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जिस तरह से जौनपुर शहर को अपने चर्चित राजनीतिक इतिहास और इस्लामिक दौर की शानदार इमारतों के लिए जाना जाता है, ठीक उसी प्रकार, उत्तर प्रदेश के निज़ामाबाद शहर की पहचान उसके खास काले मिट्टी के बर्तनों (Black Pottery) से होती है। यह शहर आज़मगढ़ जिले में पड़ता है, और यहाँ बनने वाले ये चमकदार बर्तन, अपनी अनोखी चांदी जैसी नक्काशी के लिए मशहूर हैं। यह कला, सदियों पुरानी है और आज भी करीब 200 परिवार इससे जुड़े हुए हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि यह परंपरा अब धीरे-धीरे खत्म होने की कगार पर है। इसलिए आज के इस लेख में हम इन बर्तनों की खासियत और इन्हें बनाने की पूरी प्रक्रिया से रूबरू होंगे। फिर बात करेंगे उन चुनौतियों की, जिनका सामना यह परंपरागत उद्योग कर रहा है। आखिर में, यह समझेंगे कि इसे बचाने के लिए स्थानीय कारीगर और अलग-अलग संगठन क्या क़दम उठा रहे हैं।
आइए, सबसे पहले जानते हैं कि निज़ामाबाद के मिट्टी के बर्तनों को कैसे मिलता है, अपना सुंदर काला रंग ?
निज़ामाबाद के काली मिट्टी के बर्तनों में पारंपरिक कारीगरी और नवीन तकनीकों का अनोखा संगम नज़र आता है। इन बर्तनों को बनाने के लिए स्थानीय मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे पहले कुशल कारीगर ख़ूबसूरत आकार में ढालते हैं। इसके बाद, इन बर्तनों को भट्ठियों में पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में चावल की भूसी जलाकर गाढ़ा धुआँ तैयार किया जाता है। यह धुआँ मिट्टी पर जमकर इसे उसका खास गहरा काला रंग देता है। यही रंग इन्हें अन्य सामान्य मिट्टी के बर्तनों से अलग बनाता है।
बर्तनों को सजाने के लिए कारीगर नुकीली टहनियों से ज्यामितीय आकृतियाँ और फूल-पत्तियों के ख़ूबसूरत डिज़ाइन उकेरते हैं। इसके बाद, इन डिज़ाइनों को और निखारने के लिए जस्ता और पारे से बने चांदी के पाउडर को सतह पर रगड़ा जाता है। इससे बर्तनों पर चमकदार चांदी और गहरे काले रंग का शानदार कंट्रास्ट (contrast) उभरकर आता है। इन बर्तनों की खूबसूरती और टिकाऊपन बढ़ाने के लिए एक खास प्रक्रिया में सरसों के तेल का इस्तेमाल किया जाता है। यह तेल बर्तनों को एक चमकदार फ़िनिश देता है, जिससे वे और आकर्षक दिखते हैं। निज़ामाबाद की यह कला न सिर्फ़ अपनी अनोखी बनावट और रंग के कारण प्रसिद्ध है, बल्कि इसमें छिपी मेहनत और परंपरा की झलक भी इसे बेहद खास बनाती है। निज़ामाबाद में काली मिट्टी के बर्तन बनाना एक जटिल लेकिन ख़ूबसूरत प्रक्रिया है। इसके लिए, सबसे अच्छी मिट्टी स्थानीय तालाबों से लाई जाती है। इसे इस्तेमाल करने से पहले पैरों से अच्छी तरह गूंधा जाता है, ताकि यह मुलायम और आकार देने के लायक हो जाए। इसके बाद, कुम्हार इस मिट्टी को चाक पर रखकर बर्तन का रूप देते हैं। फिर, बेहद बारीक सुई से उन पर सुंदर नक्काशी की जाती है। इस नक्काशी के बाद, बर्तनों पर गहरे रंग का खास लेप चढ़ाया जाता है, जो मिट्टी से ही तैयार किया जाता है। जब बर्तन पूरी तरह तैयार हो जाते हैं, तो उन्हें रातभर के लिए ओवन में रखा जाता है। इस दौरान, उन पर हल्का सरसों का तेल भी लगाया जाता है। बर्तनों को चमकदार काला रंग देने के लिए ओवन में बहुत अधिक तापमान रखा जाता है और ऑक्सीजन की सप्लाई बंद कर दी जाती है। आखिर में, नक्काशीदार डिज़ाइन को उभारने के लिए एक विशेष मिश्रण भरा जाता है, जिसमें बराबर मात्रा में सीसा, पारा और जस्ता का पाउडर होता है। इस पूरी प्रक्रिया के बाद, हमें मिलते हैं निज़ामाबाद के शानदार काले मिट्टी के बर्तन, जो अपनी अनोखी चमक और डिज़ाइन के लिए मशहूर हैं।
चलिए, अब जानते हैं कि निज़ामाबाद में काली मिट्टी के बर्तनों का उद्योग संकट में क्यों है ?
निज़ामाबाद का मशहूर ब्लैक पॉटरी उद्योग, एक मुश्किल दौर से गुज़र रहा है। कुम्हार गर्मियों में स्थानीय तालाबों से मिट्टी निकालते हैं, लेकिन अब ये तालाब तेज़ी से ग़ायब हो रहे हैं। बढ़ती आबादी और विकास के नाम पर कई तालाबों को भरकर वहाँ मकान और इमारतें बना दी गई हैं। इससे कारीगरों को सही मिट्टी मिलना मुश्किल हो गया है। सरकार की तरफ़ से अब तक इस समस्या को हल करने के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाया गया है। कुम्हार, मिट्टी की स्थिर आपूर्ति के लिए सरकार पर निर्भर हैं, लेकिन यह उनकी अकेली चुनौती नहीं है। उन्हें पुरानी तकनीकों, सही दाम तय करने और ग्राहकों तक पहुँचने में भी कई का सामना करना पड़ रहा है। दिलचस्प बात यह है कि ब्लैक पॉटरी की क़ीमत उसके आकार पर नहीं, बल्कि उस पर की गई बारीक कारीगरी पर निर्भर करती है।
सरकार इस उद्योग की मदद कैसे कर रही है ?
उत्तर प्रदेश सरकार ने 2018 में "एक ज़िला, एक उत्पाद" (One District One Product (ODOP)) योजना शुरू की थी, ताकि हर ज़िले के खास शिल्प और उद्योग को बढ़ावा दिया जा सके। आज़मगढ़ ज़िले के लिए इस उद्योग को इस योजना में शामिल किया गया है। सरकार ने कुम्हारों को क़र्ज़ मिलने की प्रक्रिया आसान बना दी है, जिससे वे अपने व्यवसाय को आगे बढ़ा सकें। इसके अलावा, सरकार ने कई कारीगरों को बिजली से चलने वाली चाक (कुम्हारों का पहिया) भी दी हैं। हालाँकि, इनमें से कई ज़्यादा समय तक टिक नहीं पाईं। ऐसे में, कारीगरों के सामने अभी भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं, और इस पारंपरिक कला को बचाने के लिए और भी ठोस प्रयासों की ज़रूरत है।
कैसे फिर से चमका निज़ामाबाद के काली मिट्टी के बर्तनों का उद्योग?
निज़ामाबाद के कारीगरों ने अपनी विरासत को खत्म नहीं होने दिया। उन्होंने समय के साथ बदलने की ज़रूरत को समझा और अपनी पारंपरिक कारीगरी में आधुनिक डिज़ाइन जोड़ने लगे। इससे उनकी कला को एक नया रूप मिला और ज़्यादा लोगों तक पहुँचने का मौक़ा भी। खासकर, युवा पीढ़ी की दिलचस्पी बनाए रखने के लिए उन्होंने अपने शिल्प में नई जान डालने का काम किया। इस कला को फिर से ज़िंदा करने के लिए कई संगठनों ने भी आगे क़दम बढ़ाया। कारीगरों को बेहतर प्रशिक्षण और ज़रूरी संसाधन दिए गए ताकि वे अपनी तकनीकों को और निखार सकें। अलग-अलग कार्यशालाएँ और कौशल-साझाकरण प्लेटफ़ॉर्म तैयार किए गए, जिससे कारीगर नए और अनोखे डिज़ाइन बना सकें। इसके अलावा, इन संस्थाओं ने स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस कला की सांस्कृतिक अहमियत को उजागर करने में भी बड़ी भूमिका निभाई। यहाँ के कारीगरों की मेहनत और संगठनों के सहयोग से, निज़ामाबाद की ब्लैक पॉटरी एक बार फिर अपनी पहचान बनाने में कामयाब रही।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/25ajpp44
https://tinyurl.com/2cucpf5p
https://tinyurl.com/22sq2cuo
https://tinyurl.com/24g8uxr7
https://tinyurl.com/23kz2xpo
मुख्य चित्र: उत्कीर्ण चांदी के पैटर्न के साथ अपनी चमकदार बनावट के लिए प्रसिद्ध निज़ामाबाद में बने काली मिटटी के बर्तन (Wikimedia)
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