कालीन भारतीय सभ्यता में बड़ी ही गहराई में बसा हुआ है और इसके व्यवसाय से भी बड़ी संख्या में लोगों को रोज़गार मिलता है। अकेले जौनपुर की बात करें तो करीब 3,500 लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं। जैसा कि कालीन की नगरी भदोही को कहा जाता है और जौनपुर भदोही का पड़ोसी जिला है जिसके कारण कालीन का व्यवसाय यहाँ पर भी बड़ी संख्या में फल फूल रहा है। भारत में कालीन के इतिहास की यदि बात की जाए तो यह 11वीं शताब्दी तक जाता है परन्तु इसका विकास मुग़ल काल में हुआ। कालीन के विषय में यदि देखा जाए और इसके इतिहास के पन्नों को यदि पलटा जाए तो यह पता चलता है कि सन 1580 में अकबर ने फारस से बुनकरों को बुलाया था तथा उनसे उच्च कोटि की कालीन बनवाए थे। आगरा के किले में कालीन की कार्यशाला का भी गठन हुआ था तथा वहां पर कालीनों का निर्माण बड़े पैमाने पर किया गया था। अकबर के बाद जहाँगीर ने कालीन निर्माण को बढ़ाया और वह कालीन के निर्माण में एक कर्णधार बन कर सामने आया। इस काल में भारतीय कालीन भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी प्रचलित हुए थे। भारत में कालीन निर्माण आगरा, श्रीनगर, अमृतसर, मिर्ज़ापुर, भदोही आदि स्थानों पर फैला।
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कालीन अपनी खूबसूरती और निर्माण की विधि के लिए जाना जाता है। यह एक प्रमुख निर्यात की वस्तु है। जैसा कि हमें पता है कि भारत के विभिन्न स्थानों पर कालीनों का निर्माण होता है और हर स्थान के कालीन में भिन्नता होती है, तो आइये पढ़ते हैं कि आखिर इन कालीनों में किस प्रकार की भिन्नताएं पायी जाती हैं।
उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो यहाँ पर भारत का पहला कालीन केंद्र खोला गया था जो कि सम्राट अकबर ने खोला था। यहाँ पर पाए जाने वाले कालीन फारसी कालीन शैली के लिए जाने जाते हैं। आगरा के इन कालीनों में ललित कला और समता का भाव दिखता है जो कि तीक्ष्ण फूलपत्ती के बोर्डर (Border) से सुसज्जित है।
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यहाँ पर तुर्कमान और अबुसान कला भी पायी जाती है। वहीं जब भदोही के कालीनों की बात की जाए तो वो अपनी एक अलग ही विधा का निर्माण करते हैं और वे देशी कलाकारों द्वारा व्यक्तिगत कला पर बनाए जाते हैं। इन कालीनों में प्राकृतिक रंगों को देखा जा सकता है। वर्तमान काल में भदोही के कालीनों में व्यापार के चलते कई विशेषताएं और मिश्रण भी आ गए हैं। उत्तर प्रदेश के बाद कश्मीर वो स्थान है जहाँ पर कालीन बनाने की परंपरा अत्यंत ही प्राचीन है। कश्मीर के कालीन हाथ से बुने जाते हैं तथा ये ऊन के बनाए जाते हैं। इन कालीनों की खूबसूरती देखते ही बनती है। ये कालीन पूर्ण रूप से हस्त निर्मित हैं तथा यहाँ की मूल कालीन निर्माण पद्धति फारसी ही है। वर्तमान में बड़ी संख्या में कालीन निर्माण केंद्र कश्मीर में उपलब्ध हैं। कश्मीर के अलावा राजस्थान भी कालीन निर्माण का एक गढ़ माना जाता है। राजस्थान में कालीन निर्माण की प्रक्रिया 17वीं शताब्दी में शुरू हुयी और यह वर्तमान काल में अति प्रचलित है। राजस्थानी कालीन मुख्यतया ऊन की बनायी जाती है तथा इनकी निर्माण कला ज्यामितीय आधार पर आधारित है।
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भारत में तमाम प्रकार के कालीन पाए जाते हैं जिनकी निर्माण तकनीक भिन्न है। इन कालीनों के निर्माण तकनीक के आधार पर भी इनकी महत्ता का अवलोकन किया जा सकता है।
गाँठ के आधार पर बनाए गये कालीन।
भराव या टफिंग के आधार पर बनाए जाने वाले कालीन।
हाथ से बुने हुए कालीन।
निर्माण तकनिकी के अलावा कालीनों को विभिन्न आधारों या कलाओं से सुसज्जित किया जाता है जो कि निम्लिखित हैं-
सरू का पेड़: उत्तरजीविता में जीवन रक्षा।
जीवन का पेड़: अनन्त जीवन।
अनार: यह पूरक का संकेत होता है।
ऊंट: धन और खुशी।
मोर: पवित्र पक्षी।
कबूतर: शांति।
कंघी: स्वच्छता, कभी-कभी विश्वास का स्तंभ (जिस पर इस्लाम टिकी हुई है)।
घंटा घडी: यह प्रदर्शित करता है कि वक़्त किसी के लिए नहीं रुकता।
इन तमाम कलाओं या चित्रों से कालीन सुसज्जित किये जाते हैं।
भारतीय कालीन अपनी सुसज्जित और सुन्दर कलात्मकता के कारण पूरे विश्व में जाने जाते हैं। यह एक कारण है कि विश्व स्तर पर ये कालीन पसंद किये जाते हैं।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Carpet
2.https://economictimes.indiatimes.com/industry/cons-products/garments-/-textiles/indian-handmade-carpets-may-get-government-trademark/articleshow/58231235.cms?from=mdr
3.http://www.abhijna-emuseum.com/articles/history-and-collection-of-carpet-in-india/
4.http://www.yakcarpet.in/blog/quality-indian-carpet-go-hand-hand-todays-home-decor/
5.https://prarang.in/India-Hindi/171121598