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यूनानी चिकित्सा विश्व की प्राचीन चिकित्साओं में से एक है, जिसका भारतीय इतिहास में भी गौरवमय स्थान रहा है। दिल्ली सुल्तानों (शासकों) ने यूनानी प्रणाली के विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया और साथ ही कुछ को राज्य कर्मचारियों और दरबारी चिकित्सकों के रूप में नामांकित किया। 13वीं से 17वीं शताब्दी के मध्य भारत में यूनानी चिकित्सा का विशेष दौर रहा। यह मूलतः यूनान की चिकित्सा पद्धति है, जिसकी नींव हिप्पोक्रेट्स (Hippocrates) द्वारा रखी गई थी। इस प्रणाली को भारत लाने का श्रेय अरबों और फारसियों (ग्यारहवीं शताब्दी में) को जाता है। आज भारत यूनानी चिकित्सा पद्धति पर कार्य करने वाले तथा इसका व्यापक रूप में उपयोग करने वाले अग्रणी देशों में से एक है।
अरबियों ने कई प्राचीन यूनानी साहित्यों को अरबी में प्रस्तुत किया तथा यूनानी चिकित्सा पद्धति में फिजिक्स (Physics), केमिस्ट्री (Chemistry), बॉटनी (Botany), एनाटॉमी (Anatomy), फिजियोलॉजी (Physiology), पैथोलॉजी (Pathology), थेराप्यूटिक्स (Therapeutics) और सर्जरी (Surgery) के विज्ञान का व्यापक उपयोग कर संशोधन किया। मिस्र, सीरिया, इराक, फारस, भारत, चीन और अन्य मध्य पूर्व के देशों में यूनानी चिकित्सा पारंपरिक दवाओं के रूप में विकसित हुई। अरबियों द्वारा भारत लाई गयी इस चिकित्सा ने कम समय में भी भारत में विशेष स्थान बना लिया। किंतु ब्रिटिश शासन काल के दौरान यूनानी चिकित्सा प्रणाली की विकास गति धीमी हो गयी। यूनानी प्रणाली के साथ कई अन्य पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को लगभग दो शताब्दियों तक उपेक्षा का सामना करना पड़ा। इन परिस्थितियों में भी भारत के कुछ राज घरानों (दिल्ली में शरीफ़ी परिवार, लखनऊ में अज़ीज़ी परिवार और हैदराबाद के निज़ाम) ने यूनानी प्रणाली को जीवित रखा। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इस पद्धति के विकास को पुनः गति मिली।
1906 में दिल्ली के हकीम हाफिज़ अब्दुल मजीद (यूनानी चिकित्सक और औषध विक्रेता) ने एक छोटे से यूनानी दवाखाने की स्थापना की। जो प्राचीन यूनानी कला को पुनर्जीवित करने का एक सूक्ष्म प्रयास था। इन्होंने यूनानी चिकित्सा के विस्तार का हर संभव प्रयास किया, वे अपने रोगियों के रोगों को ठीक करने के साथ-साथ उनके दर्द को साझा करने के लिए एक प्रभावी चिकित्सा प्रदान करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपने संगठन का नाम हमदर्द रखा, जिसका अर्थ है ‘पीड़ा में साथी’। हमदर्द व्यापार की मात्रा में वृद्धि के साथ फलने-फूलने लगा और इसका नाम यूनानी दवाओं के क्षेत्र में अखंडता और उच्च गुणवत्ता का पर्याय बन गया, जो अपेक्षाकृत सस्ती थीं। हकीम अब्दुल मजीद के निधन के बाद, उनके बेटे, हकीम अब्दुल हमीद ने 1922 में 14 साल की उम्र में हमदर्द का कार्यभार संभाला। उन्होंने आधुनिक वैज्ञानिक तर्ज पर यूनानी चिकित्सा पद्धति को लाने की पूरी कोशिश की। उन्होंने व्यवसाय का विस्तार किया और मुख्य सड़क के किनारे स्थित एक विशाल भवन में अपनी यूनानी चिकित्सा प्रारंभ की, जिसे अब दिल्ली के लाल कुआँ में हमदर्द रोड (Hamdard Road) के नाम से जाना जाता है। आज हमदर्द भारत की सबसे बड़ी यूनानी और आयुर्वेदिक दवा कंपनी है। इसके कुछ सबसे प्रसिद्ध उत्पादों में शर्बत रूह अफजा, साफ़ी, रोग़न बादाम शिरीन, सुआलीन, जोशीना और सिंकारा आदि शामिल हैं।
हकीम अजमल खान (चिकित्सक और स्वतंत्रता सेनानी) ने 1916 में दिल्ली में आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा के निर्माण हेतु एक आयुर्वेदिक और यूनानी तिब्बिया कॉलेज और हिंदुस्तानी दावखाना कंपनी की स्थापना की। महात्मा गांधी जी ने 13 फरवरी, 1921 को इस कॉलेज का उद्घाटन किया। कुछ रियासतों ने भी इस प्रणाली को पूरी तरह संरक्षण प्रदान किया। भारत सरकार ने इस प्रणाली के सर्वांगीण विकास के लिए कई कदम उठाए।
यूनानी प्रणाली पूर्णतः हिप्पोक्रेट्स के प्रसिद्ध चार शरीर द्रव के सिद्धान्तों पर आधारित है, यह द्रव हैं- रक्त, कफ, पीले पित्त और काले पित्त। मानव शरीर को निम्नलिखित सात घटकों से बना माना जाता है:
1. तत्व - मानव शरीर में चार तत्व होते हैं। चार तत्वों में से प्रत्येक का अपना स्वभाव इस प्रकार है:
2. स्वभाव - यूनानी प्रणाली में, व्यक्ति का स्वभाव बहुत महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि व्यक्तियों का स्वभाव तत्वों की परस्पर क्रिया का परिणाम है। स्वभाव संतुलित हो सकता है जहां उपयोग किए गए चार तत्व समान मात्रा में होते हैं। मानव स्वास्थ्य पर उसके स्वभाव का विशेष प्रभाव पड़ता है।
3. द्रव – द्रव शरीर के वे तरल भाग हैं जिनका उत्पादन रूपांतरण और चयापचय के बाद होता है। वे पोषण, विकास और मरम्मत का कार्य और ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। साथ ही शरीर में नमी को बनाए रखने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। द्रव्य प्रणाली में किसी भी प्रकार का असंतुलन रोग का कारण बनता है।
4. अंग - ये मानव शरीर के विभिन्न अंग हैं। प्रत्येक अंग का स्वास्थ्य या रोग पूरे शरीर के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
5. आत्मा – यह एक गैसीय पदार्थ है जो वायु से प्राप्त होती है। यह शरीर की सभी चयापचय गतिविधियों में मदद करता है। यह शरीर में जीवन का मुख्य स्त्रोत हैं, इसलिए रोगों के उपचार में महत्वपूर्ण माने जाते हैं। ये विभिन्न शक्तियों के वाहक हैं, जो संपूर्ण शारीरिक प्रणाली और इसके भागों को क्रियाशील बनाते हैं।
6. मानसिक या शारीरिक शक्ति – ये तीन प्रकार की होती हैं:
प्राकृतिक शक्ति- यह चयापचय और प्रजनन की शक्ति है। यह मुख्यतः यकृत (लिवर/Liver) में स्थित होती है। चयापचय का संबंध मानव शरीर के पोषण और विकास की प्रक्रियाओं से है।
मानसिक शक्ति- मानसिक शक्ति का तात्पर्य तंत्रिका और मानसिक शक्ति से है। यह मस्तिष्क के भीतर स्थित होती है और अवधारणात्मक और प्रेरक शक्ति के लिए उत्तरदायी होती है।
जीवनीक शक्ति- यह जीवन को बनाए रखने के लिए उत्तरदायी है, यह शक्ति हृदय में स्थित होती है।
7. कार्य - यह घटक शरीर के सभी अंगों की गति और क्रियाओं को संदर्भित करता है। एक स्वस्थ शरीर के विभिन्न अंग अपने उचित आकार में होने के साथ-साथ अपने कार्य भी सुचारू रूप से करते हैं।
एक स्वस्थ व्यक्ति का शरीर सुचारू रूप से कार्य करता है, इसके विपरीत यदि मानव स्वास्थ्य बिगड़ जाता है तो शरीर की कार्य प्रणाली अव्यवस्थित हो जाती है। यूनानी प्रणाली में शरीर के विभिन्न हिस्सों का गहनता से निरीक्षण करके, रोगों का उपचार किया जाता है।
संदर्भ:
1. http://ayush.gov.in/about-the-systems/unani
2. http://ayush.gov.in/about-the-systems/unani/principles-concepts-and-definition
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Hamdard_(Wakf)_Laboratories
4. http://www.hamdard.in/unani
5. http://www.hamdardnationalfoundation.org/aboutus.html#
6. http://www.hamdard.in/brand
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