
हाल के वर्षों में लखनऊ सहित हमारे देश के कई शहरों में 'खासकर युवाओं के बीच' ई-सिगरेट (e-cigarette) यानी वेप्स(vapes) का चलन तेज़ी के साथ बढ़ा है। लोग इसे पारंपरिक सिगरेट का एक मॉडर्न और "कम नुकसानदायक" विकल्प मान रहे हैं। लेकिन यह वही बात हो गई कि आसमान से गिरे और खजूर में अटके। कई शोध बताते हैं कि "वेपिंग न सिर्फ़ फेफड़ों की समस्याएं पैदा कर सकता है, बल्कि निकोटीन (nicotine) की लत को भी बढ़ा सकता है।" इससे युवाओं के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है, और यही वज़ह है कि इसे लेकर चिंता लगातार बढ़ रही है।
इस खतरे को भांपते हुए, भारत सरकार ने 2019 में इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट निषेध अधिनियम(Prohibition of Electronic Cigarettes Act, 2019) के तहत, ई-सिगरेट के उत्पादन, बिक्री और उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया।। इस फैसले का मुख्य मकसद लोगों की सेहत की सुरक्षा और खासतौर पर किशोरों में बढ़ती निकोटीन की लत को रोकना था। लखनऊ में अधिकारी इस प्रतिबंध को सख्ती से लागू कर रहे हैं, ताकि ई-सिगरेट की बिक्री और इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक लगाई जा सके और शहर में एक स्वस्थ माहौल बना रहे। आज के इस लेख में हम इस प्रतिबंध के पीछे की वजहों को विस्तार से समझेंगे। हम जानेंगे कि कैसे निकोटीन की लत युवाओं के दिमाग और शरीर पर असर डालती है। साथ ही, वेपिंग से होने वाले संभावित नुकसान, जैसे फेफड़ों की बीमारियां, हृदय संबंधी खतरे और दीर्घकालिक निर्भरता के मुद्दों पर भी चर्चा करेंगे।
पहली पीढ़ी की ई-सिगरेट जो तंबाकू सिगरेट जैसी दिखती है, जिसमें बैटरी वाला हिस्सा होता है जिसे USB पावर चार्जर का उपयोग करके डिस्कनेक्ट और रिचार्ज किया जा सकता है! |
वेपिंग क्या है?
वेपिंग(vaping) के दौरान, एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की मदद से धुंध ("वाष्प") को अपने फेफड़ों में सांस के साथ अंदर लिया जाता है। इस प्रक्रिया में ई-सिगरेट, वेप पेन या अन्य इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम (Electronic Nicotine Delivery System (ENDS)) का उपयोग किया जाता है। ये डिवाइस (device) निकोटीन (nicotine), फ़्लेवरिंग, प्रोपाइलीन ग्लाइकोल (propylene glycol) और अन्य रसायनों को गर्म करके एरोसोल (aerosol) में बदलते हैं। इसे माउथपीस (mouthpiece) के ज़रिए अंदर लिया जाता है। हालांकि, वेपिंग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इससे सांस लेने में समस्या, अंगों को नुकसान और लत जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं।
क्या निकोटीन की लत युवाओं के लिए ख़तरनाक हो सकती है?
निकोटीन की लत युवाओं के लिए गंभीर समस्याएँ खड़ी कर सकती है। सबसे पहले, यह उनकी जेब पर बोझ डालता है, क्योंकि इसे बार-बार खरीदने में लगातार पैसा खर्च होता है । पढ़ाई पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ता है—ध्यान भटकता है और एकाग्रता कमज़ोर हो जाती है। कुछ छात्र तो वेपिंग के लिए अपनी क्लास तक छोड़ देते हैं, जिससे उनकी शिक्षा भी प्रभावित होती है।
शारीरिक फ़िटनेस भी इससे खराब हो सकती है। खेल-कूद में भागीदारी कम हो जाती है, जिससे शरीर की क्षमता घटने लगती है। अगर स्कूल में पकड़े गए, तो निलंबन जैसी सख़्त सज़ा मिल सकती है। यह उनके भविष्य के लिए नुकसानदायक हो सकता है। माता-पिता से भी अनबन होने लगती है, क्योंकि वे इस आदत को लेकर चिंतित रहते हैं।
नींद पर भी इसका असर पड़ता है, जिससे रोज़मर्रा की जिंदगी प्रभावित होती है। आत्म-सम्मान भी गिर सकता है, क्योंकि समाज में इसे एक "कमज़ोरी" के रूप में देखा जाता है। इसके अलावा, चिंता और मूड स्विंग जैसी मानसिक समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।
निकोटीन का असर सिर्फ़ आदत तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह दिमाग की कार्यक्षमता को भी प्रभावित करता है। इससे ध्यान, स्मरणशक्ति और सोचने-समझने की क्षमता कमज़ोर हो सकती है, जिससे शैक्षणिक प्रदर्शन पर नकारात्मक असर पड़ता है। यही वजह है कि वेपिंग और निकोटीन से जुड़ी आदतों के दूरगामी प्रभावों को समझना बेहद ज़रूरी है।
वेपिंग के ख़तरों में शामिल हैं:
1. फेफड़ों और अन्य अंगों को नुकसान: वेपिंग से आपके फेफड़ों और शरीर के अन्य अंगों को नुकसान हो सकता है। यह सांस लेने में कठिनाई पैदा कर सकता है और धीरे-धीरे आपके फेफड़ों की कार्यक्षमता को प्रभावित करती है।
2. अस्थमा और श्वसन संबंधी समस्याएँ: वेपिंग अस्थमा और अन्य फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों के जोखिम को बढ़ा सकता है। यदि पहले से अस्थमा है, तो वेपिंग से इसकी गंभीरता और जटिलताएँ बढ़ सकती हैं ।
3. फेफड़ों पर स्थायी निशान (पॉपकॉर्न लंग) (Popcorn Lung): कुछ फ़्लेवरिंग में "डायसिटाइल" (Diacetyl) नामक रसायन होता है, जो ब्रोंकियोलाइटिस ओब्लिटरन्स (Bronchiolitis Obliterans) (पॉपकॉर्न लंग) नामक बीमारी का कारण बन सकता है। यह बीमारी फेफड़ों में स्थायी निशान छोड़ती है और साँस लेने की क्षमता को कम कर देती है।
4. हृदय और मस्तिष्क पर प्रभाव: ई-लिक्विड (E-liquid) में मौजूद निकोटीन और अन्य रसायन रक्तचाप बढ़ाने, धमनियों को संकीर्ण करने और मस्तिष्क के कार्य को बाधित करने का कारण बन सकते हैं।
5. ई वी ए एल आई (EVALI) – वेपिंग से जुड़ी फेफड़ों की गंभीर बीमारी: EVALI (ई-सिगरेट या वेपिंग के कारण होने वाली फेफड़ों की चोट) अत्यंत खतरनाक बीमारी हो सकती है। यह फेफड़ों को व्यापक रूप से नुकसान पहुँचाती है, जिसके लक्षणों में खांसी, सांस लेने में तकलीफ़ और सीने में दर्द शामिल हैं। गंभीर मामलों में यह जानलेवा भी साबित हो सकता है।
6. लत (निकोटीन की आदत): निकोटीन एक अत्यधिक नशे की लत वाला पदार्थ है, जो मस्तिष्क में बदलाव लाता है जिससे व्यक्ति को बार-बार निकोटीन की आवश्यकता महसूस होती है। समय के साथ,, वेपिंग छोड़ना कठिन हो जाता है और स्वास्थ्य पर इसके नकारात्मक प्रभाव बढ़ने लगते हैं। यहाँ तक कि वे ई-लिक्विड, जो निकोटीन मुक्त होने का दावा करते हैं, उनमें भी थोड़ी मात्रा में निकोटीन मौजूद हो सकती है।
7. सिगरेट की लत लगने का खतरा: कई लोग वेपिंग को धूम्रपान छोड़ने का एक सुरक्षित विकल्प मानते हैं, लेकिन शोध बताते हैं कि वेपिंग करने वाले लोग बाद में पारंपरिक सिगरेट पीने की आदत विकसित कर सकते हैं। सिगरेट में मौजूद अत्यधिक हानिकारक रसायन गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं।
8. सेकेंड-हैंड एक्सपोजर (दूसरों को खतरा): वेपिंग करने पर पारंपरिक धुएँ जैसा कुछ दिखाई नहीं देता, लेकिन इसके एरोसोल में निकोटीन और अन्य हानिकारक रसायन मौजूद होते हैं। वेपिंग के दौरान ये रसायन हवा में फैलते हैं,, जोआसपास के लोगों के संपर्क में आ सकते हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य को भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
9. बैटरी विस्फ़ोट और दुर्घटनाएँ: वेपिंग डिवाइस (vaping device) में बैटरी का उपयोग होता है, जो कई बार फट सकती है। इससे गंभीर जलने और चोट लगने जैसी घटनाएँ हो चुकी हैं।
10. कैंसर का खतरा: ई-लिक्विड में मौजूद कुछ तत्व कैंसर का कारण बन सकते हैं। लंबे समय तक वेपिंग करने से कैंसर होने की संभावना बढ़ सकती है।
साल 2019 में भारत सरकार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट (ई-सिगरेट) पर प्रतिबंध लगाने का कानून बनाया। इस कानून का नाम इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट (उत्पादन, निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री, वितरण, भंडारण और विज्ञापन) निषेध अधिनियम, 2019 है। इसे 18 सितंबर, 2019 को लागू किया गया। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य ई-सिगरेट और इसी तरह के उपकरणों से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरों को रोकना और उनके उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना है।
कानून के प्रमुख प्रावधान निम्नवत दिए गए हैं:
1. उत्पादन और बिक्री पर रोक:
2. ई-सिगरेट की परिभाषा:
3. बिक्री और वितरण पर प्रतिबंध:
4. कानून का उल्लंघन करने पर दंड:-
पहली बार अपराध करने पर:
बार-बार अपराध करने पर:
प्रवर्तन और कानूनी कार्रवाई: -
जाँच और जब्ती के अधिकार: पुलिस और अन्य अधिकृत अधिकारी उन स्थानों पर जा सकते हैं जहाँ ई-सिगरेट का उत्पादन, बिक्री या विज्ञापन हो रहा है। वे रिकॉर्ड और संपत्ति ज़प्त कर सकते हैं। यदि कोई कंपनी इस अधिनियम का उल्लंघन करती है, तो कंपनी और उसके ज़िम्मेदार अधिकारी दोषी माने जाएंगे। यदि किसी अधिकारी की अनदेखी या सहमति से अपराध हुआ, तो उसे भी उत्तरदायी ठहराया जाएगा।
कानूनी कार्यवाही:-
संक्षेप में वेपिंग को सुरक्षित विकल्प मानना एक बड़ी ग़लतफ़हमी है। यह न केवल निकोटीन की लत को बढ़ाता है, बल्कि फेफड़ों, हृदय और दिमाग को भी गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। भारत सरकार ने ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाकर युवाओं और समाज के स्वास्थ्य की रक्षा का कदम उठाया है। अब हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम इस कानून का पालन करें और जागरूकता फैलाकर एक स्वस्थ भविष्य की ओर बढ़ें। सही जानकारी और समझदारी से ही हम अपने और अपनों की भलाई सुनिश्चित कर सकते हैं।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/yowgfoyh
https://tinyurl.com/292ljta2
https://tinyurl.com/2878cxqv
मुख्य चित्र: अपने हाथ में वेप लिया एक व्यक्ति और वेपिंग का फेफड़ों पर हानिकारक प्रभाव (Wikimedia)
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