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जौनपुर में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर, अनेक योग शिविर लगाए जाते हैं। लोगों की भारी भीड़ इन शिविरों की ओर आकर्षित होती है। इससे आप यह अंदाज़ा लगा सकते हैं कि, जौनपुर के लोगों में योग के प्रति रूचि दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। प्राचीन भारत में विकसित हुए योग को हम शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अनुशासन के रूप में जानते हैं। हिंदू, जैन और बौद्ध परंपराओं में इसे विशेष महत्व दिया गया है।
क्या आप जानते हैं कि सांख्य दर्शन को 'योग की जननी' कहा जाता है? यह दर्शन हिंदू विचारधारा का एक द्वैतवादी स्कूल है। माना जाता है कि इसका निर्माण ब्रह्मांड को दो तत्वों, चेतना और प्रकृति, से हुआ है। इसलिए आज के इस लेख में हम योग के उद्देश्य और इसके महत्व के बारे में विस्तार से जानेंगे। इसके बाद, हम यह समझेंगे कि सांख्य दर्शन को 'योग की जननी' क्यों कहा जाता है। साथ ही, हम भारत में योग की उत्पत्ति और इसके इतिहास पर चर्चा करेंगे। अंत में, हम महर्षि पतंजलि के जीवन और उनके प्रसिद्ध कार्यों के बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे।
योग का सामान्य अर्थ "मिलन" या "अनुशासन" होता है। योग सांख्य दर्शन के सिद्धांतों पर आधारित है। सांख्य दर्शन जीवन के सत्यों को अनुभव करने के लिए एक व्यावहारिक मार्ग प्रदान करता है। योग का मुख्य उद्देश्य, व्यक्तिगत चेतना (आत्मा) का सार्वभौमिक चेतना (ब्रह्म) से मिलन करना होता है।
अनुशासित अभ्यासों के माध्यम से, योग आत्मा और ब्रह्म के एकत्व पर जोर देता है। इसका लक्ष्य अनुशासन और अभ्यास के ज़रिए मुक्ति प्राप्त करना और स्वयं की वास्तविक प्रकृति का एहसास करना होता है। अपने मानसिक परिवर्तनों को रोकना, आत्म-साक्षात्कार की दिशा में योग को एक महत्वपूर्ण कदम माना गया है। योग ध्यान, आसन, श्वास नियंत्रण (प्राणायाम), नैतिक अभ्यास और भक्ति जैसे अनुशासनात्मक तरीकों पर आधारित है। इन तकनीकों से मानसिक और शारीरिक संतुलन हासिल किया जाता है। पतंजलि के योग सूत्र में "ईश्वर" का उल्लेख एक विशेष प्रकार के पुरुष के रूप में किया गया है। योग में देवता की अवधारणा को स्वीकार किया गया है, जो इसे आध्यात्मिक और व्यावहारिक दोनों दृष्टिकोणों से समृद्ध बनाता है।
सांख्य दर्शन को योग की जननी क्यों माना जाता है?
सांख्य दर्शन, सृष्टि के द्वैतवादी कारणता सिद्धांत पर आधारित है। यह एक प्राचीन दर्शन है, जिसका उल्लेख उपनिषदों और भगवद गीता में मिलता है। इसकी स्थापना महान ऋषि कपिल द्वारा की गई थी, जिन्हें बुद्ध से भी पहले का माना जाता है।
सांख्य का अर्थ, "संख्या" या "अनुभवजन्य" होता है। यह सिद्धांत कहता है कि ‘सृष्टि न तो निहित है और न ही स्पष्ट।’ इसमें श्रृष्टि के उत्पादन और विनाश के विचार को नकारा गया है। इसके अनुसार, आत्मा और पदार्थ दो अलग-अलग तत्व हैं। सांख्य दर्शन सबसे पुराने स्कूलों में से एक है। इसमें कहा गया है कि, हर चीज़, पुरुष (आत्मा, बुद्धि) और प्रकृति (पदार्थ, सृजन, ऊर्जा) से उत्पन्न होती है। सांख्य दर्शन मानता है कि शरीर दो प्रकार के होते हैं।
- पहला, भौतिक या लौकिक शरीर, जो नश्वर है।
- दूसरा, ईथर या सूक्ष्म शरीर, जो अदृश्य होता है और मृत्यु के बाद भी बना रहता है।
सांसारिक शरीर के नष्ट होने पर सूक्ष्म शरीर एक नए भौतिक शरीर में प्रवेश करता है। इसी प्रक्रिया को पुनर्जन्म कहा गया है।
सूक्ष्म शरीर के चार भाग होते हैं:
1. बुद्धि: चेतना या निर्णय लेने की शक्ति।
2. अहंकार: स्वयं की पहचान या "मैं" का भाव।
3. मनस: इंद्रियों और मन की गतिविधियाँ।
4. प्राण: जीवन ऊर्जा या सांस।
इस तरह, सांख्य दर्शन सृष्टि और पुनर्जन्म के गहरे रहस्यों को समझाने का प्रयास करता है। यह योग के सिद्धांतों का आधार है, जो आत्मा और प्रकृति के संतुलन पर भी बल देता है।
योग का ऐतिहासिक सफ़र: योग का इतिहास, हमें हज़ारों साल पहले उत्तरी भारत की ओर ले जाता है। सबसे पहले, योग का उल्लेख हिंदू धर्म के चार पवित्र ग्रंथों में से एक, ऋग्वेद में मिलता है। इस काल की प्राचीन पेंटिंग और नक्काशी से यह स्पष्ट होता है कि योग का अस्तित्व उस समय भी था। भगवान शिव (पशुपति) और देवी पार्वती की आकृतियाँ विभिन्न योग आसन और ध्यान मुद्राओं को दर्शाती हैं।
एक किंवदंती के अनुसार, भगवान शिव ने अपनी पत्नी पार्वती को उनके वास्तविक स्वरूप का ज्ञान कराने के लिए योग सिखाया। इस दौरान, शिव की सवारी और उनके शिष्य नंदी ने उनकी शिक्षाओं को सुना। नंदी ने यह ज्ञान मनुष्यों तक पहुँचाया। नाथ संप्रदाय के अनुसार, भगवान शिव को पहला योगी माना जाता है और इसलिए उन्हें "आदिनाथ" कहा जाता है।
कहा जाता है कि, माता पार्वती ने, इस गुप्त कला को अपने पास रखना कठिन समझा और इसे भगवान ब्रह्मा को दे दिया। ब्रह्मा ने इसे अपने पुत्रों, नारद और सनत कुमारों को सिखाया। बाद में, यह ज्ञान सप्तर्षियों तक पहुँचा। प्राचीन ग्रंथों में सप्तर्षियों को सबसे अधिक ज्ञानी और पूजनीय माना गया है। उन्होंने इस ज्ञान को उपनिषदों में दर्ज किया, जो 2000 से अधिक दार्शनिक और धार्मिक ग्रंथों की श्रृंखला है।
भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन के संशय और भ्रम को दूर करने के लिए योग की विभिन्न धाराओं का उल्लेख किया। गीता केवल हिंदुओं के लिए ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के लोगों के लिए जीवन और उसके उद्देश्य का मार्गदर्शन करती है।
महर्षि पतंजलि को योग का जनक कहा जाता है। उनको को "गोनर्दीय" और "गोनिकपुत्र" के नाम से भी जाना जाता है। वे प्राचीन भारत के एक महान लेखक, रहस्यवादी और दार्शनिक थे। माना जाता है कि, उन्होंने कई महत्वपूर्ण संस्कृत कृतियों की रचना और संकलन किया। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति ‘योगसूत्र’ है, जिसे शास्त्रीय योग का मुख्य ग्रंथ माना जाता है। विद्वानों का अनुमान है कि महर्षि पतंजलि दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 5वीं शताब्दी ईस्वी के बीच रहे होंगे। भारतीय परंपराओं में उन्हें "आदि शेष" का अवतार माना गया है।
ऐतिहासिक रूप से यह स्पष्ट नहीं है कि, महर्षि पतंजलि उन सभी कृतियों के लेखक थे, जिनका श्रेय उन्हें दिया गया है। "पतंजलि" नाम के कई अन्य विद्वानों का उल्लेख इतिहास में मिलता है। 20वीं शताब्दी में उनके कार्यों और पहचान को लेकर कई शोध किए गए। हालांकि, उनके योगदान को भारतीय साहित्य और दर्शन में बहुत उच्च स्थान प्राप्त है।
महर्षि पतंजलि की प्रमुख रचनाएँ निम्नवत दी गई हैं:
1) महाभाष्य: महाभाष्य एक प्राचीन ग्रंथ है, जो संस्कृत व्याकरण और भाषा विज्ञान पर आधारित है। यह पाणिनि की "अष्टाध्यायी" और कात्यायन की टिप्पणियों पर आधारित है। इसे "महान टिप्पणी" भी कहा जाता है। भारतीय परंपरा में इसे अत्यंत आदर और सम्मान के साथ देखा जाता है।
2) योगसूत्र: योगसूत्र, भारतीय परंपरा में सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। यह शास्त्रीय योग का आधारभूत ग्रंथ है। मध्यकालीन काल में, योगसूत्र का चालीस से अधिक भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया। यह ग्रंथ, आज भी योग और ध्यान के अध्ययन में मार्गदर्शक है।
3) पतंजलितंत्र: पतंजलितंत्र, चिकित्सा और स्वास्थ्य विज्ञान से संबंधित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इस ग्रंथ का उल्लेख, "योगरत्नाकर," "योगरत्नसमुच्चय," और "पदार्थविज्ञान" जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। इन ग्रंथों में महर्षि पतंजलि को चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञ के रूप में वर्णित किया गया है।
भारतीय दर्शन, योग और व्याकरण में महर्षि पतंजलि का अद्वितीय योगदान रहा है। उनकी रचनाएँ, प्राचीन काल से लेकर आज तक, लोगों को प्रेरित और मार्गदर्शित करती रही हैं। उनका नाम, भारतीय साहित्य और योग के इतिहास में सदा अमर रहेगा।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/2aauxxzo
https://tinyurl.com/24ff5k2v
https://tinyurl.com/ysn2sk6g
https://tinyurl.com/2hk7ktvz
मुख्य चित्र: महर्षि पतंजलि की एक प्रतिमा जिसमें वो ध्यान का अभ्यास कर रहे हैं,जो उनके द्वारा परिभाषित योग के आठ अंगों में से एक है (Wikimedia)
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