जौनपुर में आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोगी ‘साइकस बेडडोमी’ का संरक्षण, क्यों ज़रूरी है ?

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29-03-2025 09:13 AM
जौनपुर में आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोगी ‘साइकस बेडडोमी’ का संरक्षण, क्यों ज़रूरी है ?

जौनपुर में ऐसे कई लोग हैं, जो छोटी-बड़ी बीमारियों या घावों के उपचार के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा का सहारा लेना पसंद करते हैं! क्या आप जानते हैं कि आयुर्वेदिक चिकित्सा जगत में 'साइकस बेडडोमी' (Cycas beddomei) एक ऐसा पौधा होता है, जिसे गठिया और मांसपेशियों के दर्द के उपचार में बेहद कारगर माना जाता है! यह साइकस वंश का एक विशेष पौधा है! भारतीय मूल का यह पौधा मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश के तिरुमाला हिल्स में पाया जाता है। यह क्षेत्र झाड़ियों और पहाड़ियों से घिरा हुआ है, और इसी सीमित दायरे में यह पौधा प्राकृतिक रूप से विकसित होता है। आई यू सी एन (International Union for Conservation of Nature (IUCN)) ने 2010 में इसे 'लुप्तप्राय' प्रजातियों की सूची में शामिल किया था। इसका मतलब है कि अगर इसे बचाने के प्रयास नहीं किए गए, तो यह प्रजाति विलुप्त हो सकती है। आज के इस लेख में हम, इस पौधे के बारे में विस्तार से जानेंगे। सबसे पहले हम इसकी भौतिक विशेषताओं, आवास और उपयोगों को समझेंगे। फिर, इसकी घटती जनसंख्या और इसके अस्तित्व के लिए बढ़ते खतरों पर नज़र डालेंगे। इसके बाद, हम भारत में इस दुर्लभ प्रजाति के संरक्षण के लिए उठाए जा रहे कदमों पर चर्चा करेंगे। आखिर में, हम जानेंगे कि आंध्र विश्वविद्यालय का वनस्पति उद्यान इस पौधे के संरक्षण में किस तरह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

चित्र स्रोत: wikimedia 

साइकस बेडडोमी, एक सदाबहार पौधा है, जो दिखने में ताड़ के पेड़ जैसा लगता है। इसका मुख्य तना सीधा होता है, जो धीरे-धीरे बढ़कर लगभग 200 सेमी लंबा और 15 सेमी मोटा हो सकता है। इसके शीर्ष पर 20 से 30 बड़ी पत्तियों का घना मुकुट बनता है, जिनमें से हर पत्ती की लंबाई लगभग 100 से 130 सेमी तक होती है। यह पौधा, पूर्वी भारत के शुष्क और गर्म झाड़ीदार क्षेत्रों में पाया जाता और मुख्य, रूप से नर पौधों में पिल्लों (छोटे नए पौधों) के माध्यम से फैलता है। इसकी खासियत यह है कि यह आग प्रतिरोधी होता है, लेकिन इसके बीज और अंकुर वार्षिक घास की आग के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं। 

नर पौधा अक्सर अपने आधार से नए अंकुर निकालकर गुच्छों का निर्माण करता है, जबकि मादा पौधा अकेला रहता है। इस पौधे का उपयोग पारंपरिक दवाओं में किया जाता है। इसे जंगली क्षेत्रों से काटकर स्थानीय औषधीय उपयोग के लिए बेचा जाता है। इस पौधे के नर शंकु का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है। इसे रूमेटाइड गठिया (Rheumatoid arthritis) और मांसपेशियों के दर्द के इलाज में कारगर माना जाता है। औषधीय उपयोग के कारण इसकी अत्यधिक मांग रहती है, जिससे इसकी प्राकृतिक आबादी तेजी से घट रही है। इसी कारण, अब यह साइकैड एक लुप्तप्राय प्रजाति बन चुका है।

चित्र स्रोत: wikimedia 

इसकी पीछे दो मुख्य वजहें हैं— 
1. स्थानीय स्तर पर औषधीय प्रयोजनों के लिए अत्यधिक दोहन। 
2. जंगल में लगने वाली आग, जो इसके प्रजनन को बाधित करती है। 
इस पौधे की गिरती हुई आबादी का सटीक अनुमान लगाना कठिन है, क्योंकि पुराने आँकड़ों ने इसकी वास्तविक संख्या और प्रसार को कम करके आँका था। 2006 से पहले, साइकस बेडडोमी की कुल आबादी 1,000 से भी कम मानी जाती थी। लेकिन 2006-2008 के दौरान, किए गए विस्तृत अध्ययन से पता चला कि यह संख्या पहले के अनुमान से कहीं अधिक है। अब माना जाता है कि परिपक्व पेड़ों की संख्या 20,000 से 30,000 के बीच हो सकती है।

हालांकि, भारत में पाई जाने वाली साइकस प्रजातियों के सभी प्राकृतिक आवास खतरे में हैं। इनकी संख्या लगातार घट रही है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस प्रजाति की 97% आबादी केवल शेषचलम पहाड़ियों में पाई जाती है। यही कारण है कि प्राकृतिक आवासों का विनाश, जंगलों की सफ़ाई, बार-बार लगने वाली आग और अत्यधिक दोहन इसकी आबादी के लिए सबसे बड़े खतरे बनकर उभरे हैं।

इसके अलावा, जल्दी पैसा कमाने के लिए नर और मादा शंकुओं को चुनिंदा रूप से हटाया जा रहा है। आयुर्वेदिक दवाओं में इसके उपयोग से नर-मादा पौधों का संतुलन बिगड़ रहा है। वहीं, सजावटी उद्देश्यों के लिए इन पौधों को उखाड़ा जा रहा है। कुछ मामलों में, आटा बनाने और दुर्बलता का इलाज करने के लिए इसके गूदे को निकाला जाता है, जिससे इसकी संख्या और घटती जा रही है।

सबसे चिंताजनक बात यह है कि इसकी अधिकतम आबादी बहुत ही सीमित क्षेत्र में केंद्रित है। इसके अलावा, हेमिप्टेरान स्केल सैसेटियाकॉफ़ी (Hemiptera Scale Sacetiacoff) और लूथ्रोड्स पांडवा (Luthrodes pandava) जैसे प्राकृतिक परजीवी भी इसके लिए गंभीर खतरा बन सकते हैं। यदि इनका संक्रमण बड़े पैमाने पर बढ़ा, तो भविष्य में यह पूरी प्रजाति के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है।

साइकस सर्किनेलिस | चित्र स्रोत: wikimedia 

आइए, अब यह समझने की कोशिश करते हैं कि भारत में साइकस बेडडोमी के संरक्षण के लिए कौन-कौन से कदम उठाए जा सकते हैं:

छात्र स्वयंसेवकों को जागरूक करें – स्थानीय छात्र स्वयंसेवकों के लिए प्रेरणादायक बैठकें आयोजित करें और उन्हें परियोजना की पूरी जानकारी दें।

वन विभाग से संपर्क करें – साइकस बेडडोमी प्रजातियों के संरक्षण के लिए ज़िला वन अधिकारी, तिरुवन्नामलाई से अनुरोध करें।

पौधों की खरीद और स्थानांतरण – आंध्र प्रदेश की कैप्टिव नर्सरियों से पौधे खरीदें और उन्हें निर्धारित स्थानों व बायो-फेंस तक सुरक्षित पहुँचाएँ।

पौधारोपण अभियान चलाएँ – मज़दूरों और छात्र स्वयंसेवकों की मदद से लक्ष्य स्थान पर पौधे रोपित करें और उनका उचित देखभाल सुनिश्चित करें।

आइए अब जानते हैं कि आंध्र विश्वविद्यालय का वनस्पति उद्यान साइकस बेडडोमी का संरक्षण कैसे कर रहा है?

आंध्र विश्वविद्यालय (Andhra University (ए यू)) के वनस्पति विज्ञान विभाग ने पूर्वी घाट और आसपास के क्षेत्रों में पाई जाने वाली 30 दुर्लभ और स्थानिक पौधों की प्रजातियों के संरक्षण के लिए एक विशेष परियोजना शुरू की है। इस पहल के तहत, एयू का वनस्पति उद्यान एक अभयारण्य की तरह काम करेगा। यहां इन पौधों को उगाया जाएगा, उन पर शोध किया जाएगा और उनका संरक्षण किया जाएगा। यह प्रयास जैव विविधता को बचाने की वैश्विक कोशिशों के साथ जुड़ा हुआ है। इसमें ऐसे पौधे शामिल हैं, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की लाल सूची (Red List) में लुप्तप्राय (Endangered) या असुरक्षित (Vulnerable) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

संरक्षित की जाने वाली लुप्तप्राय वृक्ष प्रजातियों में अल्बिजिया थॉम्पसनी ब्रांडिस प्रमुख है, जिसे आई यू सी एन ने लुप्तप्राय श्रेणी में रखा है। यह प्रजाति, केवल पूर्वी भारत में पाई जाती है। इसके अलावा, बोसवेलिया ओवलिफोलिओलाटा (Boswellia ovalifoliolata) को भी संरक्षित जा रहा है है, जो कमज़ोर स्थिति में है और केवल दक्षिण-पूर्व भारत में पाया जाता है।

इसके अलावा, साइकस बेडडोमी डायर (Cycas beddomei Dyer) और साइकस स्फ़ेरिका रोक्सब (Cycas sphaerica Roxb) भी संरक्षण के महत्वपूर्ण भाग हैं। इनमें से साइकस बेडडोमी डायर लुप्तप्राय है और आंध्र प्रदेश की स्थानिक प्रजाति है। आंध्र विश्वविद्यालय का यह वनस्पति उद्यान न केवल दुर्लभ पौधों को बचाने का काम करेगा, बल्कि उनके अध्ययन और अनुसंधान के लिए भी एक महत्वपूर्ण केंद्र बनेगा।

 

संदर्भ: 

https://tinyurl.com/2bxaq3bv
https://tinyurl.com/25dzedtw
https://tinyurl.com/23bk4zw4
https://tinyurl.com/2a7ngpbw
https://tinyurl.com/2ypdoga3

मुख्य चित्र: साइकस बेडडोमी का पौधा (Wikimedia)

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