लेखीछाज, जिला मोरैना के जौरा तहसील के अन्तर्गत पहाड़गढ़ कस्बे में स्थित है। यह मोरैना से 45 कि.मी. तथा पहाड़गढ़ एवं जौरा से 45 कि.मी. दूर चम्बल की सहायक नदी आसन नदी के बांये तट पर स्थित है। जौनपुर से इसकी दूरी करीब 400 किलोमीटर की है। लेखीछाज का शाब्दिक अर्थ है- छज्जे पर लिखा हुआ। जिस शैलाश्रय में चित्र बने हुए हैं उसकी आकृति छज्जे के समान है। इसी कारण इसका नामकरण लेखीछाज हुआ। लेखीछाज से लगभग 6 किमी दूर मानपुर ग्राम स्थित है। लेखीछाज के अतिरिक्त इसी नदी के कुन्डीघाट, बाराडेह, रानीडेह, खजुरा, कीत्या, हवामहल आदि स्थानों से भी शैलचित्र प्राप्त हुए हैं। लेखीछाज घने जंगल में स्थित है जहां मोइबल नेटवर्क (Mobile Network) एवं मानव दिखायी नहीं देता है। जौरा से मानपुर ग्राम होते हुए जंगल तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क बनी हुई है, जो पहाड़गढ के लिए जाती है। पक्की सड़क से लगभग 2 किमी अन्दर विभिन्न नालों से होते हुए लेखीछाज शैलाश्रय तक पहुंचा जा सकता है।
आसन एक मौसमी नदी है और यह गर्मी के समय सूख जाती है तथा कुछ गहरे स्थानों पर शेष रह जाती है। पहाड़गढ क्षेत्र में यह नदी चूना पत्थर के बीच बहुती हुई चम्बल नदी में मिल जाती है। पहाड़गढ़ क्षेत्र में इस नदी के किनारे कई शैलाश्रय हैं, जो मानव एवं जानवरों के रहने के लिए उचित थे। पहाडगढ़ क्षेत्र का सर्वेक्षण सर्वप्रथम द्वारिकेश (द्वारिका प्रसाद शर्मा, मिशीगन विश्वविद्यालय) द्वारा सन् 4979 में किया गया। हांलाकि सर्वेक्षण से पहले ही इन शैलचित्रों की जानकारी पुराविदों को थी। द्वारिकेश द्वारा लगभग 86 शैलाश्रयों को चिह्नित किया गया, जिनमें से अधिकांश में शैलचित्र बने हुए थे। अब तक लगभग 49,78,079 शैलाश्रयों की खोज पहाड़गढ़ क्षेत्र में की जा चुकी है। (एस. के. तिवारी, पृ. 63) शैलचित्रों का अंकन लाल-गेरूएं रंग से किया गया है। चित्र मानव एवं जानवरों दोनों के प्राप्त होते है, जानवरों में कुछ चित्र पालतू जानवरों के भी प्राप्त होते हैं। अधिकांश चित्रों को लाल रंग से भरा गया है, परन्तु कुछ रेखा चित्र भी प्राप्त होते हैं। ये चित्र भिन्न-भिन्न काल के हैं और चित्रों का अंकन चित्रों के ऊपर किया गया है। चित्रों के अंकन से पहले पुराने चित्रों को मिटाया भी नहीं गया है। आज भी उन चित्रों के रंग एवं रेखाएं दिखायी दे रही हैं। चित्रों का कालक्रम बनावट के आधार पर ताम्रपाषाण से लेकर ऐतिहासिक युग तक किया जा सकता है।
चूंकि आसन नदी के तट पर स्थित सिहोनियां ग्राम से कायथा, ताम्रपाषाण, पी.जी.डब्ल्यू. और इतिहास युगीन मृद्भाण्ड प्राप्त हुए हैं। (ए. आई. आर. 4978-79) लेखीछाज से पालतु भैंस, गाय, सांप, नीलगाय, बिच्छू, हिरण, चीतल, कुत्ते द्वारा जानवरों का शिकार, नृत्य, बैलगाड़ी, बैल, घोड़े, हाथी, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, धार्मिक एवं ज्यामितीय चिह्न आदि का अंकन किया गया है, जिनका विवरण निम्न है-
आखेट दृश्य: लेखीछाज से आखेट के कई दृश्य प्राप्त हुए हैं, जिनमें मनुष्य द्वारा धनुष-बाण,
तलवार, कुल्हाड़ी आदि द्वारा विभिन्न जानवरों का शिकार करते हुए दिखाया गया है। शिकार में
पालतु कुत्तों से भी सहायता ली गयी है। अधिकांश आखेट चित्रों में नीलगाय एवं हिरण का
शिकार किया गया है।
मोरों द्वारा नाग का शिकार: इन चित्रों में दो मोर एक सर्प का शिकार कर रहे हैं। इस
प्रकार के तीन चित्र प्राप्त होते है, जिनमें से दो चित्र अब धुंधले हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त
अन्य चित्र में दो मोर नृत्य करते हुए अंकित किये गये हैं।
नृत्य दृश्य: इस चित्र में 8 आकृतियां एक-दूसरे के साथ कतार बद्ध नृत्य मुद्रा में प्रदर्शित हैं।
युद्ध दृश्य: इस चित्र में दो दल आपस में युद्ध करते हुए प्रदर्शित हैं। इसमें दो व्यक्ति अंकुश
लिए हुए हाथी पर सवार हैं, जिनके आगे पीछे दो-दो सैनिक आपस में युद्ध करते हुए
प्रदर्शित हैं। इसी प्रकार का एक और चित्र प्राप्त होता है जो अब धुंधला हो चुका है।
घुड सवार: इस चित्र में दो घुडसवार प्रदर्शित हैं।
यह संभवत: एक जुलूस का दृश्य है।
बैलगाड़ी: बैलगाड़ी के तीन चित्र प्राप्त होते हैं, जिनमें से दो बैलगाड़ियों को दो-दो बैल
खीच रहे हैं तथा तीसरी गाड़ी में चार बैल गाड़ी को खीच रहे हैं।
गाड़ी के पीछे संभवतः बखर जुड़ा हुआ है। इसी कारण इसमें चार बैल लगाये गये है।
धार्मिक चिन्ह एवं अन्य सजावटी डिजाइन: शैलाश्रय में एक ओर सपाट भाग को सजाने के
लिए डिज़ाइन (Design) बनाया गया है तथा आजकल विवाह के अवसर पर बनाया जाने वाला चौक भी बनाया गया है। इसके अतिरिक्त कुछ ज्यामितीय आकृतियाँ भी बनायी गयी हैं।
लेखीछाज शैलचित्र कला संरक्षण के अभाव में धीरे-धीरे धूमिल होती जा रही है। साथ ही वर्षा से चित्रों पर लाल रंग की परत जमती जा रही है। इसके अतिरिक्त शैलचित्रों को देखने वाले लोग इन चित्रों पर अपना नाम पेन्ट (Paint), कोयला एवं विभिन्न रंगो से लिख देते हैं, जिससे चित्र खराब हो रहे हैं। ये चित्र मध्यप्रदेश की कला एवं मानव के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं। प्राचीन मानव की कला प्रियता, उनकी सोच तथा समकालीन पशु-पक्षी एवं मानव की संरचना, उनकी जीवन पद्धति, शिकार प्रौद्योगिकी, संचय विधि, उपकरण, वस्त्र-आभूषण, भौतिक संस्कृति आदि की झलक इन चित्रों से मिलती है। इनसे तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक जीवन को समझने में भी सहायता मिलती है।
संदर्भ:
1.https://bit.ly/2Pe5kmg
2.https://indiaghoomle.blogspot.com/search/label/Lekhichhaj