना औसतन 1.15 किलोग्राम ऊन प्राप्त होता है।

साल में तीन बार ऊन काटी जाती है, जिससे उच्च गुणवत्ता वाली ऊन प्राप्त होती है।

इनमें ठंडे इलाकों में कठोर जलवायु सहन करने की गज़ब की  क्षमता होती है।

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4. मारवाड़ी भेड़ (Marwari Sheep) – राजस्थान की पहचान: मारवाड़ी भेड़ें मुख्य रूप से राजस्थान के जोधपुर, जयपुर और बाड़मेर  ज़िलों में पाई जाती हैं। ये कठोर जलवायु में जीवित रहने और मांस और ऊन उत्पादन दोनों के लिए उपयुक्त होती हैं।

🔹 पहचान: इनका लंबा शरीर, काला चेहरा, उभरी हुई नाक और छोटी नुकीली पूंछ होती है।

🔹 प्रमुख विशेषताएँ:

कम पानी और सूखे इलाके में भी आसानी से जीवित रहती हैं।

प्रति भेड़ सालाना 1 से 1.25 किलोग्राम ऊन प्राप्त होता है।

 इनका ऊन अपेक्षाकृत  मोटा होताहै, जिससे दरियां, कालीन और ऊनी कपड़े बनाए जाते हैं।

यदि आप, लखनऊ में भेड़ पालन का व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं, तो इसके लिए सही योजना बनाना और ज़रूरी जानकारी होना बेहद जरूरी है।

चित्र स्रोत : wikimedia

 यहां हम आपको आसान भाषा में भेड़ पालन की पूरी प्रक्रिया समझाएंगे।

1. भेड़ की सही नस्ल का चयन करें: भेड़ पालन के लिए उचित नस्ल का चुनाव बहुत ज़रूरी है। कुछ नस्लें मांस उत्पादन के लिए उपयुक्त होती हैं, जबकि कुछ ऊन उत्पादन के लिए बेहतर होती हैं। यदि आप दोनों उद्देश्यों को पूरा करना चाहते हैं, तो ऊपर दी गई भेड़ों में से दोहरी उपयोगिता वाली नस्लें चुनें।

बेहतर उत्पादन और अधिक लाभ के लिए स्वस्थ और उच्च उत्पादकता वाली नस्लों का चयन करें।

2. सही स्थान का चुनाव करें

भेड़ पालन के लिए ऐसी जगह चुनें, जहां:

✔ पानी का जमाव न हो और जमीन थोड़ी ऊंचाई पर हो।

✔ खेत को जंगली जानवरों से सुरक्षित रखने की व्यवस्था हो।

✔ पशु चिकित्सा सहायता पास में उपलब्ध हो।

✔ अच्छी सड़क और परिवहन सुविधा हो ताकि आवश्यक सामान आसानी से मिल सके।

3. भेड़ों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए सही शेड बनाना जरूरी है: कम संख्या में भेड़ों के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री से शेड बनाया जा सकता है। व्यवसाय को बड़े स्तर पर बढ़ाने के लिए एस्बेस्टस शीट (Asbestos Sheet) की छत और 8-10  फ़ीट ऊंची दीवारों वाला शेड उपयुक्त रहेगा। शेड को लकड़ी या सीमेंट से मजबूत बनाया जाना चाहिए। यदि गहरे बिछावन (Deep Litter) पद्धति का उपयोग कर रहे हैं, तो धान की भूसी का उपयोग किया जा सकता है।

4. चारा प्रबंधन पर ध्यान दें: भेड़ों के अच्छे स्वास्थ्य और उत्पादन के लिए उचित चारा प्रबंधन आवश्यक है। हरे चारे के साथ-साथ पोषक तत्वों से भरपूर संकेंद्रित चारा (Concentrate Feed) देना चाहिए। चारे की मात्रा भेड़ की उम्र और जरूरत के अनुसार तय करनी चाहिए।  विशेष ध्यान दें कि गर्भवती भेड़ों और दूध पिलाने वाली भेड़ों को अतिरिक्त पोषण मिले।

कुल मिलाकर लखनऊ में भेड़ पालन शुरू करने के लिए सही नस्ल, उपयुक्त स्थान, सुरक्षित आवास और संतुलित आहार का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। यदि आप इन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान देते हैं, तो यह व्यवसाय आपके लिए फ़ायदेमंद और सफल साबित हो सकता है।

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/284psm32 

https://tinyurl.com/2ywq8reg 

https://tinyurl.com/2abxqgaj 

https://tinyurl.com/2c2tlbgy

मुख्य चित्र स्रोत : PxHere

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