फ़ीलपाँव से मुक्ति के लिए, जौनपुर के नदी-नालों की सफ़ाई अत्यंत ज़रूरी है

कीटाणु,एक कोशीय जीव,क्रोमिस्टा, व शैवाल
25-04-2025 09:12 AM
फ़ीलपाँव से मुक्ति के लिए, जौनपुर के नदी-नालों की सफ़ाई  अत्यंत ज़रूरी है

जौनपुर शहर में कई लोग गोमती नदी के किनारे रहते हैं! हालाँकि यह नदी जौनपुर के कई क्षेत्रों को पोषित करती है, लेकिन बरसात या बाढ़ के बाद, नदी-नालों के आसपास के इलाके गंभीर बीमारियों के प्रति बेहद संवेदनशील हो जाते हैं! जैसे कि इस तरह के इलाकों में मलेरिया होने की संभावना बहुत अधिक हो जाती है! लेकिन क्या आप जानते हैं कि “मलेरिया की तरह  फ़ीलपाँव (Elephantiasis) भी एक खतरनाक परजीवी संक्रमण होता है”! इसे “हाथीपांव” या लसीका फ़ाइलेरिया (Lymphatic filariasis) के नाम से भी जाना जाता है और यह संक्रमण भी मच्छरों के ज़रिए फैलता है! इससे संक्रमित व्यक्ति के शरीर के अंगों, ख़ासकर हाथ-पैर, स्तनों और जननांगों में असामान्य सूजन हो सकती है। भारत में  इस रोग का बोझ दुनिया में सबसे अधिक है! चौंकाने वाली बात यह है कि दुनिया भर में फ़ाइलेरिया के कुल मामलों का लगभग 40% अकेले भारत में देखे गए हैं। देश में 31 मिलियन से अधिक लोग पहले से संक्रमित हैं, जबकि 450 मिलियन से ज़्यादा लोग इस बीमारी की ज़द में हैं। लेकिन क्या हम इस बीमारी को रोक सकते हैं? आज के इस लेख में हम जानेंगे कि लसीका फ़ाइलेरिया के लक्षण क्या होते हैं और यह हमारे शरीर को कैसे प्रभावित करता है। इसके अलावा हम यह भी समझेंगे कि इसका इलाज कैसे किया जाता है। साथ ही, हम जानेंगे कि भारत सरकार इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए कौन-कौन से कदम उठा रही है और आप ख़ुद को और अपने परिवार को कैसे सुरक्षित रख सकते हैं।

एक श्वेत-श्याम तस्वीर में हाथीपांव से पीड़ित एक महिला के पैर दिखाए गए हैं, जिसमें गंभीर सूजन और मोटी त्वचा है।  |चित्र स्रोत : Wikimedia 

आइए सबसे पहले जानते हैं कि फ़ीलपाँव कैसे होता है ?
फ़ीलपाँव एक गंभीर बीमारी है, जो तब होती है जब कोई व्यक्ति लंबे समय तक संक्रमित मच्छरों के काटने का शिकार होता है। यह बीमारी उन क्षेत्रों में अधिक पाई जाती है, जहाँ कुछ विशेष प्रकार के राउंडवॉर्म (Roundworm) मौजूद होते हैं। जब कोई संक्रमित मच्छर किसी व्यक्ति को काटता है, तो ये सूक्ष्म परजीवी (लार्वा) उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। एक बार शरीर में पहुँचने के बाद, ये छोटे लार्वा रक्तप्रवाह में रहकर धीरे-धीरे विकसित होते हैं। फिर ये लसीका तंत्र (Lymphatic System) में जाकर परिपक्व हो जाते हैं और वहाँ कई वर्षों तक शरीर में मौजूद रह सकते हैं। समय के साथ, ये परजीवी लसीका तंत्र को नुक़सान पहुँचाने लगते हैं, जिससे शरीर में सूजन और अन्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

फ़ीलपाँव के प्रमुख लक्षण क्या हैं ?

इस बीमारी की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि शुरुआती चरणों में कोई स्पष्ट लक्षण दिखाई नहीं देते। कई वर्षों तक व्यक्ति को पता भी नहीं चलता कि वह संक्रमण से प्रभावित हो चुका है।
लेकिन जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता है, कुछ स्पष्ट लक्षण उभरने लगते हैं! जैसे कि:

अत्यधिक सूजन: शरीर के कुछ हिस्सों, ख़ासकर पैरों, हाथों, स्तनों या जननांगों में असामान्य रूप से सूजन आ जाती है।

त्वचा में बदलाव: प्रभावित क्षेत्र की त्वचा मोटी, सख़्त और गाँठदार हो सकती है, जिससे वह हाथी की त्वचा जैसी दिखने लगती है।

दर्द और असहजता: सूजन वाले हिस्सों में दर्द, भारीपन और असहजता महसूस हो सकती है।

अन्य लक्षण: कुछ मामलों में तेज़ बुखार, ठंड लगना, कमज़ोरी और सामान्य अस्वस्थता महसूस हो सकती है। 

साल 2023 तक, भारत में 6.19 लाख लोग लिम्फेडेमा और 1.26 लाख लोग हाइड्रोसील से प्रभावित पाए गए हैं। देश के 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 339 जिलों में फ़ाइलेरिया के स्वदेशी मामले दर्ज किए गए हैं।

चित्र स्रोत : Wikimedia 

कुछ राज्य और केंद्र शासित प्रदेश फ़ाइलेरिया मुक्त माने जाते हैं, जिनमें शामिल हैं:
उत्तर-पश्चिम भारत – जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, राजस्थान, दिल्ली और उत्तराखंड।
पूर्वोत्तर भारत – सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मेघालय, मिज़ोरम, मणिपुर और त्रिपुरा।

आइए अब फ़ाइलेरिया प्रभावित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर एक नज़र डालते हैं:
उत्तर, पश्चिम, दक्षिण और पूर्व भारत – आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, झारखंड, कर्नाटक, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल।
केंद्र शासित प्रदेश – पुडुचेरी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दमन और दीव, दादरा और नगर हवेली, और लक्षद्वीप। 
फ़ाइलेरिया के बढ़ते हुए प्रभाव से बचाव और इसके उन्मूलन के लिए जागरूकता बढ़ाने और चिकित्सा उपायों को तेज़ करने की ज़रूरत है। समय पर पहचान, रोकथाम और उपचार से इस बीमारी पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकता है।

चित्र स्रोत : flickr

 फ़ीलपाँव से कैसे बचाव करें ?

मच्छरों से बचाव ही फ़ीलपाँव से बचने के लिए सबसे कारगर उपाय साबित होता है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण उपाय दिए गए हैं:

मच्छरदानी का इस्तेमाल करें और कीटनाशकों का छिड़काव करें।

रुके हुए पानी को हटाएँ, ताकि मच्छरों को पनपने का मौका न मिले।

शरीर को पूरी तरह ढकने वाले कपड़े पहनें, ख़ासकर उन क्षेत्रों में जहाँ मच्छर अधिक होते हैं। अगर आप किसी ऐसे इलाके में रहते हैं जहाँ यह बीमारी आम है, तो डॉक्टर की सलाह पर दवा लें।

फ़ीलपाँव का इलाज कैसे किया जाता है?

फ़ीलपाँव एक गंभीर बीमारी है, लेकिन इसका इलाज संभव है। इसके इलाज के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं, जिनमें शामिल हैं:

एंटीपैरासिटिक दवाएँ : इस बीमारी के इलाज में कुछ ख़ास दवाएँ (जैसे आइवरमेक्टिन (Stromectol®), डायथाइलकार्बामाज़िन (Hetrazan®) और एल्बेंडाज़ोल (Albenza®)) दी जाती हैं। ये दवाएँ शरीर में मौजूद वयस्क कृमियों को नष्ट करने या उनके प्रजनन को रोकने में मदद करती हैं। इससे संक्रमण फैलने की संभावना भी कम हो जाती है। चूँकि कृमि शरीर में लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं, इसलिए इन दवाओं को साल में एक बार, कुछ हफ़्तों तक लेने की सलाह दी जाती है।

सर्जरी: कुछ मामलों में, सर्जरी की ज़रूरत पड़ सकती है। यदि शरीर में मृत कृमि (dead worms) मौजूद हैं, तो उन्हें हटाने के लिए ऑपरेशन किया जाता है। इसके अलावा, अगर फ़ाइलेरिया के कारण अंडकोश (Scrotum) में तरल पदार्थ जमा हो गया है, तो उसे निकालने के लिए भी सर्जरी की जाती है।

सूजन का प्रबंधन: फ़ीलपाँव के कारण शरीर में सूजन हो सकती है, जिसे कम करने के लिए कुछ ख़ास उपाय किए जाते हैं। डॉक्टर, मरीज़ों को सूजन कम करने के लिए प्रभावित अंग को ऊँचा रखने या विशेष प्रकार के कपड़े – संपीड़न वस्त्र (Compression Garments) पहनने की सलाह देते हैं। इससे सूजन में राहत मिलती है और बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है।

चित्र स्रोत : Wikimedia

इलाज में सही दवाओं, समय पर सर्जरी और उचित देखभाल से इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसलिए, समय पर डॉक्टर से सलाह लेना बहुत ज़रूरी है। भारत में यह एक गंभीर बीमारी है, लेकिन इसे खत्म करने के लिए सरकार और स्वास्थ्य संस्थाएँ लगातार प्रयास कर रही हैं। आइए समझते हैं कि इसके लिए कौन-कौन से उपाय अपनाए जा रहे हैं और इसमें आपकी क्या भूमिका हो सकती है।

सामूहिक औषधि प्रशासन (MDA): भारत में हाथीपांव को जड़ से खत्म करने के लिए सामूहिक औषधि प्रशासन (Mass Drug Administration (MDA)) को प्रमुख रणनीति के रूप में अपनाया गया है। इसका उद्देश्य सिर्फ दवा बाँटना नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि लोग दवा का सही तरीक़े से सेवन भी करें।  यह अभियान,  फ़रवरी  2023 में शुरू हुआ था। पहले चरण की सफलता के बाद, दूसरा चरण 10 अगस्त 2023 को शुरू हुआ, जिसमें 82   ज़िलों और 8 राज्यों को शामिल किया गया।  गर्भवती महिलाएँ, दो साल से छोटे बच्चे और गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को छोड़कर, सभी लोग दवा ले सकते हैं।  यदि आप दो साल से अधिक उम्र के हैं, तो आपको  एम डी ए अभियान में दी जाने वाली दवा का सेवन ज़रूर करना चाहिए। इससे संक्रमण फैलने से रोका जा सकता है।

अगर किसी व्यक्ति को हाथीपांव हो जाता है, तो समय पर सही उपचार और देखभाल से उसकी स्थिति को गंभीर होने से बचाया जा सकता है। हाथीपांव से पीड़ित व्यक्ति को प्रभावित अंग की नियमित साफ़-सफ़ाई करनी चाहिए। सूजन कम करने और चलने-फिरने में आसानी के लिए डॉक्टर फ़िजियोथेरेपी की सलाह देते हैं। हाथीपांव फैलाने वाला परजीवी मच्छरों के ज़रिए शरीर में प्रवेश करता है।  
इसलिए, मच्छरों को पनपने से रोकना बेहद ज़रूरी है:
जौनपुर की नदियों और नालों को साफ़ रखें!
- घर और आसपास पानी जमा न होने दें।
- मच्छरदानी का इस्तेमाल करें और मच्छर भगाने वाली क्रीम लगाएँ।
- सरकार द्वारा चलाए जा रहे फ़ॉगिंग और स्प्रे  अभियानों में सहयोग करें।
भारत को हाथीपांव मुक्त बनाने का लक्ष्य तभी हासिल होगा जब हम सभी मिलकर इसमें सहयोग करें।

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/2273ltbj 

https://tinyurl.com/2eg7n2np 

https://tinyurl.com/2d8r75u2 

https://tinyurl.com/2bfd2wns 

मुख्य चित्र में फ़ीलपाँव से पीड़ित और जौनपुर के दृश्य का स्रोत : wikimedia, प्रारंग चित्र संग्रह

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