एक्स-रे (X-ray) की खोज, 1895 में जर्मन वैज्ञानिक विल्हेम कॉनराड रॉन्टगन (Wilhelm Conrad Röntgen) ने की थी, जिन्होंने एक अज्ञात प्रकार के विकिरण को दर्शाने के लिए इसे एक्स-विकिरण नाम दिया था। एक्स-रे में फ़िल्म या डिजिटल मीडिया पर आंतरिक ऊतकों, हड्डियों और अंगों की छवियां बनाने के लिए अदृश्य विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा किरणों का उपयोग किया जाता है। तो आइए, आज 1895 में एक्स-रे के आविष्कार और तब से एक्स-रे इमेजिंग (X-ray imaging) के विकास के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही, हम यह भी जानेंगे कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence (AI)) एल्गोरिदम एक्स-रे के पैटर्न को कैसे पहचानते हैं। अंत में, हम यह भी समझने का प्रयास करेंगे कि अब एआई रेडियोलॉजी में कैसे मदद कर रहा है।
एक्स-रे का आविष्कार कैसे हुआ?
एक्स-रे, जो एक प्रकार की उच्च-ऊर्जा विद्युत चुम्बकीय तरंगें हैं, हमेशा से अस्तित्व में रही हैं। हालाँकि, 19वीं सदी तक वैज्ञानिकों ने इन तरंगों पर ध्यान नहीं दिया। 19वीं सदी में विल्हेम रॉन्टगन (Wilhelm Röntgen) को एक्स-रे का आविष्कार करने का श्रेय दिया जाता है।
रॉन्टगन से पहले, कई शोधकर्ताओं ने एक्स-रे के प्रभावों को देखा, लेकिन वास्तव में उन्हें नहीं पता था कि वे क्या देख रहे थे। 1785 में, जब विलियम मॉर्गन एक आदर्श निर्वात प्रणाली की चालकता का मूल्यांकन कर रहे थे तो उन्होंने एक "सुंदर हरी रोशनी" देखी। उन्होंने इस खोज को 1785 में 'रॉयल सोसाइटी' (Royal Society) के समक्ष प्रस्तुत किया, जहाँ अन्य वैज्ञानिकों ने इस रहस्यमय प्रकाश का पता लगाना शुरू किया। हालाँकि, इस हरी रोशनी का रहस्य लगभग एक सदी तक बना रहा । 1800 के दशक के उत्तरार्ध में, तापदीप्त प्रकाश बल्ब के आविष्कार से हवा के माध्यम से विद्युत प्रवाह के बारे में जानने के लिए शोधकर्ताओं ने एक प्रयोग किया। इसके लिए उच्च-ऊर्जा इलेक्ट्रॉन किरण उत्पन्न करने के लिए एक ग्लास, निर्वात नली, जिसमें एक नकारात्मक आवेश वाला क्षेत्र और एक सकारात्मक आवेश वाला क्षेत्र होता है, का उपयोग किया। इस नली में कैथोड से इलेक्ट्रॉन उत्पन्न हुए और एनोड में चले गए। इस किरण को कैथोड किरण कहा जाता था, जबकि नली को क्रुक नली के नाम से जाना गया।
1888 में, रॉन्टगन की खोज से एक दशक से भी कम समय पहले, फ़िलिप लेनार्ड (Philipp Lenard) ने विद्युत की गति के विषय में जानने के लिए प्रयोग किया। उन्होंने अपने परीक्षण यह मानते हुए किए कि हवा में धूल इसकी गति के लिए ज़िम्मेदार है। लेनार्ड ने क्रुक नली में कैथोड के सामने कैथोड के सामने खिड़की के साथ किरणों को शामिल करके इस सिद्धांत का परीक्षण किया। उन्होंने खिड़की को एल्यूमीनियम फ़ॉइल से ढक दिया; उनके इस परीक्षण को "लेनार्ड नली" के नाम से जाना गया। लेनार्ड ने देखा कि कैथोड किरणें जब फ़ॉइल से होकर निकलती हैं, तो कुछ इंच आगे तक जाती हैं, जिससे अंधेरे कमरे में एक स्क्रीन चमकने लगती है। 1893 में, लेनार्ड ने इन अभूतपूर्व परिणामों को प्रकाशित किया।
कुछ साल बाद, 1895 में, जर्मन भौतिकी के प्रोफ़ेसर विल्हेम रॉन्टगन ने कार्डबोर्ड में ढकी लेनार्ड नली और क्रुक्स नली के साथ, यह देखने के लिए कि क्या कैथोड किरणें कांच से गुजर सकती हैं, एक प्रयोग किया। लेनार्ड के अवलोकनों के समान, रॉन्टगन ने प्रयोग करते समय पास में एक रासायनिक स्क्रीन को चमकते हुए देखा। रॉन्टगन ने परिकल्पना की कि कैथोड किरणें कांच की नलियों से टकराकर एक नई तरह की प्रकाश किरण बनाती हैं। जब ये नई प्रकाश किरणें रासायनिक स्क्रीन के साथ संपर्क करती हैं, तो यह यह प्रतिदीप्त हो जाती है। रॉन्टगन ने पाया कि ये किरणें कागज़, लकड़ी और एल्यूमीनियम की फ़ॉइल के माध्यम से यात्रा कर सकती हैं। इस प्रयोग के बाद रॉन्टगन ने अपने एक्स-रे उपकरण का उपयोग करके अपनी पत्नी के हाथ की एक तस्वीर ली, जिसमें उसकी धातु की शादी की अंगूठी दिखाई दे रही थी। रॉन्टगन ने, इन रहस्यमय किरणों का नाम "एक्स-रे" रखा। इस खोज के लिए 1901 में रॉन्टगन को भौतिकी का पहला नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया, हालाँकि उन्होंने सारी पुरस्कार राशि अपने विश्वविद्यालय को दान कर दी और कभी भी पेटेंट के लिए आवेदन नहीं किया।
इतिहास में एक्स-रे इमेजिंग का विकास:
एक्स-रे इमेजिंग के विकास को निम्न चरणों में समझा जा सकता है:
1875: क्रुक्स कैथोड रे नली का आविष्कार: भौतिक विज्ञानी विलियम क्रुक्स (William Crooks) द्वारा कैथोड रे नली का आविष्कार किया गया।
1895: एक्स-रे की खोज: रॉन्टगन ने कैथोड किरण नली का उपयोग करके और इसे कागज़ से ढककर अज्ञात कणों की खोज की। पहला मानव एक्स-रे रॉन्टगन की पत्नी के हाथ का था।
1900: फ़्लोरोस्कोपी का आविष्कार: थॉमस एडिसन (Thomas Edison) द्वारा चिकित्सा प्रक्रियाओं के मार्गदर्शन के लिए वास्तविक समय पर प्रतिक्रिया प्रदान करने के लिए उपयोग किए जाने वाले पहले इमेजिंग उपकरणों का आविष्कार किया गया।
1901: भौतिकी का नोबेल पुरस्कार: रॉन्टगन को एक्स-रे की खोज के लिए भौतिकी में पहला नोबेल पुरस्कार दिया गया।
1913: पहला एंटी-स्कैटर एक्स-रे ग्रिड: गुस्ताव बकी (Gustav Bucky) ने पहले एक्स-रे ग्रिड का आविष्कार किया।
1913: आधुनिक एक्स-रे नली का विकास: कैथोड एक्स-रे नली का 1913 में पेटेंट कराया गया और 1917 में विलियम डी. कूलिज द्वारा (William D. Coolige) द्वारा इसे निर्मित किया गया। इस प्रकार, आधुनिक नली के डिज़ाइन को अक्सर कूलिज नली के नाम से जाना जाता है।
1913: स्तन ऊतक का पहला समर्पित रेडियोग्राफ़: जर्मन सर्जन अल्बर्ट सैल्मन ने स्तन के ऊतकों का रेडियोग्राफ़ लिया। उन्होंने 3000 से अधिक स्तन उच्छेदनों का अध्ययन किया जिसमें उन्होंने कैल्सीकरण और विभिन्न प्रकार के स्तन कैंसरों के बारे में जाना।
1918: एक्स-रे फ़िल्म की शुरुआत: ईस्टमैन ने रेडियोग्राफी में फ़िल्म की शुरुआत की, जिसने ग्लास प्लेटों की जगह ले ली।
1926: एक्स-रे के आनुवंशिक प्रभाव का पहला प्रदर्शन: हरमन जोसेफ़ मुलर (Hermann Joseph Muller) ने एक्स-रे के संपर्क में आने से विकिरण से आनुवंशिक प्रभाव का पहला प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत किया।
1930: पहला नैदानिक स्तन एक्स-रे इमेजिंग: रोचेस्टर मेमोरियल अस्पताल के रेडियोलॉजिस्ट स्टैफ़ोर्ड वॉरेन ने 119 रोगियों के साथ पहला नैदानिक मैमोग्राफी परीक्षण किया।
1932: पहली एक्स-रे टोमोग्राफ़ी: ज़ाइडेस डेस प्लांटेस (Ziedes des Plantes) ने एक्स-रे स्रोत और फ़िल्म के स्थान पर एक तकनीक के माध्यम से एक टोमोग्राफिक छवि उत्पन्न की।
1934: इमेज़ इंटेंसिफ़ायर: फ़िलिप्स के जी. होल्स्ट ने प्रारंभिक इमेज़ इंटेंसिफ़ायर विकसित की। लगभग एक दशक के विकास के बाद चिकित्सा अनुप्रयोगों के लिए इसका उत्पादन किया गया।
1953: सब्ट्रैक्शन इमेजिंग: बर्नार्ड जॉर्ज ज़ाइडेस डेस प्लांटेस ने केवल कंट्रास्ट वर्धित क्षेत्र को उजागर करने के लिए लगातार दो एक्स-रे एक्सपोज़र का उपयोग किया: एक कंट्रास्ट के साथ और एक बिना कंट्रास्ट के।
1964: पहली एंजियोप्लास्टी: चार्ल्स डॉटर ने त्वचाप्रेक्षी एंजियोप्लास्टी के पहले प्रयोग का प्रदर्शन किया।
1972: प्रथम टोमोसिंथेसिस इमेजिंग: डी. जी. ग्रांट ने पहले की एक्स-रे टोमोग्राफ़ी इमेजिंग का विस्तार किया।
1977: त्वचाप्रेक्षी कोरोनरी एंजियोप्लास्टी: जर्मन रेडियोलॉजिस्ट और कार्डियोलॉजिस्ट एंड्रियास रोलैंड ग्रंटज़िग ने, पहली बार जागते हुए इंसान पर कोरोनरी एंजियोप्लास्टी की। यह प्रक्रिया ज़्यूरिक स्विट्ज़रलैंड में की गई थी।
1980: डिजिटल सब्ट्रैक्शन एंजियोग्राफी: चक मिस्ट्रेट्टा (Chuck Mistretta) को रीयलटाइम सब्ट्रैक्शन इमेजिंग के लिए अमेरिकी पेटेंट प्रदान किया गया। यह विशेष रूप से पृष्ठभूमि ऊतक को दबाने में सहायक है ताकि छवियों में केवल कंट्रास्ट एजेंट ही मौजूद रहे।
1983: कंप्यूटेड रेडियोग्राफ़ी (Computed Radiography (CR)) प्रणाली: कंप्यूटेड रेडियोग्राफ़ी प्रणाली का चिकित्सकीय रूप से उपयोग किया गया।
2000: रेडियोग्राफ़ी और मैमोग्राफ़ी विशिष्ट डिटेक्टर पेश किए गए और इनका नैदानिक उपयोग शुरू हुआ।
ए आई के माध्यम से एक्स-रे की पैटर्न पहचान:
आज एक्स-रे इमेजिंग में फ़्रैक्चर की सटीक पहचान करने में एआई एल्गोरिदम रेडियोलॉजिस्ट की सहायता के लिए मूल्यवान उपकरण के रूप में उभरा है। ये ए आई मॉडल, एक्स-रे छवियों का विश्लेषण करने और संभावित फ़्रैक्चर को उजागर करने के लिए गहन शिक्षण तकनीकों, विशेष रूप से सी एन एन (CNN (Convolutional Neural Network)) का उपयोग करते हैं।
सी एन एन-आधारित मॉडल को लेबल किए गए एक्स-रे छवियों के बड़े डेटासेट पर प्रशिक्षित किया जाता है, जिससे उन्हें फ़्रैक्चर से जुड़े विशिष्ट पैटर्न और विशेषताओं को सीखने की अनुमति मिलती है। फिर ये मॉडल, छवि के भीतर उन क्षेत्रों की पहचान करके ये फ़्रैक्चर का पता लगा सकते हैं।
फ़्रैक्चर का पता लगाने की सटीकता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न रणनीतियों को नियोजित किया जाता है। ऐसी ही एक रणनीति एनसेंबल का उपयोग है, जहां भविष्यवाणियां करने के लिए कई सी एन एन मॉडलों को संयोजित किया जाता है। इसके अलावा, फ़्रैक्चर क्षेत्रों के प्रति उनकी संवेदनशीलता को बढ़ाने के लिए फ़्रैक्चर डिटेक्शन मॉडल में खास देखरेख तंत्र को शामिल किया गया है। ये तंत्र मॉडलों को एक्स-रे छवि के प्रासंगिक क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम बनाते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि फ़्रैक्चर की सटीक पहचान की जाए और सूक्ष्म या जटिल फ़्रैक्चर को नज़रअंदाज़ करने की संभावना कम हो।
कई अध्ययनों में स्वचालित फ़्रैक्चर का पता लगाने और स्थानीयकरण में ए आई एल्गोरिदम की प्रभावशीलता सिद्ध हुई है। एक अध्ययन में एक ऐसा एआई मॉडल विकसित किया गया, जो छाती के एक्स-रे में फ़्रैक्चर सहित विभिन्न विकृति का पता लगाने में सक्षम है, जिसका प्रदर्शन विशेषज्ञ रेडियोलॉजिस्ट के बराबर है। एक अन्य अध्ययन में कलाई के एक्स-रे में फ़्रैक्चर का पता लगाने के लिए एक गहन शिक्षण एल्गोरिदम को प्रशिक्षित किया गया, जिससे उच्च सटीकता और संवेदनशीलता प्राप्त हुई।
हालाँकि, यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि फ़्रैक्चर का पता लगाने के लिए ए आई मॉडल अभी भी विकसित हो रहे हैं, और चुनौतियाँ बनी हुई हैं। डेटा विविधता, फ़्रैक्चर पैटर्न में परिवर्तनशीलता, और भ्रमित करने वाले कारकों के कारण लगातार उच्च प्रदर्शन प्राप्त करने में चुनौतियां उत्पन्न होती रहती हैं। चल रहे अनुसंधान और विकास प्रयास इन सीमाओं को संबोधित करने और फ़्रैक्चर का पता लगाने में ए आई एल्गोरिदम के प्रदर्शन और सामान्यीकरण को और बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। यह ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है कि फ़्रैक्चर निदान में एआई सिस्टम का लक्ष्य मानव विशेषज्ञों को प्रतिस्थापित करना नहीं है बल्कि उनकी क्षमताओं को सहायता देना और बढ़ाना है। जबकि ए आई एल्गोरिदम फ़्रैक्चर निदान के कुछ पहलुओं में प्रभावशाली प्रदर्शन करते हैं, फिर भी वे सत्यापन और व्याख्या के लिए मानव विशेषज्ञता पर निर्भर हैं। ए आई सिस्टम और मानव विशेषज्ञों के बीच सहयोगात्मक प्रयासों से एआई की शक्ति को चिकित्सकों के नैदानिक अनुभव और निर्णय के साथ जोड़कर सहक्रियात्मक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
रेडियोलॉजी में ए आई कैसे मदद कर रहा है ?
1.) बेहतर निज़ीकरण: ए आई-आधारित रेडियोलॉजी उपकरण मामले की गंभीरता के आधार पर स्कैन को स्वचालित रूप से प्राथमिकता देकर निर्णय समर्थन प्रदान करते हैं, चिकित्सकों के समय की बचत करते हैं और उन्हें समय पर रोगी देखभाल प्रदान करने की अनुमति देते हैं।
2.) बेहतर सटीकता: अधिकांश रेडियोलॉजी एआई उपकरण मानव रेडियोलॉजिस्ट की तुलना में असामान्यताओं का अधिक सटीकता से पता लगा सकते हैं, जिससे मरीज़ों के ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है।
3.) अनुकूलित रेडियोलॉजी: ए आई अनुकूलन प्रणाली स्कैन के दौरान रोगियों और रेडियोग्राफ़रों के संपर्क में आने वाले विकिरण स्तर को कम करने में मदद कर सकती है।
4.) बेहतर परिणाम: अधिकांश ए आई-संचालित रेडियोलॉजी उपकरण स्वचालित रूप से त्रुटि-मुक्त और मानकीकृत रिपोर्ट तैयार करते हैं, जिससे समय की बचत होती है और कार्य सुव्यवस्थित होता है।
5.) विकिरण जोखिम में कमी: ए आई की मदद से बार-बार इमेजिंग की आवश्यकता काम हो जाती है जिससे अधिक सटीक छवियां प्राप्त होती है और विकिरण का जोखिम कम हो जाता है।
6.) त्वरित निदान: ए आई से रोग का तुरंत निदान संभव है जिससे रोगी को समय पर उपचार दिया जा सकता है रोग को भयावह होने से रोका जा सकता है।
7.) छवि गुणवत्ता में सुधार: ए आई चिकित्सीय स्कैन की छवियां में सुधार करता है जिससे परीक्षण में बारीकियों का भी पता चल जाता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4kvfz7fx
https://tinyurl.com/3k5yfhrt
https://tinyurl.com/dn3d589f
https://tinyurl.com/yey6kzvd
चित्र संदर्भ
1. एक्स-रे का विश्लेषण करते जांचकर्ता को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
2. 19वीं सदी के अंत में, प्रारंभिक क्रूक्स ट्यूब (Crookes tube) उपकरण से एक्स-रे छवि लेते हुए शोधकर्ताओं को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
3. कंप्यूटर मॉनीटर में छवि देखती एक महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
4. 1896 में "नोवेल आइकोनोग्राफ़ी डे ला सालपेट्रीयर" नामक एक चिकित्सा पत्रिका में एक पट्टिका प्रकाशित हुई। इसकी तस्वीर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. स्वतंत्र मानव मूल्यांकन कार्य इंटरफ़ेस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. एक अस्पताल में रेडियोलॉजी कक्ष को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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