लखनऊ, जो कभी नवाबी संस्कृति का केंद्र था, अब एक आधुनिक औद्योगिक हब के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। गुज़री कई सदियों के दौरान, शहर के आस-पास के उद्योगों में कई बड़े बदलाव देखे गए हैं। मध्यकालीन युग में, जब भारत का कपड़ा उद्योग नई ऊँचाइयों को छू रहा था, उस समय लखनऊ और इसके आस-पास के क्षेत्रों में भी कई परिवर्तन हुए जो इस उद्योग के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुए। आज हम, इसी उद्योग के इतिहास के बारे में विस्तार से जानेंगे। साथ ही, मध्यकालीन युग के दौरान, भारत में सूती कपड़े के उद्योग के मुख्य केंद्रों पर भी चर्चा की जाएगी। इसके अलावा, अंत में हम मध्यकालीन युग में भारत के बर्फ़ उद्योग के दिलचस्प विषय को भी समझेंगे।
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मध्यकालीन अवधि के दौरान, भारत से बड़े पैमाने पर कपड़ा निर्यात किया जाता था। नई तकनीक और कई प्रयोगों ने इस उद्योग को वैश्विक पहचान दिलाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई।
मध्यकालीन युग में कपड़े के उद्योग में कई क्रांतिकारी आविष्कार हुए, जिन्होंने न केवल उत्पादन को गति दी, बल्कि उद्योग की वैश्विक पहचान भी स्थापित की।
जिनमें शामिल है:- चरखा: चरखे का उल्लेख, चौदहवीं शताब्दी के इतिहासकार “इसामी” द्वारा किया गया था। तकली से काता गया सूत, चरखे का उपयोग करके छह गुना अधिक कुशलता से बनाया जाने लगा।
- धुनिया धनुष (Bow of Dhunia): मुस्लिम व्यापारियों द्वारा एक प्रकार के कॉटन जिन, धुनिया धनुष को भारत में पेश किया गया। इससे पहले, कपास को रेशेदार बनाने के लिए उसे डंडों से पीटा जाता था। लेकिन कॉटन जिन ने इस प्रक्रिया को बहुत तेज़ और आसान बना दिया।
- करघा: उस समय बुनाई, करघे का उपयोग करके की जाती थी, जिसे समय के साथ और बेहतर बनाया गया।
- रेशम कीट पालन: सल्तनत काल के दौरान, रेशम के कीड़ों के पालन की लोकप्रियता ख़ूब बड़ी। इससे रेशम उत्पादन में भी वृद्धि दर्ज की गई।
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मध्यकालीन अवधि के दौरान, कपड़ों की रंगाई, छपाई और कढ़ाई का काम कुछ चुनिंदा प्रमुख शहरों में किया जाता था। समय के साथ, भारतीय वस्त्रों की गुणवत्ता, विश्व प्रसिद्ध हो गई। एडवर्ड टेरी (Edward Terry) ने भी भारत के सुंदर और गहरे रंग के कपड़ों की प्रशंसा की, जिन्हें बंगाल और गुजरात से निर्यात किया जाता था।
सूती वस्त्र उद्योग के प्रमुख केंद्रों में बंगाल, गुजरात, बनारस, और उड़ीसा जैसे क्षेत्र शामिल थे, जबकि ढाका और देवगिरी के मलमल और बनारस के रेशमी वस्त्र अपनी उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध थे। अन्य प्रसिद्ध वस्त्रों में बरबकाबाद से गंगाजल, बिहार से अंबरती, गुजरात से बाफ्ता , बंगाल से खासा और हमारे लखनऊ से दरियाबंदी तथा मरकुल शामिल थे। इसके अलावा केलिंको, तफ़ता, ज़र्तारी और कमीन जैसे कपड़े भी महत्वपूर्ण थे।
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मध्यकालीन अवधि के दौरान, रेशमी वस्त्रों के प्रमुख केंद्र पूरे देश में स्थित थे। कासिम बाज़ार, मालदा, मुर्शिदाबाद, पटना, कश्मीर और बनारस अपने रेशमी कपड़ों के लिए जाने जाते थे। गुजरात में भी रेशम बुनाई उद्योग फल-फूल रहा था, जिसमें कैम्बे रेशम खूब प्रसिद्ध था। सूरत रेशमी वस्त्रों का एक प्रमुख केंद्र हुआ करता था, जहाँ सोने और चाँदी के धागों से कढ़ाई किए गए रेशमी कालीन बनाए जाते थे।
मध्यकालीन अवधि के दौरान ऊनी वस्त्रों के मुख्य केंद्र काबुल, कश्मीर और पश्चिमी राजस्थान में थे। तिब्बत से आने वाला बढ़िया ऊन बेजोड़ हुआ करता था। इसके अलावा कश्मीरी शॉल भी काफ़ी मशहूर थे। शॉल बनाने वाले अन्य उल्लेखनीय केंद्रों में लाहौर, पटना और आगरा, विशेष रूप से फ़तेहपुर सीकरी शामिल थे।
वस्त्र निर्माण के साथ-साथ, मध्यकाल में रंगाई और छपाई उद्योग भी खूब फला-फूला। लाहौर से अवध तक नील का उत्पादन होता था, जिसमें बयाना का नील सबसे अच्छा माना जाता था। कपड़ा रंगाई और छपाई के मुख्य केंद्रों में, दिल्ली, आगरा, अहमदाबाद, मसूलीपट्टनम, ढाका और कासिम बाज़ार शामिल थे।
कपड़े के अलावा, इस युग के दौरान भारत में कई अन्य उद्योग भी फले-फूले, जिनमें शामिल थे:
पत्थर और ईंट उद्योग: मध्यकालीन युग में सल्तनतों द्वारा राजमिस्त्रियों और शिल्पकारों को विशेष संरक्षण दिया जाता था। ऐसा कहा जाता है कि अला-उद-दीन खिलजी ने राज्य भवनों के निर्माण के लिए 70,000 श्रमिकों को नियुक्त किया था। बाबर ने भी भारतीय कारीगरों के कौशल की बहुत प्रशंसा की थी। माउंट आबू में दिलवाड़ा मंदिर और राजस्थान में चित्तौड़गढ़ की इमारतें भी पत्थर और ईंट से निर्मित हैं। यह भारतीय कारीगरों के शानदार कौशल का प्रमाण हैं। इस अवधि के दौरान, तामचीनी टाइलों और ईंटों का उपयोग शुरू किया गया था।
चमड़ा उद्योग: मध्यकालीन युग के दौरान, चमड़ा उद्योग भी काफ़ी विकसित हुआ। इस दौरान चमड़े का उपयोग, घोड़ों के लिए काठी और लगाम, तलवारों के म्यान, जूते तथा उच्च वर्गों द्वारा आम इस्तेमाल की जाने वाली अन्य वस्तुओं के निर्माण जैसे उद्देश्यों के लिए किया जाने लगा। यहाँ तक कि साधारण किसान भी चमड़े से पानी की बाल्टी बनाते थे। इस दौरान, चमड़े से बनी सबसे बेहतरीन वस्तु, लाल और नीले चमड़े से बनी चटाई हुआ करती थी। इस चटाई पर पक्षियों और जानवरों की आकृतियाँ बहुत ही खूबसूरती से जड़ी हुई थीं। अरब और अन्य देशों के लिए , गुजरात ने बड़ी मात्रा में तैयार खाल का निर्यात किया।
चीनी उद्योग: मध्ययुगीन युग में चीनी उद्योग में ज़बरदस्त प्रगति देखी गई। चीनी, आम तौर पर गन्ने से बनाई जाती थी। बंगाल चीनी उत्पादन के क्षेत्र में अग्रणी हुआ करता था। अतिरिक्त चीनी को, बिना रंगे और सिले हुए चमड़े के पार्सल में अन्य देशों को भी निर्यात किया जाता था।
शिपिंग उद्योग: मुगलों ने जहाजों के निर्माण के लिए, बंगाल की खाड़ी में एक केंद्र स्थापित किया। आपको जानकर हैरानी होगी कि उस समय भारतीय जहाज़ निर्माण उद्योग ने इतनी उच्च प्रतिष्ठा अर्जित की कि पुर्तगालियों ने भी अपने कुछ बेहतरीन जहाज़ भारत में बनवाए। जहाज निर्माण गतिविधियाँ, मुख्य रूप से भारत के पश्चिमी तटों पर की जाती थीं।
1830 से 1870 तक लगभग चार दशकों के बीच ब्रिटिश भारत के प्रेसीडेंसी शहरों में बर्फ़ को एक लक्ज़री आइटम (Luxury Item) माना जाता था। इसे उत्तरपूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका से आयात किया जाता था। 1830 के दशक में, फ़्रेड्रिक ट्यूडर (Frederic Tudor) ने बर्फ़ के व्यापार में अपना भाग्य आज़माया।
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उन्हें सही मायने में " बर्फ़ का राजा" कहा जाता था। ट्यूडर का जन्म एक प्रतिष्ठित बोस्टनियन परिवार में हुआ था। बर्फ़ के व्यापार में उनके शुरुआती निवेश से उन्हें बहुत कम फ़ायदा हुआ। लेकिन फिर ट्यूडर ने ब्रिटिश भारत, विशेष रूप से कलकत्ता में बर्फ़ भेजने के जोखिम भरे उद्यम में प्रवेश किया। इस काम में सैमुअल ऑस्टिन (Samuel Austin) और विलियम रोजर्स (William Rogers) उनके सहयोगी थे। रोजर्स को कलकत्ता में व्यापार भागीदारों के लिए बर्फ़ एजेंट बनाया गया। भारत में, बर्फ़ का उत्पादन 19वीं शताब्दी में शुरू हुआ। हालाँकि भारत के दक्षिणी क्षेत्रों में सर्दियों के महीनों के दौरान, थोड़ी मात्रा में बर्फ़ का उत्पादन किया जाता था। उबले और ठंडे पानी को रखने के लिए, छिद्रयुक्त मिट्टी के बर्तनों का उपयोग किया जाता था। इन बर्तनों को उथली खाइयों में भूसे पर रखा जाता था। अनुकूल परिस्थितियों में, सर्दियों की रातों में सतह पर पतली बर्फ़ बनती थी। फिर इस बर्फ को काटा और बेचा जा सकता था। इस दौरान, हुगली-चुचुरा और इलाहाबाद में बर्फ़ उत्पादन स्थल स्थापित किए गए थे |
संदर्भ
https://tinyurl.com/qylo3s2
https://tinyurl.com/29asd9dz
https://tinyurl.com/2yb3fbj8
https://tinyurl.com/285y73nl
चित्र संदर्भ
1. एक भारतीय वस्त्र निर्माता को संदर्भित करता एक चित्रण (rawpixel)
2. एक भारतीय बुनकर को संदर्भित करता एक चित्रण (PixaHive)
3. चरखा कातती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. वुडब्लॉक प्रिंटिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. याक के ऊन से निर्मित वस्त्रों को बेचती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. ट्यूडर आइस कंपनी के बोर्ड को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)